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Thursday, 26 December, 2024
होममत-विमतन सुशांत काम आए, न कोविड और न ही कंगना, महाराष्ट्र में सरकार गिराने को अब आगे क्या करेगी बीजेपी

न सुशांत काम आए, न कोविड और न ही कंगना, महाराष्ट्र में सरकार गिराने को अब आगे क्या करेगी बीजेपी

महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार का तख्ता पलट कर बदला लेने को बेताब भाजपा अब अंबानी-सचिन वाज़े कांड, राज्य में कोविड के बढ़ते मामलों और भ्रष्टाचार के आरोपों का सहारा लेती दिख रही है

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ऐसा लगता है कि भाजपा ‘तख्तापलट स्पेशलिस्ट’ बन गई है. एक सिरे से गिन जाइए—कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी… भाजपा चुनाव जीतने में ही नहीं, बल्कि चुनाव में उसे हराने वाले की सरकार गिराने में भी विश्वास रखती है. अब उसकी नज़रें महाराष्ट्र पर टिक गई हैं. शिवसेना के नेतृत्व में महा विकास अघाडी (एमवीए) की सरकार को गद्दी से उतारना उसके लिए एक हिसाब चुकता करने जैसा होगा. आखिर, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अंतिम मौके पर भाजपा की पीठ में छुरा घोंप दिया था और अपने पुराने दुश्मनों शरद पवार की एनसीपी और सोनिया गांधी की काँग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार बना ली थी. सचिन वाज़े कांड; सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों, जिन पर पूर्व टॉप कॉप जूलियो रिबेरो भी कुछ कहने से मना कर रहे हैं; राज्य में कोरोना के बढ़ते मामलों ने भाजपा के लिए यह सपना आसान बना दिया है.

भाजपा एक और वजह से महाराष्ट्र सरकार को गिराने पर आमादा है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के नेतृत्व वाली भाजपा का पूरा ज़ोर इस बात पर है कि उसके खिलाफ कोई मजबूत विपक्ष न खड़ा होने पाए. जाहिर है, वह राजनीतिक विकल्पों से डरती है. अर्थव्यवस्था जिस तरह धराशायी हो रही है उसे देखते हुए वह संप्रदायिकता के रंग में रंगे राष्ट्रवाद की टेक छोड़ने का जोखिम नहीं मोल ले सकती. लेकिन भाजपा को सदमा पहुंचाते हुए महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने खुद को पक्की राष्ट्रवादी, शिवाजी पूजक, हिंदू होते हुए भी एक धर्मनिरपेक्ष मोर्चे के तौर पर प्रस्तुत किया है. इसके राजनीतिक जुनून बनने के काफी पहले से शिवसेना के कार्यकर्ता इस भूमिका में दिखते रहे हैं. इस तरह, उसने वोटों में भारी हिस्सेदारी करने की सभी शर्तों को बिना शोरशराबे के पूरा कर लिया है. ‘एमवीए’ सरकार ने पांच साल पूरे कर लिये, तो वह वैसा राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने की स्थिति में आ सकती है जैसा भाजपा नहीं दे सकती. यही वजह है कि भाजपा महाराष्ट्र की सरकार को गिराने को बेताब है. अगर आप मानते हैं कि महाराष्ट्र की गद्दी पर कब्जा करना नाटकीय था, तो उसका पतन कम हिट नहीं होगा.


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गहराता मामला

एक समय ऐसा भी आएगा जब महाराष्ट्र में पकती ताजा कहानी पर नेटफ्लिक्स पर कोई फिल्म बन जाएगी. इसमें पात्र होंगे– ‘एमवीए’, बदनाम ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ पुलिस अधिकारी सचिन हिंदूराव वाज़े, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह, महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख, और भारत के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी और उनका घर ‘एंटीलिया’. कहानी में पेंच डालने का काम करेगी भाजपा.

‘एमवीए’ ने जिस बारूदी सुरंग पर पैर रख दिया है वह कभी भी फट सकती है, लेकिन यह तभी फटेगी जब ठाकरे सरकार कोई गलत चाल चलेगी. अब तक जितनी घटनाएं घटी हैं वे सब छिटपुट ही हैं, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने सबको जोड़कर विधानसभा में जब प्रस्तुत किया तो ऐसा लगा कि मामले के बारे में उनके पास जितनी जानकारियां हैं उतनी तो मुंबई पुलिस और राज्य सरकार के पास भी नहीं हैं. फडनवीस के ब्योरे ‘एमवीए’ सरकार की भ्रष्ट छवि प्रस्तुत करते हैं.

इन दिलचस्प घटनाओं का सार यह है कि मुकेश अंबानी के घर ‘एंटीलिया’ के बाहर विस्फोटक से भरी स्कोर्पियो कार खड़ी मिलती है, जिसका पता उनके निजी सुरक्षा दल को लगता है, इसके बाद इस कार के मालिक मनसुख हिरन मृत पाए जाते हैं, फडनवीस आरोप लगाते हैं कि मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वाज़े इस कार के पीछे-पीछे एंटीलिया तक आए थे, इसके बाद मामले में चूक करने के लिए बर्खास्त किए गए परमबीर सिंह ने एक पत्र लिख डाला. पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि एनसीपी नेता अनिल देशमुख ने वाज़े को रेस्तराओं, बारों, और होटलों से हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूलने का निर्देश दिया था.

कोविड, कंगना, और सुशांत

इतना तो साफ है कि भाजपा महाराष्ट्र सरकार को गिराने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है. अब तक, वह कई मसलों को उठाकर अपना दांव आजमा चुकी है. वह राज्य में कोरोना के बढ़ते मामले और इस मेडिकल इमरजेंसी से निबटने में उद्धव सरकार की अक्षमता पर ज़ोर देती रही है. लेकिन पिछले साल जिस तरह प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ और अब जाकर कोरोना के मामले जिस तरह बढ़े हैं उनसे केंद्र सरकार की ही अक्षमता उजागर हो रही है.
इसलिए इस जंग में ग्लेमरस मोहरों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. कंगना रनौट वाई+ सुरक्षा के घेरे में ‘झांसी की रानी’ की अवतार बनकर यह आरोप लगा रही हैं कि उद्धव के राज में मुंबई पाकिस्तान बन गई है. उधर भाजपा के मंत्री नारायण राणे आरोप लगा रहे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व मैनेजर की मौत में आदित्य ठाकरे का हाथ है. राणे ने यहां तक कहा कि आदित्य ठाकरे ने दिशा सालियान का बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी.

इसके बाद, भाजपा ने ऊंचे लोगों की गिरफ्तारी के बाद यह साबित करने की कोशिश की कि मुंबई ड्रग्स का अड्डा बन गई है. केंद्रीय एजेंसियों ने रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, और सारा अली खान सरीखे फिल्मी कलाकारों से जवाब तलब किए. बिहार के उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने यहां तक आरोप लगा दिया कि ‘बॉलीवुड माफिया’ के दबाव में उद्धव ठाकरे उन कलाकारों को ड्रग्स के मामले में बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके नाम सुशांत हत्याकांड से जोड़े गए थे. इस मज़ाकिया ड्रामे में अर्णब गोस्वामी के टीआरपी घोटाले और उनकी गिरफ़्तारी के मामले को, और ‘एमवीए’ सरकार पर हमला करते तमाम कलाकारों, पत्रकारों, नेताओं को भी शामिल कर लीजिए. भाजपा ने इन चालों से बिहार में कुछ भावनात्मक फायदा भले उठाया होगा, मगर इन चालों से महाराष्ट्र सरकार की छवि धूमिल नहीं हुई.


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भ्रष्टाचार का मुद्दा

ठाकरे सरकार को गिराने के लिए भाजपा ने अब अपनी आजमाई हुई चाल चल दी है. वह है भ्रष्टाचार के आरोप. 2014 में उसने इसी चाल से गांधी परिवार के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़काकर यूपीए सरकार को सत्ता से बाहर किया था. कौड़ी के मोल कई एकड़ जमीन हथियाने वाले ‘दामाद’ रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ नफरत भड़काई गई, अगस्टा वेस्टलैंड वीवीआइपी हेलिकॉप्टर सौदे, टूजी घोटाला, आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ घपला, आदि-आदि को खूब उछाला गया. वास्तव में भाजपा पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव में भी यही चाल चलने में जुट गई है और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप उछाल रही है. यह और बात है कि सरधा चिटफंड घोटाले में नामित मुकुल राय, शुभेन्दु अधिकारी और शोभन चटर्जी जैसे ‘वफ़ादार’ भाजपा में शामिल होते ही बेदाग हो गए.

लेकिन महाराष्ट्र का मामला इन सबसे काफी जटिल है क्योंकि यह भारत की सबसे अमीर हस्ती मुकेश अंबानी से जुड़ा है जिन्हें, भाजपा के मुताबिक, उद्धव ठाकरे के करीबी पुलिसवाले ने खतरे में डालने की कोशिश की. फडनवीस ने आरोप लगाया है कि ठाकरे ने 2018 में उनसे वाज़े को फिर से नौकरी पर बहाल करने का अनुरोध किया था. वाज़े को उस समय ख्वाजा यूनुस की हिरासत में मौत के कारण नौकरी से हटा दिया गया था. और परमबीर सिंह का पत्र भी ‘एमवीए’ सरकार के लिए मुसीबत बन सकता है. यानी फिलहाल भाजपा को बढ़त हासिल है.

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(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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