इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में लगी 17वीं शताब्दी के गुलाम व्यापारी एडवर्ड कोल्सटन की मूर्ति को #BlackLivesMatter आंदोलनकारियों ने स्तंभ से उखाड़ दिया. पहले तो वे उस मूर्ति पर चढ़कर कूदे और फिर उसे लुढ़काते हुए ब्रिस्टल बंदरगाह पर ले गए और वहां उसे समुद्र में फेंक दिया. अब वह मूर्ति समुद्र की तलहटी में है और ब्रिटिश समाज इस बारे में चर्चा कर रहा है कि ये ठीक हुआ या गलत.
यहां हमारा ध्यान फौरन भारत की एक मूर्ति की ओर जाता है. वह मूर्ति मनु की है, जिसे भारतीय जाति व्यवस्था और पितृसत्ता का प्रतीक माना जाता है. ये मूर्ति राजस्थान हाईकोर्ट के जयपुर परिसर में लगी है. सवाल उठता है कि भारत में भी जब समानता और समता के आंदोलन तेज होंगे, तब इस मूर्ति का क्या होगा, बल्कि सवाल ये है कि इस मूर्ति का क्या होना चाहिए?
कोल्सटन को लेकर ब्रिटिश समाज में मिले-जुले भाव हैं. वह अपने समय का एक प्रमुख व्यापारी था, जो बाद में ब्रिटिश संसद का सदस्य भी बना. उसने अपने कारोबारी जीवन का बड़ा हिस्सा गुलामों के व्यापार में लगाया. ऐसा माना जाता है कि उसकी कंपनी ने लगभग 80,000 लोगों को अफ्रीका से लाकर अमेरिका में बेचा. इस क्रम में समुद्र यात्रा की विषम परिस्थितियों में 16,000 से ज्यादा अफ्रीकी लोगों की मृत्यु हो गई. जाहिर है कि कोल्सटन के समय में श्वेत लोग इन अफ्रीकी लोगों को इंसान की जगह सामान समझते थे और उनके साथ उसी अनुरूप व्यवहार करते थे. इस वजह से काफी समय से ये मांग हो रही है कि उसकी मूर्ति को ब्रिस्टल से हटा दिया जाए.
यह दिलचस्प है कि ब्रिस्टल की ज्यादातर आबादी गोरे लोगों की है और जिस भीड़ ने कोल्सटन की मूर्ति को उखाड़ा, उसमें भी गोरे युवा ही ज्यादा थे.
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मनु शूद्रों और महिलाओं की गुलामी का प्राचीन प्रतीक है
कोल्सटन की तरह मनु भी दलितों, नीच कही जाने वाली जातियों और महिलाओं के लिए घृणा का पात्र है. उसका नाम जिस ग्रंथ मनुस्मृति से जुड़ा है और जिसके बारे में कहा जाता है कि ये किताब मनु ने ही लिखी है, उस किताब में जाति/वर्ण व्यवस्था को उसकी पूरी क्रूरता और विद्वेष के साथ स्थापित किया गया और इस व्यवस्था के उल्लंघन के लिए कठोरतम दंड निर्धारित किए गए हैं.
चित्रकार सवी सावरकर को जब मनु की पेंटिंग बनाने को कहा गया तो जैसा कि वे बताते हैं कि उन्होंने किसी व्यक्ति और समुदाय की सारी घृणा को संचित करके एक पेंटिंग बनाई और ये पेंटिंग एक शैतान की बनी.
मनुस्मृति का विरोध नया नहीं है. युवा आंबेडकर ने जब महाड़ में सरकारी तलाब में पानी पीने के दलितों के अधिकार के लिए आंदोलन चलाया था, तो इस दौरान 25 दिसंबर, 1927 को सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति जलाई गई. आंबेडकर ने विस्तार से बताया है कि उन्होंने मनुस्मृति को क्यों जलाया. तब से आंबेडकरवादी हर साल 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस मनाते हैं.
ये लेख चूंकि मनुस्मृति के बारे में नहीं है और मनुस्मृति के जातिवादी और महिला विरोधी विचारों को लेकर सैकड़ों लेखक लिख चुके हैं, इसलिए इस लेख में उन पर विस्तार से बात करने का कोई औचित्य नहीं है. फिर भी जो लोग इस बारे में अनभिज्ञ हैं, उनके लिए मैं बाबा साहेब की किताब फिलोसॉफी ऑफ हिंदुइज्म में दर्ज मनुस्मृति के तीन उद्धरणों का जिक्र करना चाहूंगा, जिससे अंदाजा लग सकता है कि मनु का विरोध क्यों होता है.
XI. 35. ब्राह्मणों को विश्व का निर्माता घोषित किया जाता है. दुनिया में जो कुछ है, वह उसका है. वह दंडाधिकारी है, वह शिक्षक है. कोई भी उसे अशोभनीय और कड़े शब्द ना कहे.
X. 123. शूद्रों का दायित्व ब्राह्मणों की सेवा करना है. इसके अलावा वह जो कुछ करता है, वह फलदायी नहीं है.
X. 129. अगर शूद्र सक्षम है तो भी उसे धन संचय नहीं करना चाहिए. शूद्रों का संचित किया हुआ धन ब्राह्मणों को कष्ट देता है.
मनु की बनाई व्यवस्था और प्रतीकों का विरोध आज भी जारी है. 2018 में महाराष्ट्र की दो महिलाओं- शीला बाई पवार और कांता रमेश अहीरे ने राजस्थान हाई कोर्ट परिसर में घुसकर मनु के मुंह पर कालिख पोत दी थी. मनु का विरोध इतना प्रबल है कि 1989 में, जिस साल ये मूर्ति लगी, राजस्थान हाई कोर्ट के फुले बेंच ने इस मूर्ति को हटाने का आदेश जारी कर दिया. हालांकि विश्व हिंदू परिषद के नेता आचार्य धर्मेंद्र की पीआईएल के बाद वह आदेश अब तक स्थगित है.
मनु और कोल्सटन के चाहने वाले भी हैं
मनु के मानवता विरोधी विचारों के बावजूद कुछ लोग हैं जो मनु के समर्थक हैं और चाहते हैं कि ये मूर्ति लगी रहे और वे विचार और व्यवस्था भी कायम हो, जिसका विधान मनु ने किया है. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि सभी मनुष्य मनु की संतान हैं और उसने ही मानव समाज को व्यवस्थित करने वाली पहली संहिता लिखी. अगर मनु को चाहने वाले ना होते को मनु की मूर्ति हाकोर्ट में लगती ही कैसे? कुछ वकीलों ने ही ये मूर्ति सुंदरीकरण के नाम पर लगाई थी, जबकि ये बिल्डिंग प्लान का हिस्सा भी नहीं है.
लेकिन वह मतिभ्रम के शिकार और जाति स्वार्थ से संचालित कुछ वकीलों की बात नहीं है. भारतीय समाज में अब भी ऐसे लोग हैं जो मनु की बनाई समाज व्यवस्था, ब्राह्मणों के वर्चस्व और शूद्रों और महिलाओं की निचली स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं.
ये आश्चर्यजनक है कि जिन जजों का काम संविधान और कानून की व्याख्या करना और उनके मुताबिक फैसला देना है, उन्होंने सैकड़ों फैसलों में मनु और मनुस्मृति को कोट किया गया है. एक लॉ वेबसाइट में मनुस्मृति सर्च करने से 805 रिजल्ट आते हैं. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने मुंबई बम ब्लास्ट केस के एक अपराधी के मामले की सुनवाई के दौरान कठोर दंड दिए जाने का तर्क देते हुए मनुस्मृति का एक श्लोक पढ़कर सुनाया.
कोल्सटन के साथ भी ऐसा ही है. कोई कह सकता है कि गुलामों का व्यापार करने वाले का कोई प्रशंसक कैसे हो सकता है. लेकिन ऐसा नहीं है. पूरे ब्रिस्टल शहर में दर्जनों भवनों और संस्थाओं का नाम कोल्सटन के नाम पर है. कोल्सटन ने गुलाम व्यापार के बाद राजनीति में भी हाथ आजमाया और सांसद भी बना. ब्रिटिश संसद के इतिहास में उसे एक ऐसे आदमी के रूप मे दर्ज किया गया है जो अपने शहर में एक ‘परोपकारी व्यक्ति’ के तौर पर जाना जाता है जिसने बड़े पैमाने पर सही कार्यों के लिए दान दिया.
लेकिन इतिहास का चक्र ऐसा है कि उसी शहर के युवाओं ने उसकी मूर्ति को उखाड़ डाला. ये एक युगांतकारी घटना है.
मनु की मूर्ति का क्या किया जाए?
मनु की मूर्ति को हाईकोर्ट परिसर से हटा दिया जाना चाहिए. ऐसा किए जाने के पक्ष में चार तर्क हैं.
1. हाईकोर्ट या किसी भी कोर्ट में मनु की मूर्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि मनु के बनाए विधान- मनुस्मृति और भारतीय संविधान का कोई तालमेल ही नहीं है. बल्कि दोनों परस्पर विरोधी हैं. मनुस्मृति संविधान की प्रस्तावना में दर्ज ‘प्रतिष्ठा और अवसर की समानता’ के सिद्धांत का निषेध है. ये संविधान के अनुच्छेद 14-18, सिविल राइट्स एक्ट और एससी-एसटी अत्याचार निरोधक अधिनियम और ऐसे ही तमाम कानूनों के भी खिलाफ है. मिसाल के लिए, जिस कोर्ट में मनु की मूर्ति लगी है, वह पैतृक संपत्ति में महिलाओं के समान अधिकारों के कानून को कैसे लागू कराएगी?
2. मनु का नाम ही घृणा और विद्वेष का प्रतीक है. उसकी मूर्ति समाज में कटुता बढ़ाती है. मनुस्मृति में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे आधुनिक समाज या देश सीख सकता है.
3. ये मूर्ति वहां की है ही नहीं. ये सार्वजनिक स्थान का अतिक्रमण है क्योंकि इसे सरकार ने नहीं, कुछ वकीलों ने लगा दिया है. ये बिल्डिंग प्लान का हिस्सा ना होने के कारण भी अवैध है. इस मूर्ति का कभी उद्घाटन नहीं किया गया. इस मूर्ति को हटाने के बारे में राजस्थान हाई कोर्ट को अपना फैसला फिर से दोहराना चाहिए.
4. अगर मनु की मूर्ति का कोई धार्मिक महत्व है, तो जो लोग इसे धार्मिक महत्व का मानते हैं, वे इसे ले जाकर किसी धर्म स्थल या मंदिर में लगा सकते हैं. इससे किसी को एतराज नहीं होना चाहिए. कोर्ट इस मूर्ति की सही जगह नहीं है.
लेकिन एक सवाल फिर भी रह जाता है कि जब ये मूर्ति हटाई जाएगी, तो क्या इसे उसी तरह नष्ट कर दिया जाए या पानी में या कूड़ेदान में फेंक दिया जाए, जैसा कोल्सटन की मूर्ति के साथ हुआ.
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मैं इसके पक्ष में नहीं हूं. इतिहास के सबसे बुरे और क्रूर अध्यायों को भी, और किसी काम के नहीं तो भी शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए, बचाकर रखना चाहिए. इतिहास सिर्फ बीती हुई घटनाओं का संचित रूप नहीं, बल्कि भविष्य के लिए रास्ता दिखाना वाली मशाल भी है.
मैं चाहूंगा कि सरकार इस मूर्ति को हटाने के साथ ही जाति व्यवस्था को लेकर एक संग्रहालय – जैसा कि न्यूयॉर्क शहर में अमेरिकी इंडियन के बारे में राष्ट्रीय संग्रहालय है- भी बनाए और ये मूर्ति वहीं प्रदर्शित की जाए. साथ में ये ब्यौरा लिखा जाए कि- मनु की ये मूर्ति जयपुर स्थिति हाईकोर्ट परिसर में अवैध तरीके से लगाई गई थी. ये उस आदमी की मूर्ति है, जिसने शूद्रों और महिलाओं की गुलामी के विधान लिखे थे.
(लेखक पहले इंडिया टूडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं, और इन्होंने मीडिया और सोशियोलोजी पर किताबें भी लिखी हैं. लेख उनके निजी विचार हैं)
Raghvendra Kumar baudh Aalu ki Murti Tod Dena chahie tabhi bhojan Bhat Samaj Ekta Bahujan ke anuprayog ko shradhanjali Sahi Hogi
तो दोगले इसी भट्टी में तप कर बनते है, मुझे नहीं पता कि तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि भारत में भी ऐसे देश जलाने वाले आंदोलन की जरूरत है, या ये तुम लोगो की मनोकामना है जो मनु शब्दांश के साथ बाहर आया है,
Manu ki santan manushya kahi jati hai
मनु ने कभी, ना तो गुलामों या जातियों का व्यापार किया और ना ही महिला या दलित विरोधी रहे ।उनके विरुद्ध तथाकथित लेफ्ट या वाम विचारधारा वाले प्रोपेगंडा फैलाते रहे।मंडल जी खुद विद्वेष से प्रेरित होकर लेख लिखे हैं।बेहतर होता मूल ग्रन्थों का पहले अध्ययन करते फिर विचार व्यक्त करते।ठीक ही कहा गया है कि अधजल गगरी छलकत जाय।
वैसे,दिलीप मंडल को ज्यादा अतीत में जाने की आवश्यकता नही,कुछ वर्षों पूर्व ही अफगानिस्तान में तालिबान ने बामियान की बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ा था,जो कि मंडल जी के आराध्य अम्बेडकर जी के आराध्य बौद्ध की मूर्ति थी।क्या दिलीप मंडल उन तालिबानों का कुछ उखाड़ पाएंगे या फिर सिर्फ मनु के सपनें में ही खोए रहेंगे।एक बात और..बाबा अम्बेडकर जी ने तो सिर्फ 10 वर्षों के लिए ही आरक्षण देने की व्यवस्था की थी,तो 70 सालों के बाद भी मंडल जी आरक्षण की बैसाखी पे जीते रहेंगे या कुछ अपने दम पर भी करेंगे।
Itna to pakka he apne manh ismriti nhi padhi hogi or padhi bhi hogi to khai purani delhi ke tapri say utha kar pad le hogi mannu mharaj ne to likha ha jha suder ko dand diya cheye to bharamn ko uska 10guna dena chiye or bharam koi janam say nhi hota sab karam say hote he bakki me apko open challenge karta hu aeya mannu smriti par bat karte ha ap jit gye to me mannu ismriti ka bhaiskar karuga me jeta to apko mannu ismrti ko manan padega ma rohit arya, age 19 email rkp5139@gamil.com
अगर किसी को यह लगता है कि मूर्ति जातिबाद का प्रतीक है तो आप लोग जातिगत आरक्षण के पक्ष में कैसे हो सकते हैं
मैं चूकियों के लेख पर टिप्पणी नहीं करता हूं, क्योंकि मैं सर्वदा आत्मनिर्भर क्षत्रिय और सनातन परंपरा से क्षात्र धर्म का पालन करने वाला हूं और मुझे बहुत गर्व है कि इस मण्डल के भगवान बुद्ध भी क्षत्रिय वर्ण के थे इसलिए मैं आरक्षित वर्ग के व्यक्ति के ज्ञान पर कोई कटाक्ष नहीं करूंगा, क्योंकि मैं उसको अपने बराबर समझता ही नहीं हूँ।
जय सनातन संस्कृति, जय भारत भूमि, जय क्षात्र धर्म, वीर भोग्य वसुन्धरा
हे अल्पज्ञानी तुम किसके बारे में बात कर रहे हो, जिसके चरन की रज पाके न्यूटन , ग्राहम बेल, और भी साइंटिस्ट अमर हो गए। हे मूर्ख हे मंदबुद्धि आत्मा ही 1 मात्र सत्य है। तुम करो अपने कर्म रावण था तो राम आये। कंस था तो श्याम आये। तुम रहोगे तब कल्कि आएंगे।
इसलिए तुम्हे साधुवाद करता हु। तुम निमित्त हो हमे प्रभु के दर्शन करने के।
पूर्वाग्रह से ग्रसित लेख, समाज में समानता का दिखावा करने वाले का समाज को तोड़ने और भड़काने वाली पोस्ट है।
मनुस्मृति की 2 संस्करण है। मूल प्रति नष्ट कर दी गई है। 1835 के बाद मैकोले भारत आये, तो देश की एकता तोड़ने के लिए, जर्मनी के मैक्समूलर की मदद से फर्जी मनुस्मृति बनवाई। जिसे पढ़कर लोग आज भी भड़क रहे हैं।
मूल पुस्तक में ऐसा कुछ भी नहीं। रामायण , महाभारत पढ़ लो। कोई कुप्रथाओं का वर्णन नहीं ।
मनु एक इतिहास है! पाखण्ड का, अत्याचार का, निर्दयता का, निष्ठुरता का, दासत्व का, शोषण का! ऐसे व्यक्ति के मूर्ति को संग्रहालय में रखा जाना चाहिए! ताकि आगे लोग जान सके कि हमे किस चीज से बचना चाहिए! हमें क्या नही करना चाहिए! लिच्छवि की लोकतंत्र को पुरे भारत में प्रसारित करने के लिए क्या करना चाहिए!
Iska matlab ye lekhak bhi achcha nahi he.