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Wednesday, 24 April, 2024
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अपने मंत्रालय के अलावा हर चीज़ के लिए सुर्खियों में हैं मोदी के मंत्री

भाजपा नेताओं और मंत्रियों के अनियंत्रित बड़बोलेपन से नरेंद्र मोदी की उस छवि को धक्का लगता है कि उनकी अपने मंत्रियों, सरकार और संस्थाओं पर पकड़ है.

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सोचिए, पिछले साढ़े चार सालों में प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों, सहयोगियों, राज्यपालों और सैन्य अधिकारियों में क्या एक चीज़ है जिसे सबने जोश के साथ निभाया है.

इसका पता लगाने के लिए कोई इनाम नहीं मिलेगा. ये है सुर्खियां बटोरने का जोश. जम्मू कश्मीर के राज्पाल सत्यपाल मलिक इस खेल में अभी-अभी जुड़े हैं. पहले उनके कथन से ऐसा प्रतीत हुआ कि केंद्र ने भाजपा के समर्थन वाले सज्जाद लोन सरकार को पदस्त करने की योजना बनाई थी. और फिर उन्होंने सार्वजनिक रूप से शंका ज़ाहिर की कि उन्हें यहां से हटा कर (किसी दूसरे राजभवन) में भेजा जा सकता हैं. ये सब इसलिए क्योंकि उन्होंने राज्य विधान सभा को भंग कर दिया था.

उन्हें मेघालय के अपने समकक्ष तथागत रॉय से सीखना चाहिए कि इस खेल में कैसे टिका जाता है. रॉय की ट्वीटर प्रोफाइल @tathagata2 उनकी प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ कहती है. ‘दक्षिणपंथी सामाजिक राजनीतिक चिंतक, लेखक और विचारक. साथ ही मेघालय के राज्यपाल.’ त्रिपुरा के राज्यपाल के रूप में उन्होंने कई बार सुर्खियां बटोरीं- वे अज़ान की तेज़ आवाज़ पर ‘सेक्युलर लोगों की चुप्पी’ पर प्रश्न करने और रोहिंग्या को ‘कूड़ा’ कहने के लिए समाचार में रहें.

अगस्त में उनका शिलॉन्ग राजभवन में तबादला हुआ और वे समाचारों में बने रहे. उनका विवादित द्वीट था, ‘आज पाकिस्तान प्रायोजित मासूम (मुसलमान छोड़कर) मुंबईकरों का दसवां साल है जिसे लोग 26/11 कहते हैं.’ फिर जब इस ट्वीट’ पर सोशल मीडिया में उनकी बहुत आलोचना हुई तो उन्होंने ट्वीट डिलीट कर दिया और कहा कि इसमें तथात्मक त्रुटि थी. पर वे ‘पाकी मुस्लिम आतंकवादियों’ के बारे में भड़काऊ ट्वीट लगाते रहे.

पर केवल राज्यपालों को ही क्यों दोष दिया जाए? उनमें से कइयों को नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए ओहदों से पहले तो कोई भी नहीं जानता था.

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उनके मंत्री अपने मंत्रालयों के काम के अलावा हर चीज़ के लिए समाचारों में रहे हैं.. 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले गिरिराज सिंह ने कहा था कि जो मोदी के खिलाफ है उनकी जगह पाकिस्तान में है भारत नहीं. उनको ईनाम स्वरूप मंत्री पद मिला. और वे आज तक रुके नहीं हैं. वे विवाद उत्पन्न करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. हालिया बयान में उन्होंने इस्लामिक मदरसा दारुल उलुम देवबंद को आतंक का मंदिर बताया. वैसे अगर आपको न पता हो, जैसा हम में से कई को नहीं पता है, गिरिराज सिंह केंद्रीय सूक्ष्‍म, लघु और मध्‍यम उद्यम राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) हैं. जो अब भी नोटबंदी के असर को झेल रहा है. पर उनकी प्राथमिकताएं अलग हैं.

आखिरी बार जब स्मृति ईरानी को सुना था जब वे गोत्र और सिंदूर की बात कर रही थीं. ये दिखाने के लिए कि वे हिंदू धर्म की अनुपालक हैं और राहूल गांधी के बारे में ट्वीट करते हुए कह रही थीं कि राहुल अमेठी में इस्राइली केलों के पौधे भेज रहे हैं. वे कपड़ा मंत्री हैं जिनका विभाग नोटबंदी की मार झेल रहा है. महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने महाराष्ट्र में अपनी ही पार्टी के खिलाफ ट्वीट कर सुर्खियां बटोरीं. शेरनी अवनी ही हत्या पर वे अपनी ही पार्टी को आड़े हाथों ले रही थीं और केंद्रीय पर्यावरण, जंगल और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन भी निराशा से देखते रह गए.

हम केवल इन मंत्रियों की बात कर रहे हैं जबकि सरकार में इनके कई सहयोगी कोई कम कमाल नहीं कर रहे, इस बात का ये बुरा मान सकते हैं.

सेना प्रमुख बिपिन रावत अपने उस बयान के लिए सुर्खियों में आए जिसमें उन्होंने कहा था कि करतारपुर को ‘अलग से देखना चाहिए’ और उसको बातचीत फिर शुरू होने के साथ जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने ‘कुछ संगठनों’ (इसे राजनीतिक दल के रूप में पढ़ें) को अवैध अप्रवासियों (बांग्लादेशी पढ़ें) से जोड़ा और कहा कि नियंत्रण रेखा पर भी ड्रोन हमले में कोई समस्या नहीं है अगर ‘देश हमले से होने वाले नुकसान को झेलने’ को तैयार है. आपने आखिरी बार इतने मुखर सेना प्रमुख को कब सुना था.

हम सीबीआई के उच्चतम अधिकारियों का गैर मामूली तमाशा देख रहे हैं. और तो और रिज़र्व बैंक जैसी संस्था जो कभी नज़र नहीं आती या फिर देश का सांख्यिकी ब्यूरो, सब राजनीतिक झगड़ों में शामिल हो रहे हैं. अगर आज आप सत्ताधारी प्रशासन का हिस्सा हैं, आप कुछ भी कहकर बच सकते हैं. क्या आप कभी सोच सकते थे कि एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रवक्ता, यहां भाजपा के संबित पात्रा- अपने राजनीतिक विरोधी– ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलीमीन (एआईएमआईएम)- को एक टीवी बहस में धमका रहे हैं, ‘बैठ जाओ नहीं तो मैं विष्णु भगवान के नाम पर एक मस्जिद का नाम रख दूंगा’?

पिछले 53 महीने से ज्यादा समय हो गया है, बातों पर बातें फेंकने वालों ने हमें बार बार बताया है कि कैसे नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी और सरकार में बड़बोले लोगों को बिना मतलब बोलने के लिए लगा रखा है. क्या सच में? नरेंद्र मोदी की कथित डांट के बावजूद भी क्यों मंत्री, अमित शाह समेत पार्टी के नेता अपने बयानों से विवाद उत्पन्न करते रहते हैं? इस बारे में सिर्फ दो तरह का अनुमान लगाया जा सकता है: या तो मोदी की उस डांट का कोई मायने नहीं होता या फिर उनके पार्टी सहयोगी यह जानते हैं कि डांट बिना मन के पड़ी है. या फिर यह भी हो सकता है कि उनके पास ऐसा सोचने का कोई कारण हो कि वे जो कह रहे हैं उसका मतलब ठीक उसका उल्टा है.

जो भी हो, नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता था कि उनकी अपने मंत्रियों, सरकार और संस्थाओं पर पकड़ है जो कि उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह में नहीं थी. लेकिन पार्टी नेताओं के इस अनियंत्रित बड़बोलेपन से मोदी की इस छवि को धक्का लगता है. एक मजबूत नेता, जिसमें लोगों ने अपनी आस्था जताई हो, नियंत्रण खो देने के साथ एक ‘कमजोर’ प्रधानमंत्री में कैसे बदल सकता है?

संरचनात्मक रूप से ऐसा लगता है कि मोदी अपने दुर्दांत समर्थकों और पसंद करने वालों को सरकार और पार्टी में ला रहे हैं जो उनके लिए माहौल बनाते हैं. लेकिन अब यह सब एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच गया है जहां चारों तरफ विघटन, अराजकता और अव्यवस्था फैल रही है, चाहे राजनीति हो, प्रशासन हो, न्यायपालिका हो, यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर हो, यह उनकी सार्वजनिक छवि को चोट पहुंचा रहा है.

नरेंद्र मोदी कवि भी हैं. इसलिए वे संभवत: आयरिश कवि डब्ल्यू बी यीट्स की यह कविता याद कर सकते हैं:

गोल गोल घूमते हुए
बाज़ अपने पालने वाले को नहीं सुन पाता
चीज़े बिखरने लगती हैं; धुरी टिक नहीं पा रही
दुनिया पर अराजकता फैलाई जा रही हैं

संयोग से यीट्स ने यह कविता 1919 में लिखी थी, ठीक उसके सौ साल पहले जब मोदी फिर से अपने लिए बहुमत तलाश रहे हैं.

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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