scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होममत-विमतज्योतिबा फुले और आंबेडकर के बीच की कड़ी थे शाहूजी महाराज

ज्योतिबा फुले और आंबेडकर के बीच की कड़ी थे शाहूजी महाराज

आरक्षण की अवधारणा छत्रपति शाहूजी महाराज के राज्य कोल्हापुर से ही आई है, जब उन्होंने 26 जुलाई 1902 को अपने एक आदेश से 50 प्रतिशत नौकरियों को पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षित कर दिया था.

Text Size:

कोल्हापुर रियासत के राजा और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज छत्रपति शाहूजी महाराज का उदय ऐसे समय हुआ, जब सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन में ज्योतिबा फुले का नेतृत्व नहीं रहा. शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर राज्य की बागडोर 1894 में संभाली थी, जिसके चार वर्ष पूर्व 28 नवंबर 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले का परिनिर्वाण हो गया था.

ज्योतिबा फुले के बाद उनके मानवतावादी विचारों को जनमानस में पहुंचाने की ज़िम्मेदारी छत्रपति शाहूजी महाराज ने तब तक उठाई, जब तक कि बाबासाहेब आंबेडकर का भारतीय राजनीति में पदार्पण नहीं हो गया. शाहूजी महाराज ने बाबासाहेब आंबेडकर समेत हर उन राजनेता और समाज सुधारकों की नैतिक और आर्थिक मदद की, जो मानवतावादी आंदोलन को आगे ले जाने का प्रयास कर रहे थे. शाहूजी महाराज भारत में मानवातावादी आंदोलन की नींव के वह ईंट थे, जिनके बिना इस आंदोलन की कल्पना भी मुश्किल है.

बाल गंगाधर तिलक के समानांतर परंपरा

शाहूजी महाराज का उदय उस काल-खंड में होता है, जब स्वदेशी आन्दोलन से जुड़े बाल गंगाधर तिलक जैसे रूढ़ीवादी नेता जातिवादी विचारधारा और परंपरा को बढ़ावा दे रहे थे. तिलक ने डिप्रेस्ड क्लास यानी वंचित जातियों की शासन में प्रतिनिधित्व की मांग का यह कहकर मज़ाक उड़ाया था कि ‘तेली-तमोली-कुनबी विधानसभा में जाकर क्या करेंगे’. ऐसे कठिन समय में शाहूजी महाराज ने मानवातावादी आंदोलन की लौ को बुझने नहीं दिया.

शाहूजी महाराज के समय में ही प्रथम विश्वयुद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘स्वनिर्णय का सिद्धान्त (self-determination)’ निकलकर आया. स्वनिर्णय के सिद्धान्त को ही उपयोग में लाकर बाबासाहब आंबेडकर ने साउदबरो कमेटी के सामने अछूतों के लिए अलग निर्वाचन मंडल (सेपरेट इलक्टोरेट) देने की मांग की थी. शाहूजी महाराज की सलाह पर ही आंबेडकर भारत मामलों के मंत्री लॉर्ड मांटेग्यू से मिले और उनसे अछूतों के लिए संवैधानिक अधिकारों की मांग की.

उस मुलाक़ात के दौरान हुई बातचीत का जिक्र बाबासाहेब आंबेडकर 25 नवंबर 1920 को शाहूजी महाराज को लिखे अपने पत्र में करते हैं – ‘मांटेग्यू बहुत ही अच्छे से पेश आए, हम लोगों ने एक घंटे तक ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मणों के बीच की समस्याओं और विवादों पर विचार विमर्श किया. महाराज! गैर-ब्राह्मणों के आंदोलन को लेकर इनको कुछ लोगों ने गुमराह किया हुआ था.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

नेतृत्व का प्रश्न और शाहूजी महाराज

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही ऐसी कोशिश हो रही थी कि तिलक के बाद देश के आंदोलनों की कमान गांधीजी के हाथों में सौंप दी जाए. पूरे देश में उनका भ्रमण आयोजित करके ये काम किया जा रहा था. उनको जबर्दस्त मीडिया कवरेज भी मिल रहा था. लेकिन उस दौरान शाहूजी महाराज पूरे तन-मन-धन से इस कोशिश में लगे रहे कि सामाजिक आंदोलन का नेतृत्व किसी ऐसे कुशल व्यक्ति के नेतृत्व में दिया जाये, जो कि ‘उच्च जाति का ना हो एवं लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाला हो.’


यह भी पढ़ें : असमानता दूर करने के लिए भीमराव आंबेडकर ने क्या उपाय दिए थे


इसके अलावा शाहूजी महाराज के अनुसार, ‘नेता को दूरदृष्टा होना चाहिए. उसके पास भविष्य हेतु विजन होनी चाहिए. जाति का सम्पूर्ण उन्मूलन जरूरी है, जाति का जिंदा रहना पाप है. जाति हम सबकी प्रगति की राह में बाधक है. इसलिए इसको समाप्त करना हमारा कर्तव्य होना चाहिए.’ नासिक की एक सभा में दिया गया, शाहूजी महाराज का उपरोक्त बयान इस बात की तरफ इशारा करता है कि क्यों उन्होंने 1920 में मानगांव में हुई सभा में यह घोषणा की कि ‘आगे से अब डॉ. आंबेडकर आप लोगों के नेता होंगे.’

ध्यान देने योग्य बात यह है कि छत्रपति शाहूजी महाराज खुद कोल्हापुर राज्य के राजा थे. इसके बावजूद वे अपने वक्तव्यों में लोकतन्त्र का समर्थन कर रहे थे. उनके मुताबिक, लोकतन्त्र केवल शासन प्रणाली तक सीमित ना हो, बल्कि जीवन पद्धति का हिस्सा बने. शाहूजी महाराज जाति और छुआछूत को समाप्त करके समाज की नए सिरे से संरचना की ना सिर्फ सोच रहे थे, बल्कि इसके लिए काम भी कर रहे थे.

डॉ. आंबेडकर को पहुंचाई मदद

आंबेडकर जब लंदन में पढ़ाई कर रहे थे, तो उन्होंने शाहूजी महाराज को पत्र लिखकर सूचित किया कि उनकी माली हालत काफी खराब है. यहां तक कि इंडिया वापस आने तक के लिए पैसे नहीं हैं. इसका जिक्र 4 सितंबर 1921 को बाबासाहब द्वारा शाहूजी महाराज को लिखे पत्र में मिलता है- ‘मैं, मिस्टर दलवी के द्वारा निर्देशित किए जाने पर अपनी वित्तीय मुसीबत आपके सामने इस आशा के साथ रख रहा हूं कि कुछ मदद मिलेगी. मुझे 100 पाउंड कानून की पढ़ाई की फीस के लिए और 100 पाउंड भारत वापस आने के लिए चाहिए. मैं महाराज का बहुत ही ज्यादा आभारी रहूंगा, यदि महाराज लोन के रूप में ही सही 200 डालर की व्यवस्था मेरे लिए कर दें. लंदन से वापस आकार मैं महाराज का यह लोन ब्याज सहित वापस करूंगा.’

ऐसी विकट परिस्थिति में शाहूजी महाराज ने डॉ. आंबेडकर को न केवल लंदन में वित्तीय मदद भिजवाई, बल्कि उनकी पत्नी रमाबाई आंबेडकर की भी वित्तीय मदद की. शाहूजी महाराज 6 सितंबर 1921 को आंबेडकर को जवाबी खत में लिखते हैं- ‘कृपया श्रीमती आंबेडकर को यह सूचित कर दें कि किसी भी तरह की वित्तीय कठिनाई को बिना झिझक मुझे लिखें. मैं उनकी जितनी भी मदद हो सके करूंगा.’


यह भी पढ़ें : राष्ट्रवाद, मॉब लिंचिंग और शरणार्थी समस्या पर कांशीराम के विचार


इसके अलावा बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने पहले अखबार ‘मूकनायक’ को चलाने के लिए भी शाहूजी महाराज से समय-समय पर दरख्वास्त की और महाराज ने हमेशा दिल खोलकर अखबार के प्रकाशन को सुचारु रूप से जारी रखने में वित्तीय मदद दी.

आरक्षण व्यवस्था के जनक

आरक्षण की अवधारणा छत्रपति शाहूजी महाराज के राज्य कोल्हापुर से ही आई है. जब उन्होंने 26 जुलाई 1902 को अपने एक आदेश से कोल्हापुर रियासत की 50 प्रतिशत सीटों को पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षित कर दिया था. पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के पीछे महाराज का विचार था कि इससे इन जातियों में समृद्धि आएगी और इनका आत्मबल भी बढ़ेगा.

शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में छुआछूत की समाप्ति के लिए युद्ध छेड़ रखा था. उन्होंने समय-समय पर राजकीय आदेश जारी करवाये कि छुआछूत कोल्हापुर रियासत में समाप्त की जाती है. 15 जनवरी 1919 के अपने एक आदेश में शाहूजी महाराज ने रियासत के सभी अधिकारियों-राजस्व, न्यायिक और अन्य- को यह आदेश जारी किया कि कोई भी अधिकारी अगर छुआछूत करते हुए मिला तो उसे राज्य की सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा. शाहूजी महाराज ने 3 मई 1920 को कोल्हापुर राज्य में बंधुआ और बेगार मजदूरी पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह प्रथा उत्तर भारत से 1980 के दशक में जाकर समाप्त हो पायी, जब शाहूजी महाराज की विरासत वाला बहुजन आंदोलन खड़ा हुआ.

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं.)

share & View comments

22 टिप्पणी

  1. एडिटर महोदय कृपया ध्यान दें! अधूरी और भ्रह्मक जानकारी समाज देश के लिए व्यक्तिगत रूप से हानिकारक होते हैं। ये लेख अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कभी-कभी कितनी घातक एवं भ्रमित करने वाली होती हैं का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। कैसे किसी शोषित बुद्धिपति ने अपनी कुंठा का झूँठ बुना और आपने बिन लज्जा से उसे साझा कर दिया। ये लेख बाबासाहेब की काबिलियत पर उँगली उठाता हैं कि उनके द्वारा महाराज की मदद का उचित उल्लेख नहीं किया गया वे उनके विचारों को अपने बताकर साझा किया।

    • Arakshan ke janak chhatrapatti sahu ji Maharaj aur baba saheb ji ka kartyabya Ganesha ke lite Amar rahega, ,????
      Jai maratha Jai mahar, Jai bheem Jai shivarai

    • Arakshan ke janak chhatrapatti sahu ji Maharaj aur baba saheb ji ka kartyabya Ganesha ke lite Amar rahega, ,????
      Jai maratha Jai mahar, Jai bheem Jai shivarai

  2. Its time that we rethink about our freedom fighters ..half of thm have been casteist and misogynst. And the brahmanical media and bollywood denial of the ones who fought against these misfits is extremely vile and vicious !

    • Ambedkar ke kya vichar the muslimo ko leker.
      Sir sayyed amhad kha ke kya vichar the mahilaon ke baare me
      Please read

  3. छत्रपति शाहूजी महाराज और उनके कार्य वंदनीय है, जातिवाद के कारण भारत को बहुत कुछ सहना पड़ा है,,,,
    पर आज इस कोरोना जैसी महामारी के दौर में इस प्रकार के विघटन कारी एवम् शत्रुता बढ़ाने वाला लेख क्यों??? आज वंदनीय शाहूजी की कोई जन्म जयंती है? कोई पुण्य तिथि है?? या कोई स्पेश्यल एजंडा चलाने के लिए??? क्या आपके विचार से गांधीजी उचित नेता नहीं थे??? हमारे फ्रीडम फाइटर पूरे देश के लिए वंदनीय है उसे किसी एक जाति – विचार से जोड़कर आप जाति वाद को ही बढ़ावा दे रहे है,,,,,
    अगर यह लेखक का निजी विचार है तो उसे निजी ही रखे , प्रसारित ना करें,, और अपने आप को लेखक के पीछे छुपाकर भारत तोड़ने का स्पेश्यल एजंडा ना चलाए।

  4. लेखक तुम भी भुगतान आरक्षण से हो क्या ! आज इस आरक्षण की वजह से कितने परिश्रमी लोग अपने पद से वंचित हो रहे हैं ये भी सोचा है कभी ! सभी वर्गों को समानता दी जाए फिर आरक्षण की बात करें! सबको आरक्षण दिया जाए! सत्य स्वीकार करना सीखों आरक्षण में मिला पद और बिना आरक्षण के मिले पद के करें थोड़ा चिन्तन करो! ९०℅ वाला परिश्रमी और 1०℅आरक्षण वाला कौन best है मनुष्यता हो तो विचार करना!
    संविधान लिखते समय से ही कापी पेस्ट करना आरक्षण को जन्म दिया?

    • जय प्रकाश भाई जाति की वजह से देश की जनता को नुकशान हो रहा है कभी जाति खत्म करने की भी बात की अपने
      मनुष्य हो तो सोचो

      अभी तो सभी को आरक्षण मिल रहा है

    • Jay Prakash Tripathi ji
      आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पर समानता सभी जगह होनी चाहिये । आप मंदिरो का कितना प्रतिशत अन्य वर्ग वालो को देते हैं क्या ओ केवल आप का ही होंना चाहिये ?
      माफ कीजिये पर कहना पड़ रहा है । आप वहाँ से बटवारा करवा दीजिये हम आरक्षण के भूखे नही हम आरक्षण हटवा देंगे हम भी समानता ही चाहते हैं। और बात कापी पेस्ट वाली है तो आप को ही कर लेना चाहिये था
      अरे आप क्या करोगे जब उतना कोई लोग पढ़ लो तभी सही है।

    • Mahodai ak sawal aap se, jatiwad se arakshad hain ya arakshad se jatiwad.
      Kanun me arakshad ka is wajah se laye gya.
      Kya kabhi koi brahman gater me utar karya tumhare ghar ka maila kisi brahman ne udhaya, nahi na
      Issi liye jo hajaro saalo se jo samaj piche the unko aage aur samaj ki murkhya dhara me jodne ke liye arakshad ka prawdhan kanun me laya gaya

  5. arakshan koe muda n hai par jati wad muda hai arakshan vi jati par hi niradarit hai to ku n es jar Ko hi khatam kiya jaye

  6. Jyotiba phule, chhatrapati sahu ji maharaj or baba sahab bhimrao ambedkar dwara vanchit,shoshit or pichhron ko nyay or adhikar dilane wale sangharshon ko hamesa hamesa ke liye yad kiya jayega.

  7. Jyotiba phule, chhatrapati sahu ji maharaj or baba sahab bhimrao ambedkar dwara vanchit,shoshit or pichhron ko nyay or adhikar dilane wale sangharshon ko hamesa hamesa ke liye yad kiya jayega.

  8. आने वाले समय मे देश को सबसे ज्यादा खतरा इसी प्रकार के लेखों और भीम-मीम से होगा जो बहुजन समाज अपने को तथाकथित सवर्ण समाज से पीड़ित बता रहा है, वह दरअसल और कुछ नहीं देश में मुस्लिम समाज की कट्टर विचारधारा का परिणाम है और यह बहुजन समाज सवर्ण विरोध करते हुए देश विरोध और मुस्लिम समुदाय की कठपुतली बन गया है जो एक न एक दिन इनको को ही डसेंगे और वर्तमान में जब भी कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति किसी दलित को पिटता है तो कभी भी ये बहुजनों के ठेकेदार नेता नहीं बोलते और इनके मुह में दही जम जाता है, इनकी राजनीति बस सवर्ण बनाम दलितों के वैमनस्य बढ़ाने से ही चलती है।.

  9. हजारों साल से धर्म की आड़ में ब्राह्मणों ने आरक्षण से देश को विश्व विजेता से गुलाम बनवा दिया ये भी तो देखो । एवं भारत में आरक्षण की व्यवस्था गांधी का पूना पैक्ट के बदले सुझाव था जो पूना पैक्ट के बदले सुझाया था जिनको आज यह व्यवस्था सही नहीं लगती वह पूना पैक्ट चालू करवा कर इस व्यवस्था को बंद करने के लिए सरकार पर दबाव बनाएं।

  10. मैनें देखा कि जब यह देगले लोग, इस लेखक के लेख से इतने परेशान हो रहे हैं l यही देख कर अंदाजा लग गयाl एेसे ही लोगों की वजह से जातियं बनी, एेसे ही लोगो की वजह से, देश का यह हाल हो गया ॉ

  11. Jay Prakash Tripathi ji
    आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पर समानता सभी जगह होनी चाहिये । आप मंदिरो का कितना प्रतिशत अन्य वर्ग वालो को देते हैं क्या ओ केवल आप का ही होंना चाहिये ?
    माफ कीजिये पर कहना पड़ रहा है । आप वहाँ से बटवारा करवा दीजिये हम आरक्षण के भूखे नही हम आरक्षण हटवा देंगे हम भी समानता ही चाहते हैं।

  12. Jay Prakash Tripathi ji
    आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पर समानता सभी जगह होनी चाहिये । आप मंदिरो का कितना प्रतिशत अन्य वर्ग वालो को देते हैं क्या ओ केवल आप का ही होंना चाहिये ?
    माफ कीजिये पर कहना पड़ रहा है । आप वहाँ से बटवारा करवा दीजिये हम आरक्षण के भूखे नही हम आरक्षण हटवा देंगे हम भी समानता ही चाहते हैं। और बात कापी पेस्ट वाली है तो आप को ही कर लेना चाहिये था
    अरे आप क्या करोगे जब उतना कोई लोग पढ़ लो तभी सही है।

  13. Jay Prakash Tripathi ji
    आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पर समानता सभी जगह होनी चाहिये । आप मंदिरो का कितना प्रतिशत अन्य वर्ग वालो को देते हैं क्या ओ केवल आप का ही होंना चाहिये ?
    माफ कीजिये पर कहना पड़ रहा है । आप वहाँ से बटवारा करवा दीजिये हम आरक्षण के भूखे नही हम आरक्षण हटवा देंगे हम भी समानता ही चाहते हैं। और बात कापी पेस्ट वाली है तो आप को ही कर लेना चाहिये था
    अरे आप क्या करोगे जब उतना कोई लोग पढ़ लो तभी सही है। जब संविधान की बात आती है तब परेशानी होने लगती है।

  14. Broaderly Nice article
    Young generation doesn’t know the history
    Fuleji, shahu maharaj,gandhiji, ambedkar and many others had a great contribution in the many social reforms in our religion and country, because of which some people can proudly say that they are hindus
    Some more details and study might made the article more useful, like gandhiji faught against untouchability since 1914, before ambedkar
    Gandhiji attended only intercast marriages since 1937 till his death, to broke the Jaati vyawastha etc etc

  15. आरक्षण मतलब प्रतिनिधित्व अभी भी पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सका है न्यायपालिका कार्यपालिका आदि क्षेत्रों में इसका प्रयोग पूर्ण रूप से नहीं हो सका है लोग आरक्षण को सिर्फ नौकरी से जोड़ देते है, और आपस में एक वर्ग विशेष को हीनता की दृष्टि से देखते हुए दुएश की भावना से देखते है। जबकि आज सभी वर्णों को आरक्षण मिला हुए हैं।कुछ लोग तो ऐसे है जो खुद आरक्षण ले भी रहे है और इसका विरोध भी कर रहे है ,जबकि जातिवाद जैसे गहन मुद्दों पर लोगो की बोलती बंद हो जाती है ।सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को आरक्षण को लेकर गुमराह किया जाता रहा है। लोगों को इसकी उत्पत्ति और उपयोगिता जैसे पहलुओं पर अपना ज्ञान बढाने की आवश्यकता है।

  16. इस लेख के मुताबिक शाहूजी महाराज 1884 में राजा बनें, लेकिन मंडल कमीशन-राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल के मुताबिक शाहूजी महाराज 1884 में राजा बने।

Comments are closed.