22 अप्रैल की सुबह जब पहलगाम के शांत पहाड़ी इलाके में गोलियां गूंजीं, तब किसी ने नहीं सोचा था कि दो हफ्ते बाद भारत की प्रतिक्रिया इतिहास में दर्ज हो जाएगी.
पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकवादी हमले में जहां 25 भारतीयों और नेपाल के एक नागरिक की जान चली गई उसके ठीक दो हफ्ते बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में आतंकवादियों के नौ ठिकानों पर सटीक हमला कर दिया. इस जवाबी कार्रवाई के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा के लिए बदल जाएंगे क्योंकि भारत का हमला पाकिस्तान भूला नहीं पाएगा.
भारत की कार्रवाई तीन मायनों में अभूतपूर्व थी – सैन्य तकनीक, रणनीतिक गहराई और स्पष्ट संदेश देने की तीव्रता में.
एक, इस हमले के दौरान भारतीय सेना ने पहली बार इतने बड़े पैमाने पर सशस्त्र ड्रोन का इस्तेमाल दुश्मन के ठिकाने को नेस्तानाबूद करने के लिए किया.
दूसरा, फ्रेंच कंपनी द्वारा बनाए गए स्कॉल्प डीप स्ट्राइक हथियारों का इस्तेमाल भारत ने सफलतापूर्वक किया. दुश्मन की ज़मीन में भारतीय सैनिकों के प्रवेश किए बिना इन मिसायलों ने सही निशाना साधा.
तीसरी नई बात यह है कि 2019 में हुए बालाकोट हमले से भी ज्यादा घातक इस बार का हमला था. बालाकोट में बम गिरने के बाद भी मिलकत या जान हानि के नुकसान के ठोस सबूत नहीं मिले थे, लेकिन इस बार पाकिस्तान ने खुद भारत के आक्रमण से हुई बर्बादी का ब्यौरा दिया.
परिणामस्वरूप पाकिस्तान के अंदर एक जबरदस्त माहौल पैदा हुआ है जो उनकी सरकार पर भारत को तगड़ा जवाब देने के लिए दबाव डाल रहा है. यह बताता है कि भारत को अपने लक्ष्यों में कामयाबी मिली है.
सात मई की सुबह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर एक पोस्ट में भारत ने जो कुछ किया उसके पीछे की सोच एक ही वाक्य में भली भांति समझा दी.
उन्होंने कहा, “दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीती अख्तियार करनी चाहिए.” (The world must show zero tolerance for terrorism.)
7 मई के बाद विश्व भर में भारत की छवि बदल जाएगी. मोदी एक मजबूत नेता के रूप से तो जाने ही जाते थे, लेकिन पहलगाम के आतंकवादी हमले का “ईंट का जवाब पत्थर” से देने के बाद उन्होंने बता दिया के पाकिस्तान स्पॉन्सर्ड आतंकवादियों के खिलाफ जंग लड़ने का उनको ईरादा पक्का है.
25 मिनट चले इस हमले में, हिंदुस्तान टाइम्स के हवाले के अनुसार, पाकिस्तान के 80 से ज्यादा लोगों की जान गई है और कई लोग घायल हुए हैं, जबकि पाकिस्तान ने एलओसी पर युद्धविराम का उल्लंघन करके भारत का नुकसान पहुंचाया है.
भारत का ये युद्ध और उसकी पार्श्वभूमि बताता है कि हर एक देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है. भारत कई दशकों से इस लड़ाई में अपने आप को तन्हा महसूस कर रहा है. पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उसके सब्र के सभी बांध टूट गए.
भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ओर मनमोहन सिंह ने भी अपने अपने तरीके से आतंकवाद के खिलाफ भारत को पश्चिमी देशों का समर्थन मिले उसके लिए मेहनत की, लेकिन सफलता उनके हाथ नहीं लगी. आतंकवाद की मदद से अपनी रणनीति चलाता हुआ पाकिस्तान न बदला न बदलने की कोई इच्छा जताई. पहलगाम की घटना ने नरेंद्र मोदी को एक ऐसी चुनौती दी जिसको वे समझ पाए.
पाकिस्तान में आतंकवाद के गढ़ बने इलाकों के खिलाफ भारत में लोगों की भावना इतनी तीव्र हुई है कि कोई भी लोकप्रिय नेता उसको नज़रअंदाज़ नहीं कर पाया.
सबसे पहले तो सरकार ने सिंधु नदी जल संधि ठंडे बस्ते में डाल दी, वह भी एक बहुत गहरा कदम है जो कि किसी सर्जिकल स्ट्राइक से कुछ कम नहीं है, जिस आतंकवादी घटना में निर्दोष भारतीयों को उनका धर्म पूछ के चुन-चुन के मारा गया हो उसका विरोध न करने वाला देश अपनी ही नज़र में गिर जाएगा.
भारत का पाकिस्तान के साथ का आज का सख्त रवैया मोदी सरकार की मजबूरी भी थी. भारत के लोग भारत की ही धरती पर सलामत न हो वह स्थिति नॉर्मल कैसे हो सकती है?
2019 में भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में हमला किया था, लेकिन वह जम्मू और कश्मीर की सरहद के नज़दीक थी.
मुरीदके और बहावलपुर में मिसाइल हमला करने से भारत ने भारत पाकिस्तान संबंधों को मूलभूत रूप से बदल दिया है क्योंकि भारत पाकिस्तान के पंजाब जा पहुंचा है. पाकिस्तान कि सत्ता मूल पाकिस्तान के पंजाबियों के हाथ में है.
भारत की सैन्य कार्रवाई कितनी सफल रही और कहां निष्फल रही यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी.
रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई तीन साल से चल रही है फिर भी उसका आखिरी परिणाम आया नहीं है. भारत का भी कुछ नुकसान तो हुआ है और आगे क्या होगा वह बताना अभी ज़रा मुश्किल है.
हर एक युद्ध साइकोलॉजिकल भूमि पर ज्यादा लड़ा जाता है. नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना के द्वारा पाकिस्तान में एक खौफ तो ज़रूर पैदा किया है. सदमा और खौफ बनाए रखना युद्ध का एक महत्वपूर्ण एजेंडा होता है. कुछ सालों तक तो पाकिस्तान के शासक पहलगाम जैसी हरकत करने के पहले एक बार ज़रूर सोचेंगे.
22 अप्रैल को पहलगाम की घटना होने के बाद भारत के लोगों की नींद उड़ गई थी. सात मई की रात को पाकिस्तान की नींद उड़ गई. जब आधे घंटे के दरमयान करीब 28 मिसाइल उसकी धरती पर गिरे तो कितना मानसिक आघात लगता है?
इस घटना से पूरी दुनिया में एक कुतूहल होगा. इस बात का गंभीर विश्लेषण होगा कि क्या आतंकवाद को सेना के दबाव से रोका जा सकता है? भारत का अनुभव कैसा रहेगा वह पूरी दुनिया के रस का विषय बना रहेगा.
7 मई की घटना भारतीय सेना द्वारा उठाए गए कदमों से ज्यादा बड़ा एक संदेश देता है की भारतीय आम जनता को पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवाद का शिकार होना अब कतई मंजूर नहीं है…इनफ इज़ इनफ.
(शीला भट्ट दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @sheela2010 है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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