अग्निपथ योजना को लेकर जो राजनीतिक तू-तू-मैं-मैं चल रही है उसने केंद्रीय गृह मंत्रालय और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों को कई घोषणाएं करने को उकसाया है. अब वे उन अग्निवीरों के लिए नौकरियों में आरक्षण देने की योजना बना रहे हैं, जिन्हें उनकी चार साल की सेवा अवधि के बाद सेनाएं अपने यहां नहीं रखेंगी. गृह मंत्रालय ने सेना में चार साल की सेवा अवधि पूरी करने वाले अग्निवीरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में स्थान आरक्षित करने की घोषणा की है. उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने राज्य पुलिस और सुरक्षा से संबधित दूसरी नौकरियों में पूर्व अग्निवीरों को प्राथमिकता से रोज़गार देने का वादा किया है.
पूर्व अग्निवीरों के पुनर्वास से जुड़ी एक समस्या यह है कि कुछ समय बाद रोज़गार की मांग करने वाले प्रशिक्षित सैनिकों की संख्या अच्छी-खासी हो जाएगी. पूरी संभावना यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर रोज़गार की स्थिति ऐसी हो जाएगी कि नौकरियां कम होंगी और नौकरी चाहने वाले बड़ी संख्या में होंगे. यह स्थिति खासकर उन रोज़गारों के मामले में होगी जिसमें निचले स्तर के हुनर की ज़रूरत होगी.
छोटे हथियारों के इस्तेमाल के प्रशिक्षण में पूर्व अग्निवीरों का अनुशासन और विशेष हुनर काम आएगा. ऐसे हुनर पुलिस बलों और निजी सुरक्षा के क्षेत्र में उपयोगी होते हैं. पूर्व अग्निवीरों को केंद्र और राज्यों में बड़ी संख्या में नौकरी देने की गुंजाइश बन सकती है.
बढ़ती संख्या, बमुश्किल मौके
पूर्व अग्निवीरों के चार साल के अनुभव का मान न देते हुए अगर इन भूमिकाओं में रखा गया तो यह निरुत्साहित करेगा. इस मामले में कोई भी व्यक्ति सीधे पुलिस सेवा में दाखिल होता है तो वह बेहतर स्थिति में होगा.
हालांकि, उन्हें सरकारी नौकरी में खपाने का वादा किया जा रहा है, लेकिन सरकारी महकमों के भीतर से प्रतिरोध हो सकता है. यह इसलिए हो सकता है कि नौकरी की मांग करने वाले वाले युवाओं की आबादी बढ़ रही है. पूर्व अग्निवीर हताशा में अपने हुनर का इस्तेमाल दूसरे देशों की लड़ाइयों में कर सकते हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़रायल-गाज़ा युद्ध में भारतीय जवानों की मौत इस संभावित नतीजे के संकेत देते हैं. खतरा यह भी है कि पूर्व अग्निवीर मौजूदा या भावी बागियों के समर्थन में बंदूक उठा सकते हैं.
केंद्र सरकार को ऐसी आशंकाओं की जांच करके ऐसे नतीजों को रोकने के कदम उठाने चाहिए. आर्थिक लाभ के लिए ऐसे युवा अवैध प्रवासी बनने का रास्ता अपना सकते हैं. इसके अलावा, भू-राजनीतिक उथलपुथल बढ़ने पर पूर्व अग्निवीरों के लिए घरेलू और विदेशी युद्ध के मैदानों में जाने के मौके और बढ़ सकते हैं.
दूसरी ओर, पूर्व अग्निवीरों से ऐसे अप्रत्याशित सुरक्षा संबंधी संकट में काम लिया जा सकता है जिसमें सेना को अतिरिक्त मानव संसाधन की ज़रूरत पड़ती हो, लेकिन पूर्व अग्निवीरों को किसी आरक्षण की सुविधा नहीं मिल सकती. उन्हें स्वैच्छिक तौर पर शामिल किया जा सकता है, बशर्ते कोई कानूनी प्रावधान न जोड़ा गया हो.
यह भी पढ़ें: अग्निपथ योजना को फुटबॉल का खेल बनने से बचाएं, प्रस्तावित सेवा अवधि पर सर्वसम्मति ज़रूरी
ढांचागत समाधानों पर ज़ोर
बेहतर तो यह होगा कि सेना में रहते हुए वे जो हुनर सीखते हैं उनका इस्तेमाल देश की सेवा में किया जाए. यह अग्निपथ योजना के वर्तमान स्वरूप के कारण आसानी से पूरा नहीं हो सकता.
पूर्व अग्निवीर देश सेवा के काम करने जाएं, इसके लिए ढांचागत समाधान अग्निपथ योजना को नया स्वरूप देने में निहित है. यह नया स्वरूप ऐसा हो कि पूर्व अग्निवीरों को उचित कामों में लगाया जा सके. इससे अवैध रास्तों पर जाने से रोक लगने की छोटी संभावना है, फिर भी वह उपयोगी होगा. यह समाधान तक्षशिला इंस्टीट्यूट के एक विमर्श दस्तावेज़ ‘अ ह्यूमन कैपिटल इन्वेस्टमेंट मॉडल फॉर इंडियाज़ नेशनल सिक्यूरिटी सिस्टम’ में सुझाया गया है.
बदलाव की ज़रूरत भारतीय रक्षा बजट पर पेंशन के बढ़ते खर्च के कारण महसूस की गई जिसके चलते सेना के बेहद ज़रूरी आधुनिकीकरण के लिए साधन जुटाने में मुश्किल आ रही है. यह दस्तावेज़ जिस तर्क पर आधारित है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ताज़ा बयान से मेल नहीं खाता कि अग्निपथ योजना का पेंशन पर खर्च से कोई ताल्लुक नहीं है.
तक्षशिला दस्तावेज़ को देखिए
इस दस्तावेज़ में जो समाधान सुझाया गया है वह इस बात पर आधारित है कि सेना के मानव संसाधन को सीएपीएफ, राज्य पुलिस और खुफिया विभाग जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक ढांचे से जोड़ा जाए. यह एक ऐसी व्यवस्था लागू करके सेना में युवाओं की प्रधानता को कायम रखने की कोशिश करता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक ढांचे के विभिन्न संगठनों से मानव संसाधन की आवाजाही को आसान करती हो. यह व्यवस्था यह भी पक्का करती है कि सेना की प्रभावशीलता में कमी न आए और वह जो-जो हुनर सिखाती है उसका विभिन्न सरकारी संगठनों को लाभ मिले.
बेहतर होगा कि रक्षा मामलों की संसदीय कमिटी भी उक्त दस्तावेज़ का अध्ययन करे. वह पाएगी कि यह विपक्ष की राजनीतिक चिंताओं का समाधान सुझाता है. उसके कुछ सुझावों को सुधारने की बेशक ज़रूरत होगी, लेकिन वे विस्तार की बातें हैं.
ज्यादा अहम बात यह है कि देश के राजनीतिक नेताओं को रक्षा बजट पर पेंशन के भारी खर्च के बोझ के बारे में अवगत कराया जाए जिसे वर्तमान अग्निपथ योजना की मदद से हल्का किया जा सकता है. उसके साथ ही इस पर भी गौर करना होगा कि अग्निपथ योजना के तहत सेना में काफी छोटी सेवा अवधि और मात्र 25 फीसदी अग्निवीरों को आगे सेना में बहाल रखने की व्यवस्था का सेना की प्रभावशीलता पर बुरा असर पड़ सकता है और यह मान्य नहीं हो सकता.
यह जान लेना चाहिए कि किसी भी योजना के कारण बचत के मद में नतीजे करीब 15 साल बाद ही मिल सकते हैं, क्योंकि पेंशन पर खर्च में कमी आने में इतना समय लग सकता है. इस समस्या को आगे की सरकारों के लिए छोड़ देना अदूरदर्शिता होगी, खासकर इसलिए कि पेंशन पर खर्च देश की सेना के आधुनिकीकरण को लंबे समय से बाधित कर रहा है. यह तब तक जारी रहेगा जब तक रक्षा बजट के आकार में निरंतर बढ़ोतरी नहीं की जाती.
चालू रक्षा बजट और पिछले कई बजटों में पूंजीगत खर्च पर नजर डालें तो पता चलेगा कि पूंजीगत खर्च में जब अगर थोड़ी भी वृद्धि की गई तो वास्तव में उसका असर महंगाई और रुपये की विनिमय दर के कारण शून्य हो गया. उत्तरी सीमा को लेकर किए गए वादों, भारत के सैन्य विस्तार और दोस्त देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यासों के कारण राजस्व व्यय में वृद्धि की मांग बढ़ती जाएगी.
जो हालात हैं उनमें रक्षा बजट पर पेंशन के बढ़ते बोझ की समस्या को राजनीतिक रूप से स्वीकार करना ही होगा. फिर भी, रिटायर होने वाले सैनिकों की बढ़ती उम्र और ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना के कारण इसमें वृद्धि ही होने वाली है.
इसलिए दोनों पक्ष के राजनीतिक नेतृत्व को अग्निपथ योजना के साथ राजनीतिक खेल बंद करके उसे नया स्वरूप देने पर ज़ोर दें ताकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा की मांगों को पूरा करने लायक बने. बेहतर यही होगा कि देश के व्यापक हितों की खातिर घरेलू सियासत से परहेज करें.
(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: अग्निपथ खत्म भी कर दी जाती, तो भी सेना के पेंशन बिल में कमी लाने वाले सुधार करने ही होंगे