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Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतइस रमजान, न तो रोजे न ही खाने को मजबूर करें, कुरान कहता है कि धर्म में कोई विवशता नहीं होनी चाहिए

इस रमजान, न तो रोजे न ही खाने को मजबूर करें, कुरान कहता है कि धर्म में कोई विवशता नहीं होनी चाहिए

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ख़ुद एक मुसलमान नहीं हैं लेकिन वो नमाज पढ़ती हैं और रोजा भी रखती हैं. बहुतों का कहना है कि वो इस सच्चे दिल से नहीं करतीं और वो ये सब सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए करती हैं.

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रमजान के महीने में हमें ज़रूर याद रखना चाहिए कि कुरान कहता है, ‘ला इकराहा फिद्दईन’, यानी धर्म में कोई विवश्ता या बाध्यता नहीं है. यदि कोई कुरान में कही गई इस बात का पालन सच्चे दिल से करे तो संभव है कि पूरी दुनिया में शांति छा जाएगी. इस आयत को इस्लामी विद्वान कुछ इस तरह से समझाते हैं: ‘इस्लाम बल प्रयोग, जबर्दस्ती, उत्पीड़न और इस तरह की अन्य विनाशकारी व्यवहारों से कोई लेना-देना नहीं है.’ ऐसे में अल्लाह में सच्चा विश्वास रखने वालों को उनकी सलाह का पालन करना चाहिए और बाकियों को रमजान के दौरान रोजा रखने पर मजबूर नहीं करना चाहिए.

ओमान में रमजान के दौरान रोजे के समय में सार्वजनिक जगहों पर खाना या पीना कानूनन अपराध है. ऐसा करने वाले किसी व्यक्ति को तीन महीने की जेल की सज़ा दी जाती है, चाहे वो किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हो. यहां तक की कार में बैठ के खाना भी दण्डनीय है. कुवैत में सार्वजनिक स्थल पर रोजे के समय रोजा तोड़ना दण्डनीय अपराध है जिसके लिए एक महीने की जेल की सज़ा से लेकर 100 दिनार का फाइन तक लग सकता है. पाकिस्तान में भी पब्लिक में खाते पाए जाने पर 500 का फाइन या तीन महीने की जेल हो सकती है. कई मुस्लिम देशों में रमजान के दौरान सार्वजनिक जगहों पर खाना अपराध माना जाता है. बांग्लादेश में दिन के समय में रेस्त्रां को जबर्दस्ती बंद करके रखा जाता है, रोजा रखने वाली भीड़ आती है और इसमें तोड़फोड़ करके चली जाती है. जो रोज़ेदार नहीं होते उन्हें हमेशा घबराहट रहती है.


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कई रोजेदारों को लगता है कि उनके सामने जो लोग खा या पी रहे हैं वो उनका अपमान कर रहे हैं. मुझे जो खाना होता था वो मैं रोजा कर रही मेरी मां के सामने बैठकर खाती थी और वो मेरे खाने की चीज़ों को देखकर ख़ुश होती थीं. मुझे इस बात का भी पता है कि मेरे रोजा नहीं रखने के बावजूद मेरे लिए उनका प्यार एक रत्ती भी कम नहीं हुआ. मेरी मां एक बेहद ईमानदार और पवित्र महिला थीं, उन्हें पता था कि किसी के रोजा नहीं रखने की मर्ज़ी का सम्मान कैसे करना है.

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ख़ुद एक मुसलमान नहीं हैं लेकिन वो नमाज पढ़ती हैं और रोजा भी रखती हैं. बहुतों का कहना है कि वो इसे सच्चे दिल से नहीं करतीं और वो ये सब सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए करती हैं लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि किसी को भी उन्हें ये करने से रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. उन्हें इस बात का अधिकार है कि वो जिस धर्म का पालना करना चाहती हैं उसका पालन करें. जैसे हमारे पास ये अधिकार है कि हम चाहें तो धर्म को त्याग सकते हैं, हमारे पास ये अधिकार भी है कि हम एक से ज़्यादा धर्मों का पालन कर सकते हैं.

जो रोजा रखते हैं उन्हें उम्मीद होती है कि ‘कयामत’ के रोज वो अल्लाह की शरण में होंगे. क्या ये पर्याप्त नहीं है? रोजा रख रहे मुसलमान उन लोगों से सम्मान की उम्मीद क्यों करते हैं जो रोजा नहीं रख रहे हैं? क्या सम्मान साझी चीज़ नहीं है? सम्मान तभी दिया जा सकता है जब वो मिलता है.


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बांग्लादेश में सेहरी के लिए जागने पर लोग चिल्लाने लगते हैं जिसके वजह से बेवजह का माहौल बन जाता है. इस बेवजह के माहौल की वजह से बाकी लोग भी जाग जाते हैं, इसमें वो लोग भी शामिल होते हैं जिन्हें सेहरी से कोई लेना-देना नहीं है. अजान के बारे में भी यही कहा जा सकता है. बीते जमाने में जब अलार्म वाली घड़ी या मोबाइल फोन नहीं होते थे, तो स्थनीय युवकों द्वारा बनाया जाने वाला बेवजह का ये माहौल काफी मददगार साबित होता था. ये उनके लिए मददगार साबित होता था जिन्हें सेहरी के लिए जागना होता था. तकनीक के चरम के इस दौर में ऐसी अति का कोई काम नहीं है. मुझे भरोसा है कि सबको अपने फोन में अलार्म लगाना आता है.

हमें बचपन में रमज़ान के दौरान प्रार्थना करने, रोज़ा रखने या उपवास करने को लेकर किसी भी प्रकार की बाध्यता नहीं थी. रात को सोने जाने से पहले मां पूछती थी कि हममें से कौन उपवास करना चाहता है. जो भी उपवास करना चाहता है वो मुझे बता दे. जो कोई भी सुबह के भोजन लिए पहले उठे, वो सावधान रहे कि किसी को भी कोई परेशानी न हो. जो लोग नमाज़ पढ़ना चाहते है वो पढ़ें जो नहीं पढ़ना चाहते थे, वे न पढ़ें.

जो लोग उपवास करना चाहते हैं, वो करें जो नहीं करना चाहते वो उपवास न करें. प्रत्येक मनुष्य को आस्तिक या गैर-आस्तिक होने का अधिकार है. इतना ही नहीं धार्मिक लोगों के पास जो धर्म को नहीं मानते हैं उनकी आलोचना करने का अधिकार है लेकिन जो लोग धार्मिक नहीं हैं उनको स्पष्ट रूप से धार्मिकों के बारे में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है. यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें उत्पीड़न, कानूनी दिक्कतें, जेल, निर्वासन या यहां तक कि उनकी हत्या भी हो सकती है. धर्म एक व्यक्तिगत मामला है. जो भी किसी विशेष धर्म का पालन करना चाहता है उसे ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हर किसी को अनुमति दी जानी चाहिए जैसा वे करना चाहते हैं.

कोई भी राष्ट्र, राज्य या समाज किसी को धर्म का पालन करने के लिए कैसे मजबूर कर सकता है? राष्ट्र सभी का है. विश्वास करने वालों और विश्वास न करने वालों का भी है. सरकार का यह कर्तव्य है कि सभी के साथ समान व्यवहार हो. हमें एक बात याद रखनी चाहिए कि देश की नज़र में एक व्यक्ति जो किसी विशेष धर्म में विश्वास करता है और एक व्यक्ति जो किसी में विश्वास नहीं करता है, दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, वे एक ही अधिकार के हकदार हैं.

दूसरी तरफ, चीन की सरकार ने देश के मुस्लिम इलाकों में रोजा के पालन पर रोक लगा दी है., हालांकि यह रोक केवल सरकारी अधिकारियों, कार्यकर्ताओं, नेताओं और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं और छात्रों पर लागू होती है. मैं समझता हूं कि छात्रों को अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उपवास नहीं करना चाहिए और न ही करना चाहिए. लेकिन सभी सरकारी अधिकारी और कार्यकर्ता नास्तिक नहीं होते हैं. यदि वे उपवास करना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए? शायद सरकार यह बताना चाहती है कि उपवास से थकान होती है और इससे कार्यालय का काम बाधित हो सकता है. मैं चीन सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा करता हूं.


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चीन ने यह भी फैसला लिया है कि रमज़ान के दौरान कोई भी कैफे और रेस्तरां बंद नहीं होंगे. मेरा मानना है कि यह सही निर्णय है. जब रमज़ान के दौरान पेय पदार्थ के उपभोग पर प्रतिबंध लगाने की बात आती हो, भले ही कोई उपवास न कर रहा हो तब भी. दूसरी ओर, मुस्लिम राष्ट्र चीन से अलग सोचते हैं .

यदि इस्लाम अधिक उदार नहीं हुआ, तो यह मुसलमानों का सबसे अधिक नुकसान होगा. आज दुनिया भर में बहुत से लोग मुसलमानों के खिलाफ हैं. मुसलमानों पर अब भरोसा नहीं किया जा सकता है. आतंकवादी संगठनो में नाम आने के कारण ज्यादातर मुस्लिम डरे हुए हैं. मुट्ठीभर आतंकवादी संगठनों के कारण सामान्य रूप से मुसलमानों को एक असहिष्णु और रूढ़िवादी समूह के रूप में पहचाना जा रहा है. यह स्वयं मुसलमानों को सुनिश्चित करना चाहिए कि इस्लाम अधिक उदार बने.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक एक प्रतिष्ठित लेखक और टिप्पणीकार हैं. यह लेखक की व्यक्तिगत राय है.)

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