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Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतसेना की वर्दी 'परिवार' के गौरव का प्रतीक है, इसका एक जैसा बनाना उस पहचान को छीन लेगा

सेना की वर्दी ‘परिवार’ के गौरव का प्रतीक है, इसका एक जैसा बनाना उस पहचान को छीन लेगा

एक बेरेट, बैज, लैनयार्ड और बेल्ट सभी परिवार के गौरव और प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं. इसे हटाना बेहद गैर-जरूरी है.

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सेना मुख्यालय जनरल काडर यूनिफॉर्म से जुड़े अपने फैसले को इससे खराब समय पर नहीं ले सकता था. कैंटोनमेंट्स को भंग करने के सदमे से अभी उबर भी नहीं पाए थे कि यह घोषणा कर दी गई कि ब्रिगेडियर से लेकर ऊपर तक के सभी अधिकारी 1 अगस्त से अपनी वर्दी पर रेजिमेंटल या कोर (corps) की पहचान से संबंधित किसी चीज़ को धारण नहीं करेंगे.

बेशक, उठाए गए इन दोनों कदमों के प्रति जानकारों की प्रतिक्रिया उम्मीद के मुताबिक ही रही है. हालांकि, सेना मुख्यालय के इरादे नेक हो सकते हैं, लेकिन कैंटोनमेंट को खत्म करने के फैसले की कई लोग खुले तौर पर आलोचना कर सकते हैं और ऐसा ही कुछ एक जैसी वर्दी के लिए भी सच है. हालांकि, ज्यादा महत्त्वपूर्ण मुद्दों के सामने दोनों फीके पड़ गए.

औपनिवेशिक को अतीत छोड़ना

इसके साथ ही, केंटोनमेंट बोर्ड्स को भंग करने और उन्हें नागरिक क्षेत्रों से अलग करने का फैसला उपनिवेशवाद के ताबूत में एक और कील की तरह है, इसके लिए दशकों से इन संस्थानों के खिलाफ तर्क दिया जाता रहा है. कई सेवानिवृत्त सेना अधिकारियों ने निर्णय का समर्थन किया है, और उनमें से कई ने बड़े संरचनाओं में स्टेशन कमांडर या लैंड ऑफिसर के रूप में भी काम किया है.

सैन्य अधिकारियों द्वारा उनके बारे जो राय रखी जाती है और आईडीईएस अधिकारियों के लिए वे जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, उसे कहीं भी छापा नहीं जा सकता. छावनी क्षेत्रों में आईडीईएस के अधिकारियों और नागरिक पदाधिकारियों और प्रतिष्ठित लोगों के बीच गहरा जुड़ाव एक ऐसा मुद्दा है जो बहुत तरह के विचारों को पैदा करता है. आईडीईएस के अधिकारियों की द्वारा ठीक से देखरेख न कर पाने के कारण धीरे-धीरे कैंटोनमेंट की जमीनें कम होती जा रही हैं. कई उदाहरण ऐसे हैं जिसमें, IDES सदस्यों और स्थानीय सैन्य प्राधिकरण के बीच कामकाजी संबंध का अस्तित्व खत्म हो गया है, और यह अच्छी भावना के साथ है क्योंकि अनुभवी दिग्गजों ने अलगाव का स्वागत किया है.

हालांकि, यह निर्णय उस विवादास्पद प्रश्न का हल नहीं देता है कि कैंटोनमेंट्स को बनाया ही क्यों गया था, नागरिक क्षेत्रों को उनके दायरे में कैसे लाया गया, और इन प्रशासनिक संस्थानों का प्रबंधन कैसे किया गया. सैन्य इकाइयां आसपास के इलाकों में ऐसी जगह रहती हैं और ट्रेनिंग करती हैं जहां उन्हें लगता है कि किसी की निगाहें उन पर नहीं होतीं.

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यह आरामदायक या पीस-स्टेशन पोस्टिंग कई वर्षों तक चलने वाली कठिन सेवा के परिणामस्वरूप मिलती है. यह आराम परिवार के सदस्यों के साथ सैन्य आवास या किराए के सिवलियन क्वार्टरों में किया जाता है. रक्षा मंत्रालय (MoD) को इस सरल से प्रश्न का उत्तर जरूर देना चाहिए कि जवानों को अब अपने परिवार के लिए आवास कहां मिलेगा.


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यही नहीं फील्ड पोस्टिंग के दौरान संबंधित अधिकारी के दूर होने पर भी सैन्य परिवारों को कैंटोनमेंट में आवास दिया जाता है. इसे सेपरेटेड फैमिली एकोमोडेशन कहा जाता है और यह सभी के लिए एक सुरक्षित विकल्प है क्योंकि कैंटोनमेंट तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता.

अब जबकि सिविलियन एरिया कैंटोनमेंट बोर्ड्स द्वारा शासित नहीं होंगे और ‘डेवलपमेंट’ के लिए पूरी तरह से खुल जाएंगे तो सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं, क्योंकि ये सिविलियन क्षेत्र कई मामलों में सैन्य रिहायश से दूर न होकर बिल्कुल पास में हैं. बेतरतीब बाजार भी अब नियमों के अधीन नहीं रहेंगे. बिल्डर्स भी इस अवसर को भुनाने की ताक में हैं.

औपनिवेशिक अतीत में वापस जा रहे हैं

लेकिन जब बात सभी सामान्य संवर्ग के अधिकारियों के लिए एक जैसी वर्दी अपनाने की बात आती है तो यह उत्साह नहीं दिखता. देखने में यह निर्णय उचित प्रतीत होता है – यह वरिष्ठ अधिकारियों के बीच समानता को लागू करेगा और समानता और सौहार्द्र को बढ़ावा देगा. लेकिन गहराई से देखें तो यह वास्तव में एक परंपरा को फिर से शुरू करने जैसा है जिसे कई दशक पहले बंद कर दिया गया था. इसने अपेक्षा से अधिक नाराज़गी पैदा की है. जो इस बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं उनके लिए, नई नीति औपनिवेशिक विरासत का पालन करने जा रही है और वास्तव में, कई राष्ट्रमंडल सेनाओं के समान होगी.

हालांकि, कैंटोनमेंट को खत्म करने को एक औपनिवेशिक विरासत को दूर करने के रूप में प्रचारित किया गया था, लेकिन मानक सामान्य काडर वर्दी को वापस अपनाना, वास्तव में, उस अतीत की ओर लौटना होगा. ऐसा नहीं है कि वर्दी के मानकीकरण में नैतिक या पेशेवर रूप से कुछ गलत है. लेकिन साधारण तथ्य यह है कि सेना और उससे संबद्ध रेजीमेंट और कोर जन्म की वास्तविक बायोलॉजिकल या पारिवारिक पहचान और संबद्धता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. तो एक बेरेट, बैज, लैनयार्ड और बेल्ट सभी पारिवारिक गौरव और प्रतिष्ठा की पहचान हैं. इसे हटाना बेहद अनावश्यक है.

इस तर्क का एक व्यावहारिक हिस्सा भी है. 1990 के दशक में, पैराशूट रेजिमेंट ने खुद को दिल्ली की गंभीर दुविधा में पाया. दशकों बाद, एक कप्तान को अंततः राष्ट्रपति के एडीसी (aide-de-camp) के रूप में चुना गया, यह बहुत गर्व की बात थी. एक बार जब अधिकारी को बधाई दी गई, तो रेजिमेंटल हलकों में एक बहुत ही गंभीर और व्यावहारिक चर्चा शुरू हुई: वह ड्यूटी पर क्या पहनेंगे? पैराशूट रेजिमेंट के पास केवल एक टोपी है, एक बेरेट. कोई टोपी या औपचारिक पगड़ी नहीं हैं. इस तरह, अपनी भूमिका की तरह ही यह अद्वितीय है. फैमिली की उस पहचान को हटाना किसी को उसकी पहचान से वंचित करने जैसा है.

(मानवेंद्र सिंह एक कांग्रेस नेता, डिफेंस एंड सिक्युरिटी अलर्ट एडिटर-इन-चीफ और सैनिक कल्याण सलाहकार समिति, राजस्थान के चेयरमैन हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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