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Wednesday, 18 December, 2024
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राजीव गाँधी और उनकी बीवी को चाहिए थीं कुछ अलग ही सुविधाएँ, इंदिरा ने अपने दोस्त से कहा था

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बिना किसी मंत्री पद के अनुभव के बावजूद राजीव गांधी 40 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे ।

राजीव गांधी आज 74 वर्ष के हो गए होते ।अब तक उनके ऊपर कोई पूर्ण जीवनी नहीं है। लेकिन यहां राजीव के निजी और राजनीतिक जीवन से संबंधित कुछ दिलचस्प पहलू हैं, जो विभिन्न राजनीतिक जीवनी से लिए गए हैं।

* 31 अक्टूबर 1984 को अपनी माँ इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही घंटों बाद, जब राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तो उन्हें नौ सदस्यीय कांग्रेस संसदीय बोर्ड (सीपीबी) ने चुना था। लेकिन असल में, केवल दो सदस्य – पी.वी. नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी ने आदर किया, न कि सभी नौ। उस समय संसदीय बोर्ड की चार पद रिक्त थे और दो सदस्य दिल्ली में नहीं थे। इंदिरा गांधी, जो कांग्रेस संसदीय बोर्ड (सीपीबी) की एकमात्र पूर्व कार्यकारी सदस्य थी, का देहांत हो गया था। कांग्रेस पार्टी संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, संसदीय बोर्ड लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए पार्टी उम्मीदवारों के चयन के लिए सर्वोच्च प्राधिकारी है, सभी राजनीतिक गतिविधियों को विनियमित और समन्वयित करता है एवं नियम तैयार करता है। दिलचस्प बात यह कि, बोर्ड मई 1991 में राजीव की मृत्यु के बाद से निष्क्रिय रहा है। लगातार एआईसीसी प्रमुख रहे नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने एक शक्तिशाली पार्टी फोरम में जवाबदेही के लिए इसे तैयार करने को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी ।


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* राजीव ने प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के तुरंत बाद दूरदर्शन के माध्यम से देश को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई है। वह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरे सभी देशवासियों के लिए मां थीं। “उन्होंने आगे कहा,” देश के किसी भी हिस्से में हिंसा की घटना से ज्यादा इंदिरा गांधी की आत्मा को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। “[पेज 389, द डायनेस्टी-आधुनिक भारत के प्रीमियर शासक परिवार की राजनीतिक जीवनी, एसएस गिल, हार्परकोलिन्स 1996].

*जब इंदिरा गाँधी का पार्थिव शरीर तीन मूर्ति भवन पे लिटाया गया था,बाहर खड़ी भीड़ ने लगातार “खून का बदला खून” का नारा लगाना चालू कर दिया| कांग्रेस के लोग और अन्य राजीव की सलाह सलाह सुनने को तैयार नहीं थे। उसके बाद हुए घातक हमलों में अकेले दिल्ली में 2,733 सिखों का क़त्ल या जिन्दा जला दिया गया। दिल्ली ने इस तरह के नरसंहार को पहले कभी नहीं देखा था । नादिर शाह ने क़त्ल -ए-आम (नरसंहार) का आदेश दिया था। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सचिव तारलोचन सिंह की कार को भी बख़्शा नहीं गया और उसमें आग लगा दी गई थी। [पेज 106, 24, अकबर रोड, रशीद किदवई ,हॅचेट 2012)।

राजीव गाँधी का राज्याभिषेक सयोंग से एक भयानक त्रासदी के साथ हुआ । भोपाल में,जहरीली गैस यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि रात को लीक हुई। 40 टन से अधिक जहरीले मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) में 3,700 (आधिकारिक आंकड़ा) और 25,000 लोग (कार्यकर्ताओं के अनुमान के अनुसार ) और 5 लाख लोगों को दूषित कर दिया । इसका दीर्घकालिक प्रभाव – मिट्टी और जल प्रदूषण, फेफड़ों का कैंसर, यकृत और गुर्दे की बीमारियां, जन्मजात विकलांगता – आज भी लोग इसके कष्ट से पीड़ित है ।


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* जब भोपाल गैस त्रासदी हुई उसी दौरान राजीव गाँधी आम चुनावों के लिए कमर कस रहे थे। यूनियन कार्बाइड के सीईओ वॉरेन एंडरसन गैस रिसाव के चार दिन बाद दिल्ली से भोपाल में उतरे उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उन्हें कुछ घंटों के भीतर छोड़ दिया गया, जाहिर है कि दिल्ली में सरकार के वरिष्ठ नेता की अर्जुन सिंह के साथ अनुकूल बात-चीत हुई , जो उस समय मुख्यमंत्री थे।

जबकि संदेह की सुई राजीव की तरफ थी । सिंह ने अपने संस्मरणों में (हे हाउस, द्वारा मरणोपरांत प्रकाशित,2012) शीर्षक ए ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरगिलास ऑफ टाइम: ए ऑटोबायोग्राफी में उस समय नरसिम्हा राव पर एंडरसन को भगाने का आरोप लगाया, जो उस समय केंद्रीय गृह मंत्री थे।

उन्होंने दावा किया कि राव ने केंद्रीय गृह सचिव आरडी प्रधान के माध्यम से राज्य के मुख्य सचिव ब्रह्मा स्वरुप को एंडरसन छोड़ने का निर्देश दिया था। सिंह ने लिखा “”मुझे बाद में पता चला कि केंद्रीय गृह सचिव पी.डी. प्रधान ने केंद्रीय गृहमंत्री पी.वी. के निर्देशों पर एंडरसन की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए ब्रह्मा स्वरुप (राज्य के मुख्य सचिव) को फोन किया था” ।

* राजीव 40 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बन गए थे। 1980 तक उनकी राजनीति में ना ही इच्छा थी और न ही कोई मंत्री पद का अनुभव था जब उनके छोटे भाई संजय की मृत्यु एक हवाई दुर्घटना में हुई थी। जब नेता अकबर अहमद ‘डम्पी’ ने संजय की मृत्यु के बाद राजीव के नाम अमेठी से सुझाया,लेखक गिल ने इंदिरा को यह कहते हुए उद्धृत किया, “मूर्ख मत बनो। उनकी [राजीव] राजनीति हमारी तरह नहीं है। ” “[पेज 392, द डायनेस्टी-आधुनिक भारत के प्रीमियर शासक परिवार की राजनीतिक जीवनी, एसएस गिल, हार्परकोलिन्स 1 996]. इंदिरा के दोस्त पुपुल जयकर ने लिखा है कि इंदिरा ने उन्हें बताया था की संजय बहुत किफायती था,लेकिन राजीव और उसकी पत्नी को ” अलग ही सुविधाओं की ज़रूरत है”। [पेज 417, इंदिरा गांधी – एक जीवनी, पुपुल जयकर, वाइकिंग 1988].

* जब राजीव का जन्म मुंबई में 20 अगस्त 1944 को हुआ था, तब उनके दादा जवाहरलाल नेहरू अहमदनगर जेल में थे, जो पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया को पूरा करने में व्यस्त थे। कथित तौर पर नेहरू ने हफ्तों तक अपने पोते के नाम की पसंद पर विचार किया । उन्होंने अपनी बहन कृष्णा हुतीसिंग को “सक्षम” व्यक्ति द्वारा बच्चे की उचित कुंडली को तैयार करने के लिए पत्र लिखा । [पेज 162, नेहरू का उनकी बहन को पत्र , कृष्णा हुतीसिंग , फैबर एंड फैबर, लंदन 1963] सितंबर 1944 के मध्य में, नेहरू ने अपनी बहन विजया लक्ष्मी पंडित को पत्र लिखा कि अगर परिवार जल्द ही बच्चे के नाम पर फैसला नहीं लेता है, तो हमें उसे नामहीन या असंख्य नामों के साथ बुलाना होगा। [पेज 501 ; सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू , एडिटेड बी सर्वेपल्ली गोपाल , ओरिएंट लोंगमेन एनएमएमएल,दिल्ली 1972]


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रशीद किदवई एक ओआरएफ रिसर्च फेलो, लेखक और पत्रकार हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार उनके अपने हैं।

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