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Friday, 22 November, 2024
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सीनियर स्टालिन को उदयनिधि से चुप रहने के लिए कहना चाहिए. हालांकि इस पर चल रहा विवाद पाखंड ही है

द्रविड़ राजनीति में धर्म के विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है. लेकिन अगर सीनियर स्टालिन और डीएमके वास्तव में 2024 में बीजेपी को हराना चाहते हैं, तो जूनियर स्टालिन को चुप रहने के लिए कहना ही सही फैसला हो सकता है.

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डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर हमले के बारे में कई बातें कही जा सकती हैं. जैसा कि आपको याद होगा, जूनियर स्टालिन ने अपने एक भाषण में सनातन धर्म की तुलना “डेंगू, मलेरिया, बुखार और कोरोना” से की थी और उन्होंने इसके उन्मूलन का आह्वान किया था. इस भाषण के बाद चारों ओर विवाद छिड़ गया.

कहने वाली पहली बात यह है कि केवल इतिहास की कोई समझ न रखने वाला व्यक्ति ही युवा स्टालिन की बातों से आश्चर्यचकित होगा. तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन ब्राह्मणवाद विरोध की आधारशिला पर ही खड़ा हुआ है. कुछ लोगों को युवा स्टालिन की टिप्पणियां जितनी चौंकाने वाली लग सकती हैं, वे दशकों से द्रविड़ राजनीतिक नेताओं द्वारा कही गई बातों की तुलना में बहुत कम हैं.

उदाहरण के लिए, द्रविड़ आंदोलन के प्रतीक ईवी रामासामी पेरियार (जिनकी 1973 में मृत्यु हो गई) ने न केवल गीता जैसे हिंदू ग्रंथों की आलोचना की, बल्कि वह एक जुझारू नास्तिक भी थे. उनकी सबसे प्रसिद्ध कहावत, जो अभी भी उनकी मूर्तियों के नीचे लिखी रहती है, वह थी: “कोई भगवान नहीं है. जिसने भगवान को बनाया वह मूर्ख है. जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है. जो ईश्वर की पूजा करता है वह जंगली है.”

यह एक बड़ी बात है, शायद युवा स्टालिन द्वारा कही गई किसी भी बात से कहीं अधिक बड़ी, और यद्यपि हिंदू एक्टिविस्ट ने अदालत में जाकर या उन्हें तोड़-फोड़ कर मूर्तियों से शिलालेख हटाने की कोशिश की है, लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. पेरियार की बातें, उनकी विरासत की तरह, आज भी कायम है.

राजनीति में कोई भी इस बात पर विवाद नहीं करता कि यह द्रविड़ आंदोलन की केंद्रीय वास्तविकता है. कांग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों ने दो द्रविड़ पार्टियों (डीएमके और एडीएमके) के साथ गठबंधन किया है, जबकि वे धर्म और विशेष रूप से हिंदू धर्म पर उनके रुख से पूरी तरह वाकिफ हैं. अब इस सब से परेशान होने का दिखावा करना सरासर पाखंड है.

उदयनिधि की बातों के बारे में दूसरी बात यह कही जा सकती है कि युवा स्टालिन अन्य लोगों की तुलना में कहीं आगे नहीं गए. यहां तक ​​कि उनसे अधिक प्रसिद्ध उनके दादा एम करुणानिधि ने भी हिंदू शब्द और “चोर” शब्द के बीच संबंध ढूंढकर विवाद पैदा कर दिया था. जब करुणानिधि की मृत्यु हुई, तो उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार नहीं किया गया, बल्कि उन्हें दफनाया गया, जैसा कि उनसे पहले एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता ने किया था.

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, सनातन धर्म को खत्म करने के बारे में उदयनिधि का बयान कुछ खास चौंकाने वाला नहीं है. भले ही वह खुद हिंदू धर्म पर हमला कर रहे हों- जो कि वे कहते हैं, लेकिन वह नहीं कर रहे थे.

असली समस्या यह है कि सनातन धर्म का क्या अर्थ है, इस पर कोई सहमत नहीं है. जैसा कि विद्वान और लेखक देवदत्त पटनायक बताते हैं, सनातन धर्म के कई अर्थ हो सकते हैं: “शाश्वत चीजों में विश्वास, आत्मा और पुनर्जन्म में विश्वास, जाति व्यवस्था में विश्वास, पवित्रता के सिद्धांत में विश्वास आदि.”

पटनायक कहते हैं कि सनातन धर्म के कई अर्थ होने के चलते यह राजनेताओं को एक “ऐसा अर्थ चुनने की अनुमति देता है जो उनके एजेंडे के अनुकूल हो.”

द्रविड़ आंदोलन में, सनातन धर्म शब्द का अर्थ हिंदू धर्म के एक पदानुक्रमित रूप से लिया गया था जो निचली जातियों के साथ दुर्व्यवहार करता था और ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता को बढ़ावा देता था. हालांकि, उत्तर भारत में राजनेता इसका उपयोग उस समय करते हैं जब यह उनकी सुविधा के अनुरूप हो.

19वीं शताब्दी में, इस शब्द का एक विशेष अर्थ के लिए उपयोग किया जाता था. वह तब था जब आर्य समाज जैसे सुधार आंदोलन पुरानी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती दे रहे थे. सुधारकों का परंपरावादियों द्वारा विरोध किया गया जिन्हें ‘सनातन’ या पुराने तरीकों के अनुयायी कहा जाता था. पटनायक का तर्क है कि सनातनियों ने शाश्वत (पुरानी या सनातनी) मान्यताओं के आधार पर हिंदुत्व का निर्माण किया.


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संदेश किसके लिए था?

जूनियर स्टालिन की आलोचना के बारे में तीसरी बात यह कही जानी चाहिए कि ये सभी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ज्यादा मायने नहीं रखतीं – शायद द्रविड़ राजनीति के संदर्भ को छोड़कर. शेष भारत में, क्योंकि बहुत कम लोग जानते हैं कि सनातन धर्म का क्या अर्थ है (और यहां तक ​​कि वे एक-दूसरे से असहमत भी हैं). और बीजेपी हिंदू धर्म के किसी एक पहलू पर किसी भी हमले को हिंदू धर्म के साथ जोड़ने में सक्षम है.

बीजेपी को इस मौके का सफलतापूर्वक लाभ उठाने पर काम करना चाहिए. यह उस तरीके के लिए एक श्रद्धांजलि है जिसमें उसने राष्ट्रीय विमर्श को नया आकार दिया है. उदाहरण के लिए, यह डॉ. बीआर अंबेडकर का सम्मान कर सकता है, साथ ही हिंदू धर्म की आलोचना में उन्होंने जो कुछ भी कहा है, उस पर पर्दा डाल सकता है. यह पेरियार के वैचारिक वंशजों के साथ जुड़ सकता है और यह भूलने का नाटक कर सकता है कि पेरियार हिंदू धर्म के बारे में क्या सोचते थे.

इससे भी बड़ी चुनौती- ऊंची जातियों की पार्टी के रूप में देखे जाने से बचना- पर काबू पा लिया गया है. वर्षों तक, आरएसएस और उसके राजनीतिक हथियार जैसे जनसंघ और बीजेपी को ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली और बनिया द्वारा पोषित पार्टी के रूप में देखा जाता था, जिनमें निचली जातियों का कोई स्थान नहीं है.

लेकिन अब, जैसा कि अमृत लाल ने बुधवार को हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक लेख में बताया कि बीजेपी “उच्च जाति के हिंदुओं के संरक्षण में अब नहीं रह गई है.” वह आगे लिखते हैं, “मजबूत धार्मिक राष्ट्रवाद की मौजूदगी ने बीजेपी को हिंदू धर्म की संरक्षकता हासिल करने की इजाजत दे दी है.”

चौथी बात यह कही जानी चाहिए कि अन्य राजनीतिक दलों ने सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने के बीजेपी के दावे को बढ़ावा दिया है. बसपा जैसी दलित बहुल पार्टियों ने बीजेपी के साथ समझौता कर लिया है. इसी तरह मंत्रीपद वगैरह के बदले में कई छोटी दलित पार्टियां भी साथ हैं. चुनावी उद्देश्यों के लिए अमित शाह द्वारा बनाए गए जातीय गठबंधन ने बीजेपी के लिए अपनी छवि बदलना आसान बना दिया है.

इसी तरह कांग्रेस और उसके समर्थकों की धर्मनिरपेक्षता भी एक मुद्दा है, जिसने हिंदुओं को अलग-थलग कर दिया है. अभी भी, राहुल गांधी अगर किसी मंदिर में जाते हैं, तो ‘धर्मनिरपेक्ष’ टिप्पणीकार ही उन पर सबसे अधिक हमला करते हैं.

तो आख़िरकार, इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, क्या स्टालिन जूनियर ने सनातन धर्म पर हमला करके सही काम किया?

मेरे विचार में, यह विनाशकारी गलती थी. इस हमले से उसे कुछ हासिल नहीं हुआ और जीतने के लिए कोई अलग वोट भी नहीं मिला. तमिलनाडु में हर कोई जानता है कि डीएमके का दृष्टिकोण क्या है और इसकी सबसे पहली प्रतिद्वंद्वी एडीएमके, शायद ही ब्राह्मणों का बचाव करके इसका मुकाबला करेगी.

हमले का एकमात्र उद्देश्य जूनियर स्टालिन को कुछ हद तक राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में लाना था. यह देखते हुए कि देश सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच अंतर को लेकर निराशाजनक रूप से भ्रमित है, बीजेपी के हाथों में खेलकर एकजुट राष्ट्रीय विपक्ष को कुछ हासिल नहीं होगा.

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति धर्म और पहचान के भावनात्मक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके अपने शासन की कमियों से ध्यान भटकाने की रही है. जब भी विपक्ष तत्काल प्रासंगिकता के बिना किसी धार्मिक मामले को राष्ट्रीय मुद्दा बना देता है, तो वह बीजेपी का खेल ही दोहराता है.

तो हां, द्रविड़ राजनीति में धर्म के विरोध का एक लंबा इतिहास है और हां, यह सच है कि सनातन धर्म एक एक जटिल और विवादास्पद अवधारणा है. लेकिन अगर सीनियर स्टालिन और डीएमके वास्तव में अगले आम चुनाव में बीजेपी को हराना चाहते हैं, तो जूनियर स्टालिन को चुप रहने के लिए कहना ही एक अच्छा फैसला हो सकता है.

(वीर सांघवी प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और एक टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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