scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतJD(S), BSP, SP की तरह ही शिवसेना में राजनीतिक पतन देखने को मिल रहा है

JD(S), BSP, SP की तरह ही शिवसेना में राजनीतिक पतन देखने को मिल रहा है

इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस की टूट की तरह ही शिवसेना भी नए नेता के तहत एकदम नई पार्टी की तरह उभर सकती है.

Text Size:

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने सरकारी आवास वर्षा को खाली करके संकेत दे दिया कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के दिन पूरे हो गए. शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस का बेमेल गठजोड़ 2019 में बना था, ताकि अजित पवार की अगुआई में करीब 54 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनाने की कोशिश को धराशायी किया जा सके. तब तीन पार्टियों के गठजोड़ ने 160 से ज्यादा विधायकों का परेड कराया था और सभी ने शपथ ली थी कि ‘किसी लालच में नहीं फंसेंगे’ और वफादारी नहीं बदलेंगे.

बीस महीने बाद आधे से अधिक शिवसेना विधायकों ने पार्टी में पिता-पुत्र नेतृत्व को धूल फांकने के लिए छोड़ दिया और एमवीए गठजोड़ को अतीत की चीज बना दिया. महाराष्ट्र में राजनैतिक उठापटक पहले कई दूसरे राज्यों में हो चुकी उथल-पुथल जैसी ही है. जहां तक विधायकों को गोपनीय स्थानों पर ले जाना, निर्दलीयों का तोड़ना और क्रॉस-वोटिंग में लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों का हाल एक जैसा है.

शिवसेना की भारी भूल

अगर बुनियाद ही हिल जाए तो आखिरी मौके पर सरकार बचाने की कोशिशें काम नहीं आतीं. शिवसेना की सबसे बड़ी भूल उन पार्टियों से हाथ मिलाना था, जो कभी उसे ‘अछूत’ और वैचारिक विरोधी मानती रही हैं. संयोगवश, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को उन संदिग्ध पहचान पार्टियों की कतार में ला खड़ा किया, जो सब ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके राजनैतिक पराजय को प्राप्त हुईं. मसलन, जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेकुलर), बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलुगु देशम पार्टी.

महाराष्ट्र में राजनैतिक उथल-पुथल उन लोगों के लिए हैरानी का सबब नहीं होना चाहिए, जो राज्य की राजनीति को करीब से देख रहे थे.

एक तो, अक्टूबर 2019 में सरकार का गठन ठोस लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं था. तब दलगत स्थिति बीजेपी के पक्ष में था, जो 106 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. महज 53 विधायकों वाली शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया. यह मांग इस दावे पर आधारित थी कि बीजेपी ने चुनाव-पूर्व सत्ता-साझेदारी का समझौता किया था, उसके मुताबिक पहले ढ़ाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा, फिर बाकी के कार्यकाल में बीजेपी का. बीजेपी ने शिवसेना के इस दावे को खारिज कर दिया. उसने कहा कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ. उसके बाद राजनैतिक झांसापट्टी का प्रदर्शन हुआ और एक मायने में शिवसेना के अंत की शुरुआत हो गई, जिसे पार्टी के दिग्गज बालासाहेब ठाकरे ने बड़ी संजीदगी से बढ़ाया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

बदले की भावना में शिवसेना ने बीजेपी पर गाज गिराने के लिए अपनी नाक ही कटा डाली.

जिसने भी शिवसेना की टूट की पटकथा लिखी, उसने आधुनिक लोकतंत्र में सामंती खानदानशाही पार्टियों के बेमानीपन को उजागर करने की कोशिश की है. बीजेपी और वामपंथी पार्टियों के अलावा शायद ही देश में कोई राजनैतिक संगठन ऐसा है, जो एक परिवार के तहत निजी कारोबार न होने का दावा कर सके.

उद्धव ठाकरे का अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाने का सपना लगता है कि उलटा पड़ गया. इस बीच, बीजेपी अगर अगली सरकार बना लेती है तो यह आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उसे एनसीपी अपना समर्थन दे दे. महाराष्ट्र के राजनैतिक दिग्गज शरद पवार अपने भतीजे को राजनीति का एक-दो सबक सिखाना चाहें. फिर, उन्हें भी तो अपनी पार्टी में उत्तराधिकार का मसला सुलझाना है.


यह भी पढ़ें : JNU के आतंकवाद विरोधी कोर्स को ‘सांप्रदायिक’ नज़र से न देखें, भारतीय इंजीनियरों को इसकी जरूरत


बिना सेना के शिवसेना

इस उठापटक का एक नतीजा यह है कि नई शिवसेना बिना ठाकरे खानदान के उभर सकती है. बागी नेता एकनाथ शिंदे नए गुट की अगुआई कर सकते हैं, जो अब पार्टी से भी मजबूत लगते हैं. इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस में टूट की तरह ही शिवसेना भी नए नेता के तहत नई पार्टी बनकर उभर सकती है. ऐसी हालत में नए नेता को पार्टी को मूल ट्रैक पर वापस लाने का भगीरथ प्रयास करना होगा, जो महाराष्ट्र के राजनैतिक मंच जगह पा सके. शुरू में धुर उत्तर भारतीय विरोध और दक्षिण भारतीय विरोधी पार्टी रही शिवसेना ने बाल ठाकरे के नेतृत्व में नया मोड़ लिया. हिंदुत्व की छतरी के तले उसने बीजेपी के साथ मिलकर कांग्रेस का राज्य से विस्थापित कर दिया.

कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण (2010-2014) थे. बीजेपी और शिवसेना की साझेदारी 2019 के चुनावों में टूट गई. लेकिन उद्धव की गलतियां खेल बिगाड़ने वाली साबित हुईं. गठजोड़ की मजबूरियों से वे बड़े समझौते करने पर मजबूर हुए. पालघर में साधुओं की लिंचिंग जैसी कई घटनाओं को अनदेखा कर दिया गया.

फिलहाल तो शिवसेना की बड़ी टूट से ‘बीजेपी को शह’ लगती है, कांग्रेस इतिहास बन गई है और एनसीपी की अपील आधा दर्जन क्षेत्रों तक सीमित है. सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी देवेंद्र फडणवीस जैसे आजमाए नेता के तहत अपनी बुनियाद रख सकती है और आने वाले वर्षों में बड़ी ताकत बनकर उभर सकती है.

(शेषाद्री चारी ऑर्गेनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 


यह भी पढ़ें : किसान आंदोलन, कोविड का UP के नतीजों पर नहीं पड़ा असर, चुनाव में BJP की जीत कई मायनों में अहम


 

share & View comments