यह कोई आखिरी चीज़ होगी जिसकी ममता बनर्जी को ज़रूरत होगी.
28 मार्च को ऑक्सफोर्ड में हुई बहस से वे अभी उबरी ही थीं कि उन्हें अपने सामने सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, अगर कभी नहीं तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में. 25,000 से ज़्यादा टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ अचानक बेरोज़गार हो गए, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी के कुछ नेताओं ने अपनी जेबें भरने के लिए उनमें से कुछ पदों को बेचने का फैसला किया.
कर्मचारियों के अचानक चले जाने से राज्य की शिक्षा व्यवस्था ढहने के कगार पर पहुंच गई है. पूरे राज्य में वह सड़कों पर उतर आए हैं, धरना दे रहे हैं और अपनी दुर्दशा के लिए विरोध कर रहे हैं और पुलिस द्वारा उन पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं, जिसकी बंगाल और उसके बाहर कड़ू निंदा की जा रही है.
ऐसे वक्त पर, ममता को जिस आखिरी चीज़ की ज़रूरत है कि उनकी पार्टी के सांसदों के बीच एक बदसूरत, द्वेषपूर्ण लड़ाई छिड़ जाए. इससे भी बुरा होगा कि उस गाली-गलौज की घटना का वीडियो और व्हाट्सएप मैसेज में रिकॉर्ड भाजपा के पास पहुंच जाए, जो इसे खुशी-खुशी पब्लिक कर दे, जिससे टीएमसी को अब तक की सबसे बड़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़े. एक पार्टी जो दीदी के सख्त-लेकिन-उदार नेतृत्व में एकजुट होने की छवि पेश करती थी, अब एक मछली बाज़ार की तरह दिख रही है, जो भयंकर, कटु प्रतिद्वंद्विता से त्रस्त है.
क्या टीएमसी को इस बात की परवाह नहीं है कि लोग इसे कैसे देखते हैं? हां, बेशक उसे परवाह है, लेकिन जो बात उसे रातों की नींद उड़ा रही है, वह एक ऐसा सवाल है जो शर्लक होम्स, अगाथा क्रिस्टी और बंगाल के अपने फेलुदा को सबसे परिचित लगेगा: कौन अपराधी है? लड़ाई का वीडियो किसने शूट किया, किसने इसे भाजपा को लीक किया और टीएमसी के लोकसभा सांसदों के व्हाट्सएप ग्रुप से सांसदों कीर्ति आज़ाद और कल्याण बनर्जी के बीच झगड़े को किसने लीक किया?
संक्षेप में, देशद्रोही, ट्रोजन हॉर्स, भाजपा का दलाल कौन है?
बदकिस्मत तेरह
4 अप्रैल को सांसद डेरेक ओ ब्रायन और कल्याण बनर्जी ने 15 सांसदों की एक टीम के साथ चुनाव आयोग (ईसी) में आधार को ईपीआईसी कार्ड से जोड़ने पर सवाल उठाने वाला ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन पर 13 लोगों के हस्ताक्षर हैं, जिसमें ओ ब्रायन पहले नंबर पर और बनर्जी दूसरे नंबर पर हैं. ग्यारह अन्य नाम एक अलग पृष्ठ पर छपे हैं और उन पर हस्ताक्षर हैं. कुल 13.
कम से कम दो अन्य सांसद मौजूद थे: रीताब्रत बनर्जी और मोहुआ मोइत्रा. महुआ मोइत्रा ने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है. हालांकि, कल्याण बनर्जी ने कहा है कि मोइत्रा इस बात से नाराज़ थीं कि उनका नाम सूची में नहीं था और उन्होंने उन्हें वक्फ विधेयक पर लोकसभा में बोलने का वक्त नहीं दिया गया.
बनर्जी ने यह भी कहा कि मोइत्रा की ओर से लड़ाई में हस्तक्षेप करने वाले आज़ाद उनसे नाराज़ थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि उन्होंने संसद परिसर में बंगाली मिष्ठीर डोकन या मिठाई की दुकान की शाखा खोलने के लिए सांसदों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाने के लिए आज़ाद को फटकार लगाई थी.
निर्वाचन आयोग में टकराव के बाद, टीएमसी सांसद एक प्रेस वार्ता को संबोधित करने के लिए विजय चौक पर एकत्र हुए. पार्टी के अन्य सांसद पहले से ही वहां इंतज़ार कर रहे थे. उनमें सौगत रॉय भी शामिल थे, जिन्होंने कहा कि उन्होंने मोइत्रा को बनर्जी के साथ टकराव पर रोते हुए देखा. रॉय ने बनर्जी को खरी-खोटी सुनाई, जिन्होंने नारद घोटाले का ज़िक्र किया, जिसके कारण रॉय ने कहा कि बनर्जी को लोकसभा में ‘मुख्य सचेतक’ के पद से हटा दिया जाना चाहिए.
चुनाव आयोग कार्यालय के अंदर और बाहर टकराव पर खूब चर्चा और विश्लेषण किया गया, लेकिन इसके नतीजे क्या होंगे?
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संकेत
यह सब टीएमसी के लिए अच्छा नहीं है, यह तो तय है. हर दूसरी पार्टी में मतभेद और गुटबाजी है. टीएमसी में भी कई बार झड़पें हुई हैं, लेकिन वह एकजुट मोर्चा बनाने में कामयाब रही है. निश्चित रूप से साथियों के बीच, खासकर इंडिया गुट में, उसकी छवि को नुकसान पहुंचा है और भाजपा इसका पूरा फायदा उठा रही है.
टीएमसी के सूत्रों ने मुझे बताया है कि इस टकराव में शामिल चार प्रमुख खिलाड़ियों को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से फोन आए हैं. चारों को अपनी आवाज़ कम करने और इसे ऐसे ही रखने के लिए कहा गया है. बनर्जी, आज़ाद और रॉय चुप हो गए हैं. मोइत्रा भी शांत हैं, सिवाय एक्स के, जहां उन्होंने बताया कि उन्होंने वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की है और वे दक्षिणपंथियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के लिए भी अभियान चला रही हैं, जो चाहते हैं कि दिल्ली के चित्तरंजन पार्क बाज़ार में मछली बेचने वाले लोग एक मंदिर से दूर चले जाएं, जो उनकी दुकानों से सटा हुआ है.
चीज़ें ठीक हो रही हैं और टीएमसी नेता राहत की सांस ले रहे हैं, लेकिन इस टकराव ने एक संकेत दिया है जिसे टीएमसी अपने जोखिम पर ही अनदेखा कर सकती है: पश्चिम बंगाल में एक संकट से दूसरे संकट में फंसती ममता, राजधानी में पार्टी के मामलों पर अपनी पकड़ खोती जा रही हैं और इससे टीएमसी को नुकसान हो सकता है.
टीचर्स का विरोध प्रदर्शन जोर पकड़ रहा है. उनके विरोध प्रदर्शन को जनता का समर्थन मिल रहा है, उन लोगों का भी जिन्होंने पिछले अगस्त में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के खिलाफ सड़कों पर उतरकर टीएमसी को चौंका दिया था.
जनता के असंतोष के उस विस्फोट को दोहराना कुछ ऐसा है जिसे टीएमसी चुनावी साल में बर्दाश्त नहीं कर सकती. पश्चिम बंगाल को अगले 12 महीनों तक ममता बनर्जी के पूरे ध्यान की ज़रूरत है. अगर केंद्र सरकार नहीं टिकती है, तो 2026 में भी कोई खास नतीजा नहीं निकल सकता.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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