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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतमेरे कैमरे में बाबरी मस्जिद विध्वंस का ‘सबूत’ था, लेकिन वो इतिहास की भेंट चढ़ गया

मेरे कैमरे में बाबरी मस्जिद विध्वंस का ‘सबूत’ था, लेकिन वो इतिहास की भेंट चढ़ गया

मैं जानता हूं कि 5 दिसंबर 1992 को मैंने अयोध्या में क्या देखा. मेरा कैमरा उस रिहर्सल का गवाह था, जिसे कार सेवकों ने अंजाम दिया था.

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बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के फैसले ने, मेरे जीवन के एक 28 साल पुराने अध्याय को ख़त्म कर दिया है. काश ये फैसला अलग तरह से लिखा जाता, और इसका अंत मुझे इतनी उलझन में न छोड़ता.

उस समय मैं ‘दि पायोनीयर’ का फोटो जर्नलिस्ट था. मैं जानता हूं कि 5 दिसंबर 1992 को मैंने अयोध्या में क्या देखा. मेरा कैमरा उस रिहर्सल का गवाह था, जिसे कार सेवकों ने अंजाम दिया था, और इन सारे सालों में मैंने अपने निगेटिव्ज़, अपने बच्चों की तरह संभालकर रखे थे. मैं डरता था कि ज़रा सी नमी, पॉलिथीन में लिपटे इन निगेटिव्ज़ को ख़राब कर देगी. मेरा कैनन हर चीज़ का गवाह था. मेरी तस्वीरें बिना किसी संदेह के साबित करती थीं, कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस, पहले से सोचा हुआ और एहतियात से नियोजित किया हुआ काम था.


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अपने ‘निगेटिव्स’ को लेकर में पॉज़िटिव था

मुझे आज भी याद है सर्दियों का वो दिन, जब मेरी पत्नी ने मुझे एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा था. डाकू हमारा घर लूट रहे थे. मेरी पत्नी उन गहनों के लिए आंसू बहा रही थी, जो डाकू ले गए थे, लेकिन मैं जल्दी से अंदर भागा, ये देखने के लिए कि क्या मेरे निगेटिव्ज़ सुरक्षित थे. इतने क़ीमती थे वो मेरे लिए.

बरसों तक अदालत में अनेकों पेशियों के बाद, अब मेरे मन में कनफ्यूज़न है, सवाल हैं, और कश्मकश है कि स्पेशल सीबीआई जज सुरेंद्र कुमार यादव की कोर्ट में मेरी गवाहियों, और उनके साथ हुई बातचीत का क्या मतलब निकाला जाए.

कार सेवक 5 दिसंबर 1992 को हथौड़ों के साथ कतार में खड़े हुए । फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट
कार सेवक 5 दिसंबर 1992 को हथौड़ों के साथ कतार में खड़े हुए । फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

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फैसले से पहले का दिन

मंगलवार 29 सितंबर 2020 को, फैसला सुनाए जाने से एक दिन पहले, मैं सुबह सवेरे 3.30 बजे उठा गया, क्योंकि मुझे सवेरे दिप्रिंट की सीनियर असिस्टेंट एडिटर, अनन्या भारद्वाज के साथ लखनऊ की फ्लाइट लेनी थी.

हम लखनऊ में उतरे और सीधे सुरेंद्र यादव के चैम्बर्स के लिए निकल पड़े, लेकिन हमें बताया गया कि उनका इंटरव्यू कर पाने का मौक़ा, तक़रीबन ना के बराबर है. उनकी सिक्योरिटी ने शुरू में तो मेरा विज़िटिंग कार्ड भी, उनके पास भेजने से मना कर दिया, ये कहते हुए कि वो व्यस्त थे. हमसे कहा गया कि फोन पर बात करना, या परेशान करने वाले पत्रकारों का ध्यान करना तो दूर, उनके पास अपनी पत्नी से बात करने का भी समय नहीं है. लेकिन मैं ज़िंद करता रहा, और उनकी सिक्योरिटी से अनुरोध किया, कि कम से कम मेरा विज़िटिंग कार्ड जज तक पहुंचा दें. कुछ मिनटों के अंदर हमें अंदर बुला लिया गया.

हमें देखकर यादव ख़ुश हुए, और मेहरबानी दिखाते हुए हमें अलग से समय दिया. उन्होंने हमें बताया कि कैसे पूरी रात, उन्होंने भारी-भरकम सबूतों को पढ़ने, और अपना फैसला लिखने में बिताई है.

मुझे हैरान करते हुए उन्होंने मुझे एक बिज़नेस कार्ड निकालकर दिखाया, जो मैंने उन्हें क़रीब दो साल पहले दिया था, जब मैं इंडियन एक्सप्रेस के साथ काम कर रहा था. उन्होंने मुझे दिखाने के लिए उसे बटुए से निकाला. मुझे ये जानकर विनम्रता का अहसास हुआ, कि उन्होंने मुझे याद रखा था.

फैसले का दिन

अगली सुबह, 30 सितंबर को- जिस दिन फैसला सुनाया जाना था- यादव ने हमें अलग से कुछ और समय दिया, और कोर्ट निकलने से पहले हमें अपने घर बुलाया. घर पर हम उनके परिवार से भी मिले, जिन्होंने हमें बताया कि जज इस केस पर कितनी मेहनत कर रहे थे. जब यादव को पता चला कि वो मेरी बर्थडे थी, तो उन्होंने हमें लड्डू पेश किए. उनके परिवार ने भी मुझे शुभकामनाएं दीं.

मुझे उनकी कुछ तस्वीरें क्लिक करने का भी मौक़ा मिला, उन क्षणों में जब हम कोर्ट जाने के लिए उनकी कार के पीछे चल रहे थे. मेरे दिमाग़ में कोर्ट पेशियों में बिताया गया अपना पूरा समय घूम रहा था. उस समय यादव ही सुनवाई कर रहे थे, जब बचाव पक्ष के वकीलों ने, मुझे बदनाम और अपमानित करने में सारी हदें पार कर दीं थीं. उन्होंने मुझे फर्ज़ी फोटोग्राफर क़रार दे दिया था, जो जल्दी से पैसा बनाने की फिराक़ में था. यादव उन सब लमहों के गवाह रहे थे, और उनके बटुए में रखा मेरा पुराना विज़िटिंग कार्ड मेरी प्रोफेशनल हैसियत का गवाह था. मुझे लगा कि उनका वो इशारा ही मेरे लिए एक प्रमाण था. इसने मुझमें उम्मीदें जगा दीं. मुझे लगा कि शायद आज भारत पर लगा वो दाग़ धुल जाएगा, जब एक ख़तरनाक राजनीतिक अभियान ने, हमारे देश के मिश्रित ताने-बाने को तार तार कर दिया था.

कुछ ही मिनटों में, उन्होंने फैसला सुना दिया, और अन्य चीज़ों के अलावा मेरी तस्वीरों को भी ख़ारिज कर दिया कि ये ठोस सबूत नहीं हैं. ये फैसला देते हुए कि विध्वंस पहले से नियोजित नहीं था, उन्होंने केस के सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया. जज की निगाह में मेरा काम अच्छा नहीं था. फैसले ने मेरे निगेटिव्ज़ को, जिन्हें मैं कीमती समझता था, इतिहास की भेंट चढ़ा दिया.

(प्रवीण जैन दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर हैं. उन्होंने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को कवर किया था, और इस अपराधिक केस के गवाह थे. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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