पाकिस्तानी सेना/आईएसआई ने न्यायपालिका और इमरान को सह-अपराधी बनाकर अपनी प्रमुखता को समग्र करने के लिए एक राजनीतिक ‘दूसरा’ का आविष्कार किया है।
पाकिस्तान की राजनीति में जो कुछ हो रहा है उसे 1000 शब्दों में बयां कर पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन मैं यहाँ संक्षिप्त विवरण देने की कोशिश करता हूँ।
एक और निर्वाचित सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने में विफल रही है। एक और चुनाव सेना के संरक्षण मे आयोजित किया जा रहा है। एक “राजा” की पार्टी, जो आर्मी की पसंद है, को नामित कर दिया गया है। निष्पक्ष लोकतांत्रिक चुनाव में जीत की सबसे ज्यादा संभावना रखने वाले नेता को उनकी बेटी और उत्तराधिकारी, तथा दामाद के साथ जेल भेजा जा रहा है।
अधिकांश उदारवादी पाकिस्तान विरोध प्रदर्शन कर रहा है, संपादकीय लिख रहा है, सेना और सुप्रीम कोर्ट का पर्दाफाश कर रहा है और सोशल मीडिया पर जोरदार विरोध कर रहा है। मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा स्थापित देश का सबसे पुराना और सबसे सम्मानित समाचार पत्र डॉन दबाव में है। यह अपने मालिक/सीईओ हमीद हारून के अंतर्गत साहस के साथ वैसे ही सामना कर रहा है जैसे आपातकाल के दौरान रामनाथ गोएनका ने किया था। लोकतन्त्र दबाव में है और लोकतान्त्रिक शक्तियाँ जवाबी हमला कर रही हैं।
क्या एक बार फिर से ऐसा नहीं लगता कि आप कह सकते हैं कि भारत और पाकिस्तान की स्थिति एक जैसी ही है। और यह कहना सही है। राजनीतिक रूप से सही, लिबरल, अत्यधिक विनम्र और साहसी। सिवाय इसके कि यह सच नहीं है।
पाकिस्तान हमारा सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी है। यदि हम समझदारी से इसकी समानतापूर्वक तुलना करना चाहते हैं और वह भी कुछ इस तरह से कि जो न सिर्फ हमारे 130 करोड़ लोगों के बल्कि पाकिस्तान के भी 20 करोड़ लोगों के हितों के लिए सर्वोत्तम हो तो पहले हमको इसकी वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। दिल्ली की खान मार्केट और पाकिस्तान के गुलबर्ग की आकर्षक धुरी से परे एक व्यापक वास्तविक दुनिया को देखिये।
हमें पहले पाकिस्तान की राजनीति में सेना के पूर्ण प्रभुत्व को स्वीकार करने की आवश्यकता है। सेना एकमात्र संस्था है जो व्यापक रूप से भरोसेमंद है। कोई भी व्यक्ति जो आपको यदि कुछ और बताता है तो या तो वह झूठ बोल रहा है।
पाकिस्तान एक राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य की सटीक परिभाषा है। यदि आप समझना चाहते हैं कि इसका क्या अर्थ है तो जनरल जहाँगीर करामत को सुनिए जो सेना के सबसे विशिष्ट और सम्मानित पूर्व सेना प्रमुखों में से एक हैं। 2012 में इस्लामाबाद में पाकिस्तान के रणनीतिक अध्ययन संस्थान मे बोलते हुए उन्होंने इसे पारिभाषित किया था कि “यह ऐसा राज्य है जहां सुरक्षा को अत्यधिक रूप से राष्ट्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है और जहां सामरिक चिंताएँ अर्थव्यवस्था से लेकर समाज और शिक्षा तक अन्य सभी चिंताओं को दरकिनार कर देती हैं।” उन्होंने स्वीकार किया कि भारत भी इसी अवस्था मे था लेकिन इसने खुद को सुधार लिया। हमारे रक्षा बजट कि प्रवृत्ति को देखिये। भारत इसमें जीडीपी से 1.6% नीचे है, हालांकि यह तेजी से उभर रहा है। अपेक्षाकृत ज्यादा अवरुद्ध पाकिस्तान 3.5 से 4 प्रतिशत के बीच है।
एक राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य फिर अपने मापदण्डों के भीतर ही बाकियों के लिए नियमों का निर्माण करता है। यही कारण है क्यों कभी भी एक निर्वाचित सरकार, एक बार आसिफ अली की सरकार को छोड़कर, अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी है। यही कारण है कि प्रत्येक सैन्य तख्तापलट रक्तहीन रहा है। ऐसा लगता है कि इसके लोग लोकतान्त्रिक व्यवस्था भंग होने के दौरान अगले तख्तापलट का इंतज़ार करते हैं। जो सबसे नवीन है वह है अनोखा पाकिस्तानी नवाचार। सेना ने हमेशा के लिए अपनी सत्ता स्थापित करने हेतु क्रिकेट वाला “दूसरा” राजनीति में भी इज़ाद किया है। अब उन्हें इस्लामाबाद में उस कुख्यात 111 ब्रिगेड को बुलाने की ज़रूरत नहीं है, या राष्ट्रीय प्रसारकों के मुख्यालयों के दरवाजों पर चढ़ने की परंपरा का पालन करने की जरूरत नहीं है। 2018 में, यह एक बड़ी आपदा होगी।
अब उन्होंने सीमित शासनात्मक शक्तियों, जो उन्हें उनकी निर्वाचित सरकारों द्वारा प्रदत्त थीं, को भी नष्ट करके स्वयं को शीर्ष पर प्रतिष्ठापित कर लिया है। सेना की “सामरिक” प्रतिभा न्यायपालिका के इसके सह-चयन में परिलक्षित होती है। हम शासनात्मक क्षेत्र मे सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से चिंतित होते हैं। पाकिस्तान के कॉमिक चीफ़ जस्टिस ढाबाओं के बर्तनों की सफाई की जांच के लिए वहाँ छापा डलवाते हैं, मेट्रो रेल निर्माण का निरीक्षण करते हैं, कचरे के ढेरों पर जाते हैं और मौके पर आदेश जारी करते हैं। मीडिया और ओबी वैनों को पहले से ही चेतावनी दी जाती है और वे पूरी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
उन्होंने अभी एक लंबे अरसे से लटके दो विवादित बांधों के निर्माण का आदेश दिया, परियोजना में 10 लाख रुपयों (पाकिस्तानी) का व्यक्तिगत सहयोग किया और लोगों से पैसा एकत्र करने के लिए एक फ़ंड लॉन्च किया। उन्होंने इस्लामिक कानून के तहत “सादिक” (सच्चा) और “अमीन” (भरोसेमंद) नहीं होने के कारण नवाज शरीफ को अयोग्य घोषित कर दिया एवं अब उन्हें और उनकी बेटी को भ्रष्टाचार के कारण जेल भेजा दिया है। बेशक, उन्हें इमरान खान के चरित्र के साथ ऐसा कोई मुद्दा नहीं मिला है।
न्यायपालिका की मिलीभगत के साथ, पाकिस्तानी सेना का अधिग्रहण स्थायी होने के करीब है। यदि आप वहाँ की खबरों पर करीब से नज़र रखते हैं तो ऐसा लगेगा कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर ज़रदारी पर भी अदालत का फंदा कस रहा है, वजह है चुनावों में अपेक्षित परिणाम न पाने की संभावना।
तो क्या बेहद दोस्ताना, गर्मजोश, बहादुर और स्पष्टवक्ता पाकिस्तानियों से हम साहित्य-महोत्सवों, लाहौर और कराची में पार्टियों, सम्मेलनों, विदेशी परिसरों और ट्विटर पर वास्तविक रूप से मिलते हैं?
बेशक, वे हैं। वे आश्चर्यजनक रूप से साहसी लोग हैं और अपनी दोस्ती और आतिथ्य मे हमसे ज्यादा बड़ा दिल रखते हैं। लेकिन वे बहुत कम हैं, वे हैं अँग्रेजी बोलने वाले एक छोटे से अभिजात वर्ग, जिनका एक पाँव विदेश- दुबई, लंदन या न्यू यॉर्क मे रहता है और उनके पास दोहरे पासपोर्ट का दोहरा आश्वासन होता है (भारत के उलट, पाकिस्तान दोहरी राष्ट्रीयता की अनुमति देता है)। याद कीजिए, पाकिस्तानी समाचार टीवी पूरी तरह उर्दू में है। वहाँ अंग्रेजी चैनल नहीं हैं। अंग्रेजी में बातचीत निराशाजनक रूप से मामूली है। इस वर्ग के बाहर, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी आबादी का एक विशाल समंदर है (भारत की दर से दोगुना, और हम परेशान हैं)। पाकिस्तान में आयु माध्यिका 23 वर्ष है जबकि भारत में 29 वर्ष है। इन युवाओं में से 46 प्रतिशत ने कभी स्कूल की शक्ल नहीं देखी है। यहाँ एक समाज भी है जिसके पास अपनी विशालकाय सेना से भी अधिक स्वचालित राइफलें हैं।
तो दोबारा यह कहने से पहले जरूर सोचियेगा कि “भारत और पाकिस्तान एक जैसे हैं” क्यूँकि ख़ून के भावनात्मक बहाव से ख़ून खराबा बंद नहीं होने वाल। भारत में हम संपूर्णता से बहुत दूर हैं, हम अपने पड़ोसियों के लिए लोकतन्त्र हेतु एक बहुत खराब माहौल बनाते हैं, और हम बदतर होते जा रहे हैं। हमें चिंतित होने की जरूरत है। लेकिन यदि हम सोचते हैं कि हम पाकिस्तानियों जैसे हैं या पाकिस्तानी हमारे जैसे हैं, तो या तो हम बेवकूफ़ हैं या पाकिस्तान के बारे मे कुछ एक कराची और लाहौर के ड्राइंग रूमों, पुरानी लाहौर हवेली पर स्थित उस टैरेस-रेस्तरां या खान मार्केट से परे कुछ भी नहीं जानते।
1985 में मैंने एक संवाददाता के रूप में पाकिस्तान की यात्रा शुरू की थी और इसी तरह के बहुत सारे उत्साहपूर्ण किन्तु अव्यावहारिक दृश्य देखे थे। मई दिवस, 1990 को लाहौर के उदारवादी स्थान पाक टी हाउस में “कलम-मजदूर” रैली में भाग लेने के लिए आमंत्रित किए जाने पर मुझे झटका लगा था, और जब हमारे दोनों देश युद्ध की कगार पर खड़े दिखाई रहे थे तो मैं शांति के लिए सुगबुगाहट से भी अवगत हुआ था। क्या यह नई दिल्ली में होगा?
उस शाम हम प्रसिद्ध अकादमिक प्रोफेसर इकबाल अहमद के घर पहुँचे। हमने सुबह 4 बजे तक ब्लैक लेबल पी। तब तक हमने हमारे देशों के बीच कश्मीर समेत हर समस्या का समाधान कर लिया था।
जैसे ही मैं जाने को हुआ, प्रतिष्ठित मेजबान ने मुझे रोक लिया। उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि आप एक बहुत अच्छे युवा पत्रकार हैं, मैं नहीं चाहता कि आप एक बड़ी गलतफहमी के साथ जाएं।”
मैंने पूछा, “जैसे कि क्या?
उन्होंने कहा, “आज रात जो विचार आपने सुने हैं वे पाकिस्तान के विचार हैं। यह पाकिस्तान के उदारवादी वामपंथ का विचार है। हम में से केवल नौ ही बचे हैं, और आपने यहाँ हम सभी से मुलाकात की।”
उन्होंने कहा, “और यदि मैं चला गया, जो कि कभी भी हो सकता है, तो केवल आठ ही रह जाएंगे। तो समझे बरखुदार।” हम हंसे।
न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अब उनके नाम पर एक मेमोरियल लेक्चर शुरू किया है और कुछ समय पहले हमने अरुंधती रॉय को यह लेक्चर देते हुए देखा था। क्या उनके वर्ग की संख्या आठ से अधिक हो गई है? मुझे यकीन है कि हो गई है। लेकिन यह अभी भी उनकी सेना द्वारा उनके राज्य के संस्थागत अधिग्रहण को चुनौती देने के लिए बहुत कम है, जबकि इस बार तो न्यायपालिका की भी मिलीभगत है।
Read in English : A Khan Market evening has more liberals than survive in the whole of Pakistan