2012-13 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता थे और टीवी पर जाना माना चेहरा थे. हर चैनल पर मिल जाते थे. ये उन दिनों की बात थी, जब बढ़िया अंदाज में अंग्रेज़ी बोल देने भर से बात की सत्यता प्रमाणित हो जाती थी. खूब गंभीर चेहरा बनाकर और नाक फुलाकर मनीष तिवारी कांग्रेस पर लगे हर आरोप का जवाब देते थे.
हालांकि ये काम वो तब से कर रहे थे जब से मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ था. उसके बाद शिवराज पाटिल ने पहले बेतुका बयान दिया था और इस्तीफा दिया था. कांग्रेस ने उनके बयान को भी सही साबित करने की कोशिश की थी. पर धीरे धीरे मनीष तिवारी का वर्कलोड बढ़ने लगा था. क्योंकि सीएजी की अनुकंपा से टीवी पर घोटालों के जो फिगर दिखाये जाने लगे थे, उनमें ज़ीरो खत्म ही नहीं होता था. मनीष तिवारी फिर भी गंभीर मुख मुद्रा में अंग्रेज़ी बोलते रहते थे. हालांकि हिंदी में भी काफी बोला. पर जब से अरविंद केजरीवाल ने हिंदी और सुब्रमण्यम स्वामी ने अंग्रेजी में कांग्रेस पर धड़ाधड़ आरोप लगाने शुरू कर दिये, मनीष तिवारी फंसे से नजर आने लगते थे. यही नहीं, राहुल गांधी भी जब तब बयान देकर मनीष तिवारी पर ज्यादा प्रेशर बना देते थे.
जो काम मनीष तिवारी करते थे, वही काम रविशंकर प्रसाद करते हैं
ठीक यही काम भाजपा के केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी करते हैं. मनीष तिवारी के मंत्री पद की ही तरह रविशंकर प्रसाद भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रह चुके हैं.वैसे तो वह मोदी सरकार में भी केंद्रीय मंत्री ही हैं. मनीष तिवारी और रविशंकर प्रसाद, दोनों ही सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट हैं. मनीष तिवारी की तरह ही भाजपा पर कोई आरोप लगते ही रविशंकर प्रसाद भी नाक फुलाकर एक एक शब्द चबाते हुए टीवी पर बोलने लगते हैं. उस वक्त ऐसा लगता है कि बस ये दोनों नेता जो बोल रहे हैं, वही सत्य है. बाकी जगत मिथ्या है.
हालांकि आरोपों का जवाब विनम्रता से फैक्ट के आधार पर दिया जा सकता है. सरकार को हर आरोप का जवाब काम और डॉक्यूमेंट से देना चाहिए. पर ये दोनों ही नेता पूछने वाले को धमकाने के अंदाज में जवाब देते हैं. मनीष तिवारी लंबे समय से छात्र जीवन से ही कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. वहीं रविशंकर प्रसाद इमरजेंसी के टाइम से जनसंघ और भाजपा के नेताओं से जुड़े रहे हैं. तो दोनों के ही बयानों से ये लगता है कि हमारी पार्टी के बारे में ऐसा कैसे बोल सकते हो?
इनके चुनाव में साम्य है और बयानों में भी
हालांकि इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में दोनों ही नेताओं को काफी कुछ साबित करना है. मनीष तिवारी 2004 में लोकसभा चुनाव हारे, 2009 में जीते, 2014 में लड़े ही नहीं और 2019 में टिकट के लिए सक्रिय हैं. वहीं चार बार राज्यसभा सांसद रह चुके रविशंकर प्रसाद 64 साल की उम्र में पहली बार शत्रुघ्न सिन्हा की सीट से सांसदी का चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
2012 में जब अन्ना हजारे ने एंटी-करप्शन आंदोलन छेड़ रखा था, तब मनीष तिवारी ने कांग्रेस का बचाव करते हुए कहा था- वो खुद भ्रष्टाचार के कई केस में शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सावंत कमीशन द्वारा ये साबित हो चुका है. अन्ना कई एनजीओ चलाते हैं और उनके जन्मदिन के मौके पर काफी पैसे गैरकानूनी रूप से उड़ाये गये थे.
कम ऑन मनीष तिवारी जी. अब अन्ना हजारे अपने जन्मदिन पर पैसे उड़ा रहे हैं, ये आरोप लगाएंगे कांग्रेस पर स्कैम के आरोप के बाद? पर मनीष रुके नहीं. आगे कहा- टीम अन्ना में आर्मचेयर फासिस्ट बैठे हुए हैं, माओवादी हैं. जब अन्ना हजारे ने उनको इस बाबत नोटिस भेजा तो मनीष तिवारी ने माफी मांग ली ये कहते हुए कि राजनीति में ये सब होता रहता है. पर जब अन्ना पर आरोप लगा रहे थे तो इस दृढ़ता से कि सुप्रीम कोर्ट भी आगे जांच की जरूरत न समझे.
कला वही है- ‘मैं इंकार करता हूं’
वहीं रविशंकर प्रसाद पिछले तीन चार सालों से रोजगार पर बयान दे रहे हैं. 2017 में कहा था कि सारी रिपोर्ट्स झूठी हैं, आईटी सेक्टर में रोजगार बढ़ने वाला है. मैंने खुद इंफोसिस और टीसीएस में बात की है. सौ-दो सौ लोगों को परफॉर्मेंस के आधार पर निकाला गया है, बस. पर उसी साल लेबर मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा था कि ये जॉबलेस ग्रोथ हो रही है. रविशंकर प्रसाद लॉ एंड जस्टिस के अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्टर भी हैं. 2018 में बोले कि डरने की कोई जरूरत नहीं है, नौकरियां काफी आने वाली हैं. वहीं 2019 में उन्होंने कहा कि पिछले पांच सालों में आईटी सेक्टर में लगभग नौ लाख नौकरियां पैदा हुई हैं, कांग्रेस झूठ बोल रही है. ये कहते हुए रविशंकर प्रसाद ने उस चीज को बिल्कुल दरकिनार कर दिया, जिसकी बात हो रही थी. उस रिपोर्ट की जिसमें पता चला कि 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी की दर बढ़ी हुई है.
अब एक रोचक बात है. 2017 में रविशंकर प्रसाद ने बोला था कि मैं इस बात से इंकार करता हूं कि रोजगार में कोई कमी आने वाली है. आने वाले 4-5 सालों में 20-25 लाख नई नौकरियां आईटी सेक्टर में पैदा होंगी. दो साल तो बीत गये. पर ‘मैं इंकार करता हूं’ वाली अदा टीवी पर तो उनको डिबेट में मजबूत बना ही देती है.
राफेल मुद्दे पर बोलते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मैं चैलेंज करता हूं कांग्रेस पार्टी को डिबेट करने के लिए, मुद्दा खुला तो कांग्रेस फंस जाएगी. हालांकि ये भूल गये कि आरोप भाजपा शासनकाल में लगा है और राहुल गांधी रोज राफेल पर डिबेट के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित करते रहते हैं. रविशंकर प्रसाद भी राफेल पर बहस करने तो नहीं ही गये हैं. एकतरफा ‘मैं इंकार करता हूं’ वाले स्टेटमेंट दे देते हैं. बिल्कुल मनीष तिवारी की तरह. वो तो कपिल सिब्बल ने घोटालों पर ‘ज़ीरो लॉस थ्योरी’ देकर सारा ब्लेम अपने ऊपर ले लिया वरना मनीष तिवारी ‘मैं इंकार करता हूं’ की अदा से कुछ न कुछ जवाब ज़रूर दे देते.