प्रिय योगेन्द्र भाई,
मेरा मन हुआ की आपने जो राहुल गांधी जी के नाम खुला पत्र लिखा है, उसका जवाब दिया जाए. हालांकि राहुल जी क्या सोचते हैं, यह उनका विषय है मगर आपकी उलझन जो पत्र में साफ दिखाई दे रही है, उसका समाधान तो किया ही जाए.
एक दशक से आपको देख तो रहें हैं. राजनीतिक हो या सामाजिक हर विषय पर आपका उठना बैठना हमारी नजर के सामने तो रहा ही है. यह जवाब पत्र लिखने का कारण ही यह है कि आप तमाम राजनीतिक विश्लेषकों में से एक हैं जिन्होंने खुद राजनीतिक लगाम पकड़ने की भरपूर कोशिश की है. यह यकीनन स्वागतयोग्य कदम है की आप लगातार उस सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाते रहते हैं जहां से देश की दिशा तय होनी है.
अब आपने राहुल गांधी जी की उन खूबियों की चर्चा की है, जो आपने पहले ही देख रखी थी. राहुल जी की ईमानदारी नई नहीं है .राहुल जी की छवि जो पिछले एक दशक में खराब की गई, वही एक दशक, जबसे आप राहुल जी को जानते थे. इस प्रायोजित वैचारिक हमलों से राहुल जी ने मुकाबला किया है. यह तो आप मानते ही हैं की राहुल जी ने जमकर इनका मुकाबला किया है. हम तो आपके पत्र को बार बार पढ़कर यही सोचते रहे की काश इसमें राहुल जी के लिए कोई रचनात्मक सलाह होती या कांग्रेस के लिए कोई ऐसी बात होती जो उसे न मालूम होती.
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काश! मैं आपकी बाकी बातों से भी सहमत होता. काश! इन बातों का मतलब इतना ही भर होता कि कांग्रेस को पुनर्जीवित किया जाय. उसे रास्ता दिखाया जाए. फिर मैं ठहर कर सोचता हूं जो कांग्रेस के मरने का ख्वाब देखता हो, वह भला पुनर्जीवन की कामना क्यों करेगा.
आपने कहा की कांग्रेस-नीत विपक्ष ने इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर देश को दगा दिया है. प्रिय योगेन्द्र जी यहां आप ऐतिहासिक भूल कर रहें हैं, क्योंकि यह सामाजिक सरोकारों वाले योगेन्द्र के शब्द नहीं है बल्कि कुटिल राजनैतिक मंशा पाले कोई ऐसे व्यक्ति के शब्द हैं, जो हमदर्द बनने का नाटक करके हमारी ही बखिया उधेड़ने आया हो. कांग्रेस जो खुद इस समय अंदर-बाहर चुनौतियों में है, वह भला देश को दगा कैसे दे सकती है. यह तो बड़ी ओछी बात हुई की देश की सभी विपक्षी पार्टियों को दगेबाज़ कह दिया जाए. यह गलती तो भाजपा ने भी नहीं की जो आप कर रहें हैं. अति भावुकता कहें या राजनैतिक कुटिलता जो आपने लोकतान्त्रिक प्रणाली में सरकार के विरुद्ध हिस्सा लेने वाली पार्टियों को देश के प्रति दगाबाज़ कहा है. यह शब्द आपकी ऐतिहासिक भूल है.
आप कहते हैं की ‘आज की कांग्रेस वो पार्टी नहीं जिसे आपने अपने इस्तीफे में ‘गहरे इतिहास और विरासत, संघर्ष और गरिमा’ से परिपूर्ण पार्टी के रूप में चिन्हित किया है. आपने जिस पार्टी की अध्यक्षता की वो आज के भारतीयों को गांधी जी, नेहरू, पटेल और आजाद या फिर स्वतंत्रता-संग्राम के हमारे उन मूल्यों की याद नहीं दिलाती जो हमारे संविधान की आत्मा हैं. आज की कांग्रेस लोगों को वंशवादी शासन, पूरमपूर भ्रष्टाचार, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर चोट, राजनीतिक संरक्षण मे होने वाले दंगे-फसाद और सियासी लोभ-लालच की याद दिलाती है.’
अब जरा बताइए राहुल जी ने कब कहा की वह पिछले 10 साल वाली कांग्रेस की बात कर रहे हैं और यह आप कब से मान बैठे की कोई पार्टी का इतिहास दो चार साल पहले का होता है. कांग्रेस का इतिहास तब से शुरू होता है जबसे वह बनी तो राहुल जी की कांग्रेस के इतिहास के लिए कही गई बात रत्ती भर गलत नहीं है.
यह आपकी गलतफहमी है कि आज की कांग्रेस गांधी, नेहरू, पटेल या आज़ाद की याद नहीं दिलाती. योगेन्द्र जी आज भी देश में केवल दो विचारधाराएं जनमानस पर हैं, एक कांग्रेस की और दूसरी भाजपा की. देश ने अगर आज उन्हें चुना है तो उनकी विचारधारा को मानकर चुना है, देश जब हमें चुनता है तो हमारी विचारधारा को मानकर. आज जितना भी वोट हमें मिला या जितने भी हमारे समर्थक हैं वह जानते हैं की कांग्रेस सभी धर्मों, सभी वर्गों, सभी लिंग को बराबर से मान्यता देने वाली पार्टी है.
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आप खुद अपने आप को देखिये की देश की तमाम राजनीतिक पार्टी छोड़कर आपको भी लगता है वह कांग्रेस ही हैं जो संवैधानिक मूल्यों को सहेज सकती है, तभी इतनी चिंता में पत्र भी आपने लिखा. आपको खुद यकीन है की कोई दूसरे विकल्प तो ठहरते ही नहीं. इस आंधी में, बस आप फ़िक्र तो करना चाहते हैं मगर खुद कमेंटेटर बनकर ना कि कोच. कोच बनने का गुण भी नहीं आपमें, क्योंकि आप अपनी पूर्व राजनैतिक पार्टी ‘आप’ में कोच तो बनने गए थे मगर महत्वकांक्षा कप्तानी की थी. भला यह दो चाहतों के साथ कोई कैसे न्याय कर सकता है. वही बात यहां भी है. आप राहुल गांधी जी की फ़िक्र करते हैं मगर कांग्रेस के मरने का ख्वाब भी देखते हैं, भला कैसे इस दोहरी सोच को मान लिया जाए .
आपने कहा ‘देश आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है, कांग्रेस उन्हीं में से एक है.’ यानी आपके विचार से कांग्रेस एक समस्या है. हमें तो इतना लगता है की आपने देश की इस समस्या को खूब उधेड़ा भी होगा. वह आप ही तो थे जो पिछले दशक कांग्रेस की बखिया उधेड़ते फिरते थे. वह आप ही तो थे जो मनमोहन सिंह जी के चरित्र पर भ्रष्टाचार के दाग की पैबंद लगाते फिरते थे. वह आप ही तो थे जिन्हें देश के साथ खड़ी कांग्रेस दुश्मन नजर आती थी. वह आप ही तो थे जो कांग्रेस की नींव की ईंटें उखाड़ते फिरते थे, वह आप ही तो थे जो आज की भाजपा का सिल्क रूट तैयार कर रहे थे. आप बताइए की जब दिल्ली में अन्ना नाम का धोखा और लोकपाल नाम का झांसा खड़ा किया गया था, तब आप क्या कर रहे थे. आपके मन में न देश की फ़िक्र थी और न ही कांग्रेस की, आप तो बस हमारे हाथ से सत्ता अपने हाथ में लेने के आतुर थे.
आपने तो अपनी राजनैतिक मंशा के लिए देश की सबसे बड़ी राजनैतिक और पुरानी पार्टी की बखिया उधेड़ी. वह आप ही तो थे जो गांधी, पटेल, नेहरू की इस पार्टी को सुधारने की जगह खत्म करने पर अमादा थे. आपको कांग्रेस एक समस्या दिखाई दे रही है, ज़ाहिर है कांग्रेस हर उसकी समस्या है जो देश को नुकसान पहुंचाने का ख्वाब पालता है. हम आज भी गांधी के बताए रास्ते पर हैं, हो सकता है कुछ गलतियां की हों, मगर उन गलतियों में देश की जनता को ठगने की मंशा कभी नही रही. कभी भी झूठ बोलकर जनता को गहरे गड्ढे में नहीं ढकेला है.
आप सबने जनता से झूठ बोला, उन्हें सामाजिक सरोकारों के नाम पर इकट्ठा करके अपना राजनैतिक एजेंडा और दल खड़ा किया. लोकपाल का नाम लेकर राजनीतिक विकल्प बनाने का नाटक किया गया. आपको तो इनकी चिंता भी नहीं थी, आप तो बस हमें सत्ता से हटाकर खुद बैठने का ख्वाब देख रहे थे.
एक तरफ आप कहते हैं कांग्रेस को खत्म होना होगा तो दूसरी तरफ कहते हैं की उसे सुधरना होगा. आप खुद इतना कन्फ्यूज़ हैं कि आपको ही नहीं पता की क्या कह रहे हैं.
योगेन्द्र जी कांग्रेस बदलेगी मगर ऐसे नहीं कि जिसकी चाल चरित्र गांधी नेहरू से हटकर किसी योगेन्द्र यादव के मुखौटे के अनुरूप हो. कांग्रेस एक विचार है, जिसे खत्म करने के मंसूबे संघियों समेत बहुतों के हैं. भाजपा हमें राजनीतिक रूप से हराना चाहती है तो कुछ तथाकथित हितैषी हमें हमारा चरित्र ही बदल देने पर अमादा हैं. वह कहते हैं यह कांग्रेस तो नहीं ही चलेगी, हुजूर यही कांग्रेस चलेगी क्योंकि यह ही गांधी नेहरू पटेल की कांग्रेस है.
योगेन्द्र जी आप खुद बताएं की यूपीए-2 में आपने कोई कसर छोड़ी थी कांग्रेस को खत्म करने में, नही न, तब आप इस कांग्रेस के हितैषी कहां बन रहे हैं. आप जब यह कहते हैं की यह कांग्रेस पथ भ्रष्ट है, अलोकतांत्रिक है, गांधी नेहरू की कांग्रेस नहीं है तो यह आपकी खीज को दिखाता है. यह एक साथ हम लाखों कांग्रेसियों को गाली देना हुआ. यह वही हुआ की एक आदमी उठा और उसने लाखों लोगों को गाली देना शुरू कर दिया की तुम्हारी वजह से मेरे आरामतलबी के दिन चले गए. आप कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाकर उनका मनोबल तोड़ने का कुत्सित प्रयास कर रहें हैं. खैर वह बातें और आपकी व्यक्तिगत आलोचनाएं और फ्रस्टेशन अपनी जगह हैं. हम यह जरूर मानते हैं कि हमें वही पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनना होगा, हमें यकीन है की हम अपने इन्ही कार्यकर्ताओं के साथ आगे बढ़कर इस चुनौती को थाम लेंगे.
कांग्रेस में राहुल गांधी जी अकेले नहीं हैं, हम सब राहुल गांधी हैं और हम सब में कांग्रेस है. फूट डालो और राज करो नीति यहां नहीं चलेगी. घर के एक सदस्य को पुचकारें और बाकि सबको गालियां दें. यह तरीका ही धूर्तता का है. हमेशा नेतृत्व की लालसा पाले बहुत से लोग यह हरकत करते हैं कि किसी सिस्टम को जमकर गली दो ताकि वह आपके पीछे चलने लगे मगर यह यहां नही चलेगा. यह कांग्रेस है, कांग्रेस जिसको आप वक्ती परेशान तो कर सकते हैं मगर खत्म नहीं. हम गांधी के लोग हैं, हर आलोचना को सुन लेंगे, हिंसा को नजदीक नहीं फटकने देंगे मगर अपने विरोधियों को चैन की नींद भी नहीं लेने देंगे. जब देश परेशानी के मुहाने पर हो, तो सत्ता को सुकून की नींद आए, यह कांग्रेस तो नहीं ही होने देगी.
योगेन्द्र जी एक भलमानस वह व्यक्ति नहीं होता है, जो मीठी मीठी बातें करे. भलमानस वह होता है जो सही रास्ता दिखाए. आपकी हर आलोचना सर आंखों पर थी अगर उसमें निर्माण की मंशा होती. आप तो हमारे विनाश की मंशा रखकर आलोचना कर रहें, यह तो स्वीकारा ही नहीं जा सकता. आपने खुला पत्र लिखा, यह खुला पत्र कम, कांग्रेस को बदनाम करने का पत्र ज्यादा था. अगर हमें कोई बीमार दिखता है तो हम उसकी बिमारी के पर्चे मीडिया में छपवाते नहीं फिरते, बल्कि उस व्यक्ति को बताकर इलाज सुझाते हैं. यह तो कोई उथला सा झोलाछांप डॉक्टर करता है कि खुद को मशहूर करने के लिए मरीज़ का नाम उछालता है और मर्ज़ पर चटखारे ले लेकर बात करता है.
हम सभी कांग्रेसियों की आप जैसे तथाकथित हितैषियों से दूरी ही भली. हम अच्छे हैं या बुरे, यह देश की जनता तय करेगी. कांग्रेस कैसे चलेगी यह उसके कार्यकर्ता तय करेंगे. हम हर उसकी सलाह मानेंगे और सुनेंगे भी जो हमारे मरने के ख्वाब न बुनता हो. जिसे देश की फ़िक्र हो. रही बात राहुल जी की तो जितना उन्हें बीजेपी ने बदनाम किया है, जितना उन पर संघ ने हमला किया है, उतना ही आप में से बहुतों ने भी किया है. आपने राहुल गांधी हों या कांग्रेस दोनों की पीठ में खंजर भोंका है.
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अब एक आखरी बात आप गिरह बांध लीजिये, यह घड़ी घड़ी कांग्रेस या राहुल जी को सलाह मत दीजिये. अपनी स्वराज इण्डिया पार्टी को वक़्त दीजिये. उसे आपकी राजनीतिक जरूरत है.
आपका खुला पत्र हमारे लिए खुली चुनौती है, जिसे हम स्वीकार करते हैं. आप सही नीयत से आते तो हम साथ चलते मगर आपकी नीयत ही अच्छी नही है. आप हमें खत्म करके सुधारना चाहते हैं, जो सम्भव ही नहीं है. हमारा पुनर्जीवन भी हमारे ही हाथों होगा, किसी बाहर बैठे व्यक्तियों से नहीं होगा. अगर आप वाकई कांग्रेस सुधारना चाहते हैं, उसे मजबूत विपक्ष बनाना चाहते हैं तो लालच छोड़िये. कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता बनकर मजबूत कीजिये. स्वराज्य पार्टी इण्डिया जैसी राजनीतिक तफरीह को खत्म करके कांग्रेस की बतौर कार्यकर्ता सेवा कीजिये ताकि देश की सेवा करने का मौका मिले. अन्यथा यह खुला पत्र जैसी शोशेबाजी केवल राजनैतिक स्टंट है जो इतने बेहतरीन राजनैतिक बुद्धिजीवी को शोभा नहीं देती हैं.
(लेखक उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेता व मीडिया पैनलिस्ट हैं, ये उनके निजी विचार हैं)