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Saturday, 21 December, 2024
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हमारे बीच महात्मा गांधी की जरूरत क्या फिर से आ चुकी है

महात्मा गांधी दोबारा जन्म लेने जा रहे हैं और वो पूरे भारत पर फिर से एक बार अपना अधिकार जमाएंगे.

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भारत में जब गर्मियों के दिनों में तपिश बढ़ती है तो वो असहनीय होती चली जाती है. इस गर्मी से निज़ात दिलाने के लिए मॉनसून की बारिश होती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बारिश कितनी कम हो रही है या कितनी ज्यादा हो रही है. मॉनसून की बारिश एक नया जीवन लेकर आती है.

गर्मियों की तपिश की तरह ही लोग अपने जीवन में काफी परेशानी झेलते हैं लेकिन ये सब केवल इंसान के धैर्य की परीक्षा के लिए होता है. अंत में परेशानियों से निज़ात दिलाने के लिए एक हीरो का उदय होता है जो सब दुखों से बाहर निकालता चला जाता है.

अगर ये सब पढ़कर आपको फिल्मों की कहानी की तरह लग रहा है तो आप उन अफवाहों भरी खबरों को कैसे देखेंगे जब 1915-16 में चंपारण में चमत्कारी बाबा के आने की खबरें चारों तरफ फैल रही थी. एक ऐसा बाबा जिसके पास असीम ताकत है और वो जल्द ही चंपारण आने वाला है.

चंपारण में रहने वाले किसान ब्रिटिश शासन के दौरान काफी परेशानियों का सामना कर रहे थे. वो लोग चाहते थे इससे निपटने के लिए जल्द ही कुछ किया जाए. उन्होंने इसके खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए, असहयोग आंदोलन किए लेकिन इसका कोई हासिल नहीं हुआ.

चंपारण के किसानों को एक हीरो की जरूरत थी और उस समय ऐसे किसी हीरो के बारे में खबरें आ रही थी कि उनकी समस्याओं के समाधान के लिए वो आ रहा है. मतलब कि स्वर्ग से कोई मसीहा आ रहा है. वो लोग अपने मसीहा गांधी का नाम जानते थे. जो अपने चमत्कारी शक्तियों का इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के लिए कर चुके थे. उनके मुताबिक गांधी जानते थे कि अंग्रेजों से कैसे निपटा जाए. चंपारण के ही किसी व्यक्ति ने गांधी को यहां आने के लिए राज़ी भी कर लिया था.

ध्यान में रखिए कि 1915-16 से पहले गांधी ने चंपारण का नाम भी नहीं सुना हुआ था. उन्होंने देश के कई दौरे किए थे, कांग्रेस के अधिवेशनों में हिस्सा लिया, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ काफी बोला. चंपारण का एक किसान 1917 में उनके पास जाता है, कई शहरों में उनके पीछे-पीछे चलता है और अंत में हाथी पर गांधी को चंपारण लेकर आ जाता है.


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गांधी ने चंपारण में छह महीने गुज़ारे. इन कुछ महीनों में उन्होंने नील उगाने वाले किसानों को ब्रिटिश सत्ता की दमनकारी नीतियों से आज़ाद कराया.

वक्त की मांग कि कोई महात्मा आए

आज के समय में भारत के हर क्षेत्र में काम कर रहे लोग अन्याय और उत्पीड़न की मार झेल रहे हैं. ब्रिटिश सत्ता को हटाने में हिंदुत्ववादी ताकतों ने ज्यादा कुछ नहीं किया था. ये लोग देश में रह रहे मुस्लमि लोगों को यहां से बाहर करने के पक्षधर थे या इन्हें डिटेंशन सेंटर भेजने के पक्ष में थे. इन लोगों ने समूचे कश्मीर को डिटेंशन सेंटर में बदल दिया है. आर्थिक तौर पर देश गर्त में जा रहा है, लोगों की नौकरियां जा रही है, आमदनी में लगातार गिरावट आ रही है. ये लोग बलात्कारियों को बचा रहे हैं, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल रहे हैं, प्रदर्शन के लिए इजाज़त नहीं दे रहे हैं. हीरो को विलेन की तरह और विलेन को हीरो की तरह पेश करने की कोशिश की जा रही है.

हमारी मौजूदा सरकार देश को एकदलीय पार्टी वाला देश बनाने की चाह रखती है जिसमें एक भाषा और एक धर्म के लोग ही सिर्फ रहें.

एक बार फिर से इस तरह की अफवाह चल रही है कि चमत्कारी बाबा आएंगे और बहुसंख्यकवाद के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाएंगे. अभी तक हमें यह नहीं मालूम कि उसका नाम क्या है और वो कब आएगा या आएगी. लेकिन इतना जरूर मालूम है कि कोई न कोई जरूर आएगा यह निश्चित है. गांधी की 150वीं जयंती से अच्छा समय कोई और नहीं हो सकता. जितना ज्यादा उत्पीड़न बढ़ेगा उतना ही बड़ा महात्मा फिर से जन्म लेगा. कहा भी जाता है कि हर एक्शन के बाद उतनी ही शक्ति का एक रिएक्शन होता है.

दुनिया भर के अखबारों ने महात्मा गांधी के बारे में लिखा. एक अमेरिकन अखबार ने 1931 में लिखा कि वो जीसस से प्रभावित थे. किसी ने उन्हें लंदन में बाइबल दी थी. इसे पढ़कर वो काफी प्रभावित हुए और इसमें लिखा हुआ सीधा उनके दिल में उतर गया.

जैसा मैं कहूं आप वैसा करें

यह मायने नहीं रखता कि गांधी बुद्ध से या जीसस से प्रभावित थे. बल्कि मायने यह रखता है कि उनके जीवनकाल में ही उनकी इनसे तुलना की जाने लगी थी. हीरो चाहे वो सच में हो या काल्पनिक उसकी कई खूबियां होती हैं जो तुरंत ही पहचान ली जाती हैं. हीरो मानते हैं कि बदलाव बहुत जरूरी हैं. 1921 में गोरखपुर में हुई हिंसा के बाद गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया और अहिंसा के पथ से आज़ादी पाने के लिए संघर्ष किया. उन्होंने कहा, ‘मैं आपको कह देना चाहता हूं कि अगर आप मेरे कार्यक्रमों में काम करना चाहते हैं तो जैसा मैं कहूं वैसे ही आपको करना चाहिए. ऐसा करने से हम सितंबर के अंत तक स्वराज पा लेंगे.’


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21वीं सदी का महात्मा मौजूदा किसी पार्टी से नहीं होने वाला है. वो शायद फिर से दक्षिण अफ्रीका से वाया लंदन देश में आएगा.

21वीं सदी के महात्मा के सामने भी एक बड़ा दायित्व है. उसके पास यूरोपिन देशों में छुट्टियां मनाने का काम नहीं है बल्कि उसे जेल जाने के लिए तत्पर रहना होगा. गांधी ने इसलिए अहमदाबाद में साबरमती के पास अपना आश्रम शुरू करने का फैसला किया. ‘साबरमती जेल का क्षेत्र मेरे लिए विशेष आकर्षण था. चूंकि सत्याग्रहियों के लिए जेल जाना सामान्य बात है इसलिए यह जगह मैंने चुनी.’

हमारे आधुनिक महात्मा को गांधी के बारे में पढ़ना पड़ेगा कि वो उस समय क्या कह रहे थे और आज के समयानुसार क्या बदलाव हो रहे हैं. 1901 में गांधी ने कांग्रेस के साथ अपने पहले अनुभव को इस तरह लिखा, ‘साल में कांग्रेस सिर्फ तीन दिनों के लिए जागती है और फिर पूरे साल के लिए सो जाती है. अगर इस बात को आज के परिप्रेक्ष्य में विपक्ष के साथ देखें तो हमें लगेगा कि महात्मा की जरूरत मौजूदा समय में बढ़ गई है.’

आधुनिक महात्मा को आने के साथ ही मीडिया को दोष नहीं दे देना चाहिए. महात्मा को लोगों तक पहुंचने के लिए अपने साधनों को बनाना होगा. गांधी खुद अपने अखबारों का संपादन और प्रकाशन करते थे. वो अपने संस्मरणों में दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा निकाले जाने वाले अखबारों के बारे में लिखते हैं. वो लिखते हैं, ‘भारतीयों के मतों ने आलोचकों को अपने कलम का इस्तेमाल करने से रोक दिया. लेकिन बिना आम जनों के मत के सत्याग्रह मुमकिन नहीं है.’

हमारा आधुनिक महात्मा अंग्रेजी बोलने वाला नहीं होना चाहिए. उसे भारत की आम जनता की भाषा आनी चाहिए. गांधी कांग्रेस पर लगातार उसके द्वारा अंग्रेजी में संवाद करने पर रंज करते थे. उनके द्वारा 20वीं सदी में कांग्रेस की आलोचना करने से आज का विपक्ष भी काफी कुछ सीख सकता है. 1901 के कांग्रेस के अधिवेशन के बारे में गांधी ने लिखा था, ‘स्वयंसेवक आपस में लड़ रहे हैं. अगर आप एक को कोई काम दो तो वो दूसरे को काम सौंप देता है और दूसरा फिर तीसरे को. और ये लगातार चलता रहता है. वो कुछ नहीं करते हैं.’

विपक्ष को फिर से मजबूत होने के लिए उसे अपने कैडर को बनाना होगा, स्वयंसेवकों को जोड़ना होगा. 1918 में गांधी ने लिखा था, ‘वास्तव में मैंने पागलों को अपने साथ जोड़ा लिया है. मैं कुछ नहीं करता, कुछ नहीं सोचता, कुछ नहीं बोलता हूं. इस भर्ती से मुझे बचाओ.’

सभी हीरो धोती नहीं पहनते हैं

गांधी इसलिए धोती पहनते थे क्योंकि वो देश की गरीब जनता के बीच उन्हीं की तरह दिखना चाहते थे. हमारे आधुनिक महात्मा हो सकता है कि धोती न पहनें. शायद वो साड़ी पहनें. लेकिन उसमें और गांधी में एक बात जो समान होनी चाहिए वो है लोगों के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता. उसे अपने सुविधाओं से बाहर निकलकर लोगों के बारे में सोचना पड़ेगा.


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कांग्रेस से तमाम असहमतियों के बावजूद गांधी ने उसे एकजुट किया और उसमें शामिल हुए. 1901 में उन्होंने लिखा, ‘सार्वजनिक काम उस समय कांग्रेस का काम होता था.’ गांधी सोचते थे कि आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी को सामाजिक कार्य करना चाहिए. इसलिए कांग्रेस को खुद को बदलकर लोक सेवक संघ में बदल जाना चाहिए और लोगों की सेवा करनी चाहिए.

गांधी ने लिखा था कि लोगों की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ होती है. चंपारण में किसानों से पहली मुलाकात करने के बाद गांधी ने लिखा था, ‘यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है बल्कि पूरी सच्चाई है कि मैंने इस बैठक के दौरान साक्षात भगवान, अहिंसा और सत्य के दर्शन किए हैं.’

जब हम किसी नेता को इन बातों को समझता हुआ पाएंगे तो हम वास्तव में कह पाएंगे कि महात्मा आ चुके हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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