एशियाई-अमेरिकी मतदाताओं के बीच हुए हाल के एक सर्वे के अनुसार भारतीय मूल के मतदाता डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति के उम्मीदवार जो बाइडेन का जमकर समर्थन करते हैं. सर्वे में शामिल 65 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने कहा कि वे डोनल्ड ट्रंप के बजाय बाइडेन को वोट देंगे. साथ ही, 72 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों ने कहा कि बाइडेन के बारे में उनकी अच्छी राय है, जबकि राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में सकारात्मक राय रखने वाले मात्र 36 प्रतिशत थे. इन आंकड़ों से भारतीय-अमेरिकियों की वोटिंग प्राथमिकताओं के बारे में क्या पता चलता है?
वर्तमान में अमेरिका में करीब 1.8 मिलियन भारतीय-अमेरिकियों को वोट डालने का अधिकार है, और इनमें से बहुत से मतदाता टेक्सस, पेंसिल्वेनिया और नॉर्थ कैरोलीना जैसे कड़े मुकाबले वाले राज्यों में हैं. ताज़ा सर्वे परिणाम जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए उत्साहवर्धक है, वहीं इसमें डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भारतीय-अमेरिकियों के समर्थन में गिरावट के भी संकेत दिखे हैं. 2016 में चुनाव के बाद हुए सर्वे में भारतीय मूल के 84 प्रतिशत वोटरों के हिलेरी क्लिंटन का समर्थन करने की बात सामने आई थी. इसी तरह 2012 में भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं में से 84 प्रतिशत ने बराक ओबामा को वोट दिया था.
भारतीय मूल के मतदाताओं के रुझान में आया उपरोक्त बदलाव भारतीय मतदाताओं को लुभाने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा निरंतर किए गए प्रयासों का नतीजा है. पिछले वर्ष, ह्यूस्टन की ‘हाउडी मोदी!’ रैली में उन्होंने कहा था कि भारतीय प्रवासियों को ‘अमेरिकियों के रूप में’ देखकर उन्हें गर्व होता है. उसके बाद उन्होंने फरवरी 2020 में भारत की यात्रा की, जहां उनके लिए पूरा ताम-झाम था. राष्ट्रपति ट्रंप बीच-बीच में अपना भारत प्रेम जाहिर करते हुए ट्वीट और बयान भी जारी करते हैं, और उनकी चुनावी टीम प्रधानमंत्री मोदी के साथ ट्रंप की कथित व्यक्तिगत घनिष्ठता पर ज़ोर देती है. लेकिन, यदि वास्तविक नीतिगत प्राथमिकताओं और निर्णयों की बात की जाए तो ट्रंप प्रशासन अपने भारत प्रेम के दावे पर खरा नहीं उतरता है. जो बाइडेन-कमला हैरिस प्रशासन के पास निश्चय ही इससे बेहतर प्रदर्शन के लिए अनुभव और संकल्प होगा.
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बाइडेन-हैरिस प्रशासन के तहत भारतीय-अमेरिकियों का अधिक भला होगा
आइए भारतीय-अमेरिकियों के लिए अहम घरेलू मुद्दों पर विचार करते हैं, जो कि रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा हैं. ये मुद्दे आमतौर पर संपूर्ण अमेरिकी मतदाताओं की चिंता भी हैं. महामारी के कारण अमेरिका में बेरोज़गारी ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है. ये स्पष्ट है कि कोरोनावायरस महामारी से निपटे बिना अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं हो सकती. इसके बावजूद ट्रंप प्रशासन ने ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का काम किया, जिससे देश को भयावह परिणाम भुगतना पड़ा है. इसलिए आश्चर्य नहीं कि अधिकांश भारतीय-अमेरिकी मतदाता दोनों ही संकटों पर वास्तविक योजना के संदर्भ में संभावित बाइडेन प्रशासन पर भरोसा करते हैं.
आव्रजन नीति में भारतीय-अमेरिकियों की गहरी दिलचस्पी है. और, इस संबंध में भी भारतीयों को बाइडेन-हैरिस प्रशासन पर अधिक विश्वास है, जिसकी पर्याप्त वजहें भी हैं. अमेरिका में भारतीय मूल के करीब चार मिलियन लोग हैं. अधिकांश भारतीय हाल के वर्षों में अमेरिका आए हैं– करीब 60 प्रतिशत तो 2000 के बाद पहुंचे हैं. भारतीय प्रवासी मुख्य तौर पर काम, शिक्षा और परिवार से जुड़ने के नाम पर अमेरिका में प्रवेश करते रहे हैं. माना जाता है कि राष्ट्रपति ट्रंप उच्च दक्षता वाले प्रवासियों के पक्ष में हैं. उदाहरण के तौर पर, अगस्त में हुए रिपब्लिकन पार्टी सम्मेलन के दौरान डोनल्ड ट्रंप द्वारा व्हाइट हाउस में आयोजित नागरिकता ग्रहण समारोह को लिया जा सकता है, जिसमें वास्तव में भारतीय मूल की एक महिला भी शामिल थी. पार्टी के उस सम्मेलन में ट्रंप कैबिनेट की पूर्व सदस्य निक्की हेली ने अपनी भारतीय-अमेरिकी पृष्ठभूमि की चर्चा की थी.
लेकिन, ट्रंप प्रशासन की सचमुच की नीतियां प्रवासियों के पक्ष में नहीं दिखती हैं. उनकी नीतियों में गैर-श्वेत प्रवासियों के खिलाफ नस्ली भेदभाव की झलक दिखती है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई बार नियमों में अचानक और अस्पष्ट परिवर्तन किए गए, जिनसे भारतीय छात्रों, कामगारों और परिवारों के लिए मुश्किलें खड़ी हुईं. यदि राष्ट्रपति ट्रंप फिर से र्निर्वाचित होते हैं तो उनके प्रशासन को आव्रजन के वैध रास्तों को भी बंद करने का जनादेश प्राप्त होगा. आव्रजन नीति लंबे समय से अमेरिका में एक जटिल और कठिन मुद्दा रही है. फिर भी, अपने कार्यकाल के दौरान, ओबामा-बाइडेन प्रशासन सुव्यवस्थित सुधारों को लागू करने में सफल रहा था. और, इस संबंध में बाइडेन-हैरिस टीम द्वारा पेश नीतियों में अमेरिकी श्रमिकों की भलाई की सोच के साथ-साथ भावी प्रवासियों के प्रति व्यवस्थित और तर्कसंगत रुख भी दिखता है.
ट्रंप भारत का भी भला नहीं कर रहे
भारत-अमेरिका संबंधों की क्या स्थिति है? भले ही ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी दोस्ती के दावे करें, उनके प्रशासन ने भारत के लिए शायद ही कुछ किया है. ट्रंप ने एशिया-प्रशांत में अमेरिका की स्थिरकारी भूमिका से पीछे हटकर चीन को प्रभुत्व जमाने का मौका दिया है. यह बात भारत के हित में नहीं है. इसके विपरीत, बाइडेन ने चीनी प्रभाव को सीमित करने के लिए एक समग्र और सामरिक नीति का प्रस्ताव किया है, और इससे संबंधित प्रयासों में भारत एक अहम साझेदार होगा.
व्यापार हमेशा ही दोनों देशों के बीच एक विवादित विषय रहा है, लेकिन ओबामा-बाइडेन के कार्यकाल में दोनों देशों ने व्यापार से जुड़े अनेक मुद्दों पर प्रगति की थी, जिनमें बौद्धिक संपदा, टेक्नोलॉजी और निवेश के मुद्दे शामिल थे. इसके विपरीत ट्रंप को भारत-अमेरिका व्यापार घाटे को लेकर शिकायतें रही हैं और उन्होंने भारतीय उत्पादों पर भारी शुल्क थोपे हैं. उन्होंने भारत के साथ व्यापार समझौते का प्रस्ताव किया था लेकिन वास्तविकता में कुछ भी फलीभूत नहीं हुआ. इससे भी अधिक चिंता की बात है ट्रंप प्रशासन का भारत के साथ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन संबंधी सहयोग के क्षेत्र में ओबामा-बाइडेन प्रशासन द्वारा हासिल प्रगतियों को गंवाना. बाइडेन-हैरिस के एजेंडे में स्वच्छ ऊर्जा पर नए सिरे से ध्यान देने का वादा किया गया है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ने की संभावना है.
आखिर में, प्रतिनिधित्व मायने रखता है. बाइडेन टीम भारतीय-अमेरिकियों सहित अमेरिका की विविधता को दर्शाती है. कमला हैरिस की मां, डॉ. श्यामलन गोपालन, अमेरिका आने वाले शुरुआती प्रवासियों में से थीं और उनकी उपलब्धि दूसरों के लिए प्रेरणा का काम करती है. डॉ. विवेक मूर्ति, जो अमेरिका के पूर्व सर्जन-जनरल रहे हैं, कोरोनोवायरस पर बाइडेन के सलाहकार हैं और उन्होंने अपनी दादी के साथ बाइडेन की मुलाकात का भावपूर्ण उल्लेख किया है. कुल मिलाकर, बाइडेन की टीम अधिक समावेशी नीतियों के लिए प्रतिबद्ध है. इसके विपरीत, ट्रंप प्रशासन स्पष्ट और खासतौर से श्वेत नज़र आता है.
अमेरिका में अपने आकार और प्रभाव में वृद्धि के साथ ही भारतीय-अमेरिकी समुदाय ने विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों पर ज़ोर देना शुरू किया है. एएपीआई सर्वे में दिखे परिवर्तन इन बदलावों को परिलक्षित करते हैं, और दोनों उम्मीदवारों की चुनावी टीमों के भारतीय मतदाताओं को लुभाने के प्रयासों में भी ये ज़ाहिर होता है. हमेशा सेल्समैन की भूमिका में रहे राष्ट्रपति ट्रंप को बड़ी रैलियां के आयोजन, ट्वीट संदेशों और राजनीतिक रूप से सुविधाजनक तस्वीरें खिंचाने में महारत हासिल है. हालांकि, उनके कार्यों से यही पता चलता है कि वे वास्तव में ‘महान अमेरिकी परिवार‘ में भारतीयों का स्वागत नहीं करते हैं. जबकि बाइडेन-हैरिस प्रशासन भारतीय-अमेरिकियों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर वास्तविक नीतिगत समाधान पेश कर सकेगा.
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(लेखिका अमेरिका के वेस्टर्न वाशिंगटन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर हैं. उन्होंने भारतीयों के प्रति ट्रंप प्रशासन की आव्रजन नीति समेत प्रवासियों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर व्यापक काम किया है. उनकी किताब ‘इंडियन इमिग्रेंट वीमेन एंड वर्क: द अमेरिकन एक्सपीरियंस’ 2016 में प्रकाशित हुई थी. उनका ट्विटर हैंडल @Bee_the_Wonk है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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