scorecardresearch
Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतब्लॉगदो भारतीय पिताओं की कहानी - एक जो जेल में बंद अपनी बेटी के साथ खड़ा है और दूसरा जो उसे धिक्कारता है

दो भारतीय पिताओं की कहानी – एक जो जेल में बंद अपनी बेटी के साथ खड़ा है और दूसरा जो उसे धिक्कारता है

नताशा नारवाल को 'दिल्ली हिंसा और अमूल्य लीना को' हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने की साजिश के लिए गिरफ्तार किया गया था. लेकिन उनके पिताओं ने बेटी पर कैसी प्रतिक्रिया दी, आज भारत के बारे में बहुत कुछ बताता है.

Text Size:

नई दिल्ली: इस साल दिल्ली दंगों और सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों की कहानियों के मद्देनजर हमारे सामने दो बेटियों के पिताओं के किस्से सामने आए हैं. एक जेल में बंद अपनी बेटी के साथ खड़ा है दूसरे ने अपनी बेटी का त्याग ही कर दिया.

फरवरी महीने में स्टूडेंट एक्टिविस्ट अमूल्या लिओना हैदराबाद में एक मंच पर गईं जहां सांसद असदुद्दीन ओवैसी बोल रहे थे. अमूल्या ने मंच से ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए. इतनी ही देर में मंच पर मौजूद ओवैसी और बाकी लोगों ने उनकी बात को बीच में ही रोक दिया. इस नारे के बाद अमूल्या पर ‘देशद्रोह’ का मुकदमा दायर किया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया. इस तरह भारत को एक 19 साल की लड़की में एक ‘नया दुश्मन’ मिल गया.

मई में पिंजरा तोड़ ग्रुप की नताशा नारवाल को दिल्ली पुलिस ने फरवरी महीने में राजधानी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों में कथित भूमिका के लिए यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया. तब से लेकर अब तक वो तिहाड़ जेल में बंद हैं.


यह भी पढ़ें: मिलेनियल्स ने इंडिया शाइनिंग देखा है, वो 70 साल के नहीं बल्कि 30 साल के भारत पर मोदी को जज करेंगे


‘रेडिकल, देश विरोधी होना नहीं है’

अमूल्य के निराश पिता वोजाल्ड लिओना ने कहा कि उसे जेल में सड़ना चाहिए क्योंकि उसने भारतीयों की भावनाओं को आहत किया है. उन्होंने अमूल्या को सार्वजनिक रूप से निकाल दिया और कहा कि पुलिस को ‘उसके पैर तोड़ने’ चाहिए.

अधिकांश भारतीय जातिवादी, महिला विरोधी और अल्पसंख्यकों से घृणा करने वाले हैं. इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि इस वजह से पिता भी बेटियों को कैद करने की कोशिश करते हैं. अगर अमूल्या एक साझी मानवता के लिए खड़े होने की बात कर रही हैं तो इसे हम एक ‘राष्ट्र-विरोधी’ कृत्य नहीं कह सकते.

जैसा कि नताशा के 70 वर्षीय पिता महावीर नारवाल बताते हैं, ‘अगर अमूल्या के विचार किसी के प्रति नफरत की वजह से नहीं उपजे हैं और मानवतावादी नजरिया रखती हैं तो इसमें परिवार को साथ खड़ा होना चाहिए. औरतों के स्वतंत्र विचारों को रेडिकल बताकर खारिज करना सही नहीं है. और सबसे जरूरी बात है कि यह जरूरी नहीं कि रेडिकल होना देश विरोधी होना है.’

लेकिन ये फर्क पूर्व भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान बीसीसीआई चीफ सौरव गांगूली भी नहीं समझते. आपको याद होगा कि उनकी बेटी साना गांगूली द्वारा इन्स्टाग्राम पर एंटी सीएए पोस्ट के बाद उन्होंने कहा था कि साना को अभी राजनीति के बारे में समझ नहीं है.

एक पितृसत्तामक समाज में औरतें किसी भी मुद्दे पर विचार रखने के लिए या तो बहुत युवा हैं, या बहुत बूढ़ी या बहुत नासमझ होती हैं.

महावीर इसपर कहते हैं, ‘आप अपनी बेटी से सहमत और असहमत हो सकते हैं. नताशा और मैं भी कई बार असहमत होते हैं. मेरा मानना है कि बदलाव बड़ा और संपूर्ण होना चाहिए लेकिन नताशा का कहना है कि बदलाव छोटे-छोटे स्टेप्स से आना चाहिए.’

वो हंसते हुए जोड़ते हैं, ‘अरे कई मुद्दों को लेकर तो वो मेरी ही क्लास लगा देती है.’ महावीर हरियाणा विज्ञान मंच के हेड हैं जो साइंस और साइंटिफिक टेंपर को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं. एक पिता के तौर पर वो ये बात विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं कि वो अपनी बेटी से सीखते हैं और इस बात में किसी तरह की कोई शर्म नहीं है कि आप अपने आस पास की महिलाओं से कुछ सीखें. वो जेल में बंद अपनी बेटी के साथ खड़े हैं, उसे धिक्कारते नहीं हैं.

‘अंकल कम्यूनल्जिम में विश्वास नहीं रखते’

अपने अन्य भारतीय काउंटरपार्ट्स की तरह महावीर को नहीं लगता कि वो सब कुछ जानते हैं और उन्हें अपने बच्चों को बार-बार ‘सही’ करने की जरूरत है. खासकर अपनी बेटी को. हम अक्सर मध्यम आयु वर्ग के भारतीय ‘अंकल्स’ को सोशल मीडिया पर युवाओं को अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रति घृणा के लिए उकसाते देखते हैं. मैं इन अंकल्स के नए ट्रेंड को ‘अंकल कम्युनलिज्म’ कहती हूं. जो अपनी पत्नियों के बारे में चुटकुले बनाना ठीक समझते हैं और कभी कभार इस्लामोफोबिया को भी प्रोमोट करते हैं. ये सोचते हैं कि बेटियों को कॉलेज जाने और जींस पहनने की ‘छूट’ देना ही काफी है, उनके अपने ‘विचारों’ की जरूरत नहीं है.

वोजाल्ड लिओना भी अपनी सोच के हिसाब से ‘राष्ट्र विरोधी’ बात के लिए अपनी बेटी का त्याग करना जरूरी समझते हैं, ना कि उससे इस बारे में बात करना. बेटियों के प्रति ये मानसिकता ऐसी है कि अमूल्या जैसी प्रतिस्थिति पैदा होते ही उनसे उनकी सोचने की ताकत छीन ली जाती है. वोजाल्ड ने कहा, ‘वो कुछ मुसलमान ग्रुप्स में शामिल हो गई थी और मेरी बात नहीं सुन रही थी.’

इसके विपरीत, महावीर नारवाल अपनी बेटी को देखकर ताकत महसूस करते हैं. वो जेल में उससे कई बार मिलने गए हैं और अब अपनी बेटी की एक अलग तरह की छवि को देख पा रहे हैं. वो जेल में दूसरे कैदियों को योगा सिखा रही हैं. वो बताते हैं कि ‘एक बार एक पुलिस वाला मुझे बता रहा था कि ये किसी से आसानी से डरती नहीं है.’


य़ह भी पढ़ें: वीडियो वायरल होने के बाद जबरन शादी से बची राजस्थान के पुलिस अधिकारी की बेटी


‘हमारी बेटियों को इवॉल्व होने दो’

हाल के वर्षों में हमने भारत में नारीवाद, साइंटिफिक टेंपर और प्रगतिशीलता के प्रति एक अलग तरह की नफरत देखी है महावीर नारवाल का कहना है कि दिल्ली पुलिस द्वारा पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी इसी नफरत से पैदा हुए डर का नतीजा है.

वो कहते हैं, ‘दिल्ली पुलिस पिंजरा तोड़ ग्रुप को हमेशा नापसंद करती रही है.’

वो पिंजरा तोड़ ग्रुप को अभिव्यक्ति मानते हैं. जो कि महिलाओं को एक वॉलेंटियर ग्रुप है. ये लगातार इवॉल्व हो रहा है. इसके कोई लिखित नियम या विचार नहीं हैं. महावीर कहते हैं, ‘हमारी बेटियां भी इवॉल्व हो जाएंगी. जब हम आपातकाल का विरोध कर रहे थे, तो कुछ लोग हमें भी रेडिकल मानते थे. लेकिन हमें इतिहास ने रेडिकल नहीं लिखा. जो लोग उस वक्त जेल गए थे उन्हें ना ही आज की पीढ़ी रेडिकल के तौर पर देखती है. तो मैं आपातकाल के दौर में जेल गया और मेरी बेटी आफतकाल के दौर में.’

स्वतंत्र महिलाओं के विचार से ही दुनिया भयभीत हो जाती है. महावीर कहते हैं कि वो अब नताशा के जेल से बाहर आने का इंतजार कर रहे हैं. और जब वो आएंगी तो दोनों उनके जेल के अनुभव पर लंबी बातचीत करेंगे.

काश वोजाल्ड लिओना भी महावीर नारवाल से एक दो चीजें सीख पाते.

(य़हां व्यक्त विचार निजी हैं.)

share & View comments

9 टिप्पणी

  1. य़हां व्यक्त विचार निजी हैं.)

    अगर ये किसी के निजी विचार हैं तो यहां छापने की जहमत क्यो उठाई गई है??
    अमूल्या ने सिर्फ पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहा था उसने हिंदुस्तान जिंदाबाद नहीं कहा था जैसा की इस लेख में लिखा हुआ है। बात इतनी पुरानी नहीं है कि हम भूल गए हो। झूठ छापने के लिए आप विवश क्यो है??

    अधिकांश भारतीय जातिवादी, महिला विरोधी और अल्पसंख्यकों से घृणा करने वाले हैं. इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि इस वजह से पिता भी बेटियों को कैद करने की कोशिश करते हैं.
    ये लेख जरूर किसी वामपंथी ने लिखा है, इससे मुझे कोई परेशानी नहीं है। सही बातों को बुद्धिमत्ता से गलत दिखाने में इन्हे महारत हासिल है पर इस बार आपके हाथ कोई अनाड़ी आया है।

  2. बहुत ही घटिया लेख है।लेखक का अता पता नहीं है। जब दो लडकियो और उनके पिता कि तुलना कर रहा है तो एक के बारे मे ही जानकारी दी जा रही है और एक के फोटो ही साझा किये जा रहे है। यह लेख केवल एक विशेष मानसिकता को ही दर्शाता है।

  3. Sir u have very confused mentality .or u are trying to confuse those who have no idea what u are talking about

  4. भारत की सामाजिक और राजनीतिक देशभक्त विरासत को कांगियों और वामियों ने सिर्फ़ कुचलने का काम किया है

  5. Desdrohi mentality ko darsata hai iss lekh me…jis thali me khate hai ,uss me thukne ka probitty hai ..aapne Des m aise ajadi samapt honi joroori hai.bak swadhinata k nam pe desh ko nuksaan pohuchane walo k gang hai.

  6. थर्ड क्लास, घटिया, एक तरफा, क्लास 5 के बच्चे की भी समझ से कम बुद्धि का लेख

  7. झूठ, अनरगल, बकवास वामपंथी देशद्रोही मानसिकता के साथ लिखा गया लेख, इसे यहा जगह मिली, धिक्कार।है आपको, जो देश विरोधी विचार।को जगह दे रहे है
    एकदम देशविरोधी विचार

  8. मार्क्सवाद संसार की सबसे अवैज्ञानिक, तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण विचारधारा है। यह उक्ति इस लेख के रचयिता पर सोलह आने फिट बैठती है। इस लेख में जिस प्रकार भारतीयों को गालियाँ दी गई हैं, उससे पता चल जाता है कि लेखकीय स्रोत पाकिस्तान या चीन से प्रायोजित है। ऐसे लोग छेदी मीडिया के कर्णधार तो हो सकते हैं, मगर सत्य से कोसों दूर तक इनका अस्तित्व नहीं हो सकता।

  9. “अधिकांश भारतीय जातिवादी, महिला विरोधी और अल्पसंख्यकों से घृणा करने वाले हैं.”
    ये जो बात कही गयी है उसके आप के पास कुछ आधार हैं ।या शायद आपने पूरे भारत के हर कोने और हर व्यक्ति को जाना है तब आप इस निष्कर्ष पर पहुंचे कृपया स्पष्ट करें।
    कृपया बताये अल्पसंख्यक माने कोन सिर्फ एक समुदाय या जैन,बौद्ध, पारसी,सिख आपके अनुसार अल्पसंख्यक नहीं हैं…..
    आप अभी के भारत के बारे में और पुरातन भारत के बारे में कितना जानते हैं जो आपने कह दिया महिला विरोधी,, लगता है इस बात में भी आपके कथित अल्पसंख्यक शामिल नहीं हैं क्योंकि उन कथित अल्पसंख्यक लोगो के समुदाय में महिलाओं का बहुत सम्मान होता है???
    शायद लगता है आप बिना किसी तथ्य के कुछ भी लिख देते हैं अगर तथ्य हो तो जरूर साझा करें।

Comments are closed.