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Friday, 22 November, 2024
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लॉकर और घर में रखा सोना बेच डालिए, आपकी चांदी हो जाएगी

सोने की कीमतों का मुद्रास्फीति और बैंक ब्याज दरों से सीधा संबंध है. ऐसे समय में जब मुद्रास्फीति की दर ब्याज दरों से ऊपर चली जाती हैं तो निवेशकों का ध्यान सोने पर जाता है जो उस समय बेहतर रिटर्न देता है.

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इस समय सारी दुनिया कोरोनावायरस की चपेट में है और करोड़ों लोगों का रोजगार छिन गया है, आमदनी का कोई साधन नहीं दिख रहा है. ऐसे में ज्यादा लोन लेना भी खतरे से खाली नहीं है क्योंकि उसके ब्याज के भार से आने वाले समय में तमाम तरह की कठिनाइयां पैदा होंगी. लेकिन ऐसे में एक आसान तरीके से कमाई हो सकती है और वह है सोना बेचना.

आज भारत में लोगों के घरों में या लॉकरों में लगभग 25 हजार टन सोना निष्क्रिय पड़ा हुआ है. यह वह बहुमूल्य धातु है जिसका गहने बनाने के अलावा कोई खास उपयोग नहीं है लेकिन इसकी कीमतें हैं कि इस समय आसमान छू रही हैं. और इस कारण ही यह संकट मोचक बन गया है.

सोने की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाइयों पर हैं और यह कयास भी लगाए जाने लगे कि सोना इस बार दीवाली तक पौन लाख रुपए प्रति दस ग्राम पर चला जाएगा. हालांकि फिलहाल इसकी बढ़ती कीमतों में विराम लग गया है लेकिन गिरावट का कोई बड़ा रुख नहीं दिख रहा है. दो महीने पहले यह 55,000 रुपए प्रति दस ग्राम की सीमा रेखा को पार कर गया था लेकिन अभी यह 53 हजार के आसपास है. इसने अपनी एक पोजीशन बना ली है और अब अगले मौके का इसे इंतज़ार है. उसके बाद यह अपनी चमक फिर दिखा भी सकता है.


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सोना क्यों इन ऊंचाइयों पर पहुंचा

सोने में तेजी ईरान-अमेरिका तनाव और उसके बाद अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण आई. जब भी दुनिया में अनिश्चितता की स्थिति आती है तो सोने की कीमतों में तेजी आती है. यह हजारों सालों से होता चला आ रहा है क्योंकि सोना अनिश्चितता के दिनों में भरोसे का साथी है. पिछले साल इसकी कीमतों में लगभग 20 प्रतिशत की तेजी आई थी तो इस साल इसमें 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी आ चुकी है और यह तेजी से हर दिन बढ़ता ही जा रहा है.

विदेशी बाज़ारों में उसने 2000 डॉलर प्रति औंस की लक्ष्मण रेखा लांघ ली तो भारत के बाज़ारों में उसने 55 हजार रुपए प्रति दस ग्राम की सीमा पार कर ली. उसकी तेजी ने सभी विशेषज्ञों और कारोबारियों को हैरान कर दिया. इस तरह से यह सबसे ज्यादा रिटर्न देना वाला एसेट बन गया है. न तो रियल एस्टेट ने और न ही किसी और वित्तीय माध्यम (इंस्ट्रूंंमेंट) ने इतनी तेजी से इतना रिटर्न दिया न ही आने वाले समय में दे सकता है. और जब इतना रिटर्न मिल रहा हो तो फायदा क्यों नहीं उठाया जाए? जी हां, बेहतर है कि अपना जमा और एक सीमा से ज्यादा सोना बेच डालिए.

हर तरह के इमोशन से बाहर निकल कर सोना बेचने का यही सुनहरा मौका है. इतना प्रॉफिट मार्जिन कभी नहीं मिलेगा क्योंकि इस बात के पूरे आसार है कि सोना अगले साल अपनी यह चमक खोने लगेगा और इसके पीछे ठोस कारण हैं.

सोने की कीमतें कब गिरेंगी?

सोना अभी कुछ दिनों तक और ऊपर जा सकता है क्योंकि इंटरनेशनल सटोरिये अभी भी इस पर ध्यान लगाए बैठे हैं. यहां यह बताना जरूरी है कि सोने के दाम भारत में मांग बढ़ने से नहीं बढ़ते बल्कि इंटरनेशनल प्लेयर ही इसे उठाते-चढ़ाते हैं. इस समय भी यही हालात हैं. अरबपति जॉर्ज सोरोस, वारेन बफे, जेफरी गनलाक, रे डेलियो, जॉन पॉलसन, पॉल ट्यूडर वगैरह सोने में पैसा लगातार लगा रहे थे जिससे इसकी तेजी को बल मिला. इसके पीछे इनका हाथ तो था ही लेकिन परिस्थितियां भी ऐसी बनीं कि सोना चढ़ता ही गया. आइए देखें कुछ कारणों को.

कोरानावायरस की चपेट में आकर सारी अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ती जा रही हैं. कई देश तो कंगाली के कगार पर खड़े हो गए हैं. ऐसे में सोना संकट से निबटने का सबसे बड़ा माध्यम दिख रहा है. दूसरा बड़ा कारण रहा है कि अमेरिका सहित विकसित देशों में बैंकों की ब्याज दरें शून्य हो गई हैं तथा सरकारी बांडों से रिटर्न गायब हो गया है. ऐसे में वहां के लोग बड़े पैमाने पर सोना खरीद रहे हैं और आगे चलकर मुनाफा कमाने की फिराक में हैं.

दो महीने पहले के एक सर्वे के मुताबिक 15 प्रतिशत अमेरिकी कुछ सोना खरीद चुके हैं और कुल 25 प्रतिशत खरीदने की तैयारी में है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अमेरिका में भारत की तरह गहने पहनने रिवाज नहीं है. यहां स्वर्णाभूषण सदियों से महिलाओं की सुंदरता बढ़ाने का माध्यम रहे हैं. लेकिन वहां सोना उनके लिए महज एक कमोडिटी है जो बेचने-खरीदने के काम आता है. ज़ाहिर है जब इतने बड़े पैमाने पर सोने की खरीद होगी तो इसकी कीमतें भी बढ़ेंगी.

सोने की कीमतों का मुद्रास्फीति और बैंक ब्याज दरों से सीधा संबंध है. ऐसे समय में जब मुद्रास्फीति की दर ब्याज दरों से ऊपर चली जाती हैं तो निवेशकों का ध्यान सोने पर जाता है जो उस समय बेहतर रिटर्न देता है. अमेरिकी केन्द्रीय बैंक ने 2019 में ही यह संकेत दे दिया था कि वह ब्याज दरें नहीं बढ़ाएगा तो यह तय हो गया था कि सोने के दाम बढ़ेंगे. इस समय जब सारी दुनिया के देश इस महामारी से लड़ने के लिए आर्थिक राहत पैकेज दे रहे हैं और मुद्रा की आपूर्ति बेहिसाब बढ़ गई है तो ज़ाहिर है कि मुद्रास्फीति बढ़ेगी और कई देशों में यह बढ़ भी रही है. ऐसे में सोना एक बेहतर विकल्प के रूप में दिख रहा है. ऐसे में बड़े सटोरिये अरबों डॉलर का सोना खरीद रहे हैं जिससे इसकी कीमतें अनाप-शनाप ढंग से बढ़ती जा रही हैं. लेकिन यह प्रवृति हमेशा नहीं बनी रहेगी. सटोरिये जब कुछ खरीदते हैं तो ज़ाहिर है मुनाफा कमाने के लिए ही खरीदते हैं और जब कीमतें उनके टारगेट पर आ जाती हैं तो वे बेचकर निकल जाते हैं.


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एक और बड़ा कारण यह भी दिखता है कि विकसित देशों के बाज़ारों में शेयरों की कीमतें पिछले दिनों काफी बढ़ गई हैं और वे सामान्य से ज्यादा महंगे हो गए हैं. ऐसे में निवेशक वहां पैसा लगाने से झिझक रहे हैं. विश्व में अशांति के हालात में उनके लिए इस तरह का कदम उठाना जोखिम भरा है. इसलिए वे सोने की ओर खिंचे चले आ रहे हैं ताकि किसी तरह का जोखिम न हो. दूसरी ओर अमेरिकी मुद्रा डॉलर अन्य बड़ी मुद्राओं के मुकाबले कमज़ोर पड़ती जा रही थी जिससे वहां निवेशकों ने सोने में पैसा लगाया. लेकिन जैसे-जैसे डॉलर मजबूत होता जाएगा, सोना की कीमतें कुछ गिरेंगी. वैसे भारत में इसके विपरीत है क्योंकि हम यहां लगभग सारा सोना आयात करते हैं.

सोने की कीमतें इन ऊंचाइयों पर रहने वाली नहीं हैं

लेकिन सच्चाई यह है कि सोने की कीमतें हमेशा इन्हीं ऊंचाइयों पर नहीं रहने वाली हैं. उतार-चढ़ाव एक आर्थिक प्रक्रिया है और इससे कोई भी नहीं बच पाता है. सोने को ही लीजिये 1970 में अमेरिकी आर्थिक संकट के दौरान इसकी कीमतें पांच गुनी बढ़ीं और कई वर्षों तक इसमें तेजी आती रही लेकिन उसके बाद यह लगभग अपने पुराने स्तर पर आ गया था. 2008 के विश्व आर्थिक संकट में यह तेजी से बढ़ा लेकिन 2011 आते-आते फिर ठंडा पड़ गया. और इसलिए यह तय है कि सोना भी गिरेगा लेकिन कब, यह कोई नहीं जानता है.

यह कहना कि कोराना वायरस के टीके के बाज़ार में आने के बाद इसकी कीमतों में गिरावट होगी, कुछ हद तक सही लगता है क्योंकि यह भी कच्चे तेल या अन्य धातुओं की तरह एक कमोडिटी है लेकिन इसका इस्तेमाल आम जिंदगी में बहुत ही सीमित है. टीके के आने से कोरानावायरस पर प्रभावी नियंत्रण होना शुरू हो जाएगा और आर्थिक गतिविधियां तेज हो जाएंगी. यह बात उस दिन देखने में आई जब रूस ने कोरोनावायरस के अपने टीके स्पुतनिक को बाज़ार में उतारने की घोषणा की और सोने के दाम 9 प्रतिशत तक गिर गए लेकिन उसके बाद यह फिर से बढ़ने लगा है. भारत में सोना और भी महंगा है क्योंकि यहां इस पर 13 प्रतिशत टैक्स है. और इसके बावजूद हमारा देश सोना आयात करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है.

बहरहाल इस दीवाली सोना खरीदने की बजाय बेचने के बारे में सोचिए. फिर अगले साल जब इसकी कीमतें तेजी से घटने लगें तो फिऱ खरीद लीजिए. सोने को भी शेयरों की तरह खरीदने-बेचने की आदत डालिए. यकीन मानिए इसमें भी खासा मुनाफा है क्योंकि अगर आपने दो साल पहले भी सोना खरीदा होगा तो उसकी कीमत उस समय 31-32 हजार रुपए प्रति दस ग्राम से ज्यादा नहीं रही होगी. यानी हर दस ग्राम में बीस हजार रुपए से भी ज्यादा का फायदा.


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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं.)

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