तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस ने कई पत्रकारों के घरों पर छापेमारी की थी और कई को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था. डिजिटल वेबसाइट न्यूज़क्लिक के फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ को आतंकवाद रोधी यूएपीए के तहत, कथित तौर पर धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
लगभग तीन हफ्ते पहले विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) द्वारा 14 टेलीविजन न्यूज़ एंकरों का ‘बहिष्कार’ किया गया था. उस वक्त कांग्रेस मीडिया विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने कहा था, “हर दिन शाम 5 बजे कुछ चैनलों पर नफरत का बाज़ार सजता है. ऐसा पिछले नौ साल से हो रहा है. अलग-अलग पार्टियों के प्रवक्ता उन बाज़ारों में जाते हैं…लेकिन हम सब नफरत के उस बाज़ार के ग्राहक बनकर जाते हैं.”
यहां राजनीतिक प्रतिष्ठान द्वारा मीडिया पर हमलों के दो उदाहरण हैं – एक सत्तारूढ़ बीजेपी-एनडीए सरकार द्वारा, दूसरा 28 विपक्षी दलों द्वारा. हालांकि, हम मीडिया को डराने-धमकाने की कोशिश करने वाले नेताओं की आलोचना करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हमने अपने ही घर को आग लगाने में मदद की है.
नेता हम पर हमला करते हैं और हम पत्रकारिता को आग की लपटों में घिरते हुए देखते हैं — हम उसे बुझाते नहीं हैं.
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बंटी हुई इंडस्ट्री
भारतीय मीडिया आज पूरी तरह से बंटा हुआ है, जिससे सरकारों और नेताओं के लिए आगे बढ़ना और हमें विभाजित करना आसान हो गया है. काश, मीडिया एकजुट होता, उसे दबाने की इन कोशिशों के खिलाफ मजबूती से खड़ा होता…आह, काश.
वैसे भी कुछ पत्रकारों या मीडिया संगठनों ने कुछ टीवी एंकरों पर विपक्ष के ‘प्रतिबंध’ की आलोचना की और अब तक, न्यूज़क्लिक के कवरेज ने बस यही दर्शाया है कि हम कितने बुरी तरह से बंटे हुए हैं.
यह डिविजन प्रिंट और टीवी तक फैला हुआ है. यहां सब कुछ कहती हैं:हेडलाइन्स
टाइम्स नाउ ने कहा, ‘‘न्यूज़क्लिक 0’, ‘चीन के वास्ते लिए निर्देश’, लगभग उसी समय द टाइम्स ऑफ इंडिया ऑनलाइन ने कहा, ‘‘दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक के दफ्तर, पत्रकारों पर छापा मारा’’.
इंडिया टुडे टीवी ने घोषणा की, ‘‘न्यूज़क्लिक से जुड़े 30 से अधिक स्थानों पर छापे मारे गए’’, ‘‘भारत में चीनी कठपुतलियां’’, हिंदुस्तान टाइम्स ऑनलाइन ने मंगलवार को कहा, ‘‘न्यूज़क्लिक पर छापा मारा गया, जिसमें 6 पत्रकारों के घर भी शामिल हैं.’’
जबकि बुधवार की सुबह मुख्यधारा के अखबारों ने सीधे बल्ले से कहानी चलाई, समाचार चैनलों ने बार-बार चाइनामैन को बोल्ड किया. यह हमेशा वो कोण होता है जो टीवी समाचार पर मायने रखता है.
उदाहरण के लिए टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘‘न्यूज़क्लिक से जुड़े 100 स्थानों पर छापेमारी की फाउंडर को गिरफ्तार किया’’ के साथ नेतृत्व किया और इसके बाद दिल्ली पुलिस, केंद्र सरकार, विपक्ष, कुछ पत्रकारों से पूछताछ की गई और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया पत्रकार निकायों जैसे दृष्टिकोण पर चार खबरें दीं.
अब, एक आदर्श मीडिया जगत में टाइम्स नाउ ने भी ऐसा ही किया होगा, लेकिन नहीं, हालांकि इसने सभी विचारधाराओं के नेताओं का ज़िक्र किया, लेकिन इसने दिल्ली पुलिस की “प्रश्नावली” की डिटेल्स देने का एक मुद्दा उठाया. जो वेबसाइट और इसके योगदानकर्ताओं को चीन द्वारा ‘ट्रेनिंग’, ‘प्रायोजित’ किया जा रहा था – साथ ही शाहीन बाग जैसे विरोध प्रदर्शनों पर भी चर्चा हुई थी.
मंगलवार को रात 9 बजे की बहस में एंकर नाविका कुमार — जो कि INDIA दल की ओर से भेजी गई 14 प्रतिबंधित पत्रकारों की लिस्ट में शामिल हैं — ने एक बार फिर संभावित “चीन समर्थक प्रचार” पर जोर दिया. चैनल ने इसे एक बॉलीवुड फिल्म से शीर्षक उधार लेते हुए कहा — न्यूज़क्लिक का ‘चाइना गेट’.
उन्होंने कथित ई-मेल का हवाला दिया, जिसमें चीन द्वारा कोविड महामारी से निपटने की प्रशंसा भी शामिल थी.
हिंदुस्तान टाइम्स ने बुधवार को अपनी बिग रिपोर्ट ‘‘न्यूज़क्लिक के संस्थापक सहित दो पत्रकारों पर छापा मारा’’ में चीन का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं किया. एचटी ने कहा, इसके बजाय इसने द न्यूयॉर्क टाइम्स की स्टोरी का इस्तेमाल किया जिसमें आरोप लगाया गया कि समाचार पोर्टल को “चीनी प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए” चीन से फंडिंग मिली थी. बाकी स्रोत डिटेल्स के साथ, अखबार ने बताया कि वेबसाइट ने “एक इलेक्ट्रीशियन को 155 करोड़ रुपये का भुगतान किया” — एक स्टोरी जिसे इंडिया टुडे ने भी बुधवार को दिखाया था.
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संतुलन का काम
सीएनएन न्यूज़18 पर स्विच करें और देखें कि इसके बाद शीर्षक रहस्योद्घाटन हुआ है कि ‘‘न्यूज़क्लिक कर्मचारी येचुरी के आवास पर रुका था’’, जिससे ऐसा लग रहा था जैसे वो उनके घर में मेहमान था. रिपब्लिक टीवी पर एक इंटरव्यू में येचुरी ने खुलासा किया कि उस व्यक्ति के पिता घर में कार्यरत थे — अखबारों ने इसका बहुत अच्छे प्रिंट में उल्लेख किया है, अगर ऐसा हुआ भी है. टीवी और प्रिंट मीडिया के बीच यही अंतर है.
चैनल ने विपक्ष का भी इंटरव्यू लिया जिसने पुलिस कार्रवाई को “विच हंट” कहा — जैसा कि अन्य अंग्रेज़ी समाचार चैनलों ने किया था. इसने हमें बताया कि न्यूज़क्लिक पर “शत्रुता को बढ़ावा देने” का भी आरोप लगाया था — बिना कोई और जानकारी दिए.
शाम को इस मुद्दे पर दो बहसें हुईं: पहली टाइम्स नाउ पर राहुल शिवशंकर के साथ. अपने नए शो ‘हार्ड फैक्ट्स’में असामान्य रूप से दबे हुए एंकर ने कहा कि आरोप “बहुत, बहुत गंभीर” थे, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि हमें “इस कार्रवाई के बारे में जानकारी को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए” क्योंकि मीडिया के खिलाफ कोई भी कार्रवाई “मंद दृष्टि” से की जानी चाहिए.
जैसा कि उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से दावा किया और हमें सरकार का दृष्टिकोण बताया कि न्यूज़क्लिक की गतिविधियां भारत की संप्रभुता के खिलाफ थीं.
वैसे, जैसा कि इंडिया टुडे की एंकर प्रीति चौधरी ने अपने शो ‘टू द प्वाइंट’ में बताया, एंकरों को न्यूज़क्लिक के खिलाफ मामले का समर्थन करने के लिए NYT का हवाला देते हुए सुनना “अजीब” है, जबकि उनमें से कई ने पहले अमेरिकी अखबार को बदनाम किया था.
शिवशंकर ने प्रेस को दबाने के लिए कांग्रेस और यूपीए जैसी पिछली सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों का ज़िक्र दिया — लेकिन वर्तमान बीजेपी सरकार के किसी भी उदाहरण को छोड़ दिया. उन्होंने कहा, “इस मामले में सभी पार्टियां दोषी हैं”.
एंकर ज़क्का जैकब ने एक ही बात कही —“सभी पार्टियां ऐसा करती हैं” जैसे कि उसने दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को उचित ठहराया हो. उन्होंने 14 एंकरों के बहिष्कार की ओर इशारा किया और आश्चर्य जताया कि क्या पत्रकार जांच से ऊपर हैं. अतिथि वक्ता नलिन मेहता का सबसे संतुलित दृष्टिकोण था: “… (इसका) एक भयावह प्रभाव है…,” उन्होंने कहा कि यह सरकार की आलोचना को हतोत्साहित करता है.
इंडियन एक्सप्रेस के पास न्यूज़क्लिक पर सभी दृष्टिकोणों के साथ दो बड़ी खबरें थीं और समाचार वेबसाइट पर लागू यूएपीए अनुभागों पर एक विस्तृत ऑपिनियन था. जो एक सवाल पैदा करता है: हमने इस मामले में यूएपीए लागू होने और दिल्ली पुलिस द्वारा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती पर अधिक चर्चा क्यों नहीं देखी? क्या मीडिया को इन कृत्यों पर सवाल नहीं उठाना चाहिए?
द हिंदू की कवरेज उसी तर्ज पर थी और भी अधिक सीधा: “दिल्ली पुलिस ने…न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक के फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ और इसके एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को एक कथित आतंकी मामले में गिरफ्तार कर लिया,” इस खबर का शुरुआती वाक्य पढ़ें. यहां तक कि कोई शासक भी इससे अधिक सीधा नहीं हो सकता.
अगर हम मजबूत राय की तलाश में हैं, तो यह इंडिया टुडे के एंकर राजदीप सरदेसाई से आई है. ‘टू द प्वाइंट’ पर उन्होंने कहा कि इस कार्रवाई से “गलत संदेश” गया, “बहुत खतरनाक मिसाल” कायम हुई – पत्रकारों द्वारा किसी भी “प्रत्यक्ष संलिप्तता” का कोई सबूत दिए बिना.
अगर हमने रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी का उल्लेख नहीं किया है, तो इसका कारण यह है कि आप जानते हैं कि उन्होंने “लुटियंस मीडिया…” के खिलाफ रोष जताया था, लेकिन उन्होंने खुद के लिए जो आपत्तिजनक भाषा के उच्च मानक स्थापित किए हैं, उसे देखते हुए न्यूज़क्लिक को “बेवकूफ छोटी वेबसाइट” कहना अनुचित है.
तो फिर हमारे हाथ क्या आया? एक टीवी मीडिया जो सार्वजनिक दृष्टि से खुद को चीथड़े-चीथड़े कर देता है; एक प्रिंट मीडिया जो संतुलित अवलोकन को एक साथ जोड़ने का प्रयास करता है.
(लेखिका का एक्स हैंडल @shailajabajpai है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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