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Sunday, 22 December, 2024
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शाहिद अफरीदी पाकिस्तान के नए इमरान खान हो सकते हैं, उनके पास सब कुछ है जो गद्दी संभालने के लिए चाहिए

अपने रिटायरमेंट के बाद से शाहिद अफरीदी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए चर्चा में रहे हैं, लेकिन उनकी कश्मीर नीति उनके क्रिकेटिंग करियर की तरह ही उतार-चढ़ाव वाली है.

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क्या शाहिद अफरीदी पाकिस्तान का नया इमरान ख़ान है? क्यों नहीं? बहरहाल उसके पास वो सब कुछ है जो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के लिए चाहिए. वो हसीन है और बिना दिमाग़ का है.

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के बाद से, ये पूर्व ऑलराउण्डर अपनी राजनीतिक आकाक्षाओं को लेकर ख़बरों में बना रहा है. किसी दिन वो पाकिस्तान का प्रधानमंत्री भी बन सकता है- अगर ‘चयनकर्ता’ उसे चुन लें.

शाहिद अफरीदी का कश्मीर कार्ड

वर्ष 2019 पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद के तक़रीबन सभी उम्मीदवारों के लिए एक सुनहरा साल रहा है. भारत की ओर से धारा 370 को कमज़ोर करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बांट देने के बाद, बहुत से लोगों के लिए अपना सियासी करियर बनाने के लिए मैदान खुल गया. ऐसे ही एक आयोजन में, जिसका मक़सद ‘कश्मीर को भारत के पंजे से आज़ाद’ कराना था. कश्मीर से एकजुटता दिखाने के लिए इमरान ख़ान की 30 मिनट तक खड़े रहने की अपील पर, शाहिद आफ़रीदी ने जोश में आई भीड़ को अपने दादा अब्दुल बाक़ी के बारे में बताया, जिन्हें ग़ाज़ी-ए-कश्मीर की उपाधि मिली थी. इसलिए कश्मीर उसका और उसकी आने वाली पीढ़ियों का था. क्यों नहीं. उसके दादा और उसका बल्लेबाज़ी औसत, दोनों ही ऐसे हैं जिनसे भारत को डरना चाहिए.

अपनी लफ़्फ़ाज़ी को जारी रखते हुए और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की तरह ही, भारत के प्रधानमंत्री के बारे में अपनी हाल की बयानबाज़ी में, अफ़रीदी ने उन्हें डरपोक क़रार दिया और बताया कि किस तरह पाकिस्तान ने, पकड़े गए इंडियन एयर फोर्स के पायलट (अभिनंदन वर्तमान) को, जिसे वो ‘चूज़ा’ समझता है. चाय की प्याली पेश की. ये सब राई को पहाड़ बनाने की कोशिश थी. उसके बयान पर भारतीय क्रिकेटर्स ने भी प्रतिक्रिया दी, जिन्हें लगा कि शाहिद अफरीदी अपनी हद से आगे बढ़ गया था. लेकिन, उन्हें नहीं मालूम कि वो शानदार चाय की प्याली, पाकिस्तान में भावी प्रधानमंत्रियों को ‘चुनने’ में किस तरह इस्तेमाल की जाएगी.


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भारत को लेकर आफ़रीदी के प्यार और नफरत ने, उसे अकसर मुश्किलों में डाला है. 2016 में भारत में हुए टी-20 वर्ल्ड कप में, आफरीदी ने कहा था कि पाकिस्तान से ज़्यादा प्यार उसे भारत में मिलता है. पाकिस्तानी तो पागल ही हो गए. 2011 में इस पूर्व ऑलराउण्डर ने कहा था, कि भारतीय लोग बड़े दिल वाले नहीं हैं- भारतीय लोग ख़फ़ा हो गए.

कमज़ोर विकेट पर

सही कहें तो शाहिद अफरीदी की कश्मीर नीति ऐसी ही उतार-चढ़ाव भरी है, जैसा उसका क्रिकेट का करियर था. आधिकारिक रूप से ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ की गाड़ी में सवार होने से पहले, एक समय वो था जब शाहिद अफरीदी को लगता था, कि पाकिस्तान अपने चार सूबों को ही नहीं संभाल सकता, कश्मीर का क्या करेगा. लेकिन फिर, समय बदल जाता है और उसके साथ ही तमन्नाएं भी.

यहां पर क्या चल रहा है? क्या वो लोग शाहिद अफरीदी को सियासी शतरंज के एक और प्यादे के तौर पर तैयार कर रहे हैं, जो अस्ल में देश को चलाते हैं? ऐसे देश में ये बिल्कुल भी असामान्य नहीं है, जहां अतीत में तमाम सियासी पार्टियां फौज़ी नर्सरी से निकल कर आई हैं, और उनमें से कुछ सत्ता के शिखर तक पहुंची हैं. लेकिन, शाहिद अफरीदी पाकिस्तान के असली शासकों को गधे और घोड़े समझता है, जिन्हें इंसान के बच्चे बनाने की ज़रूरत है.

तो चयनकर्ताओं को अफरीदी में ऐसा क्या नज़र आता है, जो उन्हें ख़ान में नहीं दिखा? एक और माउथपीस, या उससे कुछ ज़्यादा?

अफरीदी ने अपने सियासी करियर की शुरूआत ‘मानव अधिकारों के उल्लंघन’ के खिलाफ आवाज़ उठाकर की होगी, लेकिन ये मुद्दा उसकी हद से आगे का है. जब उसका दिल कश्मीर के लिए रोता है, तो हम सोचते हैं कि एक पश्तून होने के नाते, उसके दिल में अपने लोगों का दर्द क्यों नहीं है. अत्याचार, हिंसा, और गुमशुदगियों की मार झेल रहे पश्तून मर्द, औरतें और बच्चे, पश्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट के बैनर तले, इंसाफ के लिए लड़ रहे हैं. क्या हम अफरीदी को ऐसे किसी कॉज़ के लिए खड़ा होते देखते हैं, जो अस्ल में उनकी पहुंच में हैं?

अफरीदी जब कश्मीर जाता है, तब क्या उस इलाक़े में विकास न होने को लेकर कभी आवाज़ उठाता है? ऐसे मुद्दे उठाने से शायद उसे वो अंतर्राष्ट्रीय तवज्जो नहीं मिलेगी, जो प्रधानमंत्री पद के इस अभिलाषी को, ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ की दहाड़ से मिलेगी. चीन में वीग़र मुसलमानों पर ढाई जा रहीं मुसीबतों पर वो एक शब्द नहीं बोल सकता और अगर बोलता भी, तो उसे हटा दिया जाता, क्योंकि वो पाकिस्तान की कथा से मेल नहीं खाता. इसलिए एक महत्वाकांक्षी राजनेता जिन मुद्दों को उठाता है, उन्हें राज्य के विचारों से मेल खाना चाहिए.


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साफ कहें तो पहले के दिनों में इमरान ख़ान, व्यवस्था के खिलाफ़ कड़ा रुख़ रखते थे. 2000 के दशक में, संघ शासित क़बाइली इलाक़ों में सैनिक कार्रवाई, और बलूचिस्तान में अधिकारों के हनन के खिलाफ उनका विरोध, उनके सियासी करियर की एक बानगी थी. उनका सारा विरोध ख़त्म हो गया, जब सत्ता में आने के लिए, उन्होंने अपने मुद्दों का त्याग कर दिया।

अफरीदी के सियासी दिमाग़ को पढ़ना

अफरीदी की बौद्धिक क्षमता के बारे में तो बोलना ही फ़िज़ूल है. अपनी जीवनी ‘गेम चेंजर’ में उसने अपने सियासी ख़यालात (जो शायद उसके नहीं हैं) साझा किए हैं, और जनरल परवेज़ मुशर्रफ की तारीफ की है. अफरीदी ने पूर्व आर्मी चीफ़ रहील शऱीफ़ को एक ऐसा आदमी बताया जो ‘उन लोगों में थे जो किसी भी काम को अंजाम देने के लिए हर समय तैयार रहते थे.’ इसका जो भी मतलब रहा हो. उसने हमें सबसे पहले ख़बर दी, कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा क्रिकेट का विश्लेषण ‘अधिकतर कॉमेंटेटर्स और विश्लेषकों से बेहतर करते हैं.’ क्या हमें इस बात से चिंतित होना चाहिए, कि हमारे भावी प्रधानमंत्री को लगता है कि क्रिकेट विश्लेषण का काम हमारे सेना प्रमुख का है?

अफरीदी प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ को भी पसंद करते थे, ये कहने से पहले, ‘लेकिन वो (शरीफ) सियासत में अंदर-बाहर होने के दौरान कुछ सीखते नहीं हैं. हाल ही में सोशल मीडिया को लेकर उनका नज़रिया तबाही लाने वाला और पाकिस्तान को बांटने वाला रहा है और ज़ाहिर है इस सब के बीच अफरीदी ने, इधर उधर हुईं कुछ बग़ावतों के बारे में नहीं सुना होगा, जो बिल्कुल तबाही नहीं लाईं.

अफरीदी के राज में पाकिस्तान वैसा नहीं होगा, जैसा अब है, लेकिन अगर आपको ऐसा नहीं लगता, तब आप एक नफरत करने वाले हैं. इन उम्मीदों के बीच, कि उसकी बायोपिक टॉम क्रूज़ और आमिर ख़ान के साथ बनेगी, और प्रधानमंत्री बनने के बाद बेरोज़गारी ख़त्म करने के लिए, मैनिफोस्टो में योजना बनेगी, ये आकांक्षाएं वास्तविक हैं. मुखौटा उतर जाना चाहिए और हमारे चहेते लाला को अपनी सियासी पार्टी का ऐलान करना चाहिए और दुनिया को बताना चाहिए कि वो पाकिस्तान में अगले आम चुनाव में हिस्सा ले रहा है. या इंतज़ार करे, अगर वो अभी भी 16 साल का है, तो हमें संविधान को बदलना होगा. बहरहाल, हमारा अगला वज़ीरे आज़म हसीन होगा और ‘16’ का होगा.

फारसी में कहा जाता है: यक न शुद दू शुद. एक ही परेशानी कम नहीं थी, एक और आ गई. 1992 का विश्व कप विजेता पीएम की गद्दी पर है, और 2009 टी-20 वर्ल्ड कप का विजेता अगली क़तार में है और हम बस शुरू हो रहे हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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