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Saturday, 21 December, 2024
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वो तीन कारण जिससे देवेंद्र फडणवीस अपनी छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं

आदित्यनाथ अपनी कट्टर छवि को छोड़ने का जोखिम उठा सकते हैं क्योंकि वो आलाकमान की दखलंदाजी से बहुत आगे बढ़ चुके हैं लेकिन देवेंद्र फडणवीस का अभी वहां पहुंचना बाकी है.

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एक ऐसे राज्य के बारे में सोचें, जिसने 1998 से 2008 तक 1,192 सांप्रदायिक झड़पें देखीं, जो देश में सबसे ज्यादा थी, जिसमें 172 लोगों की जान गई थी. भारत की वित्तीय राजधानी के बारे में सोचें, जिसने 1908-2009 के दौरान 83 सांप्रदायिक दंगे देखे, जिसमें 1,900 लोग मारे गए और 8,000 से अधिक लोग घायल हुए.

महाराष्ट्र में मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल के एक आधिकारिक अध्ययन के इन आंकड़ों को याद करें. मैं शीघ्र ही इसपर लौटूंगा.

अभी बात करते हैं, महाराष्ट्र के विकास के पोस्टर बॉय देवेंद्र फडणवीस के बारे में. कोल्हापुर के सांप्रदायिक तनाव के लिए राज्य के गृह मंत्री ने “औरंगजेब की औलाद” को दोष दिया. ये वो फडणवीस नहीं लगे जिनको हम जानते थे.  2014 से 2019 तक, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में, उन्हें कभी भी ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले नेता रूप में नहीं देखा गया. उनका ध्यान बुनियादी ढांचे पर था-मुंबई में यूपीए-युग की मेट्रो लाइनों की परियोजना में तेजी लाने और विस्तार करने से लेकर, तटीय सड़क, ट्रांस-हार्बर लिंक, मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे इत्यादि. जनवरी 2018 में, उन्होंने घोषणा की कि महाराष्ट्र अगले 7-10 वर्षों में ट्रिलियन-डॉलर जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) लीग में शामिल होगा. टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक इनवेस्टमेंट समिट से पहले उन्हें यह कहते हुए लिखा, “बिजनेस इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि कोई भी उन्हें परेशान नहीं कर रहा है और यही महाराष्ट्र की ताकत है,”

वे दिन थे जब महाराष्ट्रियन और राज्य के बाहर के बहुत लोग फडणवीस की हर बात से खूब खुश होते थे. उस समय तक आदित्यनाथ का ‘विकास पुरुष’ बनना बाकी था जो वे उत्तर प्रदेश के सीएम के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में बने. और हिमंत बिस्वा सरमा को अभी असम का मुख्यमंत्री बनना था. फडणवीस तब अपनी खुद की लीग में थे, भाजपा में कई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी उन्हें एक संभावित प्रधान मंत्री के रूप में देखा जा रहा था.

फडणवीस के मुख्यमंत्री के रूप में राजनीतिक केंद्र के मंच पर आने तक, नितिन गडकरी महाराष्ट्र में भाजपा के पोस्टर बॉय थे, जिन्हें लोक निर्माण विभाग मंत्री के रूप में मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का श्रेय दिया गया था. उन्होंने धीरूभाई अंबानी की सबसे कम 3,600 करोड़ रुपये की बिड को खारिज करने और उद्योगपति के साथ शर्त लगाई की अगर उन्होंने एक्सप्रेसवे को उससे आधी कीमत पर नहीं बनाया तो वह अपनी मूंछ मुंडवा लेंगे. इसकी कीमत 1,600 करोड़ रुपये थी और गडकरी, जिन्हें मुंबई का ‘फ्लाईओवर मैन’ भी कहा जाता है, ने अपनी मूंछें बचाईं.

फडणवीस के रूप में, भाजपा को एक नया पोस्टर बॉय मिला, क्योंकि तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री लंबे समय से लंबित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी ला रहे थे और उन्हें पूरा कर रहे थे और नए उपक्रम भी स्थापित कर रहे थे. वह महाराष्ट्र के केवल दूसरे ब्राह्मण मुख्यमंत्री है- मनोहर जोशी पहले हैं- जहां ब्राह्मणों की आबादी का अनुमान बमुश्किल तीन प्रतिशत है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया तब राजनीतिक हल्के के रूप में देखा गया था. वास्तव में, वह उस वर्ष मोदी के बड़े राजनीतिक प्रयोग का हिस्सा थे- राज्य में राजनीतिक रूप से प्रमुख समुदायों की उपेक्षा कर कम प्रभावशाली समूह में से किसी मुख्यमंत्री की नियुक्ति ध्रुवीकरण अवधारणा के रूप में, यह शानदार था – जाट बहुल हरियाणा में एक खत्री, महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण और आदिवासी बहुल झारखंड में एक वैश्य. पांच साल बाद झारखंड का प्रयोग विफल रहा. हरियाणा में भी भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला. हालांकि इसने महाराष्ट्र में काम किया.

भाजपा-शिवसेना को मिलकर पर्याप्त बहुमत मिला लेकिन भाजपा आलाकमान ने शिवसेना को विरोधियों के खेमे में जाने दिया. लेकिन 2019 तक, फडणवीस एक जन अपील वाले एक स्थापित नेता थे. मैंने 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र की यात्रा की थी. लोगों को गरीबी, बेरोजगारी और अन्य मुद्दों पर भले ही भाजपा से काफी नाराज़गी रही हो, लेकिन वो फडणवीस को एक कर्मठ के रूप में देखते थे.

52 साल की उम्र में, फडणवीस महाराष्ट्र में सबसे बड़े भाजपा नेता हैं और पीएम मोदी के बाद भाजपा में जनाधार वाले  बहुत कम बड़े नेताओं में से एक हैं- इनमें हैं आदित्यनाथ, हिमंत सरमा, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे. तो, महाराष्ट्र में भाजपा के उस होनहार युवा, उदार, आधुनिक चेहरे को क्या हो गया है? उसे अब औरंगजेब को क्यों याद करना पड़ रहा है?


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हिंदुत्व की ओर मुड़ें

ऐसे समय में जब सोशल मीडिया पर अलग-अलग व्यक्तियों के पोस्ट महाराष्ट्र के कई जिलों में सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दे रहे हैं, तो राज्य के गृह मंत्री “औरंगज़ेब की औलाद” टिप्पणी के साथ अपने काम को और कठिन क्यों बना रहे हैं? यह हमें पहले पैराग्राफ में उल्लिखित आंकड़ों पर भी लाता है. साम्प्रदायिक झगड़ों के इतिहास वाले राज्य में, फडणवीस, एक नेता जो महाराष्ट्र को ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते थे, भड़काऊ टिप्पणियों के साथ निवेश के माहौल को खराब क्यों करेंगे?

पार्टी में उनके विरोधी इसे उनकी पत्नी अमृता से जुड़े घोटाले से ध्यान हटाने के लिए ध्यान भटकाने की रणनीति के रूप में देखते हैं. उसने अपनी डिजाइनर ‘दोस्त’ अनिक्षा जयसिंघानी के खिलाफ रिश्वत देने और ब्लैकमेल करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी. आरोपी को गिरफ्तार करने में मुंबई पुलिस को पांच हफ्ते लग गए, जो गिरफ्तारी के 11 दिन बाद ही जमानत पर रिहा हो गई थी.

डिप्टी सीएम-गृह मंत्री की पत्नी को कथित तौर पर रिश्वत देने और ब्लैकमेल करने की कोशिश करने वाले किसी व्यक्ति के लिए, अनिक्षा निश्चित रूप से पुलिस जांच और अदालत की कार्रवाई को देखते हुए भाग्यशाली रहीं. भाजपा और आरएसएस के नेता इस मामले को बड़ी उत्सुकता से देख रहे हैं.

हालांकि फडणवीस के नए अवतार को हालिया घटनाक्रम के संदर्भ में देखना गलत है. एक छवि बनाने के लिए उनके प्रयास – इन्फ्रास्ट्रक्चर मैन से लेकर हिंदुत्व आइकन तक – काफी समय से ध्यान देने योग्य हैं. मार्च में, उन्होंने घोषणा की कि राज्य सरकार “लव जिहाद” पर एक कानून बनाने पर विचार कर रही है.

पिछले महीने उन्होंने नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर में मुस्लिम समुदाय द्वारा कथित रूप से चादर चढ़ाने की कोशिश की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया था. मुस्लिम नेताओं ने कहा कि मंदिर के प्रवेश द्वार से लोबान दिखाने की यह रस्म दशकों से चली आ रही है और मंदिर में प्रवेश करने या कोई चादर डालने से इनकार किया है.

सितंबर 2021 में, कोविड -19 संकट के बीच, तत्कालीन विपक्ष में फडणवीस ने सरकार द्वारा अनुमति नहीं देने पर मंदिरों को जबरन खोलने की धमकी दी थी.

एक कट्टर हिंदुत्व नेता के रूप में उनकी सबसे बड़ी पिच मई 2022 में आई जब उन्होंने मुंबई में पार्टी की एक रैली में घोषणा की, जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किया गया था: “जो लोग मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने से डर गए थे, वे पूछ रहे हैं कि जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था तब हम कहां थे? मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि मैं बाबरी मस्जिद के विध्वंस का हिस्सा था. देवेंद्र फडणवीस मौके पर मौजूद थे. इससे पहले मैं कार सेवा के दौरान 18 दिन बदायूं सेंट्रल जेल में भी बंद रहा.’

उपमुख्यमंत्री के रूप में सत्ता में लौटने से लगभग दो महीने पहले की बात है.

यह बदलाव क्या बताता है

छवि बदलने के लिए फडणवीस जिस तरह से प्रयास कर रहे हैं, उसके तीन कारण हो सकते हैं. सबसे पहले, उद्धव ठाकरे के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष खेमे में शामिल होने के साथ, यह भाजपा के लिए अवसर है कि वह बाल ठाकरे की राजनीतिक और वैचारिक विरासत सहित हिंदुत्व के स्थान को पूरी तरह से हथियाने की कोशिश करे. इसके लिए उसे आज एकनाथ शिंदे की शिवसेना के रूप में एक सहयोगी की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन अंततः भाजपा को महाराष्ट्र में भी हिंदुत्व के एकमात्र भंडार के रूप में उभरना होगा. यह फडणवीस के कठोर दक्षिणपंथी मोड़ की व्याख्या कर सकता है.

दूसरा स्पष्टीकरण ध्रुवीकरण की आवश्यकता हो सकता है, विभिन्न दलों के लगभग जमे हुए वोटबैंक को देखते हुए, जो महा विकास अघाड़ी (एमवीए) – कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठबंधन को बढ़त देता प्रतीत होता है . पिछले पांच विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें. 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 16.41 फीसदी, कांग्रेस को 15.87 फीसदी और एनसीपी को 16.71 फीसदी वोट मिले थे. वोट शेयर के मामले में यह कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन था. यह अन्य दो के लिए भी लगभग सबसे खराब था, लेकिन तकनीकी रूप से नहीं. 2009 में शिवसेना को 16.26 फीसदी और एनसीपी को 16.37 फीसदी वोट मिले थे.

इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले 25 वर्षों में चुनावों में सबसे खराब प्रदर्शन का रिकॉर्ड भी देखें तो एमवीए लगभग 48 प्रतिशत वोट पर काबिज लगता है. यहां भाजपा के लिए एकमात्र राहत की बात यह है कि (शिंदे की) आधिकारिक शिवसेना अब उसके साथ है. इसलिए, भाजपा के आशावादी मानेंगे कि शिवसेना का 16 प्रतिशत वोटबैंक (2019 का) पूरी तरह से शिंदे को स्थानांतरित हो गया है. सुविधा के लिए मान लेते हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 28 फीसदी वोट हैं. मैंने इस आंकड़े को इसलिए चुना है क्योंकि 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 27.82 फीसदी वोट मिले थे- अब तक का सबसे अच्छा- जब वह अकेले चुनाव लड़ी थी. बीजेपी को तब शिंदे की सेना की जरूरत होगी ताकि पूर्ववर्ती शिवसेना के अधिकांश मतदाताओं को एनडीए के पाले में लाया जा सके. फिलहाल शिवसेना के वोटशेयर को अलग रख दें. यहां तक कि उनके सबसे खराब प्रदर्शन के साथ, काल्पनिक रूप से, कांग्रेस और एनसीपी 32 प्रतिशत के संयुक्त वोट शेयर की कमान संभालेंगे. भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 28 फीसदी रहा. इससे पता चलता है कि बीजेपी को नतीजे देने के लिए एकनाथ शिंदे पर कितना निर्भर रहना चाहिए.

वैसे भी बीजेपी खेमे में कई संशय हैं. जैसा कि मैंने पिछले महीने अपने कॉलम में उल्लेख किया था, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता मुंबई में पार्टी की बैठक में अमित शाह को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि कैसे शिवसैनिक शिंदे की पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा नहीं बदल रहे हैं.

वह नेता देवेंद्र फडणवीस के विश्वासपात्र थे. इसे हिंदुत्व वोटबैंक को मजबूत करने के लिए महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम के प्रयासों की व्याख्या करनी चाहिए.

हालांकि, छवि बदलने के लिए फडणवीस के प्रयास के लिए तीसरा स्पष्टीकरण हो सकता है. मुख्यमंत्री के रूप में उनकी तमाम उपलब्धियों और शिवसेना को तोड़कर अपनी राजनीतिक सूझबूझ दिखाने के बाद भी उन्हें बीजेपी आलाकमान का समर्थन नहीं मिला है.

2019 में, दिल्ली ने उद्धव ठाकरे को मनाने और सरकार बनाने की कोशिश करने के लिए बहुत कम प्रयास किए. और जब उन्होंने शिवसेना को विभाजित किया और सरकार को नीचे लाए, तो आलाकमान ने उन्हें डिप्टी सीएम के रूप में शपथ दिलाकर उनके कद को कम कर दिया. उन्होंने देखा होगा कि कट्टर हिंदुत्व का पालन करने वाले मुख्यमंत्रियों के पास आलाकमान का विश्वास जीतने का बेहतर मौका है- असम के हिमंत बिस्वा सरमा से लेकर हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर और उत्तराखंड के पुष्कर धामी तक.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली में आकाओं के साथ शांति खरीदने के लिए अपनी उदारवादी छवि को छोड़ना पड़ा. उत्तर प्रदेश के आदित्यनाथ एक कट्टरपंथी के रूप में अपनी पिछली छवि को बदलने और पूरी तरह से विकासोन्मुख मुख्यमंत्री के रूप में उभरने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

आदित्यनाथ ऐसा कर सकते हैं क्योंकि वह आलाकमान के दखल से बहुत आगे निकल चुके हैं और बड़े हो गए हैं. फडणवीस अभी नहीं हैं. और इसलिए वो समय को पीछे मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, पहले एक हिंदुत्व कट्टरवादी के रूप में उभर कर और फिर एक ऐसे नेता के रूप में अपनी छवि को चमकाकर जिसने महाराष्ट्र को ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का सपना देखा है.

(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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