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Saturday, 18 October, 2025
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सुप्रीम कोर्ट का ग्रीन पटाखों को हरी झंडी देना दिल्ली की एजेंसियों के लिए सिरदर्द है

दिखने में ग्रीन पटाखों और आम पटाखों में कोई फर्क नहीं है. पुलिस या कोई भी एजेंसी फर्क नहीं बता पाएगी, जिससे नियम लागू करना मुश्किल हो जाएगा.

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बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने दिल्ली में ग्रीन पटाखों की बिक्री और फोड़ने की अनुमति दी, जिसे कुछ लोग कदम पीछे खींचना और कुछ लोग झटका मान रहे हैं. शहर में पांच साल के पूर्ण प्रतिबंध के बाद, चीफ जस्टिस बीआर गवंई की बेंच ने 18 से 21 अक्टूबर तक ग्रीन पटाखे बेचने और फोड़ने की इज़ाज़त दी.

केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और पटाखा निर्माताओं की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने त्योहार की खुशी और स्वास्थ्य के बीच “संतुलन” बनाए रखने का फैसला किया. NEERI-सर्टिफाइड ग्रीन पटाखो को अनुमति देते हुए, अदालत ने कहा कि इन्हें दिन और रात के विशेष समय पर ही फोड़ा जा सकता है और राज्य अधिकारियों को शहर में प्रमाणित क्रैकर के प्रवेश की कड़ी निगरानी करने को कहा.

क्लीन एयर और सस्टेनेबल मोबिलिटी के सलाहकार (CSE) मोहन जॉर्ज ने कहा, “यह आसान है—थोड़ा जलाओ, गैस निकलती है. यह तय है, चाहे वह आम पटाखे हो, ग्रीन पटाखे हो या कुछ और ग्रीन पटाखों से उत्सर्जन 30 प्रतिशत कम होता है, लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि कितने क्रैकर फोड़ते हैं और मौसम आपके पक्ष में है या नहीं.”

एक शहर में जो अक्सर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शीर्ष पर रहता है, वहां भी ग्रीन पटाखे दीर्घकालिक प्रदूषण के लिए चेतावनी का संकेत हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली के प्रदूषण विवाद में नया मोड़ जोड़ता है, यह 2015 के अर्जुन गोपाल केस की याद दिलाता है, जब तीन छोटे बच्चों ने स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार मांगा था.

बीजेपी ने बुधवार के फैसले का स्वागत किया है, जो 27 साल बाद राजधानी में अपनी पहली दिवाली मना रही है. जब वह सत्ता में नहीं थी, तो पार्टी लगातार AAP सरकार को प्रदूषण संकट सही तरीके से न संभालने पर निशाना बनाती रही. अब यह उनकी समस्या बन गई है और उस पर ग्रीन पटाखों का अतिरिक्त बोझ है. इसी कारण सुप्रीम कोर्ट का ग्रीन पटाखों पर फैसला दिप्रिंट का “न्यूज़मेकर ऑफ़ द वीक” है.

क्या कहता है विज्ञान

ग्रीन पटाखे इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि इन्हें कम हानिकारक पदार्थ और छोटे शेल साइज़ से बनाया जाता है, जबकि आमतौर पर पटाखों में बैरियम और सल्फर का इस्तेमाल होता है, जो पूरी तरह नहीं जलते और हानिकारक गैसें छोड़ते हैं, CSIR-NEERI द्वारा विकसित ग्रीन पटाखों में एल्यूमिनियम, मैग्नीशियम-एल्यूमिनियम मिक्स धातु और आयरन ऑक्साइड जैसे धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कम प्रदूषण के साथ आम पटाखों जैसा प्रभाव मिलता है.

CSIR-NEERI की स्टडी के अनुसार, ग्रीन पटाखे आम पटाखों की तुलना में 30 प्रतिशत कम उत्सर्जन छोड़ते हैं. मुख्य कमी PM2.5, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड में है.

हालांकि, आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों के 2021 की स्टडी में पाया कि ग्रीन पटाखे वास्तव में परंपरागत पटाखों की तुलना में अधिक अल्ट्राफाइन पार्टिकल (100 नैनोमीटर से छोटे, PM1) छोड़ते हैं. ये पार्टिकल PM2.5 और PM10 से भी छोटे हैं और रक्तप्रवाह में भी जा सकते हैं. इसके अलावा, पर्यावरणविद् चिंतित हैं कि 30 प्रतिशत उत्सर्जन में कमी के बावजूद, कानूनी अनुमति होने से लोग ज्यादा पटाखे फोड़ेंगे.

दिल्ली की पर्यावरणविद् भव्रीन कंधारी ने कहा, “दिवाली के दौरान PM2.5 स्तर आमतौर पर WHO सीमा से 1,000 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाते हैं. इस संदर्भ में, 30 प्रतिशत कमी सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन है. जब बॉउंडरी लेयर गिरती है और हवा प्रदूषकों को फंसाती है, तो सीमित पटाखों का इस्तेमाल भी शहर को कई दिनों के लिए ‘गंभीर’ श्रेणी में ले जा सकता है.”

वायु प्रदूषण और दिवाली

यह दिल्ली का ग्रीन पटाखों के साथ पहला अनुभव नहीं है—2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार आम पटाखों पर रोक लगाई थी और केवल कुछ ग्रीन पटाखों की अनुमति दी थी, जो कम उत्सर्जन वाले थे. दो साल बाद, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और दिल्ली की AAP सरकार ने दिवाली के आसपास पूरे शहर में सभी तरह के पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि वायु गुणवत्ता बिगड़ रही थी.

AAP सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध को और कड़ा किया, यहां तक कि 2022 में उल्लंघन करने वालों को जेल की सज़ा तक दी, जबकि AAP का संदेश वायु प्रदूषण रोकने पर केंद्रित रहा और तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नागरिकों से दिवाली रोशनी और दीपक के साथ मनाने की अपील की, बीजेपी इस पर आश्वस्त नहीं थी. 2022 में, बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि दिल्ली में पटाखों पर बैन लगाना हिंदुओं की “भावनाओं” को चोट पहुंचाता है और यह दिल्ली के वायु प्रदूषण संकट का समाधान नहीं है.

2020 में सभी पटाखों पर प्रतिबंध का आदेश कई कारणों से आया था, जिनमें निगरानी की कमी और ‘केवल ग्रीन पटाखों’ नियमों को लागू न कर पाने की समस्या शामिल थी. बुधवार के आदेश में भी सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को सख्त गश्त, ई-कॉमर्स के माध्यम से पटाखो की बिक्री पर रोक और रात 10 बजे तक ही पटाखे जलाने की सीमा का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, लेकिन विशेषज्ञ इस बात पर संदेह कर रहे हैं कि क्या इस बार निगरानी बेहतर तरीके से सुनिश्चित की जा सकेगी.

कंधारी ने कहा, “ग्रीन पटाखों का पालन हर स्तर पर—व्यावहारिक, कानूनी और वैज्ञानिक—असफल रहा है. डिजिटल ट्रैसिबिलिटी, वास्तविक समय परीक्षण या आधुनिक कानून के बिना, प्रमाणन केवल प्रतीकात्मक है, असल में नहीं.”

एक और चिंता, जो मोहन जॉर्ज ने जताई, वह प्रमाणन की वास्तविकता और वैधता की है.

उन्होंने कहा, “दिखने में ग्रीन पटाखों और आम पटाखों में कोई फर्क नहीं है. सड़क पर मिले तो पुलिस या कोई एजेंसी पहचान नहीं पाएगी. प्रमाणन की जांच के लिए उत्पाद को NEERI या नागपुर के PESO भेजना पड़ता है, जिसमें वक्त लगता है.”

कई वर्षों तक यह दावा करने के बाद कि दिवाली में पटाखों का दिल्ली के प्रदूषण से बहुत कम संबंध है और यह AAP सरकार की गलती है कि वह प्रदूषण रोक नहीं पा रही, अब बीजेपी अपनी दिवाली की परीक्षा दे रही है और विशेषज्ञों का रुख संदेहपूर्ण है.

अनुकूल मौसम, लंबी मानसून अवधि और पंजाब में कम पराली जलाने के बावजूद, दिवाली से पहले दिल्ली की वायु गुणवत्ता 300 तक पहुंच रही है. जैसे-जैसे तापमान गिर रहा है और कोहरे के कारण कण उत्सर्जन फैलना मुश्किल होने लगेगा, सुप्रीम कोर्ट का ग्रीन पटाखों का आदेश शायद इस साल दिल्ली की धुंधली तकदीर को पक्का कर देगा.

(इस न्यूज़मेकर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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