scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतअहमदाबाद प्लेग के दौरान पहली बार दिखी थी सरदार पटेल की नेतृत्व क्षमता

अहमदाबाद प्लेग के दौरान पहली बार दिखी थी सरदार पटेल की नेतृत्व क्षमता

वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में पटेल को याद करना अहम है कि उन्होंने प्लेग फैलने पर किस तरह के कदम उठाए थे और किस तरह अदम्य साहस का परिचय दिया.

Text Size:

सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत नगर निगम की राजनीति से की. वह राजनीति में शौक से नहीं, बल्कि बेमन से आए थे. लेकिन अहमदाबाद नगर निगम में सदस्य और सैनिटरी कमेटी के चेयरमैन के रूप में उनके तेवरों ने उन्हें राजनीति की ओर खींचना शुरू किया. एक छोटे-से नेता के रूप में जनता की उनकी सेवा और लोगों की अपेक्षाओं ने उन्हें राजनीति में गहराई तक प्रवेश करने को मजबूर कर दिया. इसी दौरान वे महात्मा गांधी के भी संपर्क में आए.

वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में पटेल को याद करना अहम है कि उन्होंने प्लेग फैलने पर किस तरह के कदम उठाए थे और किस तरह अदम्य साहस का परिचय दिया.

अहमदाबाद में प्लेग और पटेल

दिसंबर, 1917 में अहमदाबाद में प्लेग फैल गया. स्कूल, कचहरी बंद हो गए और ढेर सारे लोग शहर छोड़कर चले गए. अहमदाबाद की उस समय ख्याति वहां के कपड़ा उद्योग के कारण थी. प्लेग के कारण कपड़ा मिलों में सन्नाटा छा गया. मजदूरों को रोकने के लिए मिलों ने अलग से प्लेग एलाउंस दिए.

पटेल उस समय गांधी के प्रभाव में आ चुके थे. उन्होंने व्यक्तिगत सुरक्षा की अनदेखी करते हुए, शहर छोड़ने से इनकार कर दिया. उस दौर के बारे में भारत के पहले लोकसभा अध्यक्ष बने जीवी मावलंकर ने लिखा है, ‘वह जाने माने चेहरे थे, जो अहमदाबाद की गलियों में घूमते थे, सीवर की सफाई कराते और प्लेग प्रभावित इलाकों में दवाओं का छिड़काव कराते थे. जब कोई मित्र उनके काम या उनकी सुरक्षा को लेकर तर्क करता था तो वह खामोशी से उसकी तरफ देखते थे.’

मावलंकर आगे लिखते हैं कि पटेल की आंखें कहती थीं, ‘मैंने स्वच्छता समिति के चेयरमैन का दायित्व लिया है और मैं कैसे सुरक्षा की मांग कर सकता हूं? अगर मैं अपने पद का दायित्व छोड़ता हूं तो यह लोगों के साथ विश्वासघात होगा. मैं कैसे बचाव में जुटे अपने सफाई कर्मचारियों को यहां प्लेग के जोखिम में छोड़कर अपनी सुरक्षा के लिए भाग सकता हूं?’ (हरिजन पत्रिका में मावलंकर, 10 फरवरी 1951)

गुजरात के अहमदाबाद सहित कई शहरों में प्लेग से हजारों लोगों की मौत हुई थी. किसान 1915 के सूखे और 1917 में आई बाढ़ से तबाह थे. उसी समय खेड़ा के किसानों पर भारी मात्रा में टैक्स लाद दिया गया था, जबकि खेड़ा जिले में ही प्लेग से 18,067 लोगों की मौत हो चुकी थी. अहमदाबाद प्लेग के दौरान पटेल की सेहत पर भी बुरा असर पड़ा. लेकिन ये पहला मौका था, जब उनकी नेतृत्व क्षमता से लोग प्रभावित हुए. प्लेग का प्रकोप जनवरी 1918 के अंत तक कम हो गया. इसके फौरन बाद खेड़ा में पटेल ने गांधी के साथ मिलकर किसानों के आंदोलन का नेतृत्व भी किया.


यह भी पढ़ें : अमित शाह सरदार पटेल से सीख सकते हैं कि दंगों को कैसे रोका जाता है


कामयाब वकील से नगर निगम तक की यात्रा

लंदन के लॉ कॉलेज मिडिल टेंपल से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे वल्लभभाई पटेल गुजरात के सबसे महंगे वकीलों में से थे. लंदन के इनर टेंपल में ही उनसे 14 साल छोटे जवाहरलाल नेहरू ने भी 1910 में बैरिस्टर की डिग्री ली थी, लेकिन यह जानकारी नहीं मिलती कि दोनों के बीच लंदन में मुलाकात हुई थी या नहीं. यहीं से मोहनदास करमचंद गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, विट्ठलभाई पटेल ने भी बैरिस्टर की डिग्रियां ली थीं.

बड़े भाई बिट्ठलभाई पटेल से वल्लभभाई का समझौता हुआ था कि वह राजनीति में नहीं आएंगे और घर परिवार का काम देखेंगे. सरदार उसी राह पर चले जा रहे थे.

इसी बीच अप्रैल 1915 में अफ्रीका में 20 साल से ज्यादा वक्त बिताकर गांधी अहमदाबाद आए. भारत वापसी के एक महीने के भीतर ही उन्हें महात्मा कहा जाने लगा, लेकिन पटेल की प्रतिक्रिया थी कि ‘हमारे पास पहले से ही तमाम महात्मा हैं. पटेल कई बार गांधी के विचारों हास्यास्पद बताकर मजाक उड़ाते थे. 1916 की गर्मियों में गांधी गुजरात क्लब में आए. उस समय पटेल ब्रिज खेल रहे थे और जीवी मावलंकर उनके टेबल के पास बैठे उनकी चाल देख रहे थे. जैसे ही मावलंकर ने गांधी को आते देखा, वह गांधी की ओर बढ़े. पटेल ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘खड़े क्यों गए? कहां जा रहे हो? अगर तुम यहां रहोगे तो बहुत कुछ सीख जाओगे. बता देता हूं कि वह क्या कहने वाला है. वह तुमसे पूछेगा कि गेहूं से कंकड़ निकालना जानते हो? और इसे वह स्वतंत्रता लाने के तरीके बताएगा.’ (पटेल- ए लाइफ, राजमोहन गांधी, पेज 33)

नगर निगम का उपचुनाव और पटेल की जीत

पटेल न तो उस समय तक गांधी से प्रभावित थे, न एनी बेसेंट के होमरूल से. अहमदाबाद म्युनिसिपलिटी को निर्देशित करने का काम आईसीएस अधिकारी जॉन सिलिडे को दिया गया था. गुजरात क्लब के बल्लभभाई के मित्र सिलिडे का विरोध कर रहे थे. उनके मित्र सर रमनभाई नीलकंठ निगम के अध्यक्ष थे और राव साहब हरिभाई प्रबंध समिति के सदस्य थे. उनको लगा कि वल्लभभाई एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जो सिलिडे के खिलाफ खड़े हो सकते हैं. मित्रों के दबाव में वल्लभभाई सिटी बोर्ड में शामिल होने को तैयार हो गए. उपचुनाव में खड़े हुए, तो जीत गए. फिर से चुनाव हुआ तो वल्लभभाई का किसी ने विरोध नहीं किया. 1917 की गर्मियों में वह न सिर्फ सिटी बोर्ड के सदस्य, बल्कि स्वच्छता समिति के चेयरमैन बन गए.

इसी दौरान अप्रैल में गांधी चंपारण में सत्याग्रह चला रहे थे. गांधी की विनम्रता से अंग्रेज अधिकारियों की नाफरमानी पटेल को लुभाने लगी थी. मावलंकर ने उसी दौरान कहा कि वह हीरो हैं, उन्हें गुजरात सभा का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए. पटेल ने तत्काल सहमति जता दी.

इधर वल्लभभाई ने सिडले के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और बोर्ड से उन्हें हटा देने को कहा. इस तरह की भाषा ब्रिटिश आईसीएस के लिए अप्रत्याशित थी. पटेल ने उनके खिलाफ म्युनिसिपल बोर्ड से प्रस्ताव पारित कराया और ब्रिटिश सरकार को उन्हें हटाना पड़ा और बाद में उस पद पर आए आईसीएस को भी पद छोडऩा पड़ा.


यह भी पढ़ें : गांधी का अहिंसा-मार्ग, कश्मीर में सेना और सरदार पटेल की मजबूरी


गोधरा में नवंबर में आयोजित गुजरात सभा की अध्यक्षता गांधी ने की और वहीं पटेल की गांधी से पहली बार प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. गांधी ने सभा में दो अप्रत्याशित कदम उठाए. पहला तो उन्होंने राजनीतिक सम्मेलन शुरू होने के पहले परंपरागत रूप से ब्रिटिश सम्राट की वफादारी में पढ़े जाने वाले परंपरागत प्रस्ताव को फाड़ डाला और कहा कि ऐसी प्रतिबद्धता ब्रिटेन में भी नहीं दिखाई जाती है. दूसरा, उन्होंने कहा कि स्वराज देश के बड़े पैमाने पर मौजूद किसानों के समर्थन पर निर्भर है. सभा में सभी वक्ताओं को उन्होंने भारतीय भाषा में बोलने को कहा. (पटेल- ए लाइफ, राजमोहन गांधी, पेज 41)

यह पहला मौका था जब सूट बूट और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले वल्लभभाई पटेल ने गांधी के आकर्षण में आकर गुजराती में अपनी बात रखी. इतना ही नहीं, गांधी के निवेदन पर राजनीति में न आने की अपनी कसम तोड़ते हुए गुजरात सभा के सेक्रेटरी के रूप में राजनीति में कदम रख दिया.

अंग्रेजीदां पटेल किस तरह से गांधी से प्रभावित हुए और जनता के साथ देश की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, इससे वर्तमान भारत के समाजसेवी और नेताओं को सीखने की जरूरत है. पटेल के व्यवहार को मूर्त रूप देकर न सिर्फ प्लेग और कोविड जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लड़ा और जीता जा सकता है, बल्कि देश को भी प्रगति के पथ पर ले जाया जा सकता है.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)

share & View comments