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Thursday, 21 November, 2024
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ग्रामीण विकास का मॉडल देने वाले नानाजी देशमुख जिन्होंने सामाजिक कामों के लिए राजनीति छोड़ी थी

भारत की शिक्षा व्यवस्था के हालात को देखकर नानाजी बहुत चिंतित रहते थे. उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें शिक्षा के साथ संस्कारों की भी बहुलता हो.

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राष्ट्र के उत्थान के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वालों की चर्चा होते ही एक नाम हमारे सामने सबसे पहले आता है, वह है भारत रत्न नानाजी देशमुख का. नानाजी देशमुख आज भी प्रसांगिक हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण सामाजिक जीवन में नैतिकता और राष्ट्र सेवा के लिए संकल्पबद्ध होकर कठिन परिश्रम करना.

देशमुख के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की शुरुआत आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में शुरू हुई. वह संघ के प्रचारक के साथ-साथ जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और आपातकाल के बाद देश में हुए लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा सदस्य चुनकर बतौर सांसद भी उल्लेखनीय कार्य किया.

नानाजी ने बिना किसी भेदभाव के ग्रामीण अंचलों में शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी समस्याओं को दूर करने का काम किया. उनके विचारों की प्रासंगिकता को इस तरह भी समझा जा सकता है कि उन्होंनें जो दर्शन उस समय दिए वह आज भी प्रसांगिक हैं. यह बात सर्विदित है कि उन्होंने ग्रामीण विकास का एक ऐसा आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें ग्रामीण भारत स्वावलंबन की तरफ अग्रसर हुआ.

जैसे नानाजी ने गोंडा और चित्रकूट के पास सैकड़ों गावों की तस्वीर को बदल दिया. समुद्री तूफ़ान से उड़ीसा और आंध्र में मची भयंकर तबाही के बीच वहां जाकर लोगों की मदद करने के साथ-साथ गांवों का पुनर्निर्माण करना हो, उन्होंने ऐसे अनेक अप्रत्याशित कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नानाजी देशमुख के ग्रामीण विकास से प्रेरणा लेते हुए अनेक ऐसे कार्य शुरू किए हैं, जिसमें उनके विचारों की गहरी छाप दिखती है. मोदी सरकार ने देश के सभी गांवों में बिजली की सुविधा पहुंचाई, खादी की बिक्री आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है, आयुष्मान के माध्यम से पांच लाख का इलाज लोगों का मुफ्त में हो रहा है.

किसानों के लिए किसान सम्मान निधि योजना की बात हो या ई-मंडी माध्यम से किसानों की फसल की ऑनलाइन बिक्री. सरकार ग्रामीणों की हर छोटी से छोटी समस्या का निराकरण करने के किये प्रयासरत है. अभी हाल ही में दिल्ली में हुनर हाट का आयोजन किया गया था. इसने भारत की कला, प्रतिभाशाली कलाकारों को बड़ा मंच तो दिया ही इसके साथ ही छोटे-छोटे कारीगरों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी यह सशक्त प्रयास है.


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नानाजी स्वदेशी के प्रखर पक्षधर थे. ग्राम विकास के साथ-साथ उनका दर्शन यह भी कहता है कि स्वदेशी को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है, भारत के पास जो हुनर है उसका सही इस्तेमाल हो, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार भारत के कौशल को निखारने का काम कर रही है. जैसे कौशल विकास के माध्यम से सरकार युवाओं की प्रतिभा को निखारने का काम कर रही है.

राजनीतिक शुचिता

वर्तमान समय से जब राजनीति सुख और साधन का जरिया बन गई हो, ऐसे में समूचे राजनैतिक दलों को नानाजी देशमुख के जीवन चरित्र के बारे में गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अंगीकृत करने से राजनीति में फैलती जा रही वैमनस्यता खत्म होगी. आपातकाल के बाद जब देश में चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार बनी उस वक्त नानाजी देशमुख को मोरारजी देसाई की सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया, किन्तु उन्होंने मंत्री पद को अस्वीकार कर दिया था. नानाजी ने स्पष्ट कहा था कि साठ साल से अधिक आयु के सांसदों को राजनीति से दूर रहकर संगठनात्मक एवं सामाजिक कार्य करना चाहिए. उन्होंने अपने इस कथन का अपने जीवनकाल के अंतिम समय तक पालन किया.

ग्रामीण विकास की ओर सत्ता का ध्यान दिलाया

1972 में नानाजी देशमुख ने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की. ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने ग्रामीण समस्याओं पर शोध के साथ स्वावलंबन के विभिन्न कार्य शुरू किए. गौरतलब है कि राजनीति छोड़ने के उपरांत उन्होंने एक बार साक्षात्कार में कहा था कि मेरी राजनीति छोड़ने का कारण सरकार द्वारा ग्रामीण विकास से
ज्यादा शहरी विकास को तवज्जो देना था.

संगठन का कार्य करते हुए नानाजी ने 1969 में राजनीति का त्याग कर सामाजिक जीवन को चुना. राकेश कुमार अपनी पुस्तक ‘भारत रत्न नानाजी देशमुख’ में उल्लेख करते हैं, ‘1978 में गोंडा बलरामपुर के पास जमीन लेकर जयप्रभा नाम से ग्राम विकास, गो-संवर्धन, शिक्षा और कृषि तंत्र सुधार संबंधी काम करना प्रारम्भ किया. उसी समय तुरंत 25 हजार से भी बांस के नलकूपों का नया प्रयोग कर अलाभकारी जोत को लाभकारी बनाया व कर्ज से लदे भुखमरी का सामने कर रहे किसानों को खुशहाल बनाया.’ ऐसे कई किस्से हैं जिसमें उन्होंने अपने काम से कई गांवो की तस्वीर बदली.

शिक्षा के क्षेत्र में काम

भारत की शिक्षा व्यवस्था के हालात को देखकर नानाजी बहुत चिंतित रहते थे. उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें शिक्षा के साथ संस्कारों की भी बहुलता हो. इसी उद्देश्य के साथ नानाजी देशमुख ने 1950 में गोरखपुर में पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की जिसके बाद उन्होंने देश में पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना 1991 में की. जिसका नाम चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय रखा गया था.


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नानाजी ने ग्रामीण भारत की तमाम प्रकार की समस्याओं को देखते हुए कई प्रकार के नए कार्य शुरू किए. जिसका उद्देश्य भारत में ग्रामीण आबादी खासकर दलित और वंचित वर्ग का उत्थान करना था. उन्होंने गरीबी को दूर करने के लिए कृषि, ग्रामीण स्वास्थ्य, ग्रामीण शिक्षा के साथ-साथ कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास किया.

उस समय ग्रामीण समस्याओं को दूर करने का मार्ग नानाजी ने प्रशस्त किया. उन्होंने एक योजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य था ‘हर हाथ को काम और हर खेत में पानी’. चित्रकूट परियोजना के अंतर्गत उन्होंने उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के पांच सौ से अधिक गांवों का पुनर्निर्माण कर एक अमिट छाप छोड़ी और इन्हें आत्मनिर्भर बनाया.

नानाजी ने सामाजिक कार्यों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए 27 फरवरी 2010 को उनका निधन हो गया लेकिन उनके विचार उनके लोककल्याण की दिशा में किये गये कार्य सदैव प्रासंगिक रहेंगे.

(लेखक स्वंतत्र टिप्पणीकार और शोधार्थी हैं) 

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