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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतजम्मू-कश्मीर वालों के साथ उत्तर-पूर्व वालों के जैसा ही बर्ताव कीजिए, हमें भी अनुच्छेद 371 के दायरे में रखिए: मुजफ्फर बेग

जम्मू-कश्मीर वालों के साथ उत्तर-पूर्व वालों के जैसा ही बर्ताव कीजिए, हमें भी अनुच्छेद 371 के दायरे में रखिए: मुजफ्फर बेग

पूर्व उप-मुख्यमंत्री बेग कह रहे हैं—एक साल पहले अनुच्छेद 370 को हटाते हुए दावा किया गया था कि इससे वहां के लोगों में राष्ट्रवादी भावना बढ़ेगी मगर हकीकत में तो इसके कोई लक्षण दिख नहीं रहे हैं.

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मैं यह लेख किसी हताशा में नहीं बल्कि उम्मीद के साथ लिख रहा हूं.

पिछले साल आज की तारीख, 5 अगस्त को ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को रद्द कर दिया गया. इसी के साथ, जम्मू-कश्मीर तब तक जो भी थोड़ी-बहुत स्वायत्तता का लाभ उठा रहा था वह खत्म हो गया. राज्य का अपना अलग संविधान भी बेअसर हो गया. राज्य का इसका दर्जा खत्म करके इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
अब मेरे खयाल से सही कदम यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की जाए कि वह अनुच्छेद 370 और 35ए को रद्द करने के फैसले पर अपना निर्णय दे.

अगर कोर्ट अपने पिछले फैसलों को खारिज करके इन अनुच्छेदों को रद्द करने को सही ठहराती है तो सही कदम यह होगा कि जम्मू-कश्मीर राज्य को अनुच्छेद 371 के दायरे में लाया जाए. ऐसा उत्तर-पूर्व के राज्यों के साथ किया गया है, तो जम्मू-कश्मीर के साथ भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? आखिर यह भी ऐसा क्षेत्र है जिसका विशेष जातीय और ऐतिहासिक चरित्र वैसा है जैसा उत्तर-पूर्व के राज्यों का है.

गलत दलील

चंद सवाल उभरते हैं. क्या भारत सरकार का फैसला कानूनन जायज था? क्या यह जरूरी और फायदेमंद था?

इस विवादास्पद फैसले को कानूनन जायज ठहराने के लिए दलील यह दी गई कि अनुच्छेद 370 हमेशा के लिए लागू नहीं किया गया था. यह भी दावा किया गया कि इसे रद्द करने से जम्मू-कश्मीर और भारत के लोगों के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे. अनुच्छेद 370 को अस्थायी मानने का गलत आधार इस अनुच्छेद की उपधारा 3 के साथ जुड़ा वह ‘मार्जिनल नोट’ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ खास हालात में इस अनुच्छेद में संशोधन, या इसे रद्द तक किया जा सकता है.

इस आधार को कम-से-कम तीन वजहों से गलत समझा गया है. पहली यह कि यह एक स्थापित नियम है कि ‘मार्जिनल नोट’ किसी उपधारा को स्पष्ट या विधिवत रूप से परिभाषित नहीं करते. दूसरी वजह यह है कि उपधारा 3 में साफ कहा गया है कि अनुच्छेद 370 में कोई भी बदलाव करना या उसे रद्द करना जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफ़ारिश पर ही किया जा सकता है. उस संविधान सभा को 1956 में राज्य के संविधान की मंजूरी के बाद भंग कर दिया गया. इसके पहले, राष्ट्रपति के 1952 और 1954 के आदेशों के तहत फैसला किया गया था कि अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान के दूसरे प्रावधानों के साथ जम्मू-कश्मीर में आगे भी लागू रखा जाएगा. जाहिर है, अनुच्छेद 370 को इसकी उपधारा 3 के बहाने गैरकानूनी रूप से रद्द किया गया है.

सरदार वल्लभभाई पटेल ने 12 अक्तूबर 1949 को भारतीय संविधान सभा में बयान दिया था— ‘हमने उस सूबे और संघ के बीच मौजूदा आधार पर रिश्ता बनाए रखने के विशेष प्रावधान किए हैं.’ इसी सभा में एन. गोपालस्वामी आयंगर ने ‘कश्मीर’ में रायशुमारी करवाने के भारत के वादे का जिक्र करते हुए कहा था, ‘हमने यह भी मंजूर किया है कि एक संविधान सभा के जरिए आवाम की इच्छा से ही उस सूबे का संविधान तय होगा और यह भी तय होगा कि वहां संघ की दायरे में क्या होगा.’

और सबसे अहम बात यह है कि ‘सम्पत प्रकाश बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य’ मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने 1969 में फैसला सुना दिया था कि अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफ़ारिश पर ही रद्द किया जा सकता है. राज्य की संविधान सभा को भंग किए जाने से पहले उसने ऐसी कोई सिफ़ारिश नहीं की, इसलिए अनुच्छेद 370 स्थायी बन गया था.

आहत और अपमानित

जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म करके उसे केंद्रशासित प्रदेश बना देना तो बिलकुल अविश्वसनीय है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 साफ कहता है कि किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश नहीं बनाया जा सकता. जम्मू-कश्मीर के दोनों हिस्सों में आम धारणा यही है कि यह तो सज़ा देना हुआ. केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जा बहाल करने पर शायद गौर करे. लेकिन लोगों के दिल को जो चोट पहुंची है और वे जिस तरह अपमानित महसूस कर रहे हैं उसके जख्म लंबे समय तक नहीं भरेंगे.

असली मसला है अनुच्छेद 370 और 35ए को फिर से बहाल करना. इसे रद्द करते हुए दावा किया गया था कि इससे वहां के लोगों में राष्ट्रवादी भावना बढ़ेगी मगर हकीकत में तो इसके कोई लक्षण दिख नहीं रहे हैं. इसके उलट, लोगों में अलगाव की भावना ही खामोशी से गहरी होती जा रही है.

एक विश्वासघात

याद रहे कि पिछले साल उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों के स्थायी निवास के प्रमाणपत्र के मसले को लेकर जब विवाद उभर आया था तब केंद्र सरकार ने बुद्धिमानी दिखाते हुए तुरंत लोगों की आशंकाओं को दूर करने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था कि उनकी जातीय, पारंपरिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचानों की सुरक्षा की जाएगी. जम्मू-कश्मीर के लोगों के मामले में यह बुद्धिमानी क्यों नहीं बरती जा सकती? अनुच्छेद 371 एक ऐसा विशेष संवैधानिक प्रावधान है जिसके तहत लोगों की विशेष पहचानों को राष्ट्रीय पहचान और राज्य-व्यवस्था में जगह दी जा सकती है.

सबसे पुराना और सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका अपने निवासियों को दोहरी नागरिकता की मंजूरी देता है और लोग राष्ट्रीय के साथ अपने राज्य की भी नागरिकता रखते हैं. कोई भी राष्ट्र-राज्य सभी निवासियों पर एक ही संवैधानिक फॉर्मूला लागू करके नहीं, बल्कि उदार और विवेकपूर्ण संवैधानिक प्रावधानों और उपायों के जरिए उनकी अपनी-अपनी पहचान की रक्षा करके और उनकी जरूरतों को पूरा करके ही मजबूत बन सकता है. भारत की सरकार से हम यही उम्मीद रखते हैं. विडम्बना यह है कि जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के नेताओं को भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत नज़रबंद कर दिया गया है. इससे राज्य के साथ विश्वासघात करने का ही संदेश उभरता है.

लेखक जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप-मुख्यमंत्री हैं. वे 1987-89 के बीच राज्य के एडवोकेट जनरल थे. पीडीपी पार्टी के संस्थापकों में शामिल रहे बेग पद्मभूषण से नवाज़े जा चुके हैं. ये उनके निजी विचार हैं

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. RESPECTED SIR, RAM RAJAYA KA SAPNA JUB SUCH HOGA JUB , ACCESS TO JUSTICE HOGA, SASTA, SARAL, SULABH, TAVRIT JUSTICE BHARAT DESH KI PUBLIC KO MILEGA, JUSTICE DELAY JUSTICE DENIED, AAJ DESH MAI COURTS MAI PENDING CASES KI BADH AA RAKHI HAI, COURTS MAI JUDGES KI KAMI HAI, COURTS KI KAMI HAI,GAREEB MAJBUR MAJDUR KA AAJ JUSTICE LENA SAPNE SE KUM NAHI HAI ,PROPER INFRASATURACTURE KI JARURAT, E-COURTS, E-FILING, VC, TECHNOLOGY KO USE KAR DESH KI JANTA KO JALDI JUSTICE DELIVERED KAR SAKTE HAI, TARIKH PER TARIKH, COURTS PER COURTS 30 YEARS TAK LAGTE HAI CASES KO, KYA YE RAM RAJYA HAI, CORRUPTION DINO-DIN BADH RAHA HAI, JISKI LADHI USKI BHENCE HO RAHI HAI, LOKTANTAR KA MISSUSE HO RAHA HAI, YE KITNE DIN CHALEGA , HONEST PERSON KA JINA MUSKIL HO RAHA HAI, BENAMI PROPERT, BLACKMONEY, FCRA,FEMA, LAW KA SAKAT PALAN HO , BHED-BHAV ,INJUSTICE OF WORK, INSTITUTES MAI BADH RAHA HAI, MANMANI BADH RAHI HAI, LOWER EMPLOYEES KA JINA MUSKIL HO RAHA HAI, VEHISIL BLOWER IN DEPARATMENT TIME KI MANG HAI

  2. सही कहा आपने यहां पर न्याय मिलना किसी सपने जैसा है एक जिला स्तर पर ही सामान्य व्यक्ति को न्याय के लिए इतने कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं और अपना आर्थिक रूप से सब कुछ बेच कर भी न्याय नहीं मिल सकता और ऊपर जाने के लिए उसके पास कुछ बचा ही नहीं बड़े-बड़े मंत्री राज्य मंत्री राज्य सरकार डीएम लेखपाल पटवारी कमिश्नर भिवानी के कोर्ट तहसील के कोर्ट तहसील न्यायालय प्रत्येक कुर्सी पर बिना पैसे दिए कभी काम नहीं हो सकता जिसके पास पैसे नहीं है उसको कभी सपने में भी न्याय नहीं मिल सकता सभी पुलिस थाने चौकी पुलिस प्रशासन विभाग बड़े से बड़ा अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त सभी धनायन का ताकतवर लोगों का उच्च वर्ग का या उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों का समर्थन और सहयोग करते सामान्य व्यक्ति को इनसे कभी न्याय की उम्मीद नहीं करनी चाहिए अपना पैसा जो भी है उसको बचा कर इनसे प्राण बचाकर कहीं भी छुपकर नहीं जी सकता यह लगभग सभी राज्यों में प्रत्येक सामान्य व्यक्ति के साथ होता है यह मेरे व्यक्तिगत अनुभव है

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