भारत में बेरोजगारी दर अगस्त 2022 में 8.3 प्रतिशत से गिरकर सितंबर में 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गई. पिछले चार साल में यह सबसे निचले स्तर पर थी. यह गिरावट ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देखी गई.
बेरोजगारी दर में गिरावट के साथ श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलपीआर) अगस्त में 39.24 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर में 39.32 प्रतिशत पर पहुंच गई. एलपीआर में वृद्धि का मतलब है कि रोजगार चाहने वालों की संख्या बढ़ रही है. श्रम शक्ति में विस्तार के बीच बेरोजगारी दर में वृद्धि का अर्थ है रोजगारी दर में वृद्धि. रोजगारी में वृद्धि तो उत्साहवर्द्धक बात है लेकिन यह अभी भी कोविड से पहले वाले स्तर से नीचे है.
गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार में उथल-पुथल मची है. होटल, पर्यटन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरों में रोजगार के अवसर सुस्त गति से बढ़ रहे हैं लेकिन रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन, शिक्षा, आईटी, डेलीवरी और खुदरा कारोबार जैसे क्षेत्र रोजगार पैदा करने वाले बड़े क्षेत्रों के रूप में उभर रहे हैं. कोविड महामारी ने ‘गिग’ यानी ठेके वाली अर्थव्यवस्था की ओर रुख मोड़ दिया है.
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सितंबर में रोजगार बढ़े
रोजगार की संख्या अगस्त में 39.46 करोड़ से बढ़कर सितंबर में 40.42 करोड़ हो गई. रोजगार में वृद्धि का ज्यादा श्रेय ग्रामीण क्षेत्र को जाता है, जहां यह अगस्त में 27.03 करोड़ से बढ़कर सितंबर में 27.82 करोड़ हो गया. ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि की अगुआई कृषि क्षेत्र ने नहीं बल्कि मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्रों ने की. कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में सितंबर में 70 लाख से ज्यादा अतिरिक्त रोजगार पैदा हुए.
शहरी क्षेत्र में रोजगार सीमित रहा और अगस्त में 12.42 करोड़ से बढ़कर सितंबर में 12.59 करोड़ हो गया. सेवा सेक्टर में रोजगार के अतिरिक्त अवसर पैदा हुए.
मैन्युफैक्चरिंग की गतिविधियों में वृद्धि के संकेत के साथ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए ‘पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई) ने भी रोजगार के मामले में उत्साहवर्द्धक तस्वीर पेश की. सर्वे के अनुसार, ऑर्डरों की मांग और अंतरराष्ट्रीय बिक्री में मजबूती के कारण सितंबर में रोजगार तीन महीने की अवधि में सबसे तेजी से बढ़े.
देशव्यापी लॉकडाउन के पहले महीने अप्रैल 2020 में रोजगार तेजी से गिरकर 28.22 करोड़ पर पहुंच गया था. पूरे वर्ष 2020-21 में रोजगार गिरकर 38.27 करोड़ पर पहुंच गया. उसके बाद से 2021-22 में इसमें सुधार आया और यह 40.18 करोड़ हो गया लेकिन अभी भी यह कोविड से पहले वाले स्तर से नीचे है. 2019-20 में यह 40.88 करोड़ लोग रोजगार पर थे.
रोजगार के सरकारी सर्वे
रोजगार का आकलन करने के लिए नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने अप्रैल 2017 में ‘पीरिओडिक लेबर फोर्स’ (पीएलएफ) सर्वे शुरू किया. ये सर्वे रोजगार और बेरोजगारी के संकेतकों— श्रम शक्ति भागीदारी दर, कामगार जनसंख्या अनुपात और बेरोजगारी दर आदि के अनुमान प्रस्तुत करते हैं. शुरू में ये सर्वे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए वार्षिक स्तर पर किए जाते थे. पीएलएफ सर्वे की वार्षिक रिपोर्ट को जारी करने में प्रायः एक साल का अंतर रखा जाता है. सबसे ताजा वार्षिक सर्वे 2020-21 (जुलाई-जून) के लिए किया गया.
2020-21 के वार्षिक सर्वे ने रोजगार की स्थिति में सुधार दिखाया. बेरोजगारी दर जैसे प्रमुख आंकड़े में सुधार (4.8 प्रतिशत से गिरकर 4.2 प्रतिशत) दिखा मगर मुख्यतः निचले स्तर के रोजगारों में ही बढ़ोत्तरी हुई. बिना पारिश्रमिक वाले स्व-रोजगारों में वृद्धि हुई. सर्वे ने कृषि में रोजगार करने वालों की संख्या में वृद्धि दर्शाई है. शहरों से गांवों की ओर लौटने वाले कामगारों की वजह से कृषि क्षेत्र पर दबाव बढ़ा कि वह उन्हें रोजगार दे.
दिसंबर 2018 के बाद से शहरी क्षेत्रों के लिए तिमाही पीएलएफ सर्वे किए जा रहे हैं. अप्रैल-जून 2020 के तिमाही सर्वे के मुताबिक शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी दर बढ़कर 20.9 फीसदी हो गई. लॉकडाउन में छूट के बाद अगली तिमाहियों में बेरोजगारी दर में निरंतर कमी देखी गई. अप्रैल-जून 2022 के ताजा सर्वे के मुताबिक, बेरोजगारी दर पिछली तिमाही में 8.2 फीसदी से गिरकर 7.6 फीसदी हो गई.
रोजगार के तिमाही सर्वे
पीएलएफ सर्वे तो सप्लाई पक्ष में रोजगार की स्थिति का अंदाजा देता है, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी तिमाही रोजगार सर्वे (क्यूईएस) मांग पक्ष या संस्थान पक्ष में रोजगार की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं.
मनरेगा में रोजगार की मांग
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, 2005 (मनरेगा) हर उस ग्रामीण परिवार को एक वित्त वर्ष में वेतन के साथ 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम वाला रोजगार करना चाहते हैं. कोविड की पहली लहर के दौरान इसमें रोजगार की मांग काफी बढ़ गई थी. जून 2020 में 4.479 करोड़ घरों ने रोजगार मांगा. इसके बाद से मांग में मौसमी वृद्धि होती रही है लेकिन कुल मिलाकर कमी आई है.
कोविड के दौरान मनरेगा ने घर लौटे प्रवासी कामगारों और कमजोर तबकों के लोगों को बेहद जरूरी रोजगार दिया. संकट के समय रोजगार की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए इस योजना को स्वीकार्य कार्यों का दायरा बढ़ाने पर विचार करना चाहिए.
ताजा आंकड़े बताते हैं कि सितंबर में 1.677 करोड़ घरों ने काम की मांग की. यह इससे पिछले महीने में की गई मांग से 5 फीसदी ज्यादा थी. श्रम बाजार में सुधार के लिए इस मांग में निरंतर कमी होनी चाहिए.
एमएसएमई में रोजगार
‘माइक्रो, स्माल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज़ (एमएसएमई) रोजगार के अवसर पैदा करने में अहम भूमिका निभाते हैं. एमएसएमई द्वारा रोजगार निर्माण के ताजा आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन एमएसएमई मामलों के राज्यमंत्री द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक इस सेक्टर में 2021-22 में रोजगार के 93 लाख से ज्यादा अवसर पैदा हुए. हुनर में सुधार पर ज़ोर देकर और इनके संचालन बोझ को कम करके एमएसएमई में रोजगार बढ़ाए जा सकते हैं.
‘गिग’ अर्थव्यवस्था की ओर
महामारी के बाद ठेके वाले रोजगार पर ज़ोर बढ़ गया है. भारत में अनौपचारिक ‘गिग’ कामगारों की बड़ी संख्या है. डिजिटाइजेशन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की वजह से ‘गिग’ कामगारों पर ज़ोर बढ़ा है. ताजा सर्वे के मुताबिक, ‘गिग’ अर्थव्यवस्था गैर-कृषि सेक्टरों में अंततः 9 करोड़ रोजगार पैदा कर सकती है. प्लेटफॉर्मों द्वारा प्रस्तुत लचीलेपन को संतुलित करने वाली और कामगारों की सामाजिक सुरक्षा देने वाली सही नीतियां आज वक़्त की मांग हैं.
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