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Saturday, 15 November, 2025
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दिल्ली ब्लास्ट से दोबारा लौटा आतंक, एक ‘रेड लाइन’ टूटी, सुरक्षा में छिपे खतरे सामने आए

भारत ने इस साल मई में ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिये JeM को सबक सिखाया था और उसे बदले की धमकियां भी मिली थीं. अब वह सामने आ रहा है.

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नई दिल्ली: 10 नवंबर को लाल किले के पास हुए धमाके ने दिल्ली को उस दौर की याद दिला दी, जिससे वह बाहर आ चुकी थी — 2000 के दशक का वह समय जब हर सायरन में आतंक का डर छिपा होता था.

इस हमले के पीछे के लोग कश्मीर से जुड़े पाए गए हैं. मोदी सरकार पिछले दस सालों में बार-बार दावा करती रही है कि कश्मीर में सब ठीक है और अनुच्छेद 370 हटने के बाद एक नया दौर शुरू हो गया है.

करीब 3,000 किलो विस्फोटक और दूसरा गोला-बारूद, जिसे पिछले 18 महीनों में जमा किया गया था, पुलिस ने जब्त किया. जम्मू-कश्मीर के नौगाम की पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े कई पोस्टर देखे, जो श्रीनगर की बाहरी इलाकों में अचानक दिखने लगे थे—यह नज़ारा 370 हटने के बाद घाटी में आम नहीं था.

सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह लंबी और गहरी जांच की सिर्फ शुरुआत है, जिसमें उन्हें कम्युनिकेशन में हुई चूक को भी जांचना होगा. दिल्ली धमाका पहलगाम हमले के सिर्फ सात महीने बाद हुआ है, जिसने पिछले एक दशक से चली आ रही भारत की शांति को भंग करके रख दिया है. आतंक एक नए रूप में लौटा है—इस बार इसमें कई राज्यों में फैला नेटवर्क है, जिसमें व्हाइट-कॉलर अपराधी शामिल हैं और इसी वजह से दिल्ली धमाका इस हफ्ते दिप्रिंट का ‘न्यूज़मेकर ऑफ द वीक’ है.

अनसुलझे सवाल

जम्मू-कश्मीर पुलिस का यह ऑपरेशन बड़ा प्रभावी था और इससे एक बड़े हादसे को रोका जा सका, लेकिन डॉ. उमर उन नबी, जिसने कथित तौर पर धमाका करवाया, एजेंसियों के हाथ से फिसल गया. सिर्फ उनके ही नहीं, हरियाणा और दिल्ली पुलिस के हाथों से भी.

सुरक्षा हलकों में चर्चाएं हैं कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल, जो एक एंटी-टेरर यूनिट है, को शायद अंदाज़ा ही नहीं था कि एक आतंकी संदिग्ध, जो पहले ही J&K और हरियाणा की टीमों से बचकर निकल चुका था, दिल्ली की ओर बढ़ रहा है और अगर उन्हें इसकी जानकारी थी, तो एक और मुश्किल सवाल उठता है—फिर वह दिल्ली में कैसे घुस गया और शहर में ऐसे कैसे घूमता रहा जैसे किसी को उसकी पहचान का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था?

इंटेलिजेंस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, जांचकर्ताओं के पास डॉ. उमर उन नबी का नाम था—वही व्यक्ति जिसने कथित तौर पर विस्फोटक से भरी i20 कार को रेड फोर्ट मेट्रो स्टेशन के पास ले जाकर उड़ाया.

फिर भी आरोपी ने अपना फोन बंद कर लिया, जिससे जांच अंधेरे में चली गई. कई लोग, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार वीर संघवी भी शामिल हैं, उन्होंने अपनी झुंझलाहट जताई है.

दिप्रिंट के लिए लिखे एक कॉलम में उन्होंने लिखा: “मुझे पता है कि हर आतंकी घटना पर भारत में यही आम प्रतिक्रिया होती है, लेकिन हर बम धमाके के बाद उठने वाली ‘इंटेलिजेंस फेल्योर’ की आवाज़ों से मैं अब थकने लगा हूं.”

दूसरा सवाल: 31 अक्टूबर को उसके दोस्त डॉ. मुज़म्मिल शकील की गिरफ्तारी के बाद से नबी कहां छिपा हुआ था? क्या शकील—जो पुलवामा के कोली का रहने वाला है—से जानकारी निकलवाने में बहुत वक्त लग गया?

शुरुआत में इस बात को लेकर कुछ भ्रम था कि शकील को कब गिरफ्तार किया गया और क्या उसकी गिरफ्तारी कश्मीर के ही डॉ. आदिल राठर की गिरफ्तारी के बाद हुई थी, जो यूपी के एक अस्पताल में काम करता था, लेकिन फरीदाबाद पुलिस बार-बार कहती रही है कि शकील को पहले पकड़ा गया था. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि 8 नवंबर की रेड के दौरान विस्फोटक शकील के किराए के घर से ही मिले थे.

और भी कई सवाल हैं—जैसे नबी ने कार में विस्फोटक कैसे और कब लोड किए?

‘रेड लाइन’ टूटी

जांचकर्ताओं ने अब कई लोगों को हिरासत में लिया है, जिनमें डॉक्टर भी शामिल हैं, ताकि दिल्ली ब्लास्ट की जड़ तक पहुंचा जा सके. शुरुआती जांच में पाकिस्तान पर उंगली उठ रही है. जांच अभी तक यह संकेत दे रही है कि यह मॉड्यूल पाकिस्तान में बैठे एक हैंडलर के निर्देशों पर काम कर रहा था.

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण स्वामी, जो दशकों से नेशनल सिक्योरिटी को कवर करते रहे हैं, उन्होंने शेखर गुप्ता के साथ ‘कट द क्लटर’ एपिसोड में बताया कि 2015 में NSA अजित डोभाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष के बीच हुई बैठकों में दोनों पक्षों ने एक तरह की ‘रेड लाइन’ पर सहमति जताई थी. रेड फोर्ट ब्लास्ट उस समझौते को साफ तौर पर तोड़ता है.

शायद सुरक्षा एजेंसियों ने भी यह उम्मीद नहीं की थी कि कश्मीर के डॉक्टरों वाला यह “व्हाइट-कॉलर” टेरर मॉड्यूल दिल्ली-एनसीआर में इतना खतरनाक प्लान करने की हिम्मत करेगा. भारत ने इस साल मई में ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिये जेईएम (JeM) को सबक सिखाया था और बदले की धमकियां भी मिली थीं. अब वह सामने आ रहा है.

कश्मीर-केंद्रित नेटवर्क और पाकिस्तान-स्थित आतंकी संगठनों की नई सक्रियता अब आखिरकार बाहर आ गई है. और एक बार यह ‘रेड लाइन’ टूट गई, तो डर है कि यह फिर नहीं टिक पाएगी.

(इस न्यूज़मेकर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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