संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान हॉलीवुड अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप के भाषण ने अफ़गान महिलाओं की दुर्दशा की ओर लोगों का ध्यान खींचा जो कि काफी महत्त्वपूर्ण था. तालिबान के भेदभावपूर्ण नियमों की आलोचना करते हुए और दुनिया से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा, “अफ़गानिस्तान में एक बिल्ली या गिलहरी के भी पास महिलाओं से ज़्यादा आज़ादी है.”
हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि तालिबान इस पर ध्यान दे रहा है. शायद, जैसा कि स्ट्रीप ने अपने भाषण में ज़ोर देकर कहा, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से और ज़्यादा प्रयास किए जाने की ज़रूरत है.
भारत समेत दुनिया को यह समझने की ज़रूरत है कि अफ़गानिस्तान की स्थिति का असर सिर्फ़ अफ़गान महिलाओं पर ही नहीं बल्कि सभी महिलाओं पर पड़ेगा. लोगों को लग सकता है कि उनके समाज का दूर-दराज़ के देशों में होने वाली घटनाओं से कोई सीधा संबंध नहीं है. वे यह समझने में विफल रहते हैं कि तालिबान का अस्तित्व में रहना सर्व स्वीकृत विचारों को पीछे की ओर धकेलेगा. अफगानिस्तान जैसे अपवाद दुनिया को वैचारिक स्तर पर पीछे की ओर ले जाएंगे.
अफ़गानिस्तान जैसे अपवाद देश की खास नीतियों को बदल देते हैं, जिससे अन्य देशों में महिलाओं के मुद्दे तुलनात्मक रूप से कम गंभीर और कम ज़रूरी लगते हैं. यह पिछड़ी सोच वाले तत्वों के विचारों को मज़बूती प्रदान करता है, जिससे उन्हें लैंगिक समानता के प्रयासों का विरोध करने में मदद मिलती है.
‘हूज हैंड्स ऑन आवर एजुकेशन’ की इस चिंताजनक रिपोर्ट को ही लें, जो लड़कियों की शिक्षा को प्रतिबंधित करने के लिए चरम धार्मिक समूहों और राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जा रहे ग्लोबल इन्फ्लुएंस इनीशिएटिव कैंपेन पर प्रकाश डालती है. ये समूह लैंगिक समानता का मुकाबला करने और पितृसत्तात्मक मानदंडों को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से स्कूलों को निशाना बना रहे हैं, ताकि अभी तक की सारी प्रगति को जड़ से खत्म किया जा सके. अफ़गानिस्तान में महिलाओं की स्थिति इन प्रयासों को तुलनात्मक रूप से कम ख़तरनाक और कम बुरा बनाती है, जिससे एक ऐसा मेलजोल बनता है जो दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों को कमज़ोर करता है.
चूंकि तालिबान शासित अफ़गानिस्तान कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से वैश्विक समुदाय से अलग-थलग है, इसलिए हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि स्ट्रीप जैसी अपीलें नीतिगत बदलावों में कैसे तब्दील होंगी. उनकी जैसी आवाज़ें उत्पीड़न का शिकार महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों को बढ़ाने में मदद करती हैं. लेकिन क्या इतना ही काफ़ी है? एक ऐसा देश जिसमें पहले से ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं नहीं हैं और जिसका वैश्विक रूप से संपर्क भी नहीं है, उसे और भी बहुत सारी चीज़ों की ज़रूरत है.
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एक अलग-थलग राष्ट्र को प्रभावित करना
तालिबान सरकार को कूटनीतिक रूप से अधिकांश राष्ट्रों द्वारा मान्यता नहीं दी गई है और उसे सहायता राशि पर प्रतिबंध के साथ-साथ अन्य कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. अन्य देश और अंतर्राष्ट्रीय संगठन इसे लेकर तालिबान सरकार से महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में स्थिति और उनके मानवाधिकारों की फिर से बहाली की शर्त पर समझौते कर सकते हैं. तालिबान की ज़ब्त संपत्तियों को भी उस वार्ता का हिस्सा बनाया जा सकता है.
ऐसा लग सकता है कि अफ़गानिस्तान जैसा अलग-थलग देश आर्थिक दबाव से मुक्त है. सिवाय इसके कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ प्रमुख रूप से व्यापार करता है. भारत के अफ़गानिस्तान के साथ पुराने संबंध हैं और वह पाकिस्तान के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार बना हुआ है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सहयोग से नई दिल्ली, अफगानिस्तान में मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने और लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए आर्थिक और कूटनीतिक उपायों का प्रभावी ढंग से उपयोग करके काबुल पर दबाव बना सकती है.
एक और रणनीति जो अपनाई जा सकती है वह है सांस्कृतिक प्रभाव. हां, ऐसे देश में जहां तालिबान शासन अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों को नियंत्रित करता है, वहां समाज में व्यापक पैठ बनाना और बदलाव के साधन के रूप में सांस्कृतिक प्रभाव का इस्तेमाल करना आसान नहीं है. लेकिन स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा अफगानों, खासकर युवा पीढ़ी को वैश्विक मीडिया तक पहुंच प्रदान करती है, जो उनके विश्वदृष्टिकोण और सांस्कृतिक आकांक्षाओं को सूक्ष्म रूप से प्रभावित कर सकती है.
अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और मीडिया आउटलेट्स मानवाधिकारों और महिला अधिकारों की वकालत करने वाली डॉक्युमेंट्री और शॉर्ट फिल्में बना सकते हैं और सर्कुलेट कर सकते हैं. वे विदेशों में रहने वाले अफगान लोगों की आवाज़ों को तेज़ करने में भी मदद कर सकते हैं, जिससे उन्हें अपने साहित्य, कला, आकांक्षाओं और अनुभवों को वैश्विक स्तर पर व्यापक तौर पर शेयर करने में मदद मिलेगी. यह अफगान समुदाय, खासकर अफगान महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने और न्यायपूर्ण और निष्पक्ष अफगानिस्तान के लिए अपनी लड़ाई को जीवित रखने के लिए एक मंच प्रदान करेगा.
महिलाओं के लिए एक कॉमन फ्रंट बनाना
स्ट्रीप के भाषण से एक महत्वपूर्ण सबक यह लिया जा सकता है कि पश्चिम में एक शक्तिशाली महिला अपने प्रभाव का उपयोग उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए कर सकती है. यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक सीमाओं से परे है, जिससे दुनिया की सभी महिलाओं के लिए एक कॉमन फ्रंट बनाने में मदद मिलती है. जब दुनिया के किसी भी कोने में कोई महिला सशक्त होती है, तो उसकी आवाज़ महिला जाति और उसके मौलिक अधिकारों के लिए लड़ाई को लाभ पहुंचाने वाले बढ़ते समूह में शामिल हो जाती है.
जबकि स्ट्रीप ने अपनी आवाज़ का उपयोग करके अपना काम किया है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होने और एक ऐसा भविष्य बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है जहां हर पुरुष, महिला और बच्चा सपने देखने और सुरक्षा और सम्मान से भरा एक सम्मानजनक जीवन जीने का साहस कर सके. जैसा कि भारत वैश्विक मंच पर एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, क्या वह इस दृष्टि को वास्तविकता बनाने के लिए अपनी कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति का उपयोग कर सकता है?
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नामक एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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