राहुल गांधी के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है. अब वक्त आ गया है कि वे देश को बताएं और दिखाएं कि वे समाज के वंचित और शोषित वर्गों की ज़िंदगी में कैसे बदलाव ला सकते हैं और उनके लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय कैसे ला सकते हैं. पिछले कई सालों से वे जाति जनगणना को उनकी सभी समस्याओं का रामबाण इलाज बता रहे हैं. यह 1990 के दशक की मंडल बनाम कमंडल की राजनीति की तरह लग सकता है, लेकिन वे इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि जिस चीज़ ने कांग्रेस को — खासकर हिंदी पट्टी में — बर्बाद किया, वही नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को भी नुकसान पहुंचाएगी. हालांकि, अभी इस बारे में पहले से कोई राय नहीं बनाई जानी चाहिए.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने गांधी को यह दिखाने का एक बेहतरीन मौका दिया है कि वे देशव्यापी जाति जनगणना के जरिए क्या हासिल करना चाहते हैं. रेड्डी जाति जनगणना रिपोर्ट या सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, रोज़गार, राजनीतिक और जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर बहस करने और उसे अपनाने के लिए मंगलवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुला रहे हैं.
रविवार को हैदराबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य के सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी ने बताया कि राज्य की 56.33 प्रतिशत आबादी पिछड़े वर्ग से आती है, जिसमें 10.08 प्रतिशत पिछड़े मुस्लिम शामिल हैं. अनुसूचित जाति 17.43 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 10.45 प्रतिशत है.
उत्तम कुमार रेड्डी ने कथित तौर पर कहा, “आज तेलंगाना में सामाजिक न्याय के लिए एक क्रांतिकारी कदम है.” उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण “भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी” के दृष्टि से मेल खाता है.”
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राजनीतिक हलचल
रेवंत रेड्डी अपने कर्नाटक समकक्ष सिद्धारमैया के विपरीत अपनी बात पर अमल कर रहे हैं. सिद्धारमैया करीब एक दशक से इस रिपोर्ट को लिए बैठे हैं और कई महीनों से इसे अगली कैबिनेट बैठक में पेश करने का वादा कर रहे हैं. सिद्धारमैया, एक ओबीसी नेता हैं, उन्हें अपनी पार्टी के शक्तिशाली वोक्कालिगा और लिंगायत नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है — यह देखते हुए कि जाति सर्वेक्षण में कथित तौर पर इन दोनों समुदायों की आबादी आम तौर पर अनुमानित से बहुत कम दिखाई गई है.
लेकिन सिद्धारमैया पर आप भरोसा कर सकते हैं कि वे सुविधाजनक समय पर रिपोर्ट को सार्वजनिक करेंगे और जब भी राजनीतिक गर्मी, जो अंदर और बाहर दोनों तरफ से पैदा हुई है, बर्दाश्त से बाहर हो जाए, तो इसका इस्तेमाल भानुमती के पिटारे की तरह करेंगे. रेवंत रेड्डी तेलंगाना में हलचल मचाने के लिए अधिक इच्छुक दिख रहे हैं.
हाल ही में हुए जाति सर्वेक्षण का राजनीतिक और शासन के मामलों में क्या असर होने वाला है, इसका अंदाज़ा के चंद्रशेखर राव की बेटी कविता ने तीन हफ्ते पहले एनडीटीवी के लिए जो लिखा, उससे लगाया जा सकता है:
“के चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व में तेलंगाना ने लक्षित नीतियों की परिवर्तनकारी शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से देखा है, चाहे वह बीसी कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से हो, बीसी छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाओं और बीसी आवासीय विद्यालयों के माध्यम से हो. अन्य सामुदायिक पहलों के लिए, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार ने बुनकर समुदाय के लिए जीवन बीमा, अंतर-जातीय विवाहों के लिए सरकारी सहायता, नाई ब्राह्मण समुदाय का समर्थन करने के लिए सैलून के लिए मुफ्त बिजली, बुनकरों के लिए जीवन बीमा और धोबी समुदाय के लिए कई अन्य योजनाएं शुरू की हैं.”
एक बार जब रेवंत रेड्डी सरकार पूरे डेटा को सार्वजनिक कर देगी, तो तेलंगाना में विभिन्न जाति समूहों की ओर से संसाधन आवंटन में अपने हिस्से के लिए और भी अधिक मांगें देखने को मिल सकती हैं — बेशक सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के अलावा.
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प्रभाव का आकलन
इस कदम के मायने किसी राज्य या राजनीतिक दल से कहीं आगे तक फैले होंगे. तेलंगाना, जाति जनगणना के ज़रिए राहुल गांधी जो हासिल करना चाहते हैं, उसके लिए एक पायलट प्रोजेक्ट या लैब बनने की संभावना है. पहली नज़र में, ऐसा लगता है कि गांधी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संस्थापक कांशीराम के नारे को उधार ले रहे हैं — “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”.
हालांकि, गांधी ने बारीकियों के बारे में अस्पष्टता बरती है. उन्होंने आरक्षण की सीमा को अदालत द्वारा अनिवार्य 50 प्रतिशत से आगे ले जाने की बात कही है, लेकिन यह सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कोटा के संदर्भ में है. वे बार-बार भारत सरकार के सचिवों में ओबीसी के शून्य प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाते रहे हैं — 90 में से तीन, जैसा कि उन्होंने सितंबर 2023 में कहा था.
वह स्पष्ट रूप से आश्वस्त हैं कि निर्णय लेने वालों की जाति वंचित समूहों के प्रति नीतियों के उन्मुखीकरण पर असर डालती है. हालांकि, ऐसा लगता है कि वे खुद को उलझन में डाल रहे हैं क्योंकि कांग्रेस नेताओं द्वारा ‘भावी प्रधानमंत्री’ के रूप में पेश किए जा रहे राहुल गांधी दत्तात्रेय ब्राह्मण हैं.
सच तो यह है कि जाति जनगणना के गांधी के विचार के बारे में बहुत सारी अस्पष्टताएं हैं: क्या यह नौकरियों और शिक्षा में आनुपातिक कोटा के बारे में है — कानूनी बाधाओं को अभी के लिए अलग रखते हुए? या यह संसाधनों के आनुपातिक वितरण के बारे में है, जैसे कि तेलंगाना में पिछड़े वर्गों पर पूंजीगत व्यय का 56 प्रतिशत?
क्या इसका मतलब निर्णय लेने वाले पदों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व भी होगा — मान लीजिए, तेलंगाना में 100 मंत्रियों, संयुक्त सचिवों, सचिवों, प्रमुख सचिवों, न्यायाधीशों, स्कूल और कॉलेज के प्रिंसिपलों, पटवारियों, स्टेशन हाउस अधिकारियों, सरपंचों आदि में से 56 पिछड़े वर्ग (प्रतिशत के हिसाब से)?
मुझे पता है कि मैं यहां लगभग व्यंग्यात्मक और खारिज करने वाला लग रहा हूं, लेकिन यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व और वितरण की अव्यवहारिकता के बारे में मेरी शंका के साथ-साथ राहुल गांधी की योजनाओं के बारे में मेरी कम जानकारी से भी जुड़ा है.
हो सकता है उन्होंने शायद इस पर पूरी तरह से विचार किया है, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के विपरीत जिसने 2017 में ओबीसी के उप-वर्गीकरण पर रोहिणी आयोग का गठन किया था — केवल इसे एक दर्जन से अधिक बार विस्तार दिया और इसकी रिपोर्ट को दबा दिया.
अगर ऐसा है और राहुल गांधी के पास रेवंत रेड्डी के लिए लागू करने के लिए एक उचित रोडमैप है, तो तेलंगाना जाति सर्वेक्षण एक बड़ा मौका है. यह उन्हें भारत को यह दिखाने का मौका देगा कि यह वंचित वर्गों के लिए कैसे परिवर्तनकारी हो सकता है. अगर वह जल्द ही तेलंगाना में ब्लूप्रिंट पेश करते हैं, तो यह मोदी सरकार को मुश्किल में डाल देगा.
जनगणना में देरी हुई और इसमें जातियों की गणना के मुद्दे पर टालमटोल किया गया. हाल ही में पेश बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसके लिए केवल 574 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो दर्शाता है कि सरकार ने अभी तक 2025 में जनगणना कराने का फैसला नहीं किया है. 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कथित तौर पर 2021 में जनगणना कराने के लिए 8,754 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
अगर राहुल गांधी जाति जनगणना रिपोर्ट के अनुसरण में कुछ क्रांतिकारी उपायों की घोषणा करने के लिए रेवंत रेड्डी सरकार को प्रेरित कर सकते हैं, तो यह मुद्दा शायद राष्ट्रीय स्तर पर जोर पकड़ना शुरू कर देगा और सत्तारूढ़ भाजपा को परेशानी में डाल देगा, लेकिन अगर तेलंगाना जाति सर्वेक्षण अनुवर्ती नीतिगत कार्रवाइयों के मामले में राजनीतिक बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ता है, तो यह राहुल गांधी के मेगा पोल पिच की चमक को पूरी तरह से फीका कर देगा. तब कांग्रेस खुद को जाति के उस जाल में फंसी हुई पाएगी जिसे गांधी ने भाजपा को फंसाने के लिए इतनी मेहनत से बुना है.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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