scorecardresearch
Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतकश्मीर में आतंकवाद बदल रहा है, सेना को 20 साल पुराने ऑपरेशन सर्प विनाश से सबक लेने चाहिए

कश्मीर में आतंकवाद बदल रहा है, सेना को 20 साल पुराने ऑपरेशन सर्प विनाश से सबक लेने चाहिए

हिल काका, जहां आतंकवादियों ने 2003 की शुरुआत में घुसपैठ की थी, वो आतंकियों का असल मुख्यालय बन गया. तब सेना ने ऑपरेशन सर्प विनाश नामक अपना सबसे बड़ा पिनसर ऑपरेशन शुरू किया.

Text Size:

पिछले कुछ साल में जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद परिदृश्य में महत्वपूर्ण, लेकिन सूक्ष्म परिवर्तन हुए हैं, लेकिन इस पर ज्यादा सार्वजनिक चर्चा नहीं हुई है.

बदलाव काम करने के तरीके और इसके भूगोल में है. 20 साल के बाद केंद्र बिंदु अब पीर पंजाल के दक्षिण में चला गया है और उग्रवादी कार्रवाइयों के बदलते पैटर्न से पता चलता है कि लक्ष्य केवल लगातार नुकसान देने के बजाय चौंकाने वाला हो रहा है. तीव्र घात के साथ ये आतंकवादी एक्शन समाज में मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है.

आतंकवाद-रोधी रणनीति का सबक अतीत में छिपा है — कि कैसे सेना ने ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया.

पीर पंजाल रेंज का दक्षिण कभी समान रूप से सक्रिय उग्रवाद वाला क्षेत्र था, जब कश्मीर घाटी में अत्यधिक दबाव ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों को जम्मू संभाग के पुंछ और राजौरी जिलों में बेस बनाने के लिए मजबूर किया. हिल काका, जहां आतंकवादियों ने 2003 की शुरुआत में घुसपैठ की थी, वो आंतकियों का असल मुख्यालय बन गया. स्थानीय आबादी के शोषण के साथ-साथ सुरक्षा बलों पर लगातार हमलों के बाद सेना को उग्रवाद-रोधी अभियानों में अपना सबसे बड़ा पिंसर आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा. स्वाभाविक रूप से ऑपरेशन सर्प विनाश नाम की इस बहु-गठन कार्रवाई के परिणामस्वरूप दोनों जिलों में बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए.

हालांकि, दो दशक पहले उग्रवादियों द्वारा अपनाई गई रणनीति में बहुत कम समानता है, फिर भी उस स्थापित पैटर्न को समझने और उचित जवाबी रणनीति तैयार करने की ज़रूरत है. इस पहलू में उग्रवादी समूह, अगर एक से अधिक हैं और संचालकों ने जिनमें से निश्चित रूप से कई हैं, अपनाई गई रणनीति में बदलाव लाने में अधिक गतिशीलता दिखाई है. हालांकि, सेना ने नए युद्धक्षेत्र युद्धाभ्यास करने में समान गतिशीलता नहीं दिखाई है. इस प्रकार इसे समय-समय पर अंतिम कीमत चुकानी पड़ती है. इसलिए, ऑपरेशन सर्प विनाश से कई पैंतरे सीखने की ज़रूरत है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ें: मणिपुर भारत का पूर्व का प्रवेश द्वार है, लेकिन कश्मीर की तुलना में इस पर आधा राजनीतिक फोकस भी नहीं है


एक सफल ऑपरेशन

ऑपरेशन सर्प विनाश की सफलता काफी हद तक इस तथ्य के कारण थी कि जटिल बहु-गठन दोहरी-सेवा कार्रवाई एक सावधानीपूर्वक नियोजित घेराबंदी ऑपरेशन की परिणाम थी जिसका एक ही रणनीतिक उद्देश्य था — सेक्टर से आतंकवादियों का सफाया. राजनीतिक और प्रशासनिक स्थान हासिल करने या दिल और दिमाग जीतने जैसे गूढ़ उद्देश्यों के लिए कोई गुंजाइश या योजना नहीं थी और इन्फैंट्री, विशेष बलों और सशस्त्र हेलीकाप्टरों के कुशल उपयोग के साथ उन्मूलन पूरा किया गया. जनशक्ति और प्रौद्योगिकी का उपयोग सरल और तार्किक तरीके से किया गया, जो पूरी तरह से तत्कालीन कमांडर के बौद्धिक और सैन्य कौशल से उत्पन्न हुआ था.

एक जटिल सैन्य अभियान को रोमियो फोर्स नामक आतंकवाद-रोधी संरचना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एचएस लिडर द्वारा सरलता से प्रस्तुत किया गया था. उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका के जंगलों में कमांडिंग ऑफिसर के रूप में खून से लथपथ, जीओसी उन लोगों में से थे जो अपने व्यावहारिक अनुभव को गठन स्तर पर ला रहे थे. रणनीतियां लगभग एक जैसी ही रहती हैं, भले ही अलग-अलग आतंकवाद-रोधी परिदृश्यों में इलाके अलग-अलग हो सकते हैं. हिल काका में स्नो बूट्स ने तमिल टाइगर्स के रबर सैंडल की जगह ले ली, लेकिन आतंकवादी समान रसद श्रृंखलाओं पर निर्भर रहे और समान अग्नि अभ्यासों को नियोजित किया. सिवाय इसके कि सेना ने वही खेल नहीं खेला.

सामान्य जंगल पर हमला करने के अभ्यास के बजाय, जीओसी रोमियो फोर्स ने धीरे-धीरे संख्या बढ़ाई और सैनिकों की उपलब्धता बढ़ने के साथ-साथ शिकंजा कस दिया. सैनिकों और स्थानीय कुलियों को अस्थाई हेलीपैड और अन्य रसद के लिए अड्डों को बनाने में उपयुक्त रूप से नियोजित किया गया, जो घेराबंदी की रणनीति के लिए सबसे ज़रूरी है. चुनिंदा घात स्थलों ने उन सभी अतिरिक्त बलों को हटा दिया जिन्हें उग्रवादियों ने लाने की आशा की थी, या जो लोग बचने की उम्मीद कर रहे थे उनके स्वर्ग जाने के टिकट मिटा दिए गए थे. स्थानीय चरवाहे और ग्रामीण सांप्रदायिक विभाजन को किनारे रखकर आगे आए और फिर आतंकवादी ठिकानों, गुफाओं या बंकरों को हेलीकॉप्टर की गोलीबारी या कुशल विशेष बलों की रणनीति द्वारा नष्ट कर दिया गया.

ऑपरेशन सर्प विनाश दो प्रभावित जिलों में एक दशक से अधिक की सापेक्ष शांति स्थापित करने में सफल रहा. फिर भी नागरिक सुरक्षा प्रतिष्ठान के बीच इसके आलोचक थे, जो उग्रवादियों के इस तरह के विस्तृत मजबूत आधार स्थापित करने में सक्षम होने के विचार से चिढ़ते थे. मारे गए लोगों की संख्या के साथ-साथ ऑपरेशनल तरीकों का भी उपहास किया गया, लेकिन यह इस तथ्य से अलग नहीं है कि ऑपरेशन सर्प विनाश को सफलता मिली और यह अभी भी उन लोगों की स्थानीय यादों को नहीं मिटाता है जिन्हें उस कार्रवाई से लाभ हुआ था. अब समय आ गया है कि सेना सर्प विनाश की फाइलों पर से धूल झाड़कर सबक ताज़ा करे.


यह भी पढ़ें: MHA में विश्वास नहीं है मणिपुर को, असम राइफल्स के खिलाफ दर्ज की FIR, IR बटालियन को निहत्था किया


सबक आज भी कायम

सेना के लिए सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि वह अपने अभियानों का समय और रणनीति अपने विवेक और कौशल से तय करे, न कि किसी अन्य बाहरी विचार से. तुरंत नतीजों के लिए सैनिकों को दौड़ाने और फिर अधिक कीमत चुकाने की तुलना में धीमी, जानबूझकर और श्रमसाध्य रूप से तैयार की गई कार्रवाई कहीं बेहतर है. सेना असामान्य रूप एवं नियमित गति से बड़े पैमाने पर आतंकवादियों के घात लगाकर किए गए हमलों से अपने जवान खो रही है और सभी राजौरी, पुंछ जिलों और रियासी के कुछ हिस्सों में. इलाका आसान नहीं है, लेकिन 2003 में तो और भी कठिन था जब संसाधन आसानी से उपलब्ध नहीं होते थे.

इस क्षेत्र में सैनिक अभियान शुरू करने के लिए सर्दी दुष्कर समय है, लेकिन यहां आतंकवादियों और नागरिक ओवरग्राउंड सहयोगियों के लिए भी रसद सीमित रूप से उपलब्ध होती है. ज्ञात हो कि कोई भी सेना रसद के बिना नहीं लड़ सकती है, जैसा कि इज़रायल के लिए हथियारों और आयुधों को अमेरिका से बार-बार हवाई मार्ग से भेजा रहा है. जबकि पूरे क्षेत्र में सबसे आधुनिक सेना इज़रायली हैं. 2024 में ऑपरेशन सर्प विनाश को दोहराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि आतंकवादियों की संख्या कथित तौर पर उस अवधि से कम है, परंतु लामबंदी और घेराबंदी के लिए वैसे ही तैयारी करनी होगी. परिस्थितियां भले ही बदलती रहे हैं, आतंकवादी उसी रसद प्रणाली पर निर्भर है, खिलाड़ी नए और बेहतर सामरिक कौशल वाले क्यों ना हो.

(मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के नेता, डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट के एडिटर-इन-चीफ और राजस्थान की सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के चेयरमैन हैं. उनका एक्स हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: मणिपुर पुलिस को कमांड की जरूरत है, कॉम्बैट लीडरशिप की नहीं


 

share & View comments