मेटा, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, अल्फ़ाबेट, एपल, मामा सरीखी बड़ी टेक कंपनियों से लड़ाई कोई नयी बात नहीं है. लेकिन यह लड़ाई अब बेहद अहम मुकाम पर पहुंच गई है. इस महीने के शुरू में, अल्फ़ाबेट और अमेज़न के खिलाफ अमेरिका में संभवतः ऐतिहासिक घटना घटी, जो 1988 में माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद सबसे बड़ी घटना है.
इस बीच, यूरोप में टेक कंपनियों के खिलाफ अरबों यूरो का जुर्माना ठोकने के कम-से-कम तीन मामले सामने आए हैं. अब एक ‘क्रांतिकारी’ कानून बनाया गया है और दूसरा कानून इस हफ्ते पेश किया गया है. ये कानून ग्राहकों को यह आज़ादी देंगे कि वे पहले से लोड किए गए सॉफ्टवेयर में किस एप को वे रखेंगे और किसे डिलीट करेंगे. इस तरह गूगल पे और एपल वैलेट के लिए प्रतियोगिता बढ़ जाएगी. एकाधिकार, निजता में दखल देने आदि से संबंधित अधिकारों का उल्लंघन करने पर कंपनी के टर्नओवर के 10 प्रतिशत के बराबर तक का जुर्माना ठोका जा सकता है.
इस गर्मी में, ब्रिटेन में भी ऐसा ही कानून बनाया गया है.
लेकिन अमेरिकी कांग्रेस में ऐसा नया कानून लटक गया है. इसकी कुछ वजह यह है कि ‘मामा’ ने जोरदार पैरवी की है, लेकिन न्याय विभाग एवं फेडरल ट्रेड कमीशन ने मौजूदा एंटी-ट्रस्ट (मोनोपोली) कानून को विस्तार देने के लिए जोरदार पहल की है. कोशिश यह की जा रही है कि उपभोक्ताओं को सुरक्षा देने के मान्य लक्ष्य से आगे जाकर कानून को प्रतिस्पर्धी व्यवसाय को सुरक्षा देने वाला भी बनाया जाए.
इधर, भारत में ‘कंपिटीशन कमीशन’ ने गूगल के खिलाफ दो मुकदमों में उस पर कुल 2,280 करोड़ रुपये का जुर्माना थोक है, तीसरे मुकदमे में सुनवाई चल रही है.
नियमन-मुक्त इंटरनेट का लाभ लेने से लेकर इस डिजिटल युग में नयी टेक्नोलॉजी के जरिए उपभोक्ताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए गतिशील उद्यमी बनकर दिलचस्प आविष्कार करने तथा नये बिजनेस मॉडल बनाने तक का यह सफर लंबा रहा है.
लेकिन ‘फ्री स्पीच’ जब जहर बनने लगा, सोशल मीडिया राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने लगी, और बिग टेक की नीतियों पर चीन का प्रभाव रणनीति के मामले में चिंताजनक बनने लगा तो यह सब बदलना ही था. ‘कंटेन्ट’ पर नियंत्रण के खिलाफ राजनीतिक आपत्ति उभरी है और यह सार्वजनिक नीति बन रही है.
बिग टेक के खिलाफ आरोप यह भी है कि वह निजी डाटा का उपयोग (दुरुपयोग) करके वह निजता का उल्लंघन कर रही है, ‘सर्च क्वेरी’ के जवाब में कंटेन्ट की बिक्री को बढ़ावा दे रही है. एक अध्ययन में पाया गया कि अमेज़न प्रोडक्ट के सर्च में 20 में से 16 पहले परिणाम विज्ञापन थे. टैक्स से बचने के आरोप भी थे.
इस बीच, इन चंद कंपनियों ने विस्तार और ताकत के मामले में सरकारों को भी चुनौती देना शुरू कर दिया. इनमें से पांच कंपनियों की वित्तीय ताकत ‘एस ऐंड पी 500’ से भी ज्यादा और उनके शेयरों का कुल मूल्य खरबों डॉलर के बराबर था, उनकी कमाई इतनी ज्यादा थी कि उन पर थोपे गए रेकॉर्ड जुर्माने समुद्र में से एक लोटा पानी निकालने के बराबर थे. ‘मामा’ का मुनाफा ‘एस ऐंड पी 500’ के औसत मुनाफे के 10 प्रतिशत से दोगुना था, जिसे बाजार की ताकत के दुरुपयोग का नतीजा बताया जा रहा है.
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व्यवसाय के जिन तरीकों को लेकर आलोचना हो रही है उनमें ये भी शामिल हैं— मोबाइल फोनों पर पहले ही गूगल सॉफ्टवेयर लोड करना (इसके लिए एपल को अरबों डॉलर का भुगतान करना), ऑपरेटिंग सिस्टम्स चुनने की आज़ादी से वंचित करना और ‘दीवारबंद डायरे’ बनाना, संभावित प्रतियोगियों को खारिज करना या खरीद लेना (मेटा द्वारा इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का अधिग्रहण), और विज्ञापन से हुई आय के बारे में समाचार प्रकाशकों को गलत जानकारी देना.
2021 में, ऑस्ट्रेलिया ने प्रकाशकों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक कानून बनाया. इस पर एक टेक कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया का बहिष्कार कर दिया, लेकिन बाद में सुलह की. अभी वह स्थिति नहीं आई है कि कंपनियों को रेगुलेटर भंग कर सकें (जैसा 1984 में एटी ऐंड टी के साथ किया गया था), लेकिन कानून निर्माता ऐसी कार्रवाई का अधिकार मांग रहे हैं.
इसके जवाब में कंपनियों ने हमला तेज कर दिया है और अपने बचाव के लिए ज़ोर लगाने के साथ उग्र लॉबीइंग बढ़ा दी है. इसके अलावा वे प्रतिकूल फैसलों के जवाब में अपने बिजनेस मॉडल को भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से बदल रही हैं. मेटा ने युवाओं को अपने एप पर आधारित विज्ञापनों से निशाना बनाना बंद कर दिया है. गूगल ने अपने विज्ञापनों के बिजनेस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले डाटा तक पहुंच को विस्तार दिया है. टिकटॉक अपने यूजरों को नॉन-पर्सनलाइज्ड फीड चुनने की छूट देती है.
इतना काफी नहीं हो सकता है. अमेज़न को अपने प्लेटफॉर्म पर अपना प्रोडक्ट बेचने पर थर्ड-पार्टी के हितों के साथ टकराव के कारण प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है. गूगल को सर्च क्वेरी का 90 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ सकता है, और एपल को अपने एप स्टोर के उपयोग के नियम बदलने पड़ सकते हैं.
यह सब तब होगा जब 2022 में बिग टेक के शेयरों की कीमतें असंबद्ध कारणों से गिर गईं. इस साल उनमें थोड़ा सुधार हुआ है जबकि ‘मामा’ कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंटनी की है. यानी बिग टेक को एक से ज्यादा मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है.
(बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा)
(संपादनः ऋषभ राज)
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