भाइयों और बहनों, मेरे प्यारे देशवासियों,
आज मैं आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देता हूं. जैसा कि आप जानते हैं, 2047 तक विकसित भारत बनाना मेरी सरकार का लक्ष्य है, लेकिन इस दिन, मैं 2025 के भारत की हकीकत पर विस्तार से बात करना चाहता हूं, न कि 22 साल बाद पूरे होने वाले विकसित भारत के सपने पर.
मुझे पता है कि मैं लगातार इस बारे में बोलता रहा हूं कि दो दशक बाद भारत कैसा दिखेगा, लेकिन आज मुझे लगता है कि मुझे दूर के भविष्य का सपना दिखाने के बजाय, आज के भारत की बात करनी चाहिए.
पिछले 11 सालों के प्रधानमंत्री कार्यकाल में मैंने कई वादे किए. 2014 में मैंने “अच्छे दिन” का वादा किया. कुछ साल बाद “न्यू इंडिया” बनाने की बात की. फिर “अमृत काल” का ज़िक्र किया और आखिर में “विकसित भारत” का विचार आपके सामने रखा. इन सबका मकसद एक अच्छा माहौल बनाना था.
लेकिन मुझे मानना पड़ेगा कि “अच्छे दिन” सच में नहीं आए. हां, सुधार करूं—कुछ लोगों के लिए (जिनमें मेरे कुछ अच्छे दोस्त भी हैं, जिनका नाम नहीं लूंगा) अच्छे दिन ज़रूर आए, लेकिन ज़्यादातर भारतीयों के लिए नहीं.
वर्ल्ड इनइक्वालिटी डाटाबेस की 2024 की एक स्टडी बताती है कि देश की कुल संपत्ति का 40% से ज्यादा हिस्सा सिर्फ 1% भारतीयों के पास है.
भारत भले ही ब्रिटिश राज से आज़ाद हो चुका हो, लेकिन अब यह ‘बिलियनेयर राज’ की गिरफ्त में है. देश की निचली 50% आबादी के पास कुल संपत्ति का सिर्फ 3-4% हिस्सा है.
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर, सौरभ मुखर्जी, ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि ज़्यादातर भारतीयों की आय ठहरी हुई है. जिस “खपत में उछाल” की बात की जाती है, वह क्रेडिट (उधार) की उपलब्धता की वजह से है, इसलिए यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है. असमानता पहले से ज्यादा गहरी और स्थायी हो रही है.
ब्लूम वेंचर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 1 अरब भारतीय (यानी 90% आबादी) के पास अतिरिक्त सेवाओं पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं है. इसका मतलब है कि उनके पास रोज़मर्रा की ज़िंदगी के अलावा कुछ भी खर्च करने लायक पैसा नहीं है.
अमीर भी खुश नहीं दिखते. 2017 से 2022 के बीच, 30,000 से ज्यादा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (HNIs) ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी. 2024 में 4,000 से ज्यादा करोड़पतियों के ऐसा करने की उम्मीद थी. पिछले साल, 2 लाख भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी.
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नोटबंदी से स्मार्ट सिटीज़ तक
मित्रों, 2014 में मैंने मुंबई में सर एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया था. उस समय मैंने कहा था कि भगवान गणेश और महाभारत के नायक कर्ण के रूप में प्लास्टिक सर्जरी और जेनेटिक साइंस के सबूत मिलते हैं.
मैंने कहा था, “हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं. ज़रूर उस समय कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा जिसने इंसान के शरीर पर हाथी का सिर लगाया और प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत की.”
मैं हमेशा भारत के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष मिशनों का श्रेय लेता हूं. मैं इसरो को बधाई देता हूं, लेकिन सच कहूं तो मैंने हमेशा वैज्ञानिक सोच के बजाय अंधविश्वास और आस्था को ज्यादा महत्व दिया है.
शायद इसी वजह से मुझे यह समझ में नहीं आता कि पिछले साल मेरे इस बयान पर इतना हंगामा क्यों हुआ कि मुझे भगवान ने भेजा है और मेरा जन्म “गैर–जैविक” है.
मित्रों, 8 नवंबर 2016 की शाम को मैंने अपनी मशहूर नोटबंदी की घोषणा की.
रात 8 बजे, सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर, मैंने ऐलान किया कि 500 और 1,000 रुपये के नोट, यानी भारत की 86% नकदी आधी रात से बेकार हो जाएगी. इस बड़े कदम के जरिए मैंने काला धन खत्म करने का वादा किया.
दरअसल, मैंने यह भी कहा था कि अगर मैं 50 दिनों में काला धन खत्म करने में सफल नहीं हुआ, तो मुझे फांसी पर लटका देना चाहिए.
बिलकुल, नकदी तो जैसे वापस लौट आई है. हाल ही में दिल्ली में एक हाई कोर्ट जज के घर से नोटों के ढेर मिलना इसी बात का सबूत है, लेकिन नवंबर 2016 की उस शाम मैं बहक गया था. नोटबंदी पूरी तरह नाकाम रही. सैकड़ों छोटे कारोबार तबाह हो गए. अगर यह सफल होती, तो क्या मेरी सरकार हर 8 नवंबर को ‘नोटबंदी दिवस’ नहीं मनाती? लेकिन नहीं, ऐसा नहीं होता.
मुझे नारे, चटपटे वाक्य, संक्षिप्त रूप (एक्रोनिम) और छोटी-छोटी लाइनें बहुत पसंद हैं. मैं इन्हें एक अच्छे कलाकार की तरह पेश करता हूं, जो दर्शकों को जोश से भर देता है. ये मीडिया के लिए भी बढ़िया हेडलाइन बन जाते हैं. 2021 से मेरी सरकार का विज्ञापन और प्रचार पर खर्च 84% बढ़ गया है. 2024-25 में ही सरकार ने विज्ञापन पर 600 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर डाले.
2015 में मैंने स्मार्ट सिटी मिशन की शुरुआत की थी, वादा किया था कि 100 शहरों को बदल देंगे, लेकिन आज इन कथित स्मार्ट सिटीज़ में पानी भरने और पुल गिरने जैसी समस्याएं हैं. गुजरात के वडोदरा में, जिसे स्मार्ट सिटी चुना गया था, पिछले महीने ही एक पुल ढह गया. पटना में, जिसे स्मार्ट सिटी कहा गया, उद्घाटन के सिर्फ दो महीने बाद ही डबल-डेकर फ्लाईओवर टूटकर गिर गया.
देश की राजधानी नई दिल्ली में तो सबसे बुरा जलभराव देखा गया, जिससे साफ हुआ कि चरम मौसम से निपटने की तैयारी ही नहीं है. स्मार्ट सिटीज़ की समस्याओं के अलावा, राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की छत भी पिछले महीने गिर गई, जिसमें सात बच्चों की मौत हो गई.
अपने उद्घाटनों और घोषणाओं की होड़ में, मैं रखरखाव और इंफ्रास्ट्रक्चर की नियमित जांच की ज़रूरत पर जोर नहीं देता. मेरे भव्य मीडिया और पीआर इवेंट्स एक तरह के भागने वाले सपनों जैसे हैं. प्रशासनिक तंत्र को रोज़मर्रा की हकीकत से आंख मूंदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
2016 में मैंने छह साल में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन एक रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर राज्य यह लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए. आमतौर पर मैं इसकी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल देता हूं, लेकिन सूची में कुछ बीजेपी-शासित राज्य भी हैं.
मुझे यह भी कहना होगा कि मुझे विपक्ष-शासित राज्यों को फंड देना पसंद नहीं है. पश्चिम बंगाल को ही अलग-अलग मदों में 1.7 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं, जिनमें 7,000 करोड़ रुपये मनरेगा और 8,000 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हैं. मैं आमतौर पर उन राज्यों को पसंद नहीं करता जो मुझे वोट नहीं देते. मैं “सहकारी संघवाद” की बात करता हूं, लेकिन अक्सर भेदभाव वाला संघवाद अपनाता हूं.
2020 में मेरी सरकार ने किसान संगठनों से बिना बातचीत किए तीन कृषि कानून लागू किए, जिसके खिलाफ किसानों का आंदोलन शुरू हुआ. बीजेपी-शासित सरकारों ने आंदोलनकारी किसानों पर आंसू गैस चलाई और लाठियां बरसाईं. मैंने किसानों में कुछ “आंदोलनजीवी” लोगों की ओर इशारा किया था. आंदोलनजीवी वे पेशेवर प्रदर्शनकारी होते हैं — ‘लेफ्टिस्ट’, ‘अर्बन नक्सल’ और ‘खान मार्केट गैंग’ जैसे — जो मेरे सपनों का भारत बनने से रोकते हैं.
मुझे यह भी मानना पड़ेगा कि किसान आत्महत्याओं का आंकड़ा कम नहीं हो रहा. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में 11,000 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की.
यहां यह भी कहना होगा कि एनसीआरबी — जो अपराधों का अहम रिकॉर्ड रखता है — अब नियमित रूप से प्रकाशित नहीं हो रहा. राज्यसभा में एक सांसद ने पूछा कि 2023 का एनसीआरबी डेटा — जो 2024 में आना चाहिए था — अभी तक क्यों जारी नहीं हुआ.
भारत की जनगणना, जो 1871 से हर 10 साल में होती आ रही है और 2021 में होनी थी, वह भी टल गई है, इसलिए कुछ लोग मेरी एनडीए सरकार को ‘नो डेटा अवेलेबल’ सरकार कहते हैं.
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नेहरू को दोष दो, मुझे नहीं
2014 में, मैंने एक और नारा दिया था — “सबका साथ, सबका विकास।” लेकिन, मेरी सरकार और मैं इस नारे पर भी खरे नहीं उतर सके. आज धार्मिक विभाजन और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में, छत्तीसगढ़ में केरल की दो कैथोलिक ननों को गिरफ्तार कर उन पर मानव तस्करी का झूठा आरोप लगाया गया. ये नन लगातार मेरी पार्टी से जुड़े हिंदुत्व संगठनों, जैसे बजरंग दल, के निशाने पर थीं. महाराष्ट्र में कुरैशी समाज मीट व्यापारियों पर तथाकथित “गौ रक्षकों” के हमलों के खिलाफ विरोध कर रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संपत्तियों को ढहाने के लिए बुलडोज़र के इस्तेमाल का विरोध किया है और कहा है कि इस समुदाय को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इन बुलडोज़र कार्रवाइयों को “अस्वीकार्य” कहा है और इन्हें रोक दिया है.
मैं खुद भी अक्सर अपनी सार्वजनिक भाषणों में धार्मिक नफरत की बातें करता रहा हूं. 2024 के लोकसभा चुनाव में मैंने कहा कि कांग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीनकर उन्हें घुसपैठियों या मुसलमानों को दे देगी. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मैंने ‘श्मशान घाट’ और ‘कब्रिस्तान’ का ज़िक्र किया. 2019 में मैंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मेरा “हम पांच, हमारे पच्चीस” वाला भाषण मशहूर हुआ था.
पिछले दशक में, हमने नफरत भरे भाषणों को सामान्य बना दिया है और मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुलकर पूर्वाग्रह व्यक्त करना मानो स्वीकार्य हो गया है.
मैंने युवाओं के लिए कई वादे किए और बार-बार कहा कि “युवा शक्ति” भारत को आगे बढ़ाएगी, लेकिन आज छात्र परीक्षा पेपर लीक से परेशान हैं. हाल ही में, अभ्यर्थियों ने एसएससी सेलेक्शन पोस्ट फेज 13 परीक्षा में गड़बड़ियों के खिलाफ नई दिल्ली में विरोध किया. पिछले सात साल में 70 से ज्यादा परीक्षा पेपर लीक हो चुके हैं.
2015 में मैंने एक और नारा दिया — “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” लेकिन 2022 तक, यानी फंड बनने के 10 साल बाद भी, महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए निर्भया फंड का 30% हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ था. 2021 में एक संसदीय समिति ने कहा कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना का 70% से ज्यादा पैसा सिर्फ विज्ञापन पर खर्च किया गया. खासकर बीजेपी-शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ भयावह अपराध हो रहे हैं.
भारत की तथाकथित स्वायत्त संस्थाएं आज लगभग पूरी तरह मेरे नेतृत्व वाले राजनीतिक कार्यपालिका के अधीन हो चुकी हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 95% मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं. 2014 के बाद से, भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेताओं में से 23 को बीजेपी में शामिल होने के बाद क्लीन चिट मिल गई. मैंने इस नई तरह की राजनीति शुरू की है — “वॉशिंग मशीन” वाली राजनीति.
लोकतांत्रिक संस्थाओं की बात करें, तो मैं संसद में बहुत कम जाता हूं. प्रधानमंत्री रहते हुए 11 साल में, मैंने कभी प्रश्नकाल के दौरान न सवाल पूछा, न अपने विभाग से जुड़े सवालों का जवाब दिया.
इस मानसून सत्र में, जब राज्यसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हुई, तो मैं जवाब देने संसद जाने की जहमत तक नहीं उठाई. आखिर क्यों मैं संसद में समय बर्बाद करूं, जब इतने देश मुझे “बेहद अहम” पुरस्कार देने के लिए बुला रहे हैं?
मैंने “अबकी बार ट्रंप सरकार” और “नमस्ते ट्रंप” जैसे नारे दिए ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से रिश्ते मजबूत हों, लेकिन अब वही ट्रंप “बेवफा” हो गए. मैं नारे और अंतर्राष्ट्रीय फोटो-ऑप में इतना खो जाता हूं कि मुझे लगता है ये गंभीर कूटनीति और भरोसा बनाने की जगह ले सकते हैं. गाज़ा युद्ध पर इज़रायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से दूरी बनाकर, या रूस के यूक्रेन पर हमले पर चुप रहकर, मैंने दुनिया में भारत की सैद्धांतिक विदेश नीति पर जो भरोसा था, उसे खो दिया. मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था कि पश्चिम देश इस तरह की लेन-देन वाली राजनीति को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे.
अंत में, मीडिया से मेरे रिश्तों पर एक बात। मेरे नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है — पिछले 11 साल में मैंने एक भी खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की. मैं ऐसा करने वाला एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री हूं.
जैसा कि मैं कहता हूं: “अपनी दोस्ती बनी रहे.”
अब सवाल उठता है: पिछले 11 साल में मैं अपने सारे वादे, संकल्प, नारे, पीआर घोषणाएं, योजनाएं, प्रचारित कार्यक्रम और भव्य स्कीमें क्यों पूरी नहीं कर पाया?
जवाब आसान है. एक ही शख्स इसके लिए जिम्मेदार है — पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू. पिछले 11 साल से, नेहरू लगातार मेरी कोशिशों को रोकते रहे हैं और मेरी कई योजनाओं और अभियानों को नाकाम बनाते रहे हैं. नेहरू ही वजह हैं कि मेरे ज्यादातर काम नतीजे तक नहीं पहुंचते. तो मेरी नाकामी के लिए मुझे मत कोसिए. कृपया नेहरू को दोष दीजिए.
जय हिंद. जय भारत.
लेखिका अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की सांसद (राज्यसभा) हैं. उनका एक्स हैंडल @sagarikaghose है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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