scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतअयोध्या में विकास की झूठी हवा बना दी गई है, बिलकुल अमेठी जैसी

अयोध्या में विकास की झूठी हवा बना दी गई है, बिलकुल अमेठी जैसी

अमेठी देश-प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों के सौतियाडाह की शिकार हुआ करती थी, भाजपा की डबल इंजन सरकारों के दौर में अयोध्या भी अब वैसे ही सौतियाडाह से पीड़ित है.

Text Size:

‘अयोध्या की हालत अब एकदम अमेठी जैसी हो गयी है.’ मोदी-योगी राज में ‘भगवान राम की अयोध्या’ को मिल रहे वीवीआईपी ट्रीटमेंट से अभिभूत होकर आप हवा में उड़ रहे हों और कोई यह एक वाक्य कहकर आपको सच्चाई की कठोर भूमि पर ला पटके तो चौकिये नहीं. क्योंकि सच्चाई यही है कि जैसे कांग्रेस राज में मीडिया द्वारा वहां स्वर्ग उतार दिये जाने के प्रचार के चलते, अमेठी देश-प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों के सौतियाडाह की शिकार हुआ करती थी, भाजपा की डबल इंजन सरकारों के दौर में अयोध्या भी अब वैसे ही सौतियाडाह से पीड़ित है.

हो भी क्यों नहीं, भव्य राम मंदिर के निर्माण के बरक्स सरकारी तंत्र ने एक के बाद एक हवाई ऐलान करके अयोध्या को विकास योजनाओं के ऐसे भारी भरकम तिलिस्म के हवाले कर रखा है, जो न सिर्फ महाभारतकाल जैसा जल में थल और थल में जल का भ्रम पैदा करता, बल्कि कड़वी जमीनी हकीकतों का दम भी घोंटता रहता है.

अयोध्या के सम्मानित साहित्यकार आर.डी. आनंद के शब्दों में इसे यों समझ सकते हैं- ‘यहां विकास के नाम पर व्यापक विस्थापन, आस्थाओं के नाम पर इमोशनल अत्याचार और माननीयों के रोज-रोज के दौरों के नाम पर यातायात की बंदिशों के अलावा कुछ दिखता ही नहीं, यहां तक कि निर्बाध बिजली आपूर्ति भी सपना बनी हुई है. लेकिन जहां भी जाता हूं, ईर्ष्या से भरे लोग कहते हैं कि अब तो अयोध्या में आप लोगों के मजे ही मजे हैं. योगी-मोदी दोनों आप लोगों का भरपूर ख्याल रख रहे हैं.’

ऐसा कहने वाले आनंद अकेले नहीं हैं. दूसरे अयोध्यावासी भी जहां कहीं भी जाते हैं- प्रदेश के दूसरे जिलों में या देश दूसरे प्रदेशों में-उन्हें इस सौतियाडाह से गुजरना पड़ता हैं. लोगों को लगता है कि अयोध्यावासी उनके हिस्से के ‘रामराज्य’ की सौगातें भी हड़प लिये जा रहे हैं.

अयोध्या की समस्याएं नहीं सुनी जातीं

जबकि अयोध्या में अवतरित रामराज्य का सच यह है कि प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री की वहां की यात्राओं के दौरान कोई विपक्षी नेता उन्हें जनसमस्याओं से जुड़ा ज्ञापन देने का ऐलान भर कर दे तो पुलिस उसे उसके घर से बाहर नहीं निकलने देती. तभी मुक्त करती है, जब प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री अयोध्या को पर्यटन के विश्व मानचित्र पर लाने, उसकी धरती पर त्रेता युग उतारने, पौराणिक नदियों को पुनर्जीवन और आस्था केन्द्रों को सम्मान देने, आदि सम्मोहक ऐलान करके वापस चले जाते हैं. गत भव्य दीपोत्सव में तो हद ही हो गयी. स्थानीय पत्रकारों को प्रधानमंत्री के कार्यकम के कवरेज के लिए पास तक नहीं दिये गये.


यह भी पढ़ें: ‘BJP संघीय ढांचे को नष्ट कर रही’—गृह मंत्रालय की संसदीय समिति से बाहर रखने पर TMC नाराज


मोदी व योगी की सरकारें और उनकी भारतीय जनता पार्टी वैसे भी अपने कार्यक्रमों व योजनाओं के प्रचार के लिए इन पत्रकारों पर निर्भर नहीं करतीं. क्योंकि उन्हें लगता है कि अपने तगड़े मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत वे यों ही अपनी योजनाओं व कार्यक्रमों को चर्चाओं के केन्द्र में बनाये रखने में सक्षम हैं. लेकिन जमीनी हकीकतें अब उनके इस अति आत्मविश्वास की परत छेदकर बाहर आने लगी है.

अयोध्या से जनकपुर तक बस सेवा का क्या हुआ?

गत गुरुवार को अयोध्या से लेकर जनकपुर यानी ‘माता सीता की ससुराल से मायके’ तक श्रीराम कर्म भूमि यात्रा के आगाज के वक्त भी बाहर आकर ही रही. इस यात्रा से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने लखनऊ स्थित सरकारी आवास पर रथ में सुशोभित चरण पादुकाओं का पूजन किया, जिसके बाद अयोध्या के कई भाजपा समर्थक साधु-संत यात्रा को लेकर अयोध्या से बक्सर होते हुए जनकपुर गए. लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी हवा में गूंजने लगा कि चार साल पहले भारत नेपाल मैत्री के बहाने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री द्वारा इंवेंट के तौर पर हरी झंडी दिखाकर शुरू की गई. अयोध्या से जनकपुर व जनकपुर से अयोध्या की महत्वाकांक्षी बस सेवा का क्या हुआ?

प्रसंगवश, 11 मई, 2018 को प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा के वक्त भारी ताम-झाम के बीच, इस बस सेवा को अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जनकपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरी झंडी दिखाई थी. जनकपुर में मोदी के साथ नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी ओली भी मौजूद थे. तब प्रचार किया गया था कि यह गौरवशाली बस सेवा इन सरकारों की सभी आस्था केन्द्रों व तीर्थस्थलों को सड़क, वायु व जलमार्ग से जोड़ने की हसरत का अंग है. लेकिन अयोध्या में योगी ने जिस बस को हरी झंडी दिखाई थी, वह एक बार जनकपुर गई तो वापस अयोध्या नहीं लौटी. इसी तरह प्रधानमंत्री ने जनकपुर में जिस बस को हरी झड़ी दिखाई थी, वह भी अयोध्या से लौटकर दोबारा जनकपुर नहीं गई.

तब से अब तक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की कई अयोध्या यात्राएं हो चुकी हैं- लता मंगेशकर चैक का लोकार्पण व भव्य दीपोत्सव भी- लेकिन इस बंद बस सेवा को फिर से शुरू कर सीता के मायके व ससुराल को जोड़ने की फिक्र किसी ने भी नहीं की है. शायद इसलिए कि उसके बहाने जितना प्रचार मिलना था, वह मिल चुका है. समाजवादी जनता पार्टी (चन्द्रशेखर) के प्रदेश अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव यह कहकर इसकी खिल्ली उड़ाते हैं कि यह तो हद है कि एक ओर सरकारें अयोध्या से जनकपुर तक बस नहीं चलवा पा रहीं और दूसरी ओर अयोध्या में हवाई अड्डा बनवाकर अयोध्यावासियों को विमान यात्रा का सपना बेच रही हैं. वे यह भी पूछते हैं कि ऐसा कब तक चलता रह सकता है?

इससे पहले ‘भव्य’ दीपोत्सव पर आनन-फानन में प्रधानमंत्री का अयोध्या आना तय हुआ तो प्रदेश के लोकनिर्माण विभाग ने उन्हें सब-कुछ ‘चंगा-सी’ दिखाने के लिए 46 लाख रुपये रंगाई-पुताई, रोड साइनेज, थर्मोप्लास्टिक के कामों और बैरीकेडिंग कराने पर फूंक दिए. इसके साथ ही प्रचार शुरू कर दिया गया कि राम की पैड़ी को नया लुक दिया जा रहा है और उसकी सीढ़ियों को स्टेडियम सरीखा बनाया जायेगा.

यह प्रचार अयोध्या आने वाले उन श्रद्धालुओं व पर्यटकों पर एक और इमोशनल अत्याचार था, जो इन सीढ़ियों पर बैठकर पैड़ी के सौंदर्य का आनंद लेने की हसरत रखते हैं. इस अत्याचार का दूसरा पहलू यह है कि दीपोत्सव के दौरान भी प्रमुख कार्यक्रम स्थलों को जाने वाले मार्गों, सरयू के घाटों और कुछ मठ-मंदिरों को छोड़कर अयोध्या की ज्यादातर गलियां व मोहल्ले अंधेरे व गन्दगी से अटे पड़े थे.

घोटालों की नगरी बन गई है अयोध्या

लेकिन बात इतनी-सी ही नहीं है, राम मंदिर निर्माण के साथ ही भगवान राम की नगरी भूमि की लूट व घोटालों की नगरी में बदल गई है और उसमें भूमि की खरीद-बिक्री में घपलों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. इन घोटालों में भाजपा के कई निर्वाचित जनप्रतिनिधियों व सरकारी अफसरों के नाम उछल चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है.

हालांकि, पिछले दिनों मुख्यमंत्री अयोध्या आये तो एक वायरल वीडियो में खुद अपने लोगों में से किसी से यह कहते हुए दिखे कि मुझे मालूम है कि आपने खूब जमीनें कब्जा कर रखी हैं.

लेकिन उसकी बात भी आई गई हो गई- भले ही समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडेय पवन पूछते रहे कि मुख्यमंत्री को अपने लोगों द्वारा खूब भूूमि कब्जाने की बात पता है, तो वे उन पर कार्रवाई क्यों नहीं करते?

अब भाजपा नेता डाॅ. रजनीश सिंह ने 12,500 बीघे नजूल भूमि के घोटाले की पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में शिकायत की है और उनका दावा है कि उसने संज्ञान लेकर उसकी जांच मुख्यमंत्री सचिवालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी भास्कर पांडे को सौंप दी है. वे कहते हैं कि अयोध्या में कोई भी ऐसा ताल-तलैया नहीं बचा है, जिस पर भू-माफियाओं व अफसरों की मिलीभगत से बड़ी-बड़ी अवैध कॉलोनियां न डेवलप कर ली गई हों.

बहरहाल, इस जांच का जो भी नतीजा निकले, लोग कहते हैं कि अयोध्या को दिखाया गया कि उसकी धरती पर स्वर्ग उतारने का सपना जिस तरह सब्जबाग में बदल रहा है, आगे भी वैसे ही बदलता रहा तो जब भी सत्ता परिवर्तन होगा, अयोध्या के बारे में भी वही बात कही जायेगी जो आजकल अमेठी के बारे में स्मृति ईरानी कहती रहती हैं, यह कि गांधी परिवार अमेठी से वोट तो लेता रहा, लेकिन उसके सपने पूरे करना जरूरी नहीं समझा.

फिलहाल, अयोध्या में भाजपा और उसकी सरकारें भी उसी ढर्रे पर चल पड़ी दिखती हैं- इमोशनल अत्याचार करके अयोध्यावासियों के वोट लेने और सपनों को सब्जबाग बना देने के ढर्रे पर, यों कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कांग्रेस काल में अमेठी वालों को प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय तक जैसी पहुंच हासिल थी, अयोध्या वालों को हासिल नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री की प्राथमिकता में वाराणसीवासी पहले आते हैं.

(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढ़ें: दिल्ली एमसीडी चुनाव के लिए 4 दिसंबर को होगी वोटिंग, 7 को आएगा परिणाम


 

share & View comments