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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतरूस से रियाद तक- इमरान खान का इतिहास रहा है कि वह गलत समय पर गलत जगह पर होते हैं

रूस से रियाद तक- इमरान खान का इतिहास रहा है कि वह गलत समय पर गलत जगह पर होते हैं

अगर आप चाहें तो इस सबके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को दोषी ठहरा सकते हैं. अगर उन्होंने इमरान खान के साथ बात की होती, जैसे पुतिन करते रहे हैं, तो तस्वीर पूरी तरह अलग होती.

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जब तक ऐसा हुआ नहीं था, तब तक सब कुछ एकदम ठीक चल रहा था. वो घड़ी आने से पहले जबर्दस्त उत्साह और जोश नजर आ रहा था. कल्पना और हकीकत में यही तो अंतर है. अपने ला ला लैंड में आप महाशक्तियों के मध्यस्थ बनने का गुमान कर सकते हैं या यह भ्रम पाल सकते हैं कि आप युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभा रहे हैं या जर्मनी से जापान तक अपनी सीमाएं खींच रहे हैं. लेकिन हकीकत में आपका मेजबान अपने पड़ोसी पर पूरी आक्रामकता के साथ हमला करने के बीच आपका स्वागत कर सकता है. कितनी अजीब-सी स्थिति है?

कुछ लोग तो तब उस खास पल का जश्न मनाने की प्रक्रिया में जुटे थे जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने रूस में कदम रखा, वह भी काले रंग की सलवार कमीज में. ऐसे महत्वपूर्ण पलों में हैंडसमनेस और कुछ नए रिकॉर्ड बनाने के अलावा कुछ भी ज्यादा मायने नहीं रखता, जैसे ‘दो दशक में पहली बार’, ‘गेम-चेंजर’, ‘अभूतपूर्व’ आदि-आदि. जाहिर है पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. वाकई, वो पल ऐतिहासिक हो गया क्योंकि रूस ने उसी दिन यूक्रेन के खिलाफ अपना हमला शुरू किया.


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बेहद रोमांचक समय

मॉस्को एयरपोर्ट पर पहुंचने के साथ पीएम इमरान खान ने अपनी टाइमिंग पर खुशी जताई. उन्होंने कहा, ‘बहुत ज्यादा उत्साहित हैं.’ ये ‘उत्साह’ कई गुना और बढ़ गया जब पीएम और उनके लाव-लश्कर ने खुद को वार कैपिटल में पाया. जब रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू किया तो तमाम लोगों को लगा शायद इमरान खान अपने दौरे को संक्षिप्त कर देंगे. फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वन-टू-वन मीटिंग हुई और इसके बाद इमरान खान थोड़े अफसोस में डूबे नजर आए क्योंकि वह ऐसे समय पर उनके साथ कैमरे के लिए पोज दे रहे थे जब सारी दुनिया रूस के कृत्यों की आलोचना कर रही थी. पुतिन के साथ स्पेस साझा करने का कितना रोमांचक समय था?

पाकिस्तान के लिए किसी तरह की खेमेबंदी से बाहर रहने के लिए बहुत कुछ था. लेकिन आलोचना की वजह यह नहीं है कि पाकिस्तान को रूस के साथ अपने संबंधों को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए लेकिन कूटनीतिक स्तर पर शर्मिंदगी की वजह यह है कि महीनों से यूक्रेन को लेकर बढ़ते तनाव के बीच इमरान खान क्या सो रहे थे. सरकार में बातें घुमाने में माहिर लोगों का तर्क है: प्रधानमंत्री को इसका कतई अंदाजा नहीं था कि पुतिन उनकी यात्रा के समय ही यूक्रेन पर आक्रमण कर देंगे.

ठीक है. तो अब इसे भी उस लंबी फेहरिस्त में शुमार कर लेते हैं जिसके बारे में पूरी कायनात से जुड़ी हर बात पर सबसे ज्यादा जानकारी रखने वाले और हर मसले पर जागरूक रहने वाले प्रधानमंत्री नहीं जानते थे. वैसे अगर यूक्रेन भारत का हिस्सा होता, तो शायद उन्हें सब कुछ पता होता. बाकी, खुफिया एजेंसियां किस काम के लिए हैं?

प्रधानमंत्री और उनकी पूरी टीम गई तो बहुत धूमधाम से थी लेकिन उसकी वापसी चुपचाप हुई. 2019 में अमेरिका की यात्रा से वापसी की तरह नहीं जब इमरान को लगा था कि उन्होंने 1992 का विश्व कप फिर से जीत लिया है.


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गलत समय पर और गलत जगह पर

एक साल से लगातार हमें यही बताया जा रहा है कि कैसे नया पाकिस्तान अब देशों की गुटबाजी और खेमेबंदी में भरोसा नहीं करता. अब दूसरों के लिए जंग नहीं लड़ी जा रही, किसी की बंदूक के लिए कंधा नहीं बना जा रहा है और अब और कुछ और ज्यादा कर दिखाने के लिए कहा भी नहीं जा रहा है. लेकिन राष्ट्र को लेकर नए-नए जगे इस जमीर का कोई पुरसाहाल नहीं था. जब एक तरफ से डॉलर मिलने में सूखा पड़ गया तो दूसरा रास्ता तलाशने का समय आ गया था.

हालांकि, यह कोई पहला मौका नहीं है जब पीएम खान ने खुद को गलत समय पर गलत जगह पाया है. 2018 की ही बात है, जब सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या को लेकर बवाल मचा हुआ था और इमरान खान सऊदी निवेश सम्मेलन का हिस्सा बनने रियाद की यात्रा पर पहुंच गए, जबकि दुनिया के प्रमुख नेताओं और संगठनों ने इस आयोजन का बहिष्कार किया था. उस समय उनकी राय थी कि कर्ज की सख्त जरूरत को देखते हुए पाकिस्तान खशोगी की हत्या पर सऊदी अरब की निंदा नहीं कर सकता.

रूस के मामले में बदलते घटनाक्रम और आर्थिक प्रतिबंधों को देखते हुए इमरान खान की यात्रा के दौरान पाकिस्तान ने कोई द्विपक्षीय करार नहीं किया, बहुचर्चित गैस पाइपलाइन परियोजना को तो छोड़ ही दीजिए. गैस प्रोजेक्ट इमरान खान के लिए अपने देश में गैस उत्पादन को लेकर ख्याली पुलाव पकाने जैसा लगता है, जिसमें उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान में तटों के खनन में गैस मिल सकती है और हमारा 50 साल का गैस संकट हल हो जाएगा. लेकिन, निश्चित तौर पर कराची तट पर कोई गैस भंडार नहीं खोजा गया है.

पाकिस्तान ने पिछले साल अपने गेहूं आयात का 60 प्रतिशत हिस्सा यूक्रेन से ही लिया था लेकिन संघर्ष के बाद खाद्य महंगाई बढ़ने की आशंका है. अगले 100 दिनों के भाषणों के लिए खुद को तैयार कर लीजिए— आपको शायद यही बताया जाएगा कि रूस और यूक्रेन खाद्य मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार हैं.


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चीयरलीडर्स अपनी ही धुन में मस्त

प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस यात्रा ने समर्थकों और आलोचकों के बीच ‘हमारे साथ या हमारे खिलाफ’ एक बहस को जन्म दिया है. इसे लेकर भावनाएं उबाल मार रही हैं कि इस समय रूस को लेकर क्या रुख अपनाना सबसे अच्छा है.

यात्रा के दुष्परिणामों को भी रेखांकित किया गया है— पुतिन ने इमरान खान का इस्तेमाल किया और यह मौका पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का सबब बनकर रह गया— ‘विदेशी मामलों में हम (पाक) मामू बन गए’, ‘रूस ने इमरान खान की यात्रा के ही दिन यूक्रेन पर हमला करके पाकिस्तान के साथ दशकों पुराने रिश्तों को भुनाया है. पुतिन ने खान की बेइज्जती कर दी है.’

लेकिन, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो रूसी राष्ट्रपति की तारीफ करते नहीं अघा रहे और उनके भविष्य को लेकर कुरान की आयतों तक का हवाला दे रहे हैं. उत्साह का चरम तो देखिए, ऐलान किया जा रहा है, ‘यूक्रेन में धमाका, पुतिन का रूस पर हमला.’ आखिर हो क्या रहा है? क्या उन यू-ट्यूबर्स ने नशा कर रखा है जिनका दावा है कि पुतिन-इमरान के बीच मुलाकात के दौरान एक छोटी-सी मेज दुनिया के लिए एक संकेत था कि पश्चिमी मेहमानों की तरह बड़ी मेज के दूसरे छोर पर न बैठाकर पुतिन ने यह दर्शाया है कि उनकी इमरान खान के साथ नजदीकी ज्यादा है. सरकारी चीयरलीडर्स को शायद किसी ने यह नहीं बताया कि दूसरे नेताओं और पुतिन के बीच चार मीटर की मेज तब रखी गई थी जब डीएनए चोरी के डर से उन नेताओं ने रूसी कोविड टेस्ट से इनकार कर दिया था. लेकिन कोई बात नहीं हम छोटी-टेबल कूटनीति का ही जश्न मनाएं.

अगर आप चाहें तो इस सबके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को दोषी ठहरा सकते हैं. अगर पुतिन की तरह उन्होंने भी पिछले कुछ महीनों में तीन बार इमरान खान से बात की होती तो तस्वीर शायद पूरी तरह अलग होती. लेकिन प्रशंसक तो आलोचकों के समक्ष यही दावा करेंगे कि बाइडन को अपने रुख पर पछतावा हो रहा होगा और इमरान की यात्रा अपने उद्देश्यों में सफल रही है. अपनी ही ख्याली दुनिया में खोए रहना इसी को कहते हैं.

(लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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