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Wednesday, 18 December, 2024
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आरएसएस दिल्ली के दंगों के पीछे मानती है बड़ी साज़िश, जनसांख्यिकीय बदलाव एक बड़ा कारक

आरएसएस के एक अनौपचारिक आकलन के अनुसार दिल्ली के दंगे तुष्टिकरण की नीति नहीं अपनाने वाली मोदी सरकार के हाल के कुछ फैसलों की प्रतिक्रिया में हुए हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की नज़र में दिल्ली दंगे महज नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच टकराव नहीं हैं बल्कि उसे इनके पीछे एक बड़ी साजिश की आशंका दिखती है.
उसका मानना है कि दिल्ली के कुछ इलाकों की जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव हो रहा है और वहां हिंदुओं की अल्पसंख्यकों की हैसियत रह गई है. संघ के अनुसार, भविष्य में ऐसे संघर्षों से बचने के लिए इस स्थिति को बदलना होगा.

संघ का ये भी मानना है कि दिल्ली पुलिस ने अपना काम अच्छे से किया है और उसका पूरा समर्थन किया जाना चाहिए.
आरएसएस ने अपने अनौपचारिक आकलन में पाया है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली की हिंसा, जिसमें 46 लोग जान गंवा चुके हैं, दरअसल मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों की प्रतिक्रिया में हुई है जिनमें अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जाना, तीन तलाक़ पर रोक के लिए कानून और सीएए तथा अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शामिल हैं.

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘जामिया मिलिया इस्लामिया और उसके आसपास के इलाकों में हिंसा की बात हो या शाहीन बाग़ में धरने की, कथित रूप से सीएए के खिलाफ किए जा रहे ये विरोध प्रदर्शन दरअसल कट्टर मुसलमानों के एक वर्ग की हताशा की अभिव्यक्ति है. उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत कम पड़ने का अहसास हो रहा है क्योंकि मौजूदा केंद्र सरकार तुष्टिकरण की नीति पर नहीं चलती है.’

संघ पदाधिकारी ने आगे कहा, ‘कट्टरपंथी मुसलमानों को इस बात की परेशानी हो रही है कि तमाम पार्टियों के अधिकांश नेताओं को हिंदुत्व के प्रतीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.’

आरएसएस नेता ने कहा, ‘राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित इफ़्तार पार्टियों की संख्या बड़ी तेज़ी से कम हो रही है, जबकि विभिन्न दलों के नेताओं की मंदिर यात्राएं बढ़ रही हैं. ये इस बात का संकेत है कि देश की राजनीति और नीति नियामक तंत्र में मुसलमानों को अब बराबरी का दर्जा मिलेगा, उन्हें बाकियों पर तरजीह नहीं दी जाएगी. लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों का एक वर्ग इस वास्तविकता को पचा नहीं पा रहा है और इस कारण हमें दिल्ली की सड़कों पर तबाही का मंजर देखना पड़ा है.’

‘उग्र वामपंथी-इस्लामवादी गठजोड़’

ज़मीन पर मौजूद अपने कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर आरएसएस इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मौजूदा सरकार की नीतियों पर यह प्रतिक्रिया उग्र वामपंथियों/नक्सलवादियों और कट्टर इस्लामवादियों की ‘खतरनाक’ सांठगांठ के चलते सामने आई है.

संघ का मानना है कि ‘शहरी नक्सल’ समर्थित इस्लामवादी कट्टपंथियों ने शहर के विभिन्न हिस्सों में हमलों की योजना बनाई थी. आरएसएस के आकलन में हमले उतने स्वत:स्फूर्त नहीं थे जितने कि दिख रहे थे, और हिंसा फैलाने में ‘बाहरी लोगों’ या ‘प्रवासियों’ की भी भूमिका रही है.

दिल्ली आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी, जो वास्तविक ज़मीनी स्थिति पर नज़र रखने वाली संगठन की टीम में भी शामिल हैं, ने कहा, ‘हमारे आकलन में ये एक सुनियोजित अभियान था और हिंसा भड़काने में बाहरी लोगों की बड़ी भूमिका थी.’

पदाधिकारी ने आगे कहा, ‘उन्मादियों ने जिस तरह पुलिस अधिकारियों को, खास रिहायशी इलाकों को, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को और शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाया, उससे स्पष्ट है कि हमले के लक्ष्य बहुत पहले चुन लिए गए थे. जिस तरह के हथियारों का इस्तेमाल हुआ है उससे भी जाहिर होता है कि उन्मादी कितनी तैयारी किए हुए थे.’

आरएसएस के आकलन के अनुसार ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली की आबादी की बनावट में हुआ बदलाव’ हिंसा का एक और प्रमुख कारक रहा है.

आरएसएस के एक तीसरे पदाधिकारी के अनुसार दंगे ऐसे इलाकों में हुए जहां हिंदुओं की या तो उपस्थिति नहीं है या वे अल्पसंख्यक हैं, जैसे जाफ़राबाद और सीलमपुर. संघ पदाधिकारी ने इसी के साथ सीएए-विरोधी प्रदर्शन का केंद्र रहे ओखला और जामिया का उल्लेख करते हुए कहा कि इन जगहों का जनसांख्यिक स्वरूप भी उसी तरह का है.

पदाधिकारी ने कहा, ‘वास्तव में, हम देख रहे हैं कि दिल्ली के तीन दर्जन से अधिक स्थलों में आबादी का प्रोफाइल बदल चुका है, वहां से हिंदू बाहर निकल गए…और उनकी जगह वहां मुसलमान आ गए. धीरे-धीरे ये इलाके समुदाय विशेष की बस्तियों में तब्दील हो गए जहां कट्टरपंथी तत्वों को हिंसा फैलाने के लिए उर्वर माहौल मिलता है. जब तक इस बुनियादी मुद्दे से नहीं निपटा जाता, समस्या बनी रहने वाली है.’

(लेखक इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के सीईओ हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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