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Thursday, 25 April, 2024
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धर्मनिरपेक्षता और फासीवाद की बहस से आगे सीएए ने भारत के पुराने विचारों की पुनर्कल्पना का अवसर दिया है

सीएए-विरोधी आंदोलन का हश्र कोई नहीं जानता. लेकिन नए भारत और न्यायसंगत भारत के बीच वैचारिक संघर्ष आगे भी चलता रहेगा.

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विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून भविष्य के भारत की दो अलग-अलग अवधारणाओं की अभिव्यक्ति के लिए एक संदर्भ बिंदु बन चुका है. फिर भी, बौद्धिक आलस्य के चलते सांप्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद-फासीवाद जैसे पुराने द्वैत पर ज़ोर दिया जाना बंद नहीं हुआ है.

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर बहस ने भारत की अवधारणा संबंधी पुराने सिद्धांतों पर पुनर्विचार का एक अभिनव अवसर प्रदान किया है. समय आ गया है कि हम वर्तमान भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को स्पष्ट करने वाले विचारों पर मनन करें.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का नेतृत्व अपने हिंदुत्व प्रेरित आक्रामक राष्ट्रवाद को पुनर्परिभाषित करने के लिए नागरिकता के मुद्दे का इस्तेमाल करना चाहता है. इसके विपरीत, सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारी भारतीय गणतंत्रवाद की सच्ची भावना पर अधिकार जताने के लिए इस कानून का विरोध कर रहे हैं.

इन परस्पर विरोधी दावों से राजनीतिक विचारों का एक नया संघर्ष शुरू होता है.

नए भारत के विचार को आधिकारिक तौर पर पेश किया गया है, जोकि सीएए की वैचारिक बुनियाद है. दूसरी ओर, भारत के स्वधर्म का एक उतना ही प्रभावशाली विचार है जो हमारी राजनीतिक संस्कृति में एक बुनियादी रद्दोबदल का प्रस्ताव करता है.

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एक शासनीय ‘नया भारत’

हमें इस बात को याद रखना चाहिए कि नया भारत एक राजनीतिक चाल भर नहीं है, बल्कि यह एक पूर्ण विकसित वैचारिक रूपरेखा है जिसे भाजपा ने 2018 में अपने राजनीतिक सिद्धांत के तौर पर अपनाया था.

नरेंद्र मोदी की आधिकारिक वेबसाइट ‘नए भारत’ की तीन विशेषताओं को रेखांकित करती है: नवाचार, कड़ी मेहनत और रचनात्मकता से संचालित राष्ट्र, शांति, एकता, और भाईचारे की विशेषता वाला राष्ट्र तथा भ्रष्टाचार, आतंकवाद, काले धन और गंदगी से मुक्त देश.

इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए मोदी की वेबसाइट भारतीय नागरिकों से एक आठ-सूत्री शपथ लेने के लिए कहती है. इनमें से दो बिंदु बहुत दिलचस्प हैं- ‘मैं एक सुगम्य भारत के लिए अपना पूर्ण समर्थन देता हूं’, और ‘मैं नौकरी देने वाला बनूंगा, न कि नौकरी ढूंढने वाला’.

अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन पर ज़ोर देते हुए, नागरिकों से मोदी सरकार को तहेदिल से समर्थन देने के लिए कहा गया है ताकि एक ‘सुगम्य भारत’ बनाया जा सके. दूसरी ओर, एक मौलिक अधिकार के रूप में रोज़गार की मांग को दृढ़ता से हतोत्साहित किया गया है. भारतीय नागरिकों को स्पष्ट रूप से बताया गया है कि रोज़गार सृजन सरकार का काम नहीं है, इसलिए उन्हें इसे अपना अधिकार नहीं मानना चाहिए.


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‘नए भारत’ में, सरकार खुद को राजनीतिक क्षेत्र में नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च एजेंसी तो बताती है, लेकिन वो खुद को आर्थिक दायरे से दूर रखती है और नौकरी देने की कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है. मोदी के लिए ‘नया भारत’ ‘उत्तरदायी लोगों और उत्तरदायी सरकार का युग है.’

‘चुनिंदा जवाबदेही’ का ये रवैया अनुच्छेद 370 की समाप्ति को सही ठहराने तथा कथित ‘ऐतिहासिक भूलों’ को को ठीक करने के नाम पर एक आक्रामक सीएए अभियान चलाने के लिए भाजपा को वैचारिक वैधता प्रदान करता है. साथ ही, यह प्रारूप उन्हें सीएए-विरोध को गैर-जिम्मेदारी वाली कवायद के रूप में खारिज करने के लिए भी अधिकृत करता है.

भारत का स्वधर्म

‘नए भारत’ की सर्वाधिक तार्किक आलोचनाओं में से एक स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने की है. भारत के स्वधर्म की उनकी अवधारणा न केवल सीएए-विरोधी प्रदर्शनों को एक सैद्धांतिक सामंजस्य प्रदान करती है बल्कि यह भी बताती है कि लोकतंत्र के भारतीय अनुभवों ने इसे रोज़मर्रा की संस्कृति में बदल दिया है.

यादव की स्वधर्म की परिकल्पना उस गौरवशाली भारतीय सभ्यता के बारे में नहीं है जिसे जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में फिर से खोजने का लक्ष्य रखा था; न ही यादव इसे संवैधानिक आदर्शों तक सीमित रखते हैं, जिन्हें कि हर समस्या के समाधान के रूप में देखा जाता है. इसके बजाय, वह भारत के स्वधर्म को भारत के ईमान के रूप में परिभाषित करता है– एक ऐसा तत्व जो 1950 के बाद के दौर में हमारे लोकतांत्रिक अनुभवों की विशिष्टता को दर्शाता है.

स्वधर्म लोकतंत्र, विविधता और विकास के प्रसिद्ध पश्चिमी राजनीतिक आदर्शों को भारतीय संदर्भ में नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश करता है. यादव के अनुसार भारत ने दुनिया को यकीन दिला दिया है कि बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों और औपचारिक शिक्षा के अभाव की स्थिति में भी लोकतंत्र का अनुपालन किया जा सकता है.

ये बात विविधता पर भी लागू होती है. यादव के अनुसार विविधता की भारतीय अवधारणा सांस्कृतिक/धार्मिक विभेदों पर ज़ोर देने की नहीं, बल्कि ‘बुनियादी रूप से भिन्न तौर-तरीकों की स्वीकार्यता’ की है.

विकास की अवधारणा को भी पुनर्परिभाषित किया गया है जोकि जीडीपी विकास दर या प्रति व्यक्ति आय तक सीमित नहीं है. योगेंद्र यादव के अनुसार, ‘आखिरी व्यक्ति के बारे में सबसे पहले सोचने का विचार, विकास की अवधारणा में हमारा विशिष्ट योगदान है’ – जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था.

न्यायसंगत भारत

स्वधर्म को ‘नए भारत’ की मोदी की अवधारणा को खारिज करने के लिए एक राजनीतिक-नैतिक सिद्धांत के रूप में स्थापित किया गया है. इसकी नज़र में सीएए और अनुच्छेद 370 का उन्मूलन विविधता की भारतीय अवधारणाओं के खिलाफ जाते हैं. इसी तरह इसके तहत आर्थिक क्षेत्र में मोदी सरकार के सुस्त और गैर-जिम्मेदाराना रवैये को राजनीतिक विश्वासघात के रूप में देखा जाता है.


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इसका रचनात्मक प्रस्ताव सीएए-विरोधी आंदोलन को भारत जोड़ो आंदोलन में बदलने का है, जिसमें नागरिकता के मुद्दे को किसानों के आंदोलन, राष्ट्रीय बेरोजगार रजिस्टर (एनआरयू) की मांग जैसे वर्तमान में जारी अन्य संघर्षों से जोड़े जाने का प्रस्ताव है. यह हमें शाहीन बाग पर केंद्रित क्रिया-प्रतिक्रिया की राजनीति से आगे ले जाता है.

यह स्पष्ट है कि मोदी के नए भारत का उद्देश्य आज्ञाकारी, अनुशासित और शासनीय नागरिक तैयार करना है. यह संविधान की शक्ति-केंद्रित व्याख्या और हिंदुत्व प्रेरित राष्ट्रवाद पर निर्भर करता है. स्वधर्म के भारत का विचार न केवल नैतिक-राजनीतिक आधार पर नए भारत को अस्वीकार करता है, बल्कि यह एक न्यायसंगत भारत की विश्वसनीय अवधारणा के लिए एक मानवीय, समावेशी और सहभागी दृष्टिकोण भी पेश करता है.

सीएए-विरोधी आंदोलन का हश्र कोई नहीं जानता. लेकिन नए भारत और न्यायसंगत भारत के बीच वैचारिक संघर्ष आगे भी चलता रहेगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक नॉट इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़, फ्रांस में अध्येता (2019-20) और सीएसडीएस, नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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