नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ (एनआइपी) नामक एक कार्यक्रम पेश किया है जिसमें 102 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं 2024-25 तक पूरी की जाएंगी. इस निवेश से मांग में वृद्धि होगी, कार्यकुशलता बढ़ेगी, भारत में प्रतिस्पर्द्धा का माहौल बेहतर होगा, और अर्थव्यवस्था सरकार के लक्ष्य के मुताबिक 5 खरब डॉलर की हो जाएगी.
इस कुल निवेश के 78 प्रतिशत में केंद्र और राज्यों की सरकारें बराबर-बराबर की देनदारी करेंगी, जबकि बाकी 22 प्रतिशत निजी क्षेत्र से आएगा. परियोजनाएं नई नहीं हैं, बल्कि वे लागू किए जाने के भिन्न-भिन्न चरणों— खाका बनाए जाने से लेकर विकास तक— में हैं. अगर ‘एनआइपी’ के कारण परियोजनाओं को समय पर पूरा करने पर विशेष ज़ोर डाला जा सकेगा, खासकर उन परियोजनाओं को जिनके लिए विभिन्न सरकारी विभागों से मंजूरी हासिल करने की प्रक्रिया को नौकरशाही लंबे समय तक खींचती रही है, तो यह परियोजना प्रबंधन और समयबद्ध काम करने के मामले में एक उपयोगी योगदान होगा. इसके अलावा, अगर ‘एनआइपी’ वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए नौकरशाही और राजनीतिक महकमों से जरूरी योगदान ला पाती है, तो परियोजनाओं को पूरा करने में भारी मदद मिलेगी.
वित्तीय समस्या
वित्तीय प्रबंध इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे के लिए सबसे बड़ी अड़चन रही है. यह तो बिलकुल साफ है कि तेज शहरीकरण और बढ़ती अर्थव्यवस्था को एक तो नई सड़कें, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, पाइपलाइनें, बिजली और टेलिकॉम चाहिए; दूसरी ओर, यह भी स्पष्ट है कि बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर से उत्पादकता में वृद्धि होती है. 2018-19 और 2017-18 में भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सालाना 10 लाख करोड़ रु. का निवेश किया गया.
अनुमान है कि वर्ष 2019-20 में यह राशि 13.6 लाख करोड़ रही. अब साल की आखिरी तिमाही ही बची है, तो इस साल का सारा निवेश हो जाना चाहिए था. वित्त मंत्रालय ने निर्देश जारी किया है कि अंतिम तिमाही में आवंटित बजट के 25 प्रतिशत से ज्यादा खर्च नहीं किया जा सकता है. अब चुनौती 2010-21 में पेश होने वाली है, जब इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 19.5 लाख करोड़ खर्च किए जाने होंगे. 2021-22 के लिए प्रस्तावित राशि इससे करीब दोगुना होगी यानी इसमें 19 लाख करोड़ और जुड़ेंगे.
टैक्स में छूट की जरूरत
विशेष अड़चन उस पैसे के रूप में है, जो कई वर्षों तक ताले में बंद रखे जाने के लिए होगा. 2000 के मध्य में जब सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बड़ा बढ़ावा देने का फैसला किया था तब उसने पैसे के लिए मुख्यतः बैंकों क सहारा लिया था. इस कारण बैंकिंग सेक्टर घोर संकट में फंस गया था और भारत को भारी क्रेडिट स्लोडाउन का सामना करना पड़ा था. इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को तो झटका लगा ही था, पूरी अर्थव्यवस्था को खराब बैंकिंग सिस्टम के चलते बुरा नतीजा भुगतना पड़ा था. इसकी वजह यह थी कि बैंकों ने लंबे समय की परियोजनाओं के लिए ऐसे अल्पावधि कर्ज़ जारी किए थे जिसकी उनमें क्षमता नहीं थी और न ही जिनका आकलन और निगरानी करने का अधिकार उन्हें था. यह गलती दोहराई नहीं जानी चाहिए.
इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए वित्त की उपलब्धता बढ़ाने से पहले भारत को बॉन्ड मार्केट में सुधार, सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी बनाने, और नियमन तथा मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारों को भी लागू करने की जरूरत है. आज यह सब मुमकिन भले न हो मगर इनके बिना इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए वित्त की उपलब्धता बढ़ाना आफत को बुलावा देना होगा.
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अतिरिक्त निवेश का केवल एक भाग ही एसेट मोनेटाइजेशन और यूजर चार्जेज जैसे नए स्रोतों से हासिल हो सकता है. बीमा में बचत और पेंशन फंड का जो मौजूदा स्तर है उससे ज्यादा नहीं आएगा, भले ही बीमा और पेंशन रेगुलेटरों के मानक बदल जाएं, जैसा कि रिपोर्ट से जाहिर होता है. बीमा प्रीमियम भारत के जीडीपी के 3 प्रतिशत से और पेंशन फंड से जीडीपी के 1 प्रतिशत थोड़े ही ज्यादा हैं. भारत में दीर्घकालिक बचत का योग इतना नहीं है कि निवेश के लिए आवश्यक बचत को सहारा दे सके.
टैक्स में छूटों, जिससे परिवारों के दीर्घकालिक बचत को सहारा मिलता है, के मामले में भी सुधार की जरूरत है. टैक्स में छूट विशेष साधनों तक सीमित न रखकर बचत के अधिक साधनों पर दिए जाएँ ताकि परिवार पेंशन के लिए ज्यादा बचत करें. उदाहरण के लिए, मकान की बिक्री पर पूंजीगत लाभ पर टैक्स से बचने के लिए व्यक्तियों को खास वर्ग के छोटे इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड खरीदने की छूट दी जाती है. इस तरह के बॉन्ड काफी सीमित होते हैं.
अगर मोदी सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारी बढ़ावा देना चाहती है तो उसे इन सबसे आगे जाकर देखना होगा. टैक्स में छूटों का घरेलू बचत पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर मेंने राधिका पांडेय और रेणुका साने ने जो अध्ययन किया था उसमें पाया गया कि टैक्स में छूटों से घरेलू बचत को काफी बढ़ावा मिलता है. बचत के जिन साधनों पर टैक्स छूट दी जाती है, और जिस साल दी जाती है उस साल घरेलू बचत में वृद्धि होती है.
टैक्स में छूटों का जो मौजूदा ढांचा है वह ‘एनआइपी’ की परियोजनाओं के लिए आवश्यक 7 लाख करोड़ की अतिरिक्त दीर्घकालिक बचत के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार नहीं हो सकेगा. टैक्स में छूटों के प्रारूप की अगले महीने पेश होने वाले बजट में समीक्षा और उसमें परिवर्तन की जरूरत है, तभी मोदी सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को टिकाऊ आधार दे पाएगी.
(लेखिका अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इन्स्टीच्यूट ऑफ पब्लिक फाइनान्स ऐंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. उपरोक्त उनके निजी विचार हैं.)
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