scorecardresearch
Monday, 16 December, 2024
होममत-विमतउत्तरकाशी के बाद रैट-होल माइनर्स की धूम मची हुई है, पर वक्त आ गया है कि भारत उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे

उत्तरकाशी के बाद रैट-होल माइनर्स की धूम मची हुई है, पर वक्त आ गया है कि भारत उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे

जब अत्याधुनिक भारी-भरकम मशीनों ने हार मान ली, तो 12 रैट होल माइनर्स का एक समूह था जो उत्तरकाशी सुरंग ढहने में फंसे श्रमिकों के रक्षक बन गए.

Text Size:

12 नवंबर को उत्तरकाशी सुरंग ढहने के बाद जैसे ही बचाव अभियान शुरू हुआ, अधिकारियों ने सबसे पहले सुरंग को अवरुद्ध करने वाले मलबे को खोदने के लिए खुदाई करने वाली मशीनें मंगवाईं. बता दें कि मलबा गिरने के बाद सुंरग के अंदर 41 मज़दूर अंदर फंस गए थे.   

लेकिन जल्द ही एहसास हुआ कि ये मशीनें इसके लिए पर्याप्त नहीं थीं. चट्टान और बोल्डर मिले मलबे में ड्रिलिंग के लिए और अधिक बारूद की जरूरत थी. बचाव कार्य में लगी विभिन्न एजेंसियों के अधिकारियों के बीच कई दौर के मंथन के बाद 500 टन क्षमता की ऑगर ड्रिलिंग मशीन का उपयोग करने का निर्णय लिया गया. संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित अमेरिकन ऑगर्स नामक कंपनी द्वारा निर्मित इस मशीन का उपयोग दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) द्वारा किया जा रहा था.

दिल्ली से ले जाने के तुरंत बाद, बरमा को सिल्क्यारा में कार्रवाई के लिए दबाया गया. हालांकि, क्षेत्र की जटिल स्थलाकृति ने इसके काम को और कठिन बना दिया. ड्रिलिंग के दौरान धातु के गार्डर से टकराने के बाद मशीन कई बार टूट गई.

सुरंग में फंसे मजदूर और उनके परिजन हताश होते जा रहे थे, समय निकलता जा रहा था. ऑपरेशन अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका था कि बरमा फिर से टूट गया. मजदूरों तक पहुंचने से यह महज 10 मीटर दूर था. तभी अधिकारियों ने रैट होल माइनर्स के माध्यम से मैन्युअल ड्रिलिंग करने का फैसला किया जिसमें रस्सी का इस्तेमाल मलबे निकालने के लिए किया जाता है. रैट होल माइनर्स को संकीर्ण सुरंगों और कोयले के गड्ढों के अंदर खोदने में विशेषज्ञता हासिल है. 

जब बड़ी-बड़ी हेवी-ड्यूटी मशीनों ने हार मान ली, तो यह 12 रैट होल माइनर्स का एक ग्रुप ही था जो रक्षक बन गया. वे संकरी सुरंग के अंदर घुस गए और मलबे को मैन्युअल रूप से हटा दिया, जिससे फंसे हुए श्रमिकों तक पहुंचने के लिए पाइप के लिए जगह बन गई. और यही कारण है कि रैट-होल माइनर्स दिप्रिंट के इस सप्ताह के न्यूज़मेकर्स हैं. 

बचाव अभियान के असली हीरो

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश और नई दिल्ली के निवासी 12 लोग नई दिल्ली में ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज कंपनी में कार्यरत हैं. इस कंपनी को दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सीवर और पानी की पाइपलाइनों की स्थापना और रखरखाव के लिए अनुबंधित किया गया है.

उत्तरकाशी में ये माइनर्स एक संकीर्ण सुरंग के अंदर गए और मलबा साफ किया. बचाव अभियान की सफलता के बाद, मीडिया द्वारा उनका सम्मान किया जा रहा है और उन्हें “असली नायक” कहा जा रहा है.

रैट-होल माइनर्स मुख्य रूप से मेघालय में कोयला खदानों में काम करते हैं. वे लगभग 300-400 फीट गहरे गड्ढे खोदते हैं और कोयले के भंडार की तलाश में अंदर जाते हैं.


यह भी पढ़ें: ‘अजित पवार की नजरें अब शरद पवार के गढ़ पर है’, बारामती में NCP बनाम NCP की लड़ाई देखने को मिल सकती है


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए 2014 में इस रैट होल माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था. अपने आदेश में एनजीटी ने कहा कि “ऐसे कई मामले हैं जहां बरसात के मौसम के दौरान रैट होल माइनिग के चलते खनन क्षेत्रों में पानी भर गया, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों के अलावा मजदूरों और कर्मचारियों की मौत हो गई.”

हालांकि, प्रतिबंध का खुलेआम उल्लंघन किया गया और अवैध खनन बेरोकटोक जारी रहा.

जुलाई 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने खदान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 और खनिज रियायत नियम 1960 के प्रावधानों के अनुपालन की शर्त के तहत मेघालय में कोयला खनन कार्यों की अनुमति देते हुए पूर्ण प्रतिबंध हटा दिया. 

आजीविका का खतरनाक स्रोत

इनमें से अधिकांश खनिकों की वास्तविक कहानी, जो थोड़े से पैसे के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, उतनी ही हताश करने वाली है. ड्यूटी के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं पर ज्यादातर ध्यान नहीं दिया जाता और मुख्यधारा के मीडिया में उनका उल्लेख नहीं किया जाता.

हताशा अधिकांश मज़दूरों को इस कम वेतन वाली और खतरनाक नौकरी की ओर ले जाती है और यह उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत है.

आखिरी बड़ी दुर्घटना दिसंबर 2018 में हुई जब मेघालय की पूर्वी जैंतिया पहाड़ियों के कसान में एक अवैध रैट-होल कोयला खदान के अंदर 15 मजदूर फंस गए. बचाव अभियान को पूरा करने में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) सहित अधिकारियों को सात महीने लग गए. पांच मज़दूर जीवित बच निकले और केवल दो के शव खदान से बरामद हुए. अधिकांश श्रमिकों के परिवारों को अभी तक केवल मामूली मुआवजा ही दिया गया है.

यह त्रासदी 2021 में दोहराई गई जब राज्य में बाढ़ वाली खदान में पांच मजदूर फंस गए. केवल तीन शव बरामद किये गये. ठेकेदारों और खदान मालिकों द्वारा सुरक्षा मानदंडों का नियमित और खुलेआम उल्लंघन किया जाता है, और कमजोर श्रमिकों का शोषण किया जाता है जो अक्सर अशिक्षित और गरीब होते हैं.

कमजोर श्रमिक, जो अक्सर अशिक्षित और गरीब होते हैं, नियमित रूप से शोषण का शिकार होते हैं. उदाहरण के लिए, कसान खनन स्थल पर, श्रमिकों के पास एकमात्र सुरक्षा गियर प्लास्टिक हेलमेट थे.

प्रसिद्धि बहुत कम दिनों की ही होगी, लेकिन उत्तरकाशी ने 12 रैट-होल माइनर्स को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया है. जीविकोपार्जन के लिए पुरुष जल्द ही अपने जोखिम भरे काम पर लौट आएंगे. यह उनके लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी यदि संबंधित अधिकारी, ठेकेदार और एजेंसियां ​​सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन करें, यह सुनिश्चित करें कि इन लोगों को शारीरिक और वित्तीय रूप से पर्याप्त रूप से कवर किया जाए.

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत विरोधी तत्वों को शरण देने में अमेरिका कनाडा से अलग नहीं है, यह एक और 9/11 का कारण बन सकता है


 

share & View comments