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Thursday, 21 November, 2024
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क्या आप अयोध्या की गंगा को जानते हैं, जिसे फिर से जीवित करने की कोशिश हो रही

अयोध्या में बहने वाली गंगा ‘तिलोदकी गंगा’ थी, जिसकी बाबत पौराणिक मान्यता है कि राजा राम ने सिंधु देश के घोड़ों के पानी पीने के लिए दूसरी सिंधु नदी के समान इसका ‘निर्माण’ कराया और ‘स्थापित’ किया था.

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अयोध्या सरयू के तट पर बसी है और गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में खुद भगवान राम के मुंह से कहलवाया है- ‘जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि, उत्तर दिसि बह सरजू पावनि’. अगर आप अभी तक अयोध्या के बारे में इतना ही जानते आ रहे हैं कि तो अपनी जानकारी में थोड़ी वृद्धि कर लीजिए. अयोध्या में कभी गंगा भी बहती थी. अलबत्ता, वह गंगा नहीं जो उत्तराखंड में गंगोत्री से निकलती और ढाई हजार किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा करके बंगाल की खाड़ी तक जाती है.

अयोध्या में बहने वाली गंगा ‘तिलोदकी गंगा’ थी, जिसकी बाबत पौराणिक मान्यता है कि राजा राम ने सिंधु देश के घोड़ों के पानी पीने के लिए दूसरी सिंधु नदी के समान इसका ‘निर्माण’ कराया और ‘स्थापित’ किया था. इसका पानी काले तिल के रंग का हुआ करता था, इसलिए कालांन्तर में इसका नाम ‘तिलोदकी गंगा’ पड़ गया. 1905 के फैजाबाद गजेटियर में इसका जिक्र तत्कालीन फैजाबाद जिले के मंगलसी नामक स्थान से निकलने वाली छोटी नदी के रूप में किया गया है, जिसे तिलई या तिलंग कहा जाता था और जो अयोध्या के पूर्व में सरयू की मुख्य धारा में मिलकर मंगलसी के पूर्व और हवेली अवध के पश्चिम से होकर बहा करती थी.

कई अन्य विवरण बताते हैं कि यह नदी वर्षा ऋतु में महज दो महीने प्रवाहित हुआ करती थी. तब तक, जब तक युगल सरकार यानी सीता व राम के अयोध्या स्थित मणि पर्वत की तलहटी में झूलनविहार और बाग में रात्रि विश्राम किया करते थे. अन्य ऋतुओं में वे अन्यत्र वनों में बिहार व निवास की लीला सम्पन्न करने चले जाते तो यह नदी उनके वियोग में सूख जाती थी.


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इसके विपरीत यह भी कहा जाता है कि यह नदी पंडितपुर गांव में ऋषि रमणक की तपस्या से उद्भूत (निकली) हुई और लम्बे अंतराल में एकदम से सूखकर पौराणिक विवरणों व जनस्मृतियों में ही रह गई. अयोध्या के चर्चित साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र ने कोई पांच साल पहले 2017 में अपनी महत्वाकांक्षी पुस्तक ‘शहरनामा फैजाबाद’ सम्पादित की तो उसमें इस नदी के बारे में यह विवरण दर्ज किया: मूलरूप में इस नदी का अस्तित्व आज समाप्तप्राय है.

केवल प्रतीकात्मक अर्थों में इसका अंकन करना हो तो मणि पर्वत, यज्ञवेदी के पास पौराणिक रूप से मुखर होने के अतिरिक्त इसकी सूक्ष्म उपस्थिति को इन दोनों ही स्थानों पर एक लम्बी पतली सूख चुकी धारा के रूप में आसानी से देखा जा सकता है. इसका विस्तार क्षेत्र अयोध्या के पंचकोसी परिक्रमा मार्ग से चौदहकोसी परिक्रमा मार्ग की ओर जाने पर इसी मार्ग के समानांतर मिलता है, जो पूरी तरह खेतों में बदल चुका है और नदी तो क्या छोटे तालाब के रूप में भी दिखाई नहीं देता.

2017 में लगभग यही समय था, जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आई और उसने ‘अयोध्या के प्राचीन गौरव’ की बहाली पर काम शुरू किया. तब कई हलकों में तिलोदकी गंगा को पुनर्जीवन देने की ‘जरूरत’ भी जताई जाने लगी. कहा जाने लगा कि अयोध्या में हुए अंधाधुंध निर्माणों व अतिक्रमणों ने पहले इस गंगा को नाले में बदला, फिर इसका अस्तित्व ही समाप्त कर डाला और अब इसे फिर से खोज निकालने के भगीरथ प्रयत्नों के बगैर अयोध्या में त्रेता यानी भगवान राम के युग के स्वरूप को साकार करने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्वप्न साकार नहीं हो सकता. यह भी कहा गया कि तिलोदकी गंगा के बगैर अयोध्या से होकर बहने वाली सरयू, गोमती, तमसा, बिसुही और कल्याणी नदियां अधूरी लगती हैं.

इसके बाद जिला अनुश्रवण समिति की एक बैठक में अयोध्या के जिलाधिकारी द्वारा इस नदी के पुनरुद्धार की घोषणा की गई. सरकारी महकमे सक्रिय हुए, राजस्व अभिलेख खंगालने के बाद सर्वे कर इसका रूट साफ किया गया तो पाया गया कि यह पौराणिक नदी लगभग 47 किलोमीटर लंबी हुआ करती थी. इसके रूट की कई झीलों और तालाबों ने भी गवाही दी कि यह तत्कालीन फैजाबाद जिले की दो तहसीलों सदर और सोहावल से होते हुए सरयू में मिलती रही है. यह भी महसूस किया गया कि इस 47 किलोमीटर के क्षेत्र में उसे पुनर्जीवन देने में बाघा डाल सकने वाले सबसे ज्यादा अतिक्रमण व अवरोध सदर तहसील के उस क्षेत्र में ही हैं, जो अयोध्या नगर निगम की सीमा में है.

लेकिन अब अयोध्या नगर निगम कहता है कि उसने इन अतिक्रमणों व अवरोधों से जूझते हुए चार किलोमीटर तक नदी का स्वरूप उजागर कर दिया है और उसमें पानी की उपलब्धता बनाए रखने के लिए उसे आसपास के कुंडों एवं तालाबों से भी जोड़ रहा है. इस चार किलोमीटर में रामायण काल के आठ हजार पौधे रोपने की भी उसकी योजना है. इसके अलावा सोहावल ब्लॉक में पंडितपुर गांव में नदी के उद्गम स्थल से भी इसका स्वरूप उजागर करने का काम किया जा रहा है, जहां यह एक झील से होते हुए आगे का रास्ता तय करती है.

लेकिन इसी बीच अयोध्या की यह गंगा एक बेहद गलत कारण से चर्चा में आ गई है. गत 6 अक्टूबर को जब भारी बारिश के चलते आई भीषण बाढ़ से अयोध्या के दर्जन भर मोहल्ले जलमग्न थे और मकानों की निचली मंजिल में रहने वाले लोग अपने घरों में पानी भर जाने से बुरी तरह त्रस्त थे, अयोध्या नगर निगम के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से आंख में धूल झोंकने वाले एक ट्वीट में कह दिया गया कि तिलोदकी गंगा का उद्धार कर देने से नगर को जलभराव से मुक्ति मिल गई है. प्रदेश सरकार और उसके कई बड़े अधिकारियों को टैग कर इस ट्वीट में लिखा गया: संवरती अयोध्या!!! अयोध्या नगर निगम द्वारा पौराणिक तिलोदकी गंगा के जीर्णोद्धार के फलस्वरूप विगत कई वर्षों की जलभराव की समस्याओं का हो रहा स्थायी समाधान.

विडम्बना यह कि यह समाधान नगर निगम के अलावा और किसी को नहीं दिखा. वरिष्ठ पत्रकार इंदुभूषण पांडेय की मानें तो इस टि्वटर हैंडल को नगर आयुक्त, जो विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी हैं, के लोग हैंडल करते हैं और यह ट्वीट मरहूम शायर राहत इंदौरी के उस शे’र जैसा है, जिसमें उन्होंने लिखा है: झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो, सरकारी ऐलान हुआ है सच बोलो. घर के अन्दर झूठों की एक मंडी है, दरवाजे पर लिख रक्खा है सच बोलो.

पांडेय कहते हैं, ‘मतलब साफ है, तिलोदकी गंगा के पुनर्जीवन के नाम पर लम्बा खेल किया जा रहा है. इसके विपरीत सच यह है कि अयोध्या के रानोपाली क्षेत्र में भूमाफिया व तहसील के काकस ने मिलकर अभी भी तिलोदकी गंगा की भूमि पर दुकानें और मकान आदि बना रखे हैं. इसे लेकर एक शिकायत के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जांच के आदेश भी दे रखे हैं, फिर भी जिम्मेदारों की नजर इस पर नहीं पड़ रही. इसके उलट अफसर दावा कर रहे हैं कि नदी पुनर्जीवित कर दी गई है और लोगों को उसका लाभ मिलने लगा है. भले ही सदर तहसील के उपजिलाधिकारी रामकुमार शक्ला तक कहते हैं कि कई क्षेत्रों में जांच चल रही है.’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सूर्यकांत पांडे तो यहां तक कहते हैं कि तिलोदकी गंगा के पुनर्जीवन का काम भी वैसे ही हुआ है, जैसे गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक जाने वाली गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने का. बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गत 1 सितम्बर को उक्त गंगा की प्रदूषण मुक्ति के मामले पर सुनवाई करते हुए अफसरों से पूछा था कि नमामि गंगे परियोजना पर अब तक कितना खर्च हुआ है और उपयुक्त जवाब न पाकर टिप्पणी की थी कि हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं और अफसर अपनी जिम्मेदारी को शटलकॉक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं.’

(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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