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Wednesday, 25 December, 2024
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रेल दुर्घटना का रेलवे की नौकरियों में आरक्षण से संबंध का सच और झूठ

रेलवे दुर्घटना के संदर्भ में आरक्षण या अफर्मेटिव एक्शन का तर्क लाते समय ये ध्यान रखने की जरूरत है कि मेरिट का मतलब सिर्फ शैक्षणिक और प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन नहीं है.

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ओडिशा के बालासोर के पास हुई ट्रेन दुर्घटना की विभागीय जांच के अलावा सीबीआई जांच भी हो रही है. इसे लेकर जनता के बीच, खासकर सोशल मीडिया में भी तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. कुछ ट्विटर हैंडल पर ऐसा लिखा गया कि रेलवे की नौकरियों में आरक्षण ऐसी दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार है. TEDx स्पीकर अनुराधा तिवारी ने, जो अपने ट्विटर बायो में #OneFamilyOneReservation अभियान के बारे में लिखती हैं, इस दुर्घटना को रेलवे की नौकरियों में आरक्षण से जोड़ा है और “मेरिट” के आधार पर नियुक्ति करने की मांग की है. इस ट्वीट को इस कॉलम के लिखे जाने तक सवा दो लाख लोग देख चुके हैं.

ट्विटर पर सैकड़ों हैंडल इस तरह की बातें लिख रहे हैं. ऑल्ट न्यूज के फैक्ट चेकर जुबैर ने भी इसे नोटिस लिया है. गौर करने की बात ये है कि इस तरह की बात पहली बार नहीं लिखी जा रही है. पहले भी जब कोई रेल हदसा हुआ या सड़क या पुल टूटा तो अक्सर इस तरह की बात, बिना सोचे समझे लिख और कह दी जाती है. ये एक सामान्य चलन बन गया है कि “आरक्षण से आने वाले इंजीनियर” पर दोष मढ़ दिया जाए. इस बार भी यही हुआ. इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि वह पुल कोई प्राइवेट कंपनी बना रही हो!

ये सारे सोशल मीडिया पोस्ट इस सोच पर आधारित होकर लिखे जाते हैं कि रिजर्वेशन और मेरिट दोनों परस्पर विरोधी बातें हैं यानी रिजर्वेशन होगा तो मेरिट नहीं होगा. और चूंकि रिजर्वेशन के कारण तथाकथित “कम मेरिट” वाले लोग रेलवे की नौकरियों में आ जाते हैं, तो यह सुरक्षा के साथ खिलवाड़ या समझौता है. लेकिन क्या ये तर्क सही है और क्या यह तथ्यों पर आधारित है? इस लेख में हम यही जानने की कोशिश करेंगे.


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अफर्मेटिव एक्शन के लिए आरक्षण जरूरी

आजाद भारत में अफर्मेटिव एक्शन, आरक्षण जिसका जरूरी हिस्सा है, संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 से आया है. ये दोनों अनुच्छेद समानता के अधिकार के तहत दिए गए हैं, अर्थात राज्य यानी सरकार को ये अधिकार दिया गया है कि वह वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान और आरक्षण कर सकता है और इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है. ये दरअसल छुआछूत के शिकार लोगों, आदिवासियों और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को, जिनका राजकाज-शिक्षा आदि में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, को प्रतिनिधित्व देने के लिए हैं.

रेलवे दुर्घटना के संदर्भ में आरक्षण या अफर्मेटिव एक्शन का तर्क लाते समय ये ध्यान रखने की जरूरत है कि मेरिट का मतलब सिर्फ शैक्षणिक और प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन नहीं है. न ही मेरिट को मल्टीपल च्वाइस क्वेश्चन या एक परीक्षा और इंटरव्यू से मापा जा सकता है. ये संभव है की इन परीक्षाओं में अच्छा नंबर लाने वाला कोई आदमी अपने काम में अच्छा न कर पाए. वैसे भी नौकरी के लिए होने वाली परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सवालों का उस काम से कम ही रिश्ता होता है, जो लोग नौकरी में करते हैं.

मेरिट का मतलब काम के प्रति लगन, ईमानदारी, मेहनत और इन सबके साथ दूसरे के साथ सहानुभूति रखने की क्षमता भी है. ये काम सीखने, चुनौतियों को स्वीकार करने और नई परिस्थितियों में ढल जाने की क्षमता से भी तय होता है. जो लोग आरक्षण के तहत चुनकर आ रहे हैं, वे अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण, विशिष्ट तरह का ज्ञान या समझदारी लेकर आते हैं. ये संभव है कि वे काम के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होते हों, क्योंकि उनके सामने अपनी काबिलियत को साबित करने की चुनौती ज्यादा होती है. वे कार्यस्थल को ज्यादा समावेशी भी बनाते हैं.  इसका मतलब नहीं है कि जो लोग आरक्षण से चुनकर नहीं आते, वे काम के प्रति लापरवाह या कम समर्पित होते हैं. ये सिर्फ उस तर्क का जवाब है कि आरक्षण से चुनकर आने वाले ठीक से अपना काम नहीं करते होंगे जिससे रेलवे की सुरक्षा प्रभावित होती होगी!

वैश्विक स्तर पर, खासकर विकसित देशों में ये मान्यता लगभग सर्वमान्य है कि विभिन्न सामाजिक, इलाकाई और लैंगिक पृष्ठभूमि के लोगों को कार्यस्थल पर साथ रखना उत्पादकता और कार्यक्षमता को बढ़ाता है. अमेरिका में अफर्मेटिव एक्शन और वर्कप्लेस तथा शिक्षा में डायवर्सिटी का विचार 1960 के दशक से सरकारी और निजी क्षेत्र में लागू किया जा रहा है. भारत में इसकी परंपरा, खासकर सरकारी क्षेत्र में, और भी पुरानी है. ब्रिटिशकालीन भारत में कोल्हापुर के महाराज छत्रपति शाहूजी ने 1902 में शासकीय आदेश जारी करके राज्य की नौकरियों में आरक्षण लागू किया था. मद्रास प्रेसिडेंसी में सरकारी नौकरियों में आरक्षण 1921 में लागू हो गया था. संविधान लागू होने पर भी विशेष अवसर के सिद्धांत की मान्यता बनी रही.

रेलवे की नौकरियों में आरक्षण और उत्पादकता तथा कार्य क्षमता पर उसके असर को लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी की अश्विनी देशपांडे और मिशिगन यूनिवर्सिटी के थॉमस ई. विसकॉफ ने एक शोध “Does Affirmative Action Reduce Productivity: A Case Study of the Indian Railways” किया है, जो 2014 में रिसर्च पत्रिका वर्ल्ड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ. ये हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर भी मौजूद है. इसमें 1980 से लेकर 2002 तक उस समय के आठ रेलवे जोन के विभागीय आंकड़ों के आधार पर पता लगाने की कोशिश की गई कि आरक्षण के कारण एससी और एसटी वर्ग के लोगों के रेलवे में काम पर आने से विभागीय कामकाज और उत्पादकता (ढोए जाने वाले माल और सवारियों की संख्या) पर कैसा असर पड़ा है. इसमें उन आरोपों को तथ्यों के आधार पर जांचने की कोशिश की गई, जिसमें कहा जाता था कि आरक्षण के कारण एससी-एसटी के लोग आ जाते हैं तो उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है.

गहराई से आंकड़ों के अध्ययन के बाद दोनों शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ऐसे आरोप न सिर्फ निराधार हैं, बल्कि एससी-एसटी के लोगों के सिस्टम महत्वपूर्ण पदों में होने से उत्पादकता पर सकारात्मक असर पड़ता है. यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उच्च और मैनेजेरियल पदों पर लिए जाने वाले फैसलों से उत्पादकता ज्यादा प्रभावित होती है. इन पदों पर एससी और एसटी अफसरों का पहुंच पाना आरक्षण के कारण ही संभव होता है. इस तरह देखा जाए तो आरक्षण से उत्पादकता या कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ने का विचार तथ्यहीन साबित होता है. ये आरोप गलत प्रतीत होता है कि रेलवे की नौकरियों में आरक्षण का, दुर्घटनाओं से कोई लेना देना है.

रेलवे में दुर्घटनाओं का होना दरअसल रेल सिस्टम की कुछ गंभीर खामियों के कारण है. भारत का रेल नेटवर्क और इसका इंफ्रास्ट्रक्चर काफी पुराना हो चुका है और इसमें रखरखाव और कई जगह पूरी तरह बदलाव की जरूरत है. आधुनिकीकरण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसकी अनदेखी ज्यादातर दुर्घटनाओं की वजह होती है. रेल लाइनों, सिग्नलिंग सिस्टम, पुल और इंजन तथा पहियों को लगातार देखरेख में रखे जाने की जरूरत होती है. इसमें होने वाली ढिलाई की कीमत जान और माल के नुकसान की शक्ल में चुकानी पड़ती है. वैसे भी रेल और मालगाड़ियों की रफ्तार में क्रमिक वृद्धि हुई है और उसके हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है. आधुनिक ब्रेकिंग सिस्टम और एंटी कोलेजन डिवाइस को पूरे रेल नेटवर्क में लगाए जाने की जरूरत है. जरूरी संरक्षा और सुरक्षा कार्यों में स्टाफ की कमी और इस कारण कार्मिकों पर ज्यादा बोझ भी एक महत्वपूर्ण पहलू है.

इन महत्वपूर्ण पक्षों पर ध्यान देकर ही रेलवे की यात्रा और माल ढुलाई को सुरक्षित बनाया जा सकता है. इसके लिए अफर्मेटिव एक्शन और आरक्षण को निशाना बनाए जाने की जरूरत नहीं है. ऐसा करने से विवाद बेशक खड़ा हो जाएगा, लेकिन असली दिक्कतों से ध्यान भी हट जाएगा.

(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व मैनेजिंग एडिटर हैं, और उन्होंने मीडिया और समाजशास्त्र पर किताबें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Profdilipmandal है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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