दस साल पहले 2015 में विजेता बनकर उभरे कनाडा के ‘पोस्टर ब्वॉय’ जस्टिन ट्रूडो ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके लिए उन्होंने शासक दल के “आंतरिक झगड़ों” को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन यह सिर्फ कनाडा की सियासत की कहानी नहीं है. दरअसल, ट्रूडो का पतन पूरे पश्चिमी जगत में ‘माइग्रेशन’ के अंधे तुष्टीकरण और उसको लेकर मूर्खतापूर्ण विवादों की लापरवाही भरी जो उदारवादी राजनीति चल रही है उसी को उजागर करता है. इस तरह की राजनीति को दुनिया भर में झटके लग रहे हैं. इसकी जगह जो आ रहा है वह धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है, लेकिन इतना निश्चित है कि अब पुराना तौर-तरीका अब नहीं चलेगा.
ट्रूडो और उनकी राजनीतिक शैली का कितना पतन हो चुका है यह उनकी ‘अप्रूवल रेटिंग’ से ज़ाहिर है, जो सितंबर 2016 में 65 प्रतिशत से दिसंबर 2024 में गिर कर 22 प्रतिशत हो गई. एक दशक के कार्यकाल में उनकी ‘प्रदर्शनात्मक’ राजनीति के कारण प्रायः उनकी आलोचना की जाती थी. मसलन, कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलिएवर ट्रूडो की विचारधारा को अतिवादी और ‘निरंकुश समाजवादी’ से मिलती-जुलती बताते थे.
बहरहाल, कनाडा में जो जनअसंतोष है वह एक अहम सवाल खड़ा करता है : जस्टिन ट्रूडो अपनी नीतियों के कारण विफल हुए या यह लोगों की स्वाभाविक सरकार विरोधी ऊब का नतीजा है?
दोषपूर्ण नीतियां
यह कहना सरलीकरण ही होगा कि उन्हें केवल अपनी नीतियों और मूल्यों की वजह से इस्तीफा देना पड़ा. दरअसल, उनका पतन मतदाताओं के जनसांख्यिकीय स्वरूप में परिवर्तन और वैश्विक चुनौतियों समेत कई वजहों से हुआ.
हम उनकी इमिग्रेशन पॉलिसी से शुरुआत करते हैं, जो कि उनके नेतृत्व की एक प्रमुख विशेषता थी. उनकी इन नीतियों खूब तारीफ भी हुई और उतनी ही आलोचना भी हुई. उनकी महत्वाकांक्षा 2025 तक कनाडा में पांच लाख आप्रवासियों को बुलाने की थी. यह कनाडा में कामगारों की भारी कमी को दूर करने की उनकी रणनीति का हिस्सा थी, लेकिन वहां रहने की जो भारी समस्या है वह महत्वाकांक्षा और शासन की व्यावहारिकता के बीच के नाजुक असंतुलन का खुलासा कर देती है. 2015 में जब ट्रूडो ने बागडोर संभाली थी कनाडा में औसत मकान की लागत 446,000 डॉलर थी. 2024 में यह बढ़कर 732,000 डॉलर हो गई, जबकि 2022 के मार्च महीने में या अपने शिखर 834,000 डॉलर पर पहुंच गई थी.
कोविड-19 ट्रूडो के लिए और आलोचनाएं लेकर आया था. तब उन्होंने जो लॉकडाउन लगाया उसके कारण छोटे व्यवसायियों को हुए नुकसान और बेरोज़गारी में वृद्धि के लिए उनकी जोरदार निंदा की गई. इसके साथ ही पर्यावरण से संबंधित ‘फेडरल कार्बन टैक्स’ जैसी नीतियों के लिए भी उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. उन्होंने पेट्रोल उत्पादन को बढ़ाने और गैस उत्सर्जन को कम करने के जो उपाय किए उसके कारण भी लोगों में काफी असंतोष फैला. ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ में पिछले साल छापे एक लेख के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और पेट्रोल उद्योग के बीच का संघर्ष अल्बर्टा जैसे प्रान्तों में साफ दिख रहा था, जहां पेट्रोल उद्योग में 1,40,000 लोगों को रोज़गार मिला हुआ है और जहां से सरकार को कुल राजस्व का 20 फीसदी हिस्सा प्राप्त होता है, लेकिन आर्थिक चिंताओं को ही ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट की एकमात्र वजह नहीं माना जा सकता.
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए पूरी दुनिया को आगे आना होगा, यह सभी महिलाओं के लिए चिंता की बात है
दिखावे की राजनीति नहीं चलेगी
सबको साथ लेकर चलने के आडंबर पर खड़ी राजनीति आज की दुनिया में अपना आकर्षण खो रही है, क्योंकि आज लोग ठोस नतीजे और प्रामाणिक नेतृत्व चाहते हैं. पिछले दिनों कनाडा की संसद में संयोग से नाजियों के साथ लड़ाई लड़ने वाले एक पूर्व यूक्रेनी सैनिक को “यूक्रेन एवं कनाडा के हीरो” बताकर उसकी प्रशंसा की गई, जिसके लिए ट्रूडो को बाद में माफी मांगनी पड़ी. ऐसी गलतियों के कारण भरोसा घटता ही है. ट्रूडो की उदारवादी नेता वाली छवि पर तब भी आंच आई थी जब 2022 में ट्रक वालों के आंदोलन के खिलाफ उन्होंने इमरजेंसी वाले अधिकारों का इस्तेमाल किया था, जिनका अब तक कभी प्रयोग नहीं किया गया था और फिर, वह बहुचर्चित ‘ब्लैकफेस’ विवाद भी हुआ, जब 1990 के दशक में खिंचवाई वह फोटो इंटरनेट पर जारी हुई थी जिसमें वे ‘ब्लैकफेस’ ड्रेस में नज़र आते हैं. इसके लिए भी उन्हें काफी माफी मांगनी पड़ी और कहना पड़ा कि “विशेषाधिकारों की कई परतों” ने उन्हें यह एहसास करने से रोका कि वह एक रंगभेदी कार्रवाई थी.
और इन सबके ऊपर, खालिस्तान के विवादास्पद मसले पर भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते में गिरावट ऐसा मामला बन गया जिसकी अनदेखी उनकी पार्टी और सरकार नहीं कर सकती थी. सांकेतिक दिखावे, रस्मी प्रतिनिधित्व और भेदभाव की राजनीति अंततः थोड़े समय के लिए वाहवाही दिलाती है. यह व्यापक जनाधार में अक्सर अलगाव की भावना पैदा करती है और इससे जटिल समुदायों को अक्सर राजनीतिक बैसाखी में तब्दील करने का खतरा पैदा हो जाता है.
इसलिए, ट्रूडो के इस्तीफे के कई कारण हो सकते हैं. यह महत्वाकांक्षी इमिग्रेशन नीति का नतीजा हो सकता है, या वैश्विक मंच पर बड़े मानवीय वादे करने के बावजूद देश में कुछ न कर पाने का भी परिणाम हो सकता है. मतदाताओं की स्पष्ट ऊब या नेतृत्व बदलने की उनकी अपरिहार्य इच्छा भी इसकी वजह हो सकती है. या यह सभी कारणों के इकट्ठा हो जाने का भी नतीजा हो सकता है.
उनका इस्तीफा कनाडा की राजनीति में स्पष्ट बदलाव को उजागर करता है. ट्रूडो एक ऐसी विरासत छोड़कर जा रहे हैं जिस पर अगले कई वर्षों तक बहस चलती रहेगी. उनके उत्तराधिकारी के लिए चुनौती यह है कि वह देश को बेहतर भविष्य की ओर ले जाते हुए लोगों की उन निराशाओं का समाधान करे, जिनके कारण ट्रूडो का पतन हुआ.
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: ‘मैं हैरान हूं’ — ईरानी महिला आहू दरयाई के हिजाब विरोध का भारतीय ‘उदारवादी’ क्यों नहीं कर रहे समर्थन