सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाइकोर्ट जजों के पद पर बहाली के लिए जिन एक दर्जन नामों की सिफ़ारिश की थी उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने उसे यह कहकर लौटा दिया है कि वह उन नामों पर ‘पुनर्विचार’ करे. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने ‘दिप्रिंट’ को यह भी बताया है कि सरकार ने ये नाम धीरे-धीरे वापस किए. सूत्रों ने यह भी बताया कि ऐसा करते हुए सरकार ने कुछ नामों को वापस करते हुए ‘निरर्थक’ कारण बताए, तो बाकी के लिए कोई कारण नहीं बताया.
सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने कहा, ‘ये नाम जो एक साथ एक फाइल में वापस नहीं भेजे गए बल्कि कुछ-कुछ समय बाद अलग-अलग भेजे गए, वे आठ हाइकोर्टों में नियुक्ति के लिए थे. सरकार चाहती है कि कॉलेजियम उन पर पुनर्विचार करे. अब देश के मुख्य न्यायाधीश और कॉलेजियम के दूसरे सदस्य विचार करेंगे कि इन मामलों पर क्या कदम उठाना है.’
सूत्र के मुताबिक, जो नाम वापस भेजे गए उनकी सिफ़ारिश इलाहाबाद, जम्मू-कश्मीर, पंजाब व हरियाणा, राजस्थान, मद्रास, केरल और कर्नाटक हाइकोर्ट में जजों के पदों पर नियुक्ति के लिए की गई थी.
इन आठों हाइकोर्टों में जजों के कई पद खाली पड़े हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इलाहाबाद हाइकोर्ट में 57 जजों के, जम्मू-कश्मीर में 5, पंजाब व हरियाणा में 29, राजस्थान में 25, मद्रास में 21, केरल में 10 और कर्नाटक हाइकोर्ट में 16 जजों के पद खाली हैं.
‘बेवजह खारिज’
पुनर्विचार के लिए वापस भेजे गए प्रमुख मामलों में एडवोकेट सी. इमालियस का भी मामला है, जिन्हें मद्रास हाइकोर्ट कॉलेजियम ने 19 दिसंबर 2016 को जज के पद पर नियुक्त करने की सिफ़ारिश की थी. इमालियास उन 11 वकीलों में शामिल थे जिनकी सिफ़ारिश उस समय हाइकोर्ट कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट से की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिसंबर 2017 को इन सिफ़ारिशों को कबूल कर लिया था.
सूत्र ने बताया कि केंद्र सरकार ने 9 उम्मीदवारों की नियुक्ति के वारंट जारी कर दिया था मगर इमलियास और एडवोकेट सेंतिलकुमार राममूर्ति के ‘खिलाफ शिकायतों’ के मद्देनजर कॉलेजियम से इन दोनों के नाम पर पुनर्विचार करने के लिए कह दिया.
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1 अगस्त 2018 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने उन शिकायतों में कोई दम नहीं पाया और कहा कि “फाइल में जिन शिकायतों को दर्ज किया गया है उनमें कोई दम नहीं है इसलिए वे अनदेखी की जाने लायक है.”
कॉलेजियम ने सरकार से इन नामों को ‘अविलंब’ आगे बढ़ाया जाए. इसके बाद राममूर्ति के नाम को तो मंजूरी दे दी गई और उन्होंने पिछले साल फरवरी में जज के रूप में शपथ ले ली, मगर इमालियास के नाम पर केंद्र सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. सूत्र ने बताया कि पहली बार सिफ़ारिश किए जाने के साढ़े तीन साल बाद अब इमालियास की फाइल को पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज दिया गया है.
दूसरा मामला जम्मू-कश्मीर के वकील वसीम सादिक़ नरगल का है, जिन्हें राज्य के हाइकोर्ट के कॉलेजियम ने जज के पद पर नियुक्त करने की सिफ़ारिश 24 अगस्त 2017 को की थी. सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 6 अप्रैल 2018 को उनके नाम की मंजूरी दे दी मगर केंद्र सरकार ने बिना कोई कारण बताए उनके नाम को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया.
सरकार के रवैये से नाराज सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उससे कहा कि ‘वह उन विशेष सूचनाओं को विस्तार से साझा करे जिसके आधार पर उसने उनके नाम को पुनर्विचार के लिए वापस भेजा है.’
इस फाइल को करीब एक साल तक दबाए रखने के बाद केंद्र सरकार ने कॉलेजियम को यह लिख भेजा कि उसके पास नरगल के खिलाफ कुछ भी नहीं है और उनकी नियुक्ति पर कोर्ट ही फैसला कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के सूत्र का कहना है, ‘सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम अब उनके नाम पर फैसला तब करेगा जब वह इस मसले को हाथ में लेगा.’
वापस भेजा गया एक और नाम पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट के वकील कमाल सहगल का है, जिनकी सिफ़ारिश कुछ दूसरे नामों के साथ की गई थी. पहले चरण में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उनके नाम पर गौर नहीं किया मगर बाद में उसे मंजूर कर लिया. लेकिन केंद्र सरकार ने सहगल के साथ जिन नामों की सिफ़ारिश की गई थी उन्हें तो हरी झंडी दिखा दे मगर सहगल के नाम को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया. और अब उस पर पुनर्विचार करने के लिए उसे वापस भेज दिया है.
जैसी कि ‘दिप्रिंट’ ने पिछले साल सबसे पहले खबर दी थी, संकेत इस परकार के हैं कि सरकार सहगल के नाम का इसलिए विरोध कर रही है कि वे बसपा प्रमुख मायावती और सपा नेता अखिलेश यादव (दोनों जब मुख्यमंत्री थे) के करीबी माने जाने वाले यूपी काडर के आइएएस अफसर नवनीत सहगल के भाई हैं. सुप्रीम कोर्ट के सूत्र का कहना है कि सहगल के खिलाफ ऐसा कोई ‘व्यक्तिगत’ कारण नहीं जुड़ा है कि उन्हें पदोन्नत न किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफ़ारिश के साथ भेजे गए जिन कुछ और नामों को सरकार ने पुनर्विचार के लिए वापस भेजा है उनमें इलाहाबाद हाइकोर्ट के एडवोकेट रामानंद पांडेय, विवेक रत्न अग्रवाल, रमेंदर प्रताप सिंह, और आलोक कुमार भी हैं.
मई 2018 में राजस्थान हाइकोर्ट के कॉलेजियम ने जज के पद पर नियुक्ति के लिए 9 वकीलों के नामों की सिफ़ारिश की थी. एक साल बाद 24 जुलाई 2019 कॉ सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इनमें से दो नामों—महेंद्र गोयल और फ़रज़ंद अली—के नाम मंजूर किए और बाकी को या तो खारिज कर दिया या उन फैसला स्थगित रखा.
4 नवंबर 2019 को केंद्र सरकार ने महेंद्र गोयल की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की मगर फ़रज़ंद अली के नाम को ठंडे बस्ते में डाल दिया. और अब अली के नाम पर भी पुनर्विचार करने के लिए कहा गया है.
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पुनर्विचार के लिए भेजे गए नामों के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर सुप्रीम कोर्ट के सूत्र ने कहा कि मामला अब मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अदालत में है, ‘अब देश के माननीय मुख्य न्यायाधीश ही तय करेंगे कि इन नामों को पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम में कब पेश किया जाएगा.’
पिछले कुछ वर्षों से कॉलेजियम की सिफ़ारिश के साथ भेजे गए नामों पर बिना कोई कारण बताए फैसला न करने के लिए मोदी सरकार अक्सर कठघरे में खड़ी की जाती रही है. पिछले साल जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सरकार से कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफ़ारिश के साथ भेजे गए नामों को छह महीने में मंजूरी दे, खासकर तब जब कि सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम और कार्यपालिका हाइकोर्ट की सिफ़ारिशों पर सहमत हों. पीठ ने कहा था, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे मामलों में प्रक्रिया छह महीने में पूरी न की जाए.’
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