आने वाले वर्षों में ज्यादातर लोग यह भूल चुके होंगे कि तेजस्वी यादव और चिराग पासवान अपने-अपने फेवरिट करिअर में असफल रहे. तेजस्वी रणजी के आगे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण का सपना पूरा नहीं कर पाये, तो चिराग एक फिल्म के बाद फिल्मी दुनिया में जम नहीं पाये.
लेकिन आज दोनों बिहार की राजनीति में स्तंभ बन चुके हैं. दोनों की सक्रिय राजनीति का करिअर लगभग आधे दशक का हो चुका है. दोनों ने अपने-अपने हिसाब से अपनी पहचान गढ़ी है और आगे की यात्रा पर हैं.
तेजस्वी और चिराग से बिहार की भावी राजनीति की काफी उम्मीदें वाबस्ता हैं. हालांकि, यह सवाल कयासों पर आधारित है कि भविष्य में ये दोनों कहां होंगे. पर अहम सवाल यह है कि इन दोनों नेताओं ने पिछले पांच वर्षों में राजनीति का कितना सफर तय किया है और कहां पहुंचे हैं?
तेजस्वी और चिराग दोनों युवा हैं. तेजस्वी कुछ छोटे हैं. दोनों बिहार के मजबूत सियासी घरानों के ‘चिराग’ हैं. लिहाजा स्वाभाविक रूप से दोनों के लीडर के रूप में उभरने के पीछे उनकी विरासत का बड़ा योगदान है. चिराग 2014 में संसद (लोकसभा) में पहुंचे तो तेजस्वी 2015 में विधानसभा के सदस्य बने.
तेजस्वी बिहार में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बने तो चिराग केंद्र की सत्ताधारी गठबंधन के सांसद हुए. लेकिन तेजस्वी के लिए अच्छा चांस यह रहा कि वह उपमुख्यमंत्री के साथ सदन में अपने दल के नेता हो गये. ऐसा संयोग चिराग को नहीं मिला. वह केंद्र में मंत्री नहीं बन सके, पर अपने दल के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष जरूर हुए.
तेजस्वी: संकट बन गया ताकत
इन चार वर्षों में तेजस्वी के सामने चुनौतियों का पहाड़ भी आया और सत्ता से बेदखली का वार भी झेलना पड़ा. उन्हें विपक्ष में आना पड़ा और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभानी पड़ी. पिता लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद पार्टी को संभालने की स्वतंत्र जिम्मेदारी निभानी पड़ी तो खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. तूफान उनके परिवार के अंदर भी रहा.
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इस दृष्टि से देखें तो महज चार वर्ष के पॉलिटिकल करिअर में तेजस्वी को जीवन के हर महाज पर डटना पड़ा. जिस कारण उनके लिए खुद को साबित करने का व्यापक अवसर प्राप्त हुआ. तेजस्वी के लिए अच्छा यह रहा कि उनके करिअर में आयी विविधता ने उन्हें खुद को साबित करने का व्यापक मैदान मुहैया कराया. उनके पास सलाहकारों की भी टीम है, जिसमें रामचंद्र पूर्वे और जगतानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे अनुभवी और संजय यादव और मनोज झा जैसे युवा शामिल हैं.
चिराग: पिता की छत्रछाया में पनपने का मौका
दूसरी तरफ इस दौरान चिराग, केंद्र की बलशाली मोदी सरकार के गठबंधन में स्वतंत्र अवसर की कमी के कारण अपने नेतृत्व को निखारने का न तो व्यापक विकल्प मिला और न ही मिले हुए विकल्पों का उन्होंने कोई खास इस्तेमाल किया. चिराग, बिहार में जमुई के सांसद हैं. उनके ऊपर यह आरोप लगते रहे कि वह क्षेत्र में समय नहीं देते. बिहार में उनकी राजनीतिक सक्रियता मौसमी ही रहती है. संभव है कि दिल्ली व बिहार दोनों जगह उनके गठबंधन की सरकार होने के कारण उनकी राजनीति में आक्रामकता नहीं रही हो.
चिराग के पिता रामविलास पासवान राजनीति में बेहद सक्रिय हैं और अक्सर पार्टी का पक्ष वही रखते हैं. हालांकि, उन्होंने इस बीच यह कोशिश की है कि चिराग अकेले भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करें. पिछले दिनों एनडीए सरकार से जब पार्टी को नाराजगी जतानी थी, तो बयानबाजी का जिम्मा चिराग ने संभाला. अमित शाह ने जब बिहार के एनडीए गठबंधन के लिए सीटों की घोषणा की तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के साथ चिराग भी थे. चिराग अब अलग दफ्तर में बैठते हैं और लोगों से स्वतंत्र रूप से मिलते हैं.
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लेकिन दूसरी तरफ बिहार में नेता विपक्ष होने के कारण तेजस्वी के पास अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के मौके बेशुमार थे. तेजस्वी ने इन अवसरों को खूब भुनाया और एक मजबूत पहचान भी गढ़ी.
लोकतांत्रिक राजनीति का यह मरम है कि आप सत्ता से बाहर रह कर चुनौतियों को स्वीकारते हैं और अपकी रणनीति में आक्रामकता रहती है तो आप आम जन में लोकप्रियता प्राप्त करते हैं. यकीनन, तेजस्वी ने इन अवसरों का पूरा लाभ उठाया. जबकि चिराग के लिए एक तो ऐसा अवसर नहीं था और दूसरा उन्होंने खुद को बिहार से बाहर रख कर बचे खुचे अवसरों को गंवाया भी. इसलिए चिराग की अब तक की जो छवि विकसित हुई है वह एक सुविधा सम्पन्न और फाइवस्टारी कल्चर के सियासतदां के इमेज की पंक्ति में उन्हें खड़ा करती है.
दोनों डिजिटल दौर के नेता
डिजिटल युग के इस राजनीतिक दौर में सियासतदानों की लोकप्रियता का एक पैमाना सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता भी माना जाने लगा है. इन चार-पांच वर्षों में तेजस्वी यादव ने फेसबुक व ट्विटर जैसे माध्यमों का धुंआधार इस्तेमाल किया. न सिर्फ इस्तेमाल किया, बल्कि उन्होंने खबरों की धारा को अपने हिसाब से दिशा देने में भी कामयाबी हासिल की.
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम बलात्कार कांड, सीतामढ़ी मॉब लिंचिंग और सृजन घोटाले जैसे मामलों में तेजस्वी ने सोशलमीडियाई युद्ध का सहारा लेकर सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों की नींदे हराम कर के युवाओं में लोकप्रियता अर्जित की. उनके ज्यादातर ट्वीट अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बटोरते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स के साथ चाय पीने जैसे आयोजन भी किए, जिसके बारे में बिहार में पहले किसी ने सोचा भी नहीं था.
सोशल मीडिया पर चिराग से बहुत आगे हैं तेजस्वी
इस दौरान चिराग सोशल मीडिया पर कहीं खोजे नहीं मिलते थे. हालांकि अब वह कुछ सक्रिय हुए हैं. लेकिन इस दौरान तेजस्वी ने ट्विटर पर 14 लाख फॉलोअर्स अर्जित कर लिये जबकि चिराग के पास 45 हजार फालोअर्स हैं. हालांकि सोशल मीडिया पर फालोअर्स की संख्या को राजनीति में लोकप्रियता का कतई आधार नहीं माना जा सकता, इसके बावजूद यह भी एक तथ्य है कि नयी पीढ़ी की फौज तक पहुंच बनाने के लिए सोशल मीडिया एक दमदार हथियार है.
तेजस्वी और चिराग की मौजूदा राजनीतिक हैसियत को दुनिया देख रही है. अब 2019 और 2020 के लोकसभा व विधानसभा के चुनाव इन नेताओं की नेतृत्व क्षमता को परिभाषित करने वाले हैं. ये दोनों चुनाव यह तय करेंगे कि लालू व पासवान काल से आगे तेजस्वी व चिराग युग की क्या रूपरेखा होगी.
(लेखक नौकरशाही डॉट कॉम के संपादक हैं)