यह बीयर बाइसेप्स वाला मामला लगातार बिगड़ता जा रहा है. मैंने पिछले हफ्ते इस पर एक कॉलम लिखा था और वैसे भी, आपको अब तक की कहानी तो पता ही होगी. फिर भी, आपकी याददाश्त ताज़ा करने के लिए थोड़ा बैकग्राउंड दे रहा हूं.
रणवीर इलाहाबादिया, जो खुद को बीयर बाइसेप्स गाइ कहते हैं, अब दक्षिणपंथी (या हिंदुत्व-समर्थक) सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं के निशाने पर हैं और बीजेपी शासित राज्यों की विभिन्न पुलिस उन पर कार्रवाई कर रही है. इसकी वजह बना है उनका एक यूट्यूब शो इंडियाज़ गॉट लेटेंट पर दिया गया बयान.
इस पूरे केस की कई विडंबनाएं हैं. सबसे बड़ी यह कि बीयर बाइसेप्स खुद इस सरकार के जबरदस्त समर्थक रहे हैं. उन्होंने ताकतवर लोगों के आगे झुकते हुए कई “इंटरव्यू” (इस शब्द का सबसे हल्का रूप लेकर) किए हैं. वह सत्ता से करीबी बढ़ाने के लिए इतने आतुर रहे हैं कि उन्होंने दक्षिणपंथी लोगों से ऐसे सवाल तक पूछे हैं, जो आमतौर पर भड़काऊ बयान देने वाले लोग ही पूछते हैं: “आप किन लोगों को देश से बाहर फेंकना चाहेंगे?”
इंडियाज़ गॉट लेटेंट नाम का यह शो खुद को “एजी” (edgy) और “कूल” दिखाने की कोशिश करता है. इसके निर्माताओं की सोच कितनी भ्रमित है, इसका अंदाज़ा हमें इसके मुख्य व्यक्ति समय रैना के एक ट्वीट से लगता है. उन्होंने कभी लिखा था:
“लेफ्ट से कैंसिल होने के डर की वजह से हमारे पास एंड्रयू शुल्ज़, जिमी कैर, डेव चैपल और रिकी गर्वाइस जैसे कॉमेडियन नहीं हैं. चिंता मत करो, मैं यह बदलने के लिए आया हूं! जनता साथ है. ये लोग कुछ नहीं उखाड़ सकते.”
आख़िरी शब्द बड़े मशहूर रहे!
जैसे कई पाखंडी दक्षिणपंथी “कॉमेडियन” जो ऐसे समाज में काम करते हैं, जहां पूरी ताकत दक्षिणपंथ के हाथ में है और वही सारे फैसले करता है, समय रैना भी यह दिखावा कर रहे थे कि वह किसी काल्पनिक वामपंथी भीड़ के ख़िलाफ़ “बहादुरी” से खड़े हैं—वामपंथी जो इतने ताकतवर हैं कि उन्हें कैंसिल कर सकते हैं.
लेकिन अंत में, उन्हीं की अपनी विचारधारा के लोग उनके पीछे पड़ गए!
जूते चाटने से लेकर लात खाने तक
यह खुद को “निडर” और “बोल्ड कॉमेडी” करने वाला बताने वाला शख्स विदेशी कॉमेडियनों के नक्शे-कदम पर चलने के लिए इतना उतावला था कि उसने और उसके साथियों ने सोचा कि उनकी तरह बनने का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि उनके चुटकुले चुरा लिए जाएं. शायद उन्हें लगा कि अगर वे उनके चुटकुलों के ज्यादा भद्दे हिंदी अनुवाद कर दें, तो यह साहित्यिक चोरी नहीं कहलाएगी.
उदाहरण के लिए, अमेरिका में Roe v. Wade के फैसले के बाद, रैना ने दक्षिणपंथी अमेरिकी कॉमेडियनों से प्रेरणा लेते हुए उन महिलाओं का मजाक उड़ाया, जो गर्भपात कराना चाहती थीं. उसने चुटकुला बनाया, “अगर मैं कल अपनी गर्लफ्रेंड से गर्भपात करवाने को कहूं, तो उसे ‘मेरा शरीर, मेरी मर्जी’ नहीं कहना चाहिए.”
गर्भपात भारत में कोई मुद्दा ही नहीं है. इस मजाक का कोई संदर्भ नहीं था, और यह साफ़ था कि यह तथाकथित वामपंथी ताकतों के ख़िलाफ़ बहादुरी दिखाने वाला कार्यकर्ता असल में अपना कंटेंट कहां से चुरा रहा था. वह इस स्त्री-विरोधी और महिलाओं को अपमानित करने वाले कचरे से इसलिए बच गया, क्योंकि उसके फैंस (संभवत: दक्षिणपंथी, क्योंकि वह वामपंथ से लड़ रहा था) को यह मजाकिया लगा.
सब कुछ ठीक चल रहा था, जब तक कि उसके शो ने माता-पिता को सेक्स करते देखने और शायद उसमें शामिल होने से जुड़ा एक मजाक चुरा नहीं लिया. मुझे यह चुटकुला घिनौना लगा, लेकिन फिर मुझे सरकार के इन चाटुकारों की कही कई दूसरी बातें भी घिनौनी लगती हैं. उदाहरण के लिए, बीयर बाइसेप्स के इंटरव्यूज़ ज्यादातर उल्टी लाने वाले होते थे.
लेकिन फिर कुछ अजीब हुआ. जिस दक्षिणपंथ से ये लोग इतने गर्व के साथ अपनी पहचान जोड़ते थे, उसी ने इन्हें अचानक करारा झटका दे दिया—जबकि ये लोग अब तक उनके तलवे चाटने में लगे थे. न केवल इनके खिलाफ बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया अभियान चलाया गया, बल्कि अब इन्हें कानूनी मुकदमों और प्रताड़ना का सामना भी करना पड़ रहा है.
मैंने पिछले हफ्ते लिखा था कि इसके पीछे चार संभावित कारण हो सकते हैं. एक: यह गुस्सा अचानक उपजा और किसी संगठित अभियान का हिस्सा नहीं था.
बाकी तीन कारण अधिक संभावित थे. शायद बीयर बाइसेप्स और उसके साथियों का सरकार से किसी वजह से मनमुटाव हो गया था. या फिर सरकार को चारों तरफ से आ रही बुरी खबरों, जिनमें हालिया भगदड़ भी शामिल थी, से ध्यान भटकाने के लिए किसी मुद्दे की जरूरत थी.
और चौथा कारण, जो मुझे सबसे ज्यादा तर्कसंगत लगा, यह था कि यह गुस्सा जानबूझकर खड़ा किया गया, ताकि सरकार को डिजिटल मीडिया और इंटरनेट पर कड़े नियंत्रण लगाने का बहाना मिल सके.
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ट्रायल पर फ्री स्पीच
अगर सच में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर और सख्ती करना ही मकसद था, तो सत्ता में बैठे लोगों के लिए हालात काफी अच्छे हैं.
इलाहाबादिया ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, यह मांग करते हुए कि देशभर में उसके खिलाफ दर्ज कई एफआईआर को एक मामले में जोड़ा जाए और उसे गिरफ्तारी से सुरक्षा मिले.
कोर्ट ने दोनों मांगें स्वीकार कर लीं, लेकिन अपनी मौखिक टिप्पणियों में उस पर जमकर नाराजगी भी जताई.
मैं सुप्रीम कोर्ट का पूरा सम्मान करता हूं और इस बात से भी पूरी तरह वाकिफ हूं कि यह हमारे अधिकारों और स्वतंत्रता की आखिरी उम्मीदों में से एक है। लेकिन जब कोर्ट इस तरह की बातें कहता है कि, “इसके दिमाग में कोई गंदगी है” और “कोर्ट को ऐसे व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई क्यों करनी चाहिए?”, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में ज्यादा मददगार नहीं होता.
कोर्ट ने आगे कहा, “सिर्फ इसलिए कि कोई कहता है कि ‘मैं लोकप्रिय हूं’, क्या उसे कुछ भी बोलने की छूट मिल जाएगी? क्या वह समाज को हल्के में ले सकता है? पूरा समाज शर्मिंदा महसूस करेगा! जिस तरह की विकृति आपने और आपके साथियों ने दिखाई है!”
सबसे चिंता की बात यह रही कि कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वह यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए कोई कानूनी ढांचा लागू करने की योजना बना रही है, क्योंकि यह “एक पूरी तरह से उपद्रव बन चुका है.”
कोर्ट ने यह भी कहा, “अगर भारत सरकार इसे करना चाहती है, तो बहुत अच्छा. लेकिन हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि इस पर कुछ किया जाना चाहिए… कुछ करना ही होगा, और हम करेंगे. इसे ऐसे ही नहीं छोड़ा जाएगा.”
अगर मेरी पिछले हफ्ते की आशंका सही थी—कि यह पूरा विवाद सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर और सख्ती करने और डिजिटल मीडिया पर अधिक नियंत्रण पाने का आधार देने के लिए तैयार किया गया था—तो सत्ता में बैठे लोगों के लिए यह किसी जीत से कम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने वही कहा, जो सरकार चाहती थी.
राज्य बनाम चुटकुले
तो, बीयर बाइसेप्स और उसके साथियों, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने “साथी अपराधी” कहा, का अब क्या होगा?
खैर, इलाहाबादिया को अब और कॉमेडी शो बनाने से रोक दिया गया है. यह उन लोगों के लिए राहत की बात हो सकती है जो अच्छी कॉमेडी पसंद करते हैं, लेकिन फिर भी यह उसकी रोज़ी-रोटी के अधिकार में अनुचित दखल है. बाकी लोगों को अभी तक सुप्रीम कोर्ट से कोई सुरक्षा नहीं मिली है, इसलिए संभव है कि उन्हें परेशान किया जाए, उनके घरों पर छापे मारे जाएं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए.
जैसा कि आप समझ ही गए होंगे, मैं इन पाखंडियों, दोहरे चरित्र वालों और चापलूसों का कोई पक्ष नहीं ले रहा. ये लोग अपनी मनगढ़ंत लड़ाई के जरिए, जिसमें वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वामपंथी ताकतें उन्हें “रद्द” करने पर तुली हैं, कॉमेडी को बदनाम कर रहे हैं.
लेकिन दो बातें कही जानी चाहिए। किसी भी भारतीय नागरिक के खिलाफ केवल एक मज़ाक के लिए राज्य की पूरी ताकत का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, चाहे वह मज़ाक कितना भी भद्दा या घटिया क्यों न हो. आपको इन लोगों को पसंद करने या उनके चुटकुलों पर हंसने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन एक नागरिक के रूप में उनके अधिकारों के समर्थन में खड़ा होना चाहिए.
इसके अलावा, असली मुद्दा व्यक्ति नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सिद्धांत है. और यह स्वतंत्रता के लिए अच्छा सप्ताह नहीं रहा है.
हमारी स्वतंत्रता पर यह प्रहार सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित नहीं है जिन्होंने हमें निराश किया है या सरकार की योजनाओं के लिए काम किया है. यह सभी भारतीय नागरिकों को प्रभावित करता है.
जब अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात आती है, तो भारतीय नागरिक सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों से अपने अधिकारों की बेहतर सुरक्षा की उम्मीद करते हैं.
वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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