scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतक्या त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा है गुजरात चुनाव, पंजाब जीत के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद

क्या त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा है गुजरात चुनाव, पंजाब जीत के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद

गुजरात में चुनाव को लेकर पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक लड़ाई चरम पर है. चुनाव प्रचार में भाजपा और आप ने पहले से ताकत झोंक रखी है

Text Size:

गुजरात में विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो गया है. एक और पांच दिसंबर को दो चरणों में मतदान होगा. गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम एक साथ आठ दिसंबर को घोषित होंगे. हर बार की तरह इस बार चुनाव में सिर्फ कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच मुकाबला नहीं होगा. इस बार आम आदमी पार्टी के चुनाव में किस्‍मत आजमाने से गुजरात में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई है. तीनों दलों ने चुनाव की घोषणा के साथ उम्‍मीदवारों की चयन प्रक्रिया तेज कर दी है. अब तक के चुनावी इतिहास को देखें तो मुख्‍य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता रहा है और यहां के स्‍थानीय मुद्दे ही चुनावों में ज्‍यादातर हावी रहे हैं.

गुजरात में भाजपा 27 साल से लगातार सत्ता में है और यह चुनाव भी उसके लिए काफी अहम है. बड़ी वजह एक ही है, गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य जो है. भाजपा इस समय केंद्र और गुजरात दोनों जगह सत्ता में हैं और यहां पर भी उसका नारा डबल इंजन सरकार की उपलब्धियों को लेकर आगे बढ़ रहा है. वह दोबारा सत्ता में आने को लेकर आश्‍वस्‍त है. वह मानकर चल रही है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर मतदाताओं को रिझाना उसके लिये आसान होगा. चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि गुजरात में फिर से डबल इंजन की सरकार बनेगी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार लगातार बेहतर काम कर रही है.


यह भी पढ़े: अरविंद केजरीवाल करेंगे गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा


पंजाब विजय से बढ़ा है आप का मनोबल

पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने चार राज्‍यों उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड, गोवा और मणिपुर में सत्‍ता में वापसी की लेकिन पंजाब के नतीजों ने नए राजनीतिक समीकरण बना दिये हैं. आप को पंजाब में मिली अपार सफलता ने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अस्तित्‍व को ही चुनौती दे दी है. अब गुजरात में आप भाजपा को चुनौती देने के लिये लगातार ताल ठोंक रही है. दिल्‍ली विधानसभा में आप पहले से ही काबिज है और पंजाब की जीत ने उसका मनोबल और बढ़ा दिया है. आप इस चुनाव में करो या मरो की मुद्रा में चुनाव लड़ रही है. अरविंद केजरीवाल ने चुनाव की घोषणा होते ही गुजरात के जनता से आप को वोट देने अपील करते हुए कहा कि अगर वे उनको एक मौका देंगे तो वे बिजली, शिक्षा और मुफ्त तीर्थयात्रा की सुविधा देंगे. उन्‍होंने कांग्रेस के साथ भाजपा के हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. केजरीवाल की रुपये के एक तरफ गणेश लक्ष्‍मी की तस्‍वीर लगाने की मांग को कुछ ऐसे ही देखा जा रहा है.

गुजरात में चुनाव को लेकर पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक लड़ाई चरम पर है. चुनाव प्रचार में भाजपा और आप ने पहले से ताकत झोंक रखी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गुजरात दौरे लगातार हो रहे हैं और वे राज्‍य में विकास एवं स्थिरता को बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना रहे हैं. लेकिन मोरबी हादसे को लेकर विपक्ष हमलावर है जिसमें लोहे के पुराने पुल टूटने से 135 लोगों की जाने गईं. गुजरात विधानसभा में सीटों के लिहाज से आप का इस राज्‍य में अभी तक कोई वजूद नहीं है लेकिन जिस तरह से उसके नेता अरविंद केजरीवाल पंजाब में मिली आशातीत सफलता को भुनाने के लिए गुजरात का लगातार दौरा किया है, उससे साफ है कि वह पंजाब की तरह वहां पर भी अपनी पार्टी को कांग्रेस के विकल्‍प के रूप में पेश करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

नरेंद्र मोदी 21वीं सदी के शुरू में अपनी पार्टी के कद्दावर नेता और तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री केशुभाई पटेल के उत्‍तराधिकारी बने जब वह मुख्‍यमंत्री बनें तब से लेकर अब तक भाजपा गुजरात में एक भी चुनाव नहीं हारी है. नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीत चुकी है और लोकसभा चुनावों में भी वह गुजरात में अव्‍वल साबित हुई है.

पिछले चुनाव में कांग्रेस से मिली थी टक्कर

गुजरात में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है और पिछले विधानसभा चुनावों में उसने भाजपा को कड़ी टक्‍कर दी थी. गुजरात की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से पिछड़ी जाति और पाटीदार समुदाय के नेता के रूप में हार्दिक पटेल का नया नाम उभरा. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हार्दिक पटेल ने 2015 में पाटीदार समुदाय के हितों की लड़ाई को तेज की और राजनीतिक क्षितिज पर उनका नाम तेजी से उभरा. उन्‍होंने भाजपा के लिये नई चुनौतियां खड़ी कीं और इसका फायदा उठाकर कांग्रेस ने उन्‍हें अपने साथ जोड़ लिया.

कांग्रेस हाईकमान के हार्दिक पटेल को तव्‍वजो देने से गुजरात में बाकी कांग्रेस नेता नाराज हो गये थे. गुजरात के कद्दावर नेता अहमद पटेल गांधी परिवार के काफी करीबी रहे लेकिन उनके निधन के बाद राज्‍य में कांग्रेस को संगठित रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई.

कांग्रेस हार्दिक पटेल के बूते गुजरात में अपनी स्थिति को मजबूत करने को लेकर आश्‍वस्‍त थी लेकिन उन्‍होंने कुछ ही दिन पहले मोदी की तारीफ करने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन में हार्दिक पटेल, अल्‍पेश ठाकोर और जिग्‍नेश मेवाणी की अहम भूमिका थी लेकिन अब यह तिगड़ी बिखर चुकी है. कांग्रेस के लिये यह बड़ा झटका था और तब से गुजरात में पार्टी अपने सांगठनिक ढांचे को लेकर जूझ रही है. लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के चुनाव हुए और करीब ढ़ाई दशक बाद गैर गांधी परिवार के वरिष्‍ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी की कमान संभाल ली है. वह कांग्रेस की सांगठनिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ऐसे में कयास लगने लगे हैं कि वहां भी ले देकर कांग्रेस के लिये पंजाब वाली स्थिति न हो जाए. दरअसल कांगेस की ओर से अभी तक स्‍टार प्रचारकों के हरकत में नहीं आने के कारण ऐसी अवधारणा बनी लेकिन कांग्रेस ने कहा है कि वह पूरी तरह तैयार है. वह ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्‍यादा ध्‍यान केंद्रित कर रही है. पार्टी गुजरात परिवर्तन संकल्‍प यात्रा के जरिये सभी विधानसभा क्षेत्रों की जनता से सीधे संपर्क साध रही है.

इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में साल 1985 में रिकार्ड 149 सीटें जीती थीं. उसके बाद से अब तक ना तो भाजपा ने और ना ही कांग्रेस उस प्रदर्शन को दोहरा सकी है. माधव सिंह सोलंकी ने उस साल क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम (खाम) वोटों के दम पर दमदार और रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की थी. राजनीतिक हालातों में हुए बदलाव के दौर में खाम का गठजोड़ बिखर गया और प्रभावशाली पाटीदार समुदाय कांग्रेस से अलग हो गया. लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी फिर पाटीदार समुदाय को कांग्रेस से जोड़ने में सफल रहे और युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को आगे करके पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को विधानसभा में सैकड़े बनाने से रोका. पिछली बार गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में भाजपा की 99 सीटों के बहुमत से सरकार बनी और कांग्रेस ने 77 सीटें जीतीं थी.


यह भी पढ़े: ‘PM को भारत की देखभाल करनी है, हमें गुजरात दो’- सरकार बनाने के लिए AAP ने BJP से मांगी मदद


आप कांग्रेस के साथ भाजपा के लिए भी बड़ी चुनौती

पंजाब की राजनीति ने कांग्रेस के साथ भाजपा के लिए भी गुजरात में बड़ी चुनौती खड़ी की है. सभी राष्‍ट्रीय दलों के लिए आप एक चुनौती बनना चाहता है और अगर उसके नारों पर गौर करें तो हकीकत को समझने में ज्‍यादा आसानी होगी. आप का हर नेता अपने जनसंबोधन से पहले और अंत में यह नारा अवश्‍य लगाता है, इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय. दरअसल आप एक साथ देश की बड़ी कैडरवाली पार्टियों वामपंथी दलों और भाजपा के नारों को ही भुनाने में लगी है. यह कुछ ऐसे हैं कि नारा तुम्‍हारा, वोट हमारा, जीत हमारी. एक और छोटा सा उदाहरण लें जैसे कि कारोना संकट काल में नरेंद्र मोदी सरकार ने गराबों को मुफ्त अनाज देने का काम शुरू किया. सब राशन की दुकान से मुफ्त अनाज ले सकते थे और यह योजना काफी लोकप्रिय हुई. अरविंद केजरीवाल हमेशा से नरेन्‍द्र मोदी की योजनाओं को अपने नाम करने और सिर्फ आप को ही उसका लाभ दिलाने की नई-नई तरकीबें निकालने में माहिर रहे हैं. उन्‍होंने इस योजना को कैसे अपने पक्ष में करने की कवायद शुरू की, अगर इसका सही विश्‍लेषण करें , तो उन्‍होंने घोषणा कर डाली कि वह सबको घर पर ही यह मुफ्त राशन मुहैया करा देंगे. फिर केंद्र से इसकी अनुमति नही मिलने पर उसका ठीकरा भी केंद्र सरकार के सिर पर फोड़ना शुरू कर दिया.

गुजरात में आप अपने समीकरण बना रही है लेकिन भाजपा की जड़े वहां बहुत मजबूत रही है. यह सही है कि नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद से भाजपा को वहां पर राज्‍य स्‍तर का बड़ा नेता अभी तक नही मिल पाया है और अब भी पार्टी नरेंद्र मोदी के बूते ही टिकी हुई है. कभी गुजरात दंगों के कारण या छात्र आंदोलन के कारण चर्चा का केंद्र रहा और वहां की जनता इससे वर्षों त्रस्‍त रही और वहां की कपड़ा मिलें एक एक कर तबाह होती चली गईं. विकास तो दूर की बात थी लेकिन नरेंद्र मोदी को जब मुख्‍यमंत्री की जिम्‍मेदारी मिली तो उन्‍होंने अपना ध्‍यान विकास की राजनीति और सुशासन पर केंद्रित किया. लेकिन उनकी राहें इतनी आसान नही थीं जितनी आज दिखती हैं. गोधराकांड के बाद गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों ने मोदी के भाजपा के भीतर और बाहर दोनो मोर्चों पर मुसीबतें खड़ी कर दीं. लेकिन समय के साथ और गुजरात गौरव की नई राजनीति के बल पर उन्‍होंने अपनी मुश्किलों को कम करना शुरू किया.

मोदी सरकार के काम को भुना रही है भाजपा

मोदी ने विकास के साथ साथ महिलाओं को प्राथमिकता देने की राजनीति का नया प्रयोग किया और उनके लिये अनेक योजनायें बनाईं और गुपचुप तरीके से हर बार उनका वोट बटोरते रहे. बाकी दल धर्म और जातपात की राजनीति में ही उलझे रहे और मोदी जेंडर के आधार पर राजनीति को नई दिशा देते चले गये. बाद में बाकी राज्‍यों और केंद्र ने इसका अनुसरण करना शुरू किया लेकिन तबतक जनलोकप्रियता की दौड़ में नरेंद्र मोदी आगे निकल चुके थे. अब सबकी निगाहें गुजरात विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं और पूरा विपक्ष अपनी ताकत झोंकने लगा है. गुजरात मोदी की अगुआई में भाजपा का मजबूत गढ़ है और इसे भेदने के प्रयास किस हद तक सफल होते हैं या फिर अभेदृय दुर्ग बना रहेगा, यह तो 8 दिसंबर के नतीजे ही बता पायेंगे.

(लेखक अशोक उपाध्‍याय वरिष्‍ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढ़ें: क्यों हिमाचल चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले BJP नेताओं पर न दबाव काम आया और न ही समझाना


share & View comments