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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतसेना के अधिकारियों के लिए कॉमन ड्रेस कोड महज दिखावटी बदलाव है, समस्या इससे कहीं गहरी है

सेना के अधिकारियों के लिए कॉमन ड्रेस कोड महज दिखावटी बदलाव है, समस्या इससे कहीं गहरी है

रेजिमेंटल संबंधों और पुराने जुड़ावों के कारण सीनियर आर्मी ऑफिसर्स में अपने रेजिमेंटल अधिकारियों के हितों को गलत तरीके से बढ़ावा देने की एक प्रवृत्ति रही है.

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भारतीय सेना ने 1 अगस्त से ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए एक जैसी वर्दी का प्रावधान करने का फैसला लिया है, भले ही कर्नल रैंक तक की सेवा तक उनका मूल रेजिमेंट/आर्म/कोर/सर्विस कुछ भी रहा हो. रक्षा सूत्रों द्वारा मीडिया में दिए गए बयान के मुताबिक, इस कदम का उद्देश्य रेजिमेंटेशन की सीमाओं से परे जाकर वरिष्ठ नेतृत्व के बीच सेवा मामलों में एक सामान्य दृष्टिकोण को बढ़ावा देना और मजबूत करना है. इस फैसले के पीछे जो इरादा है उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन यह इसमें अंतर्निहित कारणों को दूर करने में विफल रहता है, जिसके कारण वरिष्ठ अधिकारियों के लिए एक जैसी वर्दी को फिर से लाया गया है जो कि 1970 के दशक तक प्रचलित थी. इस प्रथा को जनरलों ने ही, विशेष रूप से फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ने तोड़ना शुरू कर दिया और 1980 तक यह अपने आप खत्म हो गई.

परोक्ष रूप से, यह फैसला सेना में रेजिमेंटल/आर्म/कोर/सर्विस संचालित मानसिक संकीर्णता के प्रसार को भी दिखाता है. यह द्वेष सामान्य रूप से अधिकारी कोर और विशेष रूप से वरिष्ठ नेतृत्व के चरित्र पर खराब असर डालता है. यह मूल्यांकन प्रणाली की जांच और संतुलन पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है.

ऑपरेशनल/काउंटर-इनसर्जेंसी क्षेत्रों में वरिष्ठ कमांडरों के कार्यकाल को 12-15 महीने से बढ़ाकर 18 महीने करने का एक और हालिया निर्णय भी मूल्यांकन प्रणाली की खामियों को सामने लाता है. यह कमांड नियुक्तियों के लिए उपलब्ध रिक्तियों की संख्या की तुलना में बहुत अधिक “मेधावी या बेहतरीन अधिकारियों” को तैयार करता है.

द्वेषपूर्ण मानसिक संकीर्णता

सैनिकों के बीच आपसी या भावनात्मक जुड़ाव युद्ध में पहला मोटिवेटिंग फैक्टर होता है. सीधे शब्दों में कहें तो सैनिक अपने साथियों को नीचा नहीं दिखाना चाहते या कायर नहीं दिखना चाहते. सैनिकों के बीच सामाजिक जुड़ाव यूनिट को मजबूत करता है, जो अंत में एक लड़ाई में मिशन को लेकर जुड़ाव में तब्दील हो जाता है. भारतीय सेना जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए रेजिमेंटल प्रणाली का पालन करती है. रेजिमेंट, लड़ने के लिए संगठित करने और प्रशिक्षण देने के अलावा, सैनिकों को एक पहचान और एक परिवार भी मुहैया कराता है, जिससे वे यूनिट के बाहर दो से तीन कार्यकालों को छोड़कर अपनी पूरी सेवा के लिए बंधे रहते हैं. पैदल सेना, बख़्तरबंद कोर, तोपखाने, वायु रक्षा और इंजीनियरों की कोर में कुछ बदलावों के साथ इस प्रणाली का पालन किया जाता है. जहां रेजिमेंट के आधार पर इकाइयां संगठित नहीं होती हैं, वहां सेना कोर ‘स्पिरिट/लोकाचार’ के माध्यम से रेजिमेंटेशन प्रदान करती है. यहां तक कि भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना भी रेजिमेंटेशन के बदले ‘सर्विस ईथोज़ या सर्विस लोकाचार’ का उपयोग करती हैं.

मुझे यह स्पष्ट करना जरूरी है कि एक रेजिमेंटल सिस्टम के साथ सामंजस्य या जुड़ाव बनाना आसान है, लेकिन इसे निश्चित कार्यकाल आधारित क्रॉस-यूनिट “टूर ऑफ ड्यूटी” सिस्टम के जरिए भी बनाया जा सकता है, जिसमें अच्छे नेतृत्व द्वारा और एक साथ रहकर, प्रशिक्षण लेकर और युद्ध करके भी निर्मित किया जा सकता है. युद्ध या ऑपरेशनल/फील्ड/अत्यधिक-ऊंचाई/काउंटर-इंसर्जेंसी क्षेत्रों की कठोरता के साझा अनुभवों के साथ भी तेजी से जुड़ाव बनाया जा सकता है.

रेजिमेंटेशन यूनिट के लेवल पर शुरू और खत्म होता है. इस स्तर से परे, एक व्यापक फाइटिंग फॉर्मेशन ट्रेनिंग ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है, जो कि फॉर्मेशन ट्रेनिंग और साझा मिशन द्वारा बनाया गया है. यह विशेष रूप से उन अधिकारियों पर लागू होता है जो इकाइयों की कमान के बाद, कर्मचारी अधिकारियों, प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करते हैं और इस बीच कंबाइंड आर्म्स फॉर्मेशन्स को कमांड करते हैं.


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दुर्भाग्य से, सेना में वरिष्ठ अधिकारियों की अपने रेजिमेंटल अधिकारियों के हितों को गलत तरीके से बढ़ावा देने के लिए रेजिमेंटल और पुराने संबंधों पर निर्भर रहने की एक प्रवृत्ति रही है. यह मूल्यांकन प्रणाली और इस प्रकार पदोन्नति और अच्छी नियुक्तियों/तैनाती में भी दिखता है. एक पिरामिड प्रणाली में, यह आर्म/कोर लॉयल्टी तक भी विस्तृत हो जाती है. कई बार, सेवा और क्षेत्रीय, जाति और धार्मिक पहचान में पिछले जुड़ाव भी मानसिक संकीर्णता की ओर ले जाते हैं.

यहां तक कि मिलिट्री हायरार्की की प्रोफ़ाइल की एक सरसरी जांच भी, जिसके संदर्भ में उन्होंने उच्च रैंक, प्रतिष्ठित पाठ्यक्रमों और विदेशी पोस्टिंग के लिए चयन में महत्वपूर्ण रिपोर्ट अर्जित करने के लिए सेवा की, पक्षपात की इस प्रवृत्ति को दिखाएगी.

बड़े पदों पर रहे वरिष्ठ अधिकारी अपने “विस्तृत परिवार या एक्सटेंडेड फैमिली” के लिए भी ऐसा ही करते हैं. अफसोस की बात है कि चरित्र की यह कमजोरी पूरे सेलेक्शन बोर्ड्स में व्याप्त है व ब्रिगेडियर से ऊपर के रैंक के सेलेक्शन और रिड्रेसल के ग्रांट के लिए जिम्मेदार सेना प्रमुख, उप सेना प्रमुख और सेना कमांडरों वाले सर्वोच्च कॉलेजियम के कामकाज में यह कमज़ोरी भी दिखती है.

कुछ आर्म्स के हितों को बढ़ावा देने के लिए, अधिकृत कर्नलों की संख्या के आधार पर सामान्य संवर्ग में ब्रिगेडियर के पद पर वैकेंसी आधारित पदोन्नति शुरू की गई थी. न केवल यह निर्णय योग्यता के विरुद्ध था, बल्कि इससे मुख्य रूप से पैदल सेना और तोपखाने को लाभ हुआ, जिसमें कर्नलों की अधिकतम संख्या थी. यह तब हुआ जब सेना में पैदल सेना और तोपखाने से लगातार चार चीफ बने. इसने बाद में उच्च पदों पर पदोन्नति के लिए अन्य आर्म्स के हितों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला. 2008 में मेजर जनरल के पद पर पदोन्नति के लिए भी ऐसा ही करने का प्रयास किया गया था. प्रस्ताव को तब खारिज कर दिया गया जब सेना कमांडरों के सम्मेलन में, सेना के कमांडरों में से एक ने कहा, “केवल मेजर जनरल तक ही क्यों, बल्कि चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जैसे टॉप पोस्ट पर भी सेना के विभिन्न आर्म्स से बारी-बारी से नियुक्ति क्यों नहीं की जाती है.

अधिकारी कोर के चरित्र

सैन्य नेता पैदा नहीं होते बल्कि उन्हें शिक्षित और प्रशिक्षित करके तब तक विकसित किया जाता है जब तक कि वे जरूरत के मुताबिक नहीं बन जाते. सैन्य नेतृत्व के मूल सिद्धांत आदर्शवादी हैं और निरपेक्ष रूप से व्यक्त किए गए हैं. हालांकि, सभी व्यक्तियों में मानवीय असफलताओं का अपना हिस्सा होता है. सेना कोडीफाइड और लागू करने योग्य नियमों, विनियमों और कानून के माध्यम से सैन्य चरित्र के आदर्शों और व्यक्तिगत कमियों के बीच की खाई को पाटती है.

किसी भी रूप में मानसिक संकीर्णता का प्रसार इंगित करता है कि संगठन और अधिकारी कोर के अधीनस्थों के प्रति ईमानदारी, निष्पक्षता, नैतिक साहस और वफादारी संदिग्ध है. यह अधिकारियों के चरित्र को कमजोर करने की बड़ी समस्या का एक हिस्सा भर है. यदि वरिष्ठ अधिकारियों के बीच भी इन मूलभूत गुणों से समझौता किया गया है, तो नेतृत्व के मौजूदा मानकों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से चरित्र लक्षणों और आदर्शों और असफलताओं के बीच की खाई को पाटने के लिए एनफोर्समेंट मेकैनिज़म के संबंध में. प्रचलित नेतृत्व मानकों के नैतिक मूल्यांकन की तत्काल आवश्यकता है और उन्हें लागू करने के लिए सैन्य नेतृत्व विकास कार्यक्रम और नियमों/विनियमों में सुधार लाने की आवश्यकता है.

मूल्यांकन प्रणाली

मेरिटोक्रेसी उत्कृष्टता की खोज का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है, और किसी देश के लिए अंतिम उपाय माने जाने वाले सेना में तो ये जरूर होना चाहिए. सेना में अधिकारियों के लिए काफी आधुनिक और व्यावहारिक त्रिस्तरीय मूल्यांकन प्रणाली है. प्रारंभिक और समीक्षा करने वाले अधिकारियों की मानवीय विफलताओं को दूर करने के लिए अंतर्निहित तंत्र है, जो बेहतर समीक्षा अधिकारी द्वारा मूल्यांकन किए जा रहे अधिकारी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है. मिलिट्री सेक्रेटरी ब्रांच द्वारा भी औवरऑल रिव्यू किया जाता है.

कोई भी मूल्यांकन प्रणाली चरित्र और नैतिकता के प्रचलित मानकों पर निर्भर करती है. वस्तुनिष्ठता की कमी, रेजिमेंटल और आर्म को लेकर संकीर्णता की व्यापकता और मूल्यांकन अधिकारियों के चरित्र में कमजोरी के कारण सेना के भीतर मूल्यांकन की प्रणाली त्रुटिपूर्ण हो गई है. नेतृत्व के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उप इकाइयों/इकाइयों/संरचनाओं के सत्यापन की कोई औपचारिक प्रणाली नहीं है. सत्यनिष्ठा और नैतिक साहस की कमी, और मूल्यांकनकर्ताओं का दोहरा आचरण, गोपनीय रिपोर्टों की बढ़ती संख्या का कारण बनता है. इससे वास्तविक रुप से योग्य लोगों का नुकसान होता है और कमांड के सभी स्तरों पर “मेधावी अधिकारियों” की बाढ़ आ जाती है. शॉर्ट कमांड टेन्योर का यह प्राथमिक कारण है.

ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए एक जैसी वर्दी लाना निश्चित रूप से एक प्रशंसनीय कदम है, जिससे वे रेजिमेंटल जुनून से ऊपर उठ सकें और सेना के नैतिक मूल्यों को अपना सकें. यूनिटों की कमान समाप्त करने के बाद इसे कर्नलों तक विस्तृत करना विवेकपूर्ण होगा. हालांकि, मानसिक संकीर्णता को खत्म किए बिना यह परिवर्तन सिर्फ दिखावा होगा.

संकीर्णता की जड़ में अधिकारी कोर के चरित्र में गिरावट आना है जो मूल्यांकन प्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. सैन्य पदानुक्रम को एक नई वर्दी की तुलना में सीधी रीढ़ की जरूरत है.

(लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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