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Monday, 16 December, 2024
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सरदार पटेल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारत विभाजन : अनकही दास्तान

आरएसएस ने हाल के दिनों में सरदार पटेल को अपनी विचार परंपरा में शामिल करने की कोशिश की है. लेकिन पुस्तकों में दर्ज सरदार पटेल के तत्कालीन बयानों से समझ में आता है कि संघ को लेकर उनके क्या विचार थे. 

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भारत का सबसे अशांत, सबसे असहिष्णु काल स्वतंत्रता और विभाजन के समय का था. उस समय हिंदू, मुसलमान, सिख, जैसी पहचान के आधार पर दंगे हो रहे थे और बड़े पैमाने पर हत्याएं हो रही थीं. स्वतंत्र भारत के करीब 70 साल बाद एक बार फिर असहिष्णुता, धार्मिक और जातीय खेमेबंदी चरम पर है. भीड़ उसी तरह से फैसले करने लगी है, जैसा स्वतंत्रता के समय कर रही थी.

स्वतंत्रता के समय आबादी के हस्तांतरण का भी अजीबोगरीब फैसला हुआ था. महज कुछ महीनों में 40 लाख लोग भारत से पाकिस्तान भेजे गए और पाकिस्तान से 50 लाख लोग भारत पहुंचे थे. पैदल चलने वालों की 60-60 मील लंबी कतारें चलती थीं. वे लगातार दो तीन महीने तक सफर करते थे, ताकि सुरक्षित ठिकाने तक पहुंच सकें.

प्रशासकीय कुशलता की मिसाल थे पटेल

इस बीच, सीमा पार के अत्याचार की खबर सुन, पंजाब में सिखों ने जिद पकड़ ली कि हम मुसलमानों को सीमा पार न जाने देंगे. दोनों तरफ हत्याएं हो रही थीं. उस समय गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल अमृतसर गए. उन्होंने सिखों से कहा, ‘निहत्थे स्त्री-पुरुषों और बच्चों को निर्दयता से मारना बहादुरों को शोभा नहीं देता. यह तो पशुता और जंगलीपन है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘शरणार्थियों से लड़ना कोई लड़ाई नहीं है. मानवता और वीरता शरणागत या प्राण भिक्षा मांगने वाले को मारने की अनुमति नहीं देती. दूसरे यदि ऐसा अत्याचार करें तो उनसे निपटने का मौका आएगा. मैं आपसे अपील करता हूं कि आप मुस्लिम शरणार्थियों को सही सलामत जाने दें.’ (भारत की एकता का निर्माण, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, तृतीय संस्करण 2015, पेज 53)

पटेल के इस भाषण के पहले मांग की जा रही थी कि सेना तैनात कर शरणार्थियों को सुरक्षित पाकिस्तान पहुंचाया जाए. सरकार को इसी बीच कई रजवाड़ों से भी निपटना पड़ रहा था, जो भारत सरकार के खिलाफ विद्रोही रुख अपनाए हुए थे. देश में सैनिकों की ही नहीं, कुशल प्रशासकों की भी कमी थी. पटेल की इस अपील का असर हुआ और जो सरदार शरणार्थियों को घेरे हुए थे, उनमें से तमाम सिख युवा खुद पुलिस की भूमिका में आ गए और उन्होंने शरणार्थियों के काफिले को सुरक्षा देना शुरू कर दिया, जिससे शरणार्थी सुरक्षित निकल सकें.


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हमेशा गांधी के विचारों के साथ रहे पटेल

इस बीच गांधी जी का प्रवचन भी चल रहा था. उन्होंने उसी दौरान हिंदू महासभा और आरएसएस से अपील की और कहा, ‘हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों हिंदू संस्थाएं हैं. उनमें काफी पढ़े लिखे लोग भी हैं. मैं उन्हें अदब से कहूंगा कि किसी को सताकर धर्म नहीं बचाया जा सकता. अगर वे कुछ करते हैं तो इल्जाम सब हिंदूओं और सिखों पर आता है. इसी तरह से पाकिस्तान में जो बुराई होती है, उसकी जिम्मेदारी सभी मुसलमानों पर पड़ती है. जो बेगुनाह हैं, जिन्होंने किसी को सताया नहीं, उन्हें अपने भाइयों के गुनाह पर पश्चाताप करना है.’ (दिल्ली डायरी, 10-09-1947 से 30-01-1948 तक के प्रार्थना प्रवचनों का संग्रह, मुद्रक और प्रकाशक- जीवणजी डाह्याभाई देसाई, नवजीवन मुद्रणालय, कालूपुर, अहमदाबाद, प्रकाशन वर्ष मई, 1948. पेज 228)

पटेल के ऊपर स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदुओं का पक्ष लेने और मुसलमानों का विरोध करने का आरोप लगता है. मौजूदा समय में भी सरदार के एक भाषण के एक अंश का उल्लेख किया जाता है. 6 जनवरी 1948 को पटेल ने कहा था, ‘मैं खरी बात कहने में विश्वास रखता हूं. मैं मन की बात छिपाकर कुछ कहना जानता ही नहीं. मैं उन्हें स्पष्ट रूप से कह देना चाहता हूं कि उनकी भारतीय संघ के प्रति निष्ठा की घोषणा कर देने मात्र से नाजुक वक्त पर काम नहीं बन सकता, उन्हें इस घोषणा का सबूत देना होगा.’

हालांकि 2019 में जब पटेल को हिंदूवादी घोषित करने के लिए उपरोक्त बातें ही बताई जाती हैं, लेकिन उसके पहले उन्होंने भाषण की शुरुआत में कहा था कि ‘मैं मुसलमानों का सच्चा दोस्त हूं, हालांकि मुझे सबसे बड़ा दुश्मन कहा गया है.’ (सरदार वल्लभ भाई पटेल की अमर कहानी, डॉ. पी सुब्बारायन, राज्यपाल, महाराष्ट्र राज्य, ओवरसीज पब्लिशिंग हाउस, गोल मार्केट, नई दिल्ली. प्रकाशन वर्ष अप्रैल, 1962. पेज 122)

आरएसएस के बारे में पटेल के विचार

सरदार पटेल की नजर हिंदुओं के नाम पर फैलाई जा रही अशांति पर भी थी. पटेल इस बात से सचेत थे कि कथित हिंदूवादी संगठन लोगों को जाकर धार्मिक आधार पर भड़का रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को आमंत्रित करता हूं कि वह कांग्रेस में सम्मिलित हो जाएं और देश में बेचैनी पैदा करके हुकूमत को कमजोर न करें. मैं समझता हूं कि संघ किसी स्वार्थवश कुछ नहीं कर रहा है, पर परिस्थिति ऐसी है कि उसे कांग्रेस का हाथ मजबूत करने और शांति कायम रखने की जरूरत है. हिंसा का प्रयोग करके वह देश की सच्ची सेवा नहीं कर सकता.’ (सरदार वल्लभ भाई पटेल की अमर कहानी, डॉ. पी सुब्बारायन, राज्यपाल, महाराष्ट्र राज्य, ओवरसीज पब्लिशिंग हाउस, गोल मार्केट, नई दिल्ली. प्रकाशन वर्ष अप्रैल, 1962. पेज 122)

हालांकि ऐसा नहीं लगता कि सरदार की इस अपील का असर आरएसएस या उसके कार्यकर्ताओं पर कुछ पड़ा. पटेल को 6 जुलाई 1948 को लखनऊ में दिए गए भाषण में आरएसएस के लोगों को फिर से चेतावनी देनी पड़ी. उन्होंने कहा, ‘हम कहते हैं कि हमारे यहां जो 4 करोड़ मुसलमान पड़े हैं, हम उनके ट्रस्टी हैं. मैं हिंदू भाइयों से, जो हमारे आरएसएस वाले नौजवान भाई हैं, उनसे भी अपील करना चाहता हूं कि आप लोग कुछ दिमाग से काम लीजिए. अक्ल से काम लीजिए और समझ से काम लीजिए, जिससे हमारा भी काम हो जाए और दुनिया में हमारी बदनामी भी न हो. इस तरह से हमें काम करना चाहिए.’ (भारत की एकता का निर्माण, प्रकाशन विभाग,सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, तृतीय संस्करण 2015, पेज 63)

सरदार खरी-खरी बोलने में माहिर थे. उस समय वह हर भारतीय को कांग्रेस और सरकार से जुड़ने की लगातार अपील करते रहे. पटेल के भाषणों से लगता है कि इसके बावजूद आरएसएस देश में अशांति फैलाने में लगा रहा. उन्होंने अपने एक भाषण में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील के साथ आरएसएस को चेतावनी देते हुए कहा, ‘हमारे आरएसएस वाले नौजवान भाई हैं, जो गांवों में घूमते रहते हैं और बहुत सी बातें करते हैं. वे लोग अगर गलत रास्ते पर चलते हों तो उनको ठीक रास्ते पर लाना हमारा काम है. हमें उनको समझाना चाहिए कि उनका तरीका गलत है. यह काम ऑर्डिनेंस से नहीं हो सकता. उससे तो वे उल्टे तरीके पर चलेंगे. इसलिए मैं उनके साथ कुछ न कुछ खामोशी से काम लेता हूं. हां, अगर वे अपनी मर्यादा छोड़ देंगे तो फिर हमें लाचारी से सख्ती करनी पड़ेगी.’ (भारत की एकता का निर्माण, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, तृतीय संस्करण 2015, पेज 67)

सरदार पटेल इस बात में विश्वास करते थे कि कांग्रेस का धर्म है कि भारत में जितने लोग रहते हैं वे सब यह महसूस करें कि वे अपने राज में हैं. उनकी अपनी हुकूमत है. साथ ही सरकार का दायित्व है कि सभी नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराएं. अगर आम लोगों की सलामती और उनकी रक्षा की जिम्मेदारी कांग्रेस नहीं ले सके तो वह राज नहीं चला सकेगी. वहीं वह कांग्रेसियों पर भी वह तंज करते हैं कि वह हुकूमत में आ गए हैं और उनके दिल में यह खयाल आ गया है कि अब हम हुकूमत से सब कुछ कर देंगे, लेकिन ऐसा संभव नहीं है. पटेल कहते हैं, ‘यदि कांग्रेस में काम करने वाले लोग ठीक तरह से काम करें तो आरएसएस वाले आजकल जिस तरह से काम कर रहे हैं, उस तरह से नहीं करेंगे. कांग्रेस वालों का काम है कि उनके साथ मिलें, उन्हें मोहब्बत से समझाएं और उन्हें गलत रास्ते से ठीक रास्ते पर लाएं.’ (भारत की एकता का निर्माण, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार,तृतीय संस्करण 2015, पेज 68)


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संघ के खिलाफ सख्ती को लेकर पटेल के विचार

उस दौर में पटेल के सामने भी मांग उठने लगी थी कि इन कथित हिंदूवादियों पर कार्रवाई की जाए. पटेल ने कहा, ‘डंडा तो चोर डाकू के लिए है, जो फसाद करने वाले और गुनाह करने वाले लोग हैं. अगर आप कहें कि आरएसएस वाले भी गुनाह करते हैं तो मैं कबूल करूंगा कि वे गुनाह करते हैं. लेकिन इस गुनाह के पीछे उनका स्वार्थ नहीं है. तो उनके दिल में जो भाव है, वह ठीक भाव है. अगर हम उनको ठीक रास्ते पर ले जा सकते हैं तो क्यों न ले जाएं?’

सरदार पटेल के वक्तव्यों से साफ नजर आता है कि वह स्वतंत्रता के समय देश में फैली सांप्रदायिक हिंसा में आरएसएस के ‘गुनाह’ से वाकिफ थे. सीधे तौर पर बल प्रयोग नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि यह काम डंडे से नहीं होगा, क्योंकि जब हम हुकूमत से काम करना शुरू करें तो उससे और खराबियां पैदा होती हैं.

हालांकि सरदार पटेल की नरमी का रुख धीरे धीरे सख्त होता चला गया. पाकिस्तान और भारत से हिंदू और मुस्लिमों की आवाजाही जब खत्म हो चुकी थी तो सरदार आंतरिक शांति को लेकर सख्त हुए. उन्होंने 5 मार्च 1949 को अंबाला में पंजाब युनिवर्सिटी की ओर से डॉक्टरेट मिलने पर दिए गए भाषण में अपील की कि सबको एक साथ रहना है. उसी भाषण में उन्होंने अकाली नेता मास्टर तारा सिंह को जेल में रखने पर अफसोस जताया और कहा कि हम जो चीज बनाते हैं, वह उसे तोड़ते हैं. साथ ही उन्होंने यह सूचना भी उस भाषण में दी कि ‘मैंने संघ वालों को भी जेल में भर दिया.’ (भारत की एकता का निर्माण, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, तृतीय संस्करण 2015, पेज 78)

सरदार पटेल ने एक कुशल प्रशासक की तरह देश की हर जाति और हर धर्म के लोगों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया था. उनके मन में किसी के प्रति कटुता नहीं थी, लेकिन धार्मिक घृणा और दंगा फैलाकर देश में स्थिरता फैलाने वाले किसी भी संगठन के प्रति वह बेहद सख्त नजर आते हैं.

(लेखिका सामाजिक और राजनीतिक मामलों की टिप्पणीकार हैं.)

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