भारत में सोना केवल एक वस्तु या वित्तीय संपत्ति नहीं है—यह देश की सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. सदियों से, हर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों ने सोने का उपयोग सिर्फ गहनों या निवेश के रूप में नहीं, बल्कि पीढ़ियों तक चलने वाली संपत्ति और आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखते आए हैं. यह गहरा रिश्ता ही गोल्ड लोन को भारत में सबसे सुलभ, व्यावहारिक और भरोसेमंद क्रेडिट विकल्प बनाता है.
भारतीय परिवारों के पास लगभग 25,000 टन सोना है, जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा निजी स्वर्णधारी बनाता है. तुलना के लिए, यह अमेरिका के फोर्ट नॉक्स में रखे गए सोने के भंडार से लगभग छह गुना ज्यादा है, जो कि दुनिया के सबसे सुरक्षित सोना भंडारण स्थलों में से एक है. यह विशाल निजी गोल्ड कलेक्शन केवल संपत्ति नहीं है—यह भावना, परंपरा और सामाजिक-आर्थिक मजबूती का प्रतीक है.
गोल्ड लोन पारंपरिक रूप से परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय सहारा रहा है, खासकर संकट के समय. स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि खर्च या अल्पकालिक नकदी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोना गिरवी रखना आम तौर पर असुरक्षित ऋण लेने या जटिल बैंकिंग प्रक्रियाओं से गुजरने की तुलना में अधिक तेज, सुविधाजनक और सुलभ होता है. इसकी लोकप्रियता का कारण है कम दस्तावेज़ीकरण, तेजी से वितरण और असुरक्षित क्रेडिट की तुलना में कम ब्याज दरें.
लेकिन अब यह जरूरी सहारा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की नई गाइडलाइनों के चलते खतरे में है, जो 2025 के मध्य में सार्वजनिक की गईं. इनका उद्देश्य भले ही धोखाधड़ी रोकना और उचित जांच सुनिश्चित करना हो, लेकिन ये नियम उन मामलों में गोल्ड लोन देने से मना करते हैं जहां गिरवी रखे गए सोने की मिल्कियत पर संदेह हो, और इसके लिए सोने की आधिकारिक मिल्कियत या उस मिल्कियत के दस्तावेज़ी प्रमाण की मांग की गई है—जो कि भारत जैसे देश में पूरा कर पाना मुश्किल है, जहां ज़्यादातर सोना पीढ़ियों के बीच या तोहफे के रूप में बिना किसी कागज़ी काम के एक-दूसरे को दिया जाता है.
इन गाइडलाइनों में लोन-टू-वैल्यू अनुपात को भी सख्त किया गया है—2.5 लाख रुपए तक के लोन पर सोने के मूल्य का अधिकतम 85 प्रतिशत, 2.5 से 5 लाख रुपए तक पर 80 प्रतिशत और उससे अधिक पर 75 प्रतिशत तक ही लोन दिया जाएगा, जिसमें ब्याज और शुल्क भी शामिल होंगे, यानी व्यवहार में कम राशि ही लोन के रूप में मिल पाएगी.
इसके अतिरिक्त, अब उधारकर्ताओं को नया गोल्ड लोन लेने से पहले पुराना पूरा चुकाना अनिवार्य है, जिससे पहले की उस व्यवस्था का अंत हो गया है जिसमें केवल ब्याज चुकाकर लोन को बढ़ाया जा सकता था. अब उधारदाता को उधारकर्ता की आय और पुनर्भुगतान की क्षमता का भी मूल्यांकन करना होगा, जिससे वे लोग प्रभावित होंगे जिनके पास आय का कोई औपचारिक सबूत नहीं है, जैसे कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले.
अन्य शर्तों में गिरवी रखे जा सकने वाले सोने की मात्रा पर भी पाबंदियां हैं—गहनों की अधिकतम सीमा 1 किलोग्राम और सोने के सिक्कों की 50 ग्राम रखी गई है, जबकि गोल्ड ईटीएफ और म्यूचुअल फंड को गिरवी के रूप में मान्यता नहीं दी गई है.
यह मुद्दा इतना गंभीर है कि इसे संसद में उठाने की जरूरत पड़ी, जो मैंने बजट सत्र के दौरान 27 मार्च को अपने शून्यकाल भाषण में उठाया.
सुधार की पुकार
नए नियम यह नहीं समझते कि भारतीय समाज में सोने का स्वामित्व कैसे काम करता है. यह अक्सर बिना दस्तावेज़ों के होता है, पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है और गहराई से व्यक्तिगत होता है. नीचे दी गई कुछ असली किस्से इन नियमों के अनचाहे असर को सामने लाती हैं:
आंध्र प्रदेश के कडप्पा ज़िले में के. नागलक्ष्मी, एक सीमांत किसान की पत्नी हैं. उन्होंने 18 साल पहले अपनी शादी में मिले सोने के कंगन गिरवी रखकर 2 लाख रुपये जुटाए ताकि उनके पति की ट्रैक्टर दुर्घटना के बाद इमरजेंसी सर्जरी कराई जा सके. इस सोने के पास कोई रसीद नहीं थी; यह दहेज में मिला था, उनकी मां से आया था. उन्होंने दि हिंदू को बताया, “मेरे पास ये साबित करने के लिए कोई कागज़ नहीं है कि ये मेरे हैं। इन कंगनों ने मेरे पति की जान बचाई. अगर अगली बार बैंक सबूत मांगेगा, तो मैं क्या करूंगी?”
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, बिहार के मुजफ्फरपुर में ठेला लगाकर सब्ज़ी बेचने वाले राजू सिंह ने अपनी पत्नी की बालियां गिरवी रखकर एक स्थानीय कर्ज़दाता से 40,000 रुपये का गोल्ड लोन लिया. उनके पास न तो नियमित आमदनी का कोई प्रमाण था और न ही सोना खरीदने की रसीद. उन्होंने यह पैसा ताज़ा माल खरीदने और अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए इस्तेमाल किया.
भारत के कई घरों में सोना औपचारिक रसीदों के साथ नहीं खरीदा जाता. यह शादियों में उपहार स्वरूप दिया जाता है, पीढ़ियों से ट्रांसफर होता है या बहुत पहले, अक्सर डिजिटलीकरण और रसीद संस्कृति के आने से पहले लिया गया होता है. यह मान लेना कि सभी उधारकर्ता औपचारिक दस्तावेज़ पेश कर सकते हैं, ज़मीनी सच्चाई से कटे होने और सांस्कृतिक रूप से असंवेदनशील होने जैसा है.
नियमों के चलते अनजाने में सही उधार लेने वालों को बाहर किया जा सकता है, खासकर महिलाओं, ग्रामीण परिवारों, असंगठित क्षेत्र के कामगारों और बुज़ुर्गों को. धोखाधड़ी रोकने की कोशिश में हम लोगों को औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से दूर कर एक बार फिर सूदखोरों की ओर धकेल सकते हैं.
हालांकि नियामक निगरानी ज़रूरी है, लेकिन इसके साथ सांस्कृतिक समझ और व्यावहारिक लचीलापन भी होना चाहिए. गोल्ड लोन सिर्फ वित्तीय साधन नहीं हैं—वे भारत की सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक वित्तीय ज़रूरतों के बीच एक पुल हैं. RBI को सिर्फ स्प्रेडशीट और बैलेंस शीट तक सीमित नहीं रहकर यह समझना होगा कि भारत में लोग सोने को कैसे जीते हैं—परंपरा के रूप में, विश्वास के रूप में, और ज़रूरत के समय एक सहारे के रूप में.
नियमों को वित्तीय प्रणाली की साख के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं की गरिमा की भी रक्षा करनी चाहिए. तभी हम सोने के मूल्य को एक सुरक्षा के स्रोत के रूप में बचा सकेंगे—केवल पैसों की नज़र से नहीं, बल्कि भारतीय जीवन के सांस्कृतिक हृदय में भी.
कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका एक्स हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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